मुस्लिम इलाक़ों
की आपस में तक्सीम पर इख्तिलाफ़ के बावजूद इस्लाम के ख़ातमे पर कुफ्फ़ार मुत्ताफ़िक़ हो
गऐ और इसके लिऐ उन्होंने मुख्तलिफ़ तरीक़े इख्तियार किए। उन्होंने यूरोपी मुमालिक में
क़ौमियत के नारे (nationalistic
slogans) ख़ुद मुख्तारी (independence)
के जज्बे को हवा दी और उन मुमालिक के बाशिंदों को इस्लामी रियासत के
ख़िलाफ़ बग़ावत पर उकसाया और उनकी असलेहा और माल से मदद् की ताके वो इस्लामी रियासत पर
हमलावर हों,
जैसा के सर्बिया (Serbia) और यूनान (Greece) के इलाक़ों में ज़ाहिर हुआ। उन्होंने इस्लामी रियासत पर पीछे
से हमलावर होने की कोशिश की और फ़्रांस ने मिस्र के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी और जुलाई 1798 को इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। फिर उस ने फिलस्तीन पर योरिश की और
इस पर भी क़ाबिज़ हो गया,
उसने बाक़ी शाम पर भी क़ब्ज़े का इरादा किया ताके इस्लामी रियासत
पर फ़ैसलाकुन वार करे लेकिन इसके बाद वो ख़ुद शिकस्त खा गया और मिस्र की सर ज़मीन भी हवाले
कर दी और निकलने पर मजबूर हो गया।
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इस्लामी सियासत
मदनी रियासत और सीरते पाक
इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.
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