ख़िलाफत का संविधान: भाग - 12: मजलिसे उम्मत

मजलिसे उम्मत


(Ummah Council)

दफा नं। 105: वह अफराद जो राय के लिहाज़ से मुसलमानों की नुमाइन्दगी करते हैं और जिन की तरफ ख़लीफा रुजु करता है उन्हे मजलिसे उम्मत कहा जाता है। हुक्मरानों के मज़ालिम की िशकायत या इस्लामी अहकामात को ग़लत तरीक़े से नाफिज़ करने की शिकायत की गरज़ से ग़ैर-मुस्लिम भी मजलिसे उम्मत के रुक्न (member) बन सकते हैं।
दफा नं. 106: हर विलाया में रहने वाले लोग अपनी मजलिसे विलाया के अराकीन का चुनाव बराहेरास्त इन्तेखाब के ज़रिये करेगें। विलायात की मजलिस के मेमबरान की तादाद विलाया में रहने वाले लोगों की तादाद कि बिना पर होगी। मजलिसे उम्मत के मेम्बरान का चुनाव उन मजालिसे विलायात से बराहेरास्त किया जाएगा। मजलिसे उम्मत की इब्तदा और इन्तेहा की मुद्दत वही होगी जो के विलायात की मजालिस की होगी।
दफा नं. 107: हर आक़िल व बालिग शख्स जो रियासत का शहरी हो, को मजलिसे उम्मत का रुक्न बनने का हक़ हासिल है। ख्वाह वह मर्द हो या औरत, मुस्लमान हो या काफिर, अलबत्ता ग़ैर-मुस्लिम रुक्न का मशवरा हुक्काम के मज़ालिम या इस्लामी अहकामात की ग़लत तरीक़े पर तनफीद की िशकायत तक महदूद होगा।
दफा नं. 108: शूरा और मशवरा का मतलब मुतलक़ अन्दाज में राय लेना है और जब अमली मोआमलात के मुताल्लिक़ राय ली जाये, तो उस पर अमल करना लाज़िम है। जबके क़ानून को मुरत्तब करना, क़वानीन की तारीफ, फिकरी उमूर जैसे हक़इक़ से पर्दा उठाना और फन्नी और साइन्सी उमूर के मुताल्लिक़ मश्वरे पर अमल करना खलीफा के लिये लाज़िम नहीं है।
दफा नं. 109: शूरा सिर्फ मुस्लमानों का हक़ है। इस में गैर-मुस्लिमों को कोई हक़ नहीं। लेकिन इजहारे राय का हक़ रिआया के तमाम अफराद ख्वाह मुस्लिम हों या ग़ैर-मुस्लिम, सब को हासिल है।
दफा नं. 110: वह मसाइल जो अमली मामलात के तहत आते हो और उन के मुताल्लिक़ मशवरे लिये जाए, तो फिर ऐसी सूरत में अक्सरियत की राय को इख्तियार किया जायेगा, कताअ नज़र इस के कि वह दुरूस्त है या ग़लत। वह मोआमलात जिन का ताल्लुक़ क़वानीन मुरत्तब करने, फिक्री उमूर या तारीफात से हो उन में देखा जायेगा के दुरूस्त क्या हैं? और इस बात को नज़र अन्दाज कर दिया जायेगा के यह अक्सरियत की राय है या अक़ल्लियत की।
दफा नं. 112: मजलिसे उम्मत को पांच इख्तियारात हासिल होंगे:

(1-A) खलीफा मजलिसे उम्मत से मश्वरा करेगा और मजलिसे उम्मत खलीफा को अमली इक़दाम और उन अमली मोआमलात और उमूर में मश्वरा देगी, जिन का ताल्लुक़ लोगों के उमूर की देखभाल से मुताल्लिक़ अन्दरुनी पॉलिसी से हो और जिस में गहरी नज़र और जांच पडताल की ज़रुरत नहीं होती। जैसे की हुकूमत को चलाना, तालीम, सेहत, तिजारत, सनअत व ज़राअत वग़ैराह। ऐसी सूरत में खलीफा के लिये मजलिस की राय पर अमल करना लाज़िम होगा।
(1-B) वो मोआमलात, जिस का ताअल्लुक फिक्री उमूरे से है, जिन के लिये गहरी नज़र और जांच पडताल की ज़रुरत होती है, और वोह मोआमलात, जो तज़ुर्बे और इल्म के मोहतज हैं, नेज़ साइन्सी और टेकनिकल उमूर, मालियाती उमूर, अफवाज और खारेजा पॉलिसी से मुताल्लिक़ उमूर, इन तमाम मोआमलात में खलीफा मशवरा लेने के लिये मजलिसे उम्मत की तरफ रुजूअ करेगा और इन मोआमलात में मजलिस की राय पर अमल करना खलीफा पर लाज़मी नहीं।
(2) खलीफा दस्तूर और क़वानीन के लिये जिन अहकामात की तबन्नी का इरादा करे तो उसे चाहिये की इन अहकामात को मजलिसे उम्मत के सामने रखे। मजलिसे उम्मत के मुस्लिम अराकीन को इन के बारे में बहस व मुबाहिसे का हक़ हासिल है, और वह यह की वोह इन अहकामात के दुरुस्त और ग़लत पहलुओं को बयान करे। और अगर वोह खलीफा के साथ इस अम्र में इख्तिलाफ करे कि खलीफा का तरीक़ाए तबन्नी, अहकामे शरीअत की तबन्नी से मुताल्लिक़ रियासत के तरीक़े के मुखालिफ है, तो यह मोआमला महकमातुल मज़ालिम के सामने पेश होगा और इस में महकमातुल मज़ालिम की राय पर अमल करना लाज़िम होगा।
(3) मजलिसे उम्मत को तमाम मोआमलात में रियासत के मोहासबे का हक़ हासिल है। ख्वाह उन उमूर का ताअल्लुक खारेजा से हो या यह दाखिली उमूर से हो, या मालियात, फौज और दिगर उमूर से मुताल्लिक़ हों। इस सिलसिले में मजलिस की राय को इख्तियार करना लाजिमी होगा, अगर इन मोआमलात का ताल्लुक़ ऐसे उमूर से हो जिन में अक्सरियत की राय को इख्तियार करना लाज़िम होता है। और अगर इस मोआमले का ताल्लुक़ उन उमूर से हो जिस में अक्सरियत की राय पर अमल करना लाज़िम नहीं होता तो मजलिस की राय पर अमल करना लाज़मी न होगा।
अगर मजलिस खलीफा के साथ, किसी ऐसे अमल पर शरई नुक़्ताऐ नज़र कि विना पर इख्तिलाफ करे, जो की अपने अनजाम को पहुंच चुका है, तो फिर इस सूरत में महकमातुल मज़ालिम की तरफ रुजूअ किया जायेगा। और महकमातुल मज़ालिम इस बात का फैसला करेगा की यह फैसला शरई था या नहीं और महकमातुल मज़ालिम की राय पर अमल करना लाज़िम होगा।
(4) मजलिसे उम्मत वालियों और मोआविनीन और अमाल के बारे में नापसन्दीदगी (अद्मे ऐतमाद) का इज़हार कर सकती है। इस मोआमले में उसकी राय पर अमल करना ज़रूरी होगा और ख़लीफा को लाज़िम है की वो फौरन उन्हे माअजूल कर दे। अगर इस मोआमले में मजलिसे उम्मत की राय, उस विलाया की मजलिसे विलाया कि राय के खिलाफ हो तो उस सूरत में मजलिसे विलाया की राय मुक़द्दम होगी।(5) मजलिसे उम्मत के मुसलमान अराकीन को ख़िलाफत के उम्मीद्वारो की कांट-छांट करने का हक़ हासिल है जिन के मुताल्लिक़ महकमातुल मज़ालिम ने फैसला दे दिया हो की वोह शर्ते इनअक़ाद पर पूरा उतरते है। इस मोआमले में मजलिस कि राय पर अमल करना लाज़िम है और मजलिस के कांट-छांट करदा उम्मीद्वारो के सिवा, किसी का इंतेखाब दुरुस्त न होगा।
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