ISIS के ज़रिये खिलाफत के क़याम के ताल्लुक़ से सवाल-जबाब
अज़ीज़ भाईयों!
अस्सलामु अलैयकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातिहू व मग़फिरतहू
मुझ से ISIS के ऐलान, कि ख़िलाफ़त क़ायम कर दी गई है, और तहरीक के सरबराह अबू बक्र अलबग़दादी की बहैसियत मुसलमानों के ख़लीफ़ा के बैअत के हवाले से बहुत से सवाल पूछे जा रहे हैं। जो लोग ये सवालात पूछ रहे हैं वो इस मुआमले की असल हक़ीक़त और इस हवाले से हमारा मौक़िफ़ (रवैय्या) जानना चाहते हैं। उसूलन शबाब फ़िक्र मुस्तनीर (रोशन फिक्र) पर मबनी गहरी सोच के हामिल हैं और ज़बरदस्त सियासी बसीरत रखते हैं, और बुनियादी तौर पर वो इस काबिल हैं कि वो बगै़र किसी इबहाम (धुंधलेपन) और शक के इस मसले पर होने वाली पेशरफ़्त को देख सकें। लिहाज़ा मुम्किन है कि वो इस आयत के मफ़हूम के मुताबिक़ राय जानना चाहते हों कि
अस्सलामु अलैयकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातिहू व मग़फिरतहू
मुझ से ISIS के ऐलान, कि ख़िलाफ़त क़ायम कर दी गई है, और तहरीक के सरबराह अबू बक्र अलबग़दादी की बहैसियत मुसलमानों के ख़लीफ़ा के बैअत के हवाले से बहुत से सवाल पूछे जा रहे हैं। जो लोग ये सवालात पूछ रहे हैं वो इस मुआमले की असल हक़ीक़त और इस हवाले से हमारा मौक़िफ़ (रवैय्या) जानना चाहते हैं। उसूलन शबाब फ़िक्र मुस्तनीर (रोशन फिक्र) पर मबनी गहरी सोच के हामिल हैं और ज़बरदस्त सियासी बसीरत रखते हैं, और बुनियादी तौर पर वो इस काबिल हैं कि वो बगै़र किसी इबहाम (धुंधलेपन) और शक के इस मसले पर होने वाली पेशरफ़्त को देख सकें। लिहाज़ा मुम्किन है कि वो इस आयत के मफ़हूम के मुताबिक़ राय जानना चाहते हों कि
تُؤۡمِنۖ قَالَ بَلَىٰ وَلَـٰكِن لِّيَطۡمَٮِٕنَّ قَلۡبِى
"उन्होंने कहा ईमान तो है लेकिन मेरे दिल को इत्मिनान हो जाएगा"
(अलबक़रहৃ: 260)
अज़ीज़ भाईयों!
किसी भी गिरोह के लिए, जिसे किसी जगह ख़िलाफ़त के क़याम का ऐलान करना है, ये ज़रूरी है कि वो इस मुआमले में रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार की पैरवी करे, और उस मन्हज (तरीक़े) के मुताबिक़ इस गिरोह के लिए उस जगह पर वाज़िह नज़र आने वाला इख्तियार (authority/सत्ता) होना ज़रूरी है ताकि वो उस जगह पर अंदरूनी और बैरूनी (बाहरी) सलामती (सुरक्षा) को बरक़रार रख सके और जिस जगह ख़िलाफ़त का ऐलान किया जा रहा है उस जगह वो तमाम ख़ुसूसीयात होना ज़रूरी हैं जो किसी भी एक रियासत में मौजूद होती हैं । जब रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने मदीना में इस्लामी रियासत क़ायम की तो उन्होंने मुंदरजा ज़ैल (नीचे लिखीं) सलाहीयतें हासिल कीं:
1. ऑथोरिटी रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के पास थी और
2. अंदरूनी-ओ-बैरूनी सुरक्षा मुसलमानों के हाथ में थी और
3. जो कुछ एक रियासत में होना चाहिए वो मदीना और इस के आस पास के इलाक़े में मौजूद था।
जिस गिरोह ने ख़िलाफ़त के क़याम का ऐलान किया है ना तो इस के पास अथार्टी (सत्ता) है , चाहे इराक़ हो या शाम और ना ही उन के पास ये सलाहीयत है कि वो अंदरूनी-ओ-बैरूनी सुरक्षा को बरक़रार रख सकें। उन्होंने एक ऐसे शख़्स को बैअत दी है जो खुल कर अवाम के सामने भी नहीं आ सकता बल्कि उस की सूरत-ए-हाल अब भी खु़फ़ीया है जैसा कि रियासत के क़ियाम के ऐलान से पहले थी और ये अमल रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के अमल से मतनाक़ज़ (विपरीत) है। रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) को रियासत के क़याम से क़ब्ल ग़ार-ए-सौर में छिपने की इजाज़त थी लेकिन रियासत के क़याम के बाद उन्होंने लोगों के उमूर (मुआमलात) की देखभाल सँभाल ली, अफ़्वाज की क़ियादत की, मुक़द्दमात में फ़ैसले सुनाए अपने सफ़ीर (राजदूत) भेजे और दूसरों के सफ़ीर क़बूल किए और ये सब खुले आम ,अवाम के सामने था, लिहाज़ा रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) की सूरत-ए-हाल रियासत के क़याम से पहले और बाद में बिल्कुल मुख़्तलिफ़ थी। इसीलिए इस गिरोह की जानिब से रियासत के क़याम का ऐलान सिर्फ एक जज़बाती नारा है जिस में कोई वज़न नहीं है। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि इस से पहले भी लोग महिज़ अपनी तसकीन के लिए बगै़र किसी जवाज़ और वज़न के रियासत के क़याम का ऐलान कर चुके हैं । तो कुछ तो वो हैं जिन्होंने ख़ुद को ख़लीफ़ा कहलवाया और कुछ ने ख़ुद को महदी कहलवाया जबकि उन के पास ना तो कोई ताक़त-ओ-इख़तियार था और ना ही कोई अमन-ओ-सलामती क़ायम करने की सलाहियत।
रियासत ख़िलाफ़त की एक शान-ओ-शौकत है, और शरीयत ने इस के क़याम का एक मन्हज बताया है और वो तरीक़ा भी बताया है कि किस तरह हुक्मरानी, सियासत, मईशत (अर्थव्यवस्था) और बैन-उल-अक़वामी ताल्लुक़ात (अंतर्राष्टीय सम्बन्धों) के अहकामात अख़ज़ किए जाते हैं। और ख़िलाफ़त के क़ियाम का ऐलान महिज़ नाम का ऐलान नहीं होगा जिस को वेबसाइट या प्रिंट और इलैक़्ट्रोनिक मीडीया पर जारी कर दिया जाये बल्कि वो एक ऐसा वाक़िया होगा जो पूरी दुनिया को हिला कर रख देगा और उस की बुनियादें मज़बूत और ज़मीन में पैवस्त होंगी, इस का इख्तियार उस जगह पर अंदरूनी-ओ-बैरूनी अमन-ओ-सलामती को क़ायम और बरक़रार रखेगा और वो इस सरज़मीन पर इस्लाम को नाफ़िज़ करेगी और दावत-ओ-जिहाद के ज़रीये इस्लाम के पैग़ाम को पूरी दुनिया तक लेकर जाएगी।
ये जो ऐलान किया गया है महिज़ अल्फाज़ हैं, जो इस गिरोह की हक़ीक़त को ना तो बढ़ा सकेंगे और ना ही घटा सकेंगे। ये गिरोह दरअसल इस ऐलान से पहले एक मुसल्लह तहरीक (हथियारबन्द आन्दोलन) था और रियासत के क़याम के ऐलान के बाद भी एक मुसल्लह तहरीक ही है। उस की हक़ीक़त उन मुसल्लह गिरोहों की सी है जो एक दूसरे के ख़िलाफ़ और हुकूमतों के ख़िलाफ़ मुसल्लह जद्द-ओ-जहद करते हैं जबकि इन में से किसी के पास ये सलाहीयत मौजूद नहीं कि वो शाम या इराक़ या दोनों जगह अथार्टी हासिल कर सकें। अगर इन में कोई भी गिरोह, जिस में ISIS भी शामिल है, दरअसल किसी मुनासिब मुक़ाम पर अपने इख्तियार को क़ायम कर सके, जहां रियासत के लिए दरकार लवाज़मात मौजूद हों और फिर ख़िलाफ़त का ऐलान करे और इस्लाम को नाफ़िज़ करे तो ऐसे मुआमले का मुताला करना ज़रूरी होता कि ख़िलाफ़त शरई अहकामात के मुताबिक़ हक़ीक़तन क़ायम हो गई है या नहीं? और फिर इस मुआमले की छानबीन (पैरवी) की जाती क्योंकि ख़िलाफ़त को क़ायम करना तमाम मुसलमानों पर फ़र्ज़ है ना कि सिर्फ़ हिज़्बुत्तहरीर पर , लिहाज़ा जो कोई ख़िलाफ़त क़ायम करता तो फिर उस की छानबीन की जाती। लेकिन इस वक़्त मुआमला ऐसा नहीं है बल्कि तमाम मुसल्लह तहरीकें खासतौर पर ISIS, किसी के पास भी ज़मीन के किसी टुकड़े पर ना तो कोई इख़तियार है और ना इस ज़मीन पर कोई अमन-ओ-सलामती क़ायम करने की सलाहीयत है। लिहाज़ा ISIS की जानिब से ख़िलाफ़त के क़याम का ऐलान महिज़ एक नारा है जिस की इतनी भी अहमियत नहीं कि उस की हक़ीक़त की छानबीन भी की जाये और देखने वाली आँख के लिए ये बिलकुल वाज़िह है।
लेकिन जिस चीज़ का मुताला और मुशाहिदा किया जाना ज़रूरी है वो इस ऐलान के नतीजे में पैदा होने वाले मनफ़ी नताइज (negative result) हैं जो आम और सादे लोगों में ख़िलाफ़त के हवाले से पैदा होंगे। ख़िलाफ़त की एहमीयत उन की नज़र में कम हो जाएगी और उस की शान-ओ-शौकत का तसव्वुर मुसलमानों के ज़हनों में घट जाएगा कि जैसे ये एक कमज़ोर तसव्वुर है। ये ऐसा ही है कि जैसे एक शख़्स मायूसी के आलम में किसी गांव या बीच चौराहे में खड़े हो कर अपनी मायूसी निकालने के लिए ऐलान कर दे के वो ख़लीफ़ा है और फिर चलता बने ये सोचते हुए कि उसने जो किया इस में बड़ी भलाई थी! ऐसा करने से ख़िलाफ़त की एहमीयत कम हो जाएगी और उस की अज़मत आम मुसलमानों के दिलों से ख़त्म हो जाएगी और फिर ये एक ख़ूबसूरत लफ़्ज़ से ज़्यादा एहमीयत नहीं रखेगी कि जिस को फ़ख्र से बोला तो जाये लेकिन इसकी कोई माद्दी (भौतिक) हक़ीक़त मौजूदा ना हो । ये वो मुआमला है जिसका मुशाहिदा किया जाना ज़रूरी है ख़ुसूसन एक ऐसे वक़्त में जब कि ख़िलाफ़त का क़याम किसी भी गुज़रे वक़्त से ज़्यादा क़रीब आ चुका है और मुसलमान इस का इंतिज़ार बेचैनी से कर रहे हैं और वो देख रहे हैं कि हिज़्बुत्तहरीर रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के उस तरीक़े पर बढ़ती चली जा रही है जिस के ज़रीये रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने मदीने में इस्लामी रियासत क़ायम फ़रमाई थी। और उम्मत खिलाफत के आमाल का और मुसलमानों के खिलाफत के पैग़ाम को गले लगाने का बराह-ए-रास्त मुशाहिदा कर रही है । मुसलमान खिलाफत के इन आमाल के नतीजे में पैदा होने वाली इस्लामी उखुवत (भाई चारे) को देख रहे हैं और वो कामयाबी के साथ हिज़्बुत्तहरीर के हाथों क़ायम होने वाली ख़िलाफ़त के क़याम पर और लोगों के मुआमलात की उम्दा देख भाल करने पर ख़ुशी का इज़हार करेंगे और ये रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार पर चलने वाली ख़िलाफ़त-ए-राशिदा होगी। और ये है वो वक़्त जब ये ऐलान किया जाता है ताकि ख़िलाफ़त के मुताल्लिक़ आम लोगों में ये तसव्वुर आम किया जाये कि जैसे वो एक पुलिस स्टेट होगी।
ये तमाम बातें एक सवाल को जन्म देती हैं बल्कि कई सवालात को जन्म देती हैं। इस ऐलान का वक़्त जबकि ये ऐलान करने वाले कोई ऑथोरिटी नहीं रखते जिस के ज़रीये वो अंदरूनी और बैरूनी अमन और सलामती को बरक़रार रख सकें। हक़ीक़त ये है कि उन्होंने फैसबुक और मीडीया पर महिज़ ऐलान ही किया है। इस वक़्त का चुनाव शक पैदा करता है और खासतौर पर इसलिए भी कि ये मुसल्लह गिरोह किसी फ़िक्री (वैचारिक) बुनियाद और ढाँचे पर क़ायम नहीं होते जिस की वजह से मशरिक़-ओ-मग़रिब (पूरब और पच्शिम) के शैतानों का इन में दाख़िल हो जाना आसान है और ये बात हर कोई जानता है कि मग़रिब और मशरिक़ इस्लाम से नफ़रत करते हैं और इस्लाम और ख़िलाफ़त के ख़िलाफ़ मंसूबे बनाते हैं और वो इस के तसव्वुर को बिगाड़ देना चाहते हैं क्योंकि वो इस का नाम मिटाने में नाकाम हो चुके हैं । लिहाज़ा वो इस बात को यक़ीनी बनाना चाहते हैं कि ख़िलाफ़त महिज़ एक नाम ही रह जाये जिस के तसव्वुर में कोई वज़न ना हो। लिहाज़ा वो ये चाहते हैं कि वो वाक़िया जो एक अज़ीम वाक़िया होता और जिस के नतीजे में कुफ़्फ़ार हवासे बाख़्ता (बद हवास) हो कर रह जाते, इस का ऐलान हमारे दुश्मनों के लिए एक मज़ाक़ बन कर रह जाये।
ऐ अज़ीज़ भाईयों,
इस बात के साथ साथ जो ये शयातीन कर रहे हैं , हम मशरिक़ और मग़रिब में मौजूद इस्लाम के दुश्मनों और उन के एजैंटों और उन के पैरोकारों को बता देना चाहते हैं कि वो ख़िलाफ़त आज भी मारूफ़ है जिस ने सदीयों तक दुनिया की क़ियादत की ,और उन की तमाम तर चालों और साज़िशों के बावजूद नाक़ाबिल-ए-तसख़ीर होगी ।
(अलबक़रहৃ: 260)
अज़ीज़ भाईयों!
किसी भी गिरोह के लिए, जिसे किसी जगह ख़िलाफ़त के क़याम का ऐलान करना है, ये ज़रूरी है कि वो इस मुआमले में रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार की पैरवी करे, और उस मन्हज (तरीक़े) के मुताबिक़ इस गिरोह के लिए उस जगह पर वाज़िह नज़र आने वाला इख्तियार (authority/सत्ता) होना ज़रूरी है ताकि वो उस जगह पर अंदरूनी और बैरूनी (बाहरी) सलामती (सुरक्षा) को बरक़रार रख सके और जिस जगह ख़िलाफ़त का ऐलान किया जा रहा है उस जगह वो तमाम ख़ुसूसीयात होना ज़रूरी हैं जो किसी भी एक रियासत में मौजूद होती हैं । जब रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने मदीना में इस्लामी रियासत क़ायम की तो उन्होंने मुंदरजा ज़ैल (नीचे लिखीं) सलाहीयतें हासिल कीं:
1. ऑथोरिटी रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के पास थी और
2. अंदरूनी-ओ-बैरूनी सुरक्षा मुसलमानों के हाथ में थी और
3. जो कुछ एक रियासत में होना चाहिए वो मदीना और इस के आस पास के इलाक़े में मौजूद था।
जिस गिरोह ने ख़िलाफ़त के क़याम का ऐलान किया है ना तो इस के पास अथार्टी (सत्ता) है , चाहे इराक़ हो या शाम और ना ही उन के पास ये सलाहीयत है कि वो अंदरूनी-ओ-बैरूनी सुरक्षा को बरक़रार रख सकें। उन्होंने एक ऐसे शख़्स को बैअत दी है जो खुल कर अवाम के सामने भी नहीं आ सकता बल्कि उस की सूरत-ए-हाल अब भी खु़फ़ीया है जैसा कि रियासत के क़ियाम के ऐलान से पहले थी और ये अमल रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के अमल से मतनाक़ज़ (विपरीत) है। रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) को रियासत के क़याम से क़ब्ल ग़ार-ए-सौर में छिपने की इजाज़त थी लेकिन रियासत के क़याम के बाद उन्होंने लोगों के उमूर (मुआमलात) की देखभाल सँभाल ली, अफ़्वाज की क़ियादत की, मुक़द्दमात में फ़ैसले सुनाए अपने सफ़ीर (राजदूत) भेजे और दूसरों के सफ़ीर क़बूल किए और ये सब खुले आम ,अवाम के सामने था, लिहाज़ा रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) की सूरत-ए-हाल रियासत के क़याम से पहले और बाद में बिल्कुल मुख़्तलिफ़ थी। इसीलिए इस गिरोह की जानिब से रियासत के क़याम का ऐलान सिर्फ एक जज़बाती नारा है जिस में कोई वज़न नहीं है। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि इस से पहले भी लोग महिज़ अपनी तसकीन के लिए बगै़र किसी जवाज़ और वज़न के रियासत के क़याम का ऐलान कर चुके हैं । तो कुछ तो वो हैं जिन्होंने ख़ुद को ख़लीफ़ा कहलवाया और कुछ ने ख़ुद को महदी कहलवाया जबकि उन के पास ना तो कोई ताक़त-ओ-इख़तियार था और ना ही कोई अमन-ओ-सलामती क़ायम करने की सलाहियत।
रियासत ख़िलाफ़त की एक शान-ओ-शौकत है, और शरीयत ने इस के क़याम का एक मन्हज बताया है और वो तरीक़ा भी बताया है कि किस तरह हुक्मरानी, सियासत, मईशत (अर्थव्यवस्था) और बैन-उल-अक़वामी ताल्लुक़ात (अंतर्राष्टीय सम्बन्धों) के अहकामात अख़ज़ किए जाते हैं। और ख़िलाफ़त के क़ियाम का ऐलान महिज़ नाम का ऐलान नहीं होगा जिस को वेबसाइट या प्रिंट और इलैक़्ट्रोनिक मीडीया पर जारी कर दिया जाये बल्कि वो एक ऐसा वाक़िया होगा जो पूरी दुनिया को हिला कर रख देगा और उस की बुनियादें मज़बूत और ज़मीन में पैवस्त होंगी, इस का इख्तियार उस जगह पर अंदरूनी-ओ-बैरूनी अमन-ओ-सलामती को क़ायम और बरक़रार रखेगा और वो इस सरज़मीन पर इस्लाम को नाफ़िज़ करेगी और दावत-ओ-जिहाद के ज़रीये इस्लाम के पैग़ाम को पूरी दुनिया तक लेकर जाएगी।
ये जो ऐलान किया गया है महिज़ अल्फाज़ हैं, जो इस गिरोह की हक़ीक़त को ना तो बढ़ा सकेंगे और ना ही घटा सकेंगे। ये गिरोह दरअसल इस ऐलान से पहले एक मुसल्लह तहरीक (हथियारबन्द आन्दोलन) था और रियासत के क़याम के ऐलान के बाद भी एक मुसल्लह तहरीक ही है। उस की हक़ीक़त उन मुसल्लह गिरोहों की सी है जो एक दूसरे के ख़िलाफ़ और हुकूमतों के ख़िलाफ़ मुसल्लह जद्द-ओ-जहद करते हैं जबकि इन में से किसी के पास ये सलाहीयत मौजूद नहीं कि वो शाम या इराक़ या दोनों जगह अथार्टी हासिल कर सकें। अगर इन में कोई भी गिरोह, जिस में ISIS भी शामिल है, दरअसल किसी मुनासिब मुक़ाम पर अपने इख्तियार को क़ायम कर सके, जहां रियासत के लिए दरकार लवाज़मात मौजूद हों और फिर ख़िलाफ़त का ऐलान करे और इस्लाम को नाफ़िज़ करे तो ऐसे मुआमले का मुताला करना ज़रूरी होता कि ख़िलाफ़त शरई अहकामात के मुताबिक़ हक़ीक़तन क़ायम हो गई है या नहीं? और फिर इस मुआमले की छानबीन (पैरवी) की जाती क्योंकि ख़िलाफ़त को क़ायम करना तमाम मुसलमानों पर फ़र्ज़ है ना कि सिर्फ़ हिज़्बुत्तहरीर पर , लिहाज़ा जो कोई ख़िलाफ़त क़ायम करता तो फिर उस की छानबीन की जाती। लेकिन इस वक़्त मुआमला ऐसा नहीं है बल्कि तमाम मुसल्लह तहरीकें खासतौर पर ISIS, किसी के पास भी ज़मीन के किसी टुकड़े पर ना तो कोई इख़तियार है और ना इस ज़मीन पर कोई अमन-ओ-सलामती क़ायम करने की सलाहीयत है। लिहाज़ा ISIS की जानिब से ख़िलाफ़त के क़याम का ऐलान महिज़ एक नारा है जिस की इतनी भी अहमियत नहीं कि उस की हक़ीक़त की छानबीन भी की जाये और देखने वाली आँख के लिए ये बिलकुल वाज़िह है।
लेकिन जिस चीज़ का मुताला और मुशाहिदा किया जाना ज़रूरी है वो इस ऐलान के नतीजे में पैदा होने वाले मनफ़ी नताइज (negative result) हैं जो आम और सादे लोगों में ख़िलाफ़त के हवाले से पैदा होंगे। ख़िलाफ़त की एहमीयत उन की नज़र में कम हो जाएगी और उस की शान-ओ-शौकत का तसव्वुर मुसलमानों के ज़हनों में घट जाएगा कि जैसे ये एक कमज़ोर तसव्वुर है। ये ऐसा ही है कि जैसे एक शख़्स मायूसी के आलम में किसी गांव या बीच चौराहे में खड़े हो कर अपनी मायूसी निकालने के लिए ऐलान कर दे के वो ख़लीफ़ा है और फिर चलता बने ये सोचते हुए कि उसने जो किया इस में बड़ी भलाई थी! ऐसा करने से ख़िलाफ़त की एहमीयत कम हो जाएगी और उस की अज़मत आम मुसलमानों के दिलों से ख़त्म हो जाएगी और फिर ये एक ख़ूबसूरत लफ़्ज़ से ज़्यादा एहमीयत नहीं रखेगी कि जिस को फ़ख्र से बोला तो जाये लेकिन इसकी कोई माद्दी (भौतिक) हक़ीक़त मौजूदा ना हो । ये वो मुआमला है जिसका मुशाहिदा किया जाना ज़रूरी है ख़ुसूसन एक ऐसे वक़्त में जब कि ख़िलाफ़त का क़याम किसी भी गुज़रे वक़्त से ज़्यादा क़रीब आ चुका है और मुसलमान इस का इंतिज़ार बेचैनी से कर रहे हैं और वो देख रहे हैं कि हिज़्बुत्तहरीर रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के उस तरीक़े पर बढ़ती चली जा रही है जिस के ज़रीये रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने मदीने में इस्लामी रियासत क़ायम फ़रमाई थी। और उम्मत खिलाफत के आमाल का और मुसलमानों के खिलाफत के पैग़ाम को गले लगाने का बराह-ए-रास्त मुशाहिदा कर रही है । मुसलमान खिलाफत के इन आमाल के नतीजे में पैदा होने वाली इस्लामी उखुवत (भाई चारे) को देख रहे हैं और वो कामयाबी के साथ हिज़्बुत्तहरीर के हाथों क़ायम होने वाली ख़िलाफ़त के क़याम पर और लोगों के मुआमलात की उम्दा देख भाल करने पर ख़ुशी का इज़हार करेंगे और ये रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार पर चलने वाली ख़िलाफ़त-ए-राशिदा होगी। और ये है वो वक़्त जब ये ऐलान किया जाता है ताकि ख़िलाफ़त के मुताल्लिक़ आम लोगों में ये तसव्वुर आम किया जाये कि जैसे वो एक पुलिस स्टेट होगी।
ये तमाम बातें एक सवाल को जन्म देती हैं बल्कि कई सवालात को जन्म देती हैं। इस ऐलान का वक़्त जबकि ये ऐलान करने वाले कोई ऑथोरिटी नहीं रखते जिस के ज़रीये वो अंदरूनी और बैरूनी अमन और सलामती को बरक़रार रख सकें। हक़ीक़त ये है कि उन्होंने फैसबुक और मीडीया पर महिज़ ऐलान ही किया है। इस वक़्त का चुनाव शक पैदा करता है और खासतौर पर इसलिए भी कि ये मुसल्लह गिरोह किसी फ़िक्री (वैचारिक) बुनियाद और ढाँचे पर क़ायम नहीं होते जिस की वजह से मशरिक़-ओ-मग़रिब (पूरब और पच्शिम) के शैतानों का इन में दाख़िल हो जाना आसान है और ये बात हर कोई जानता है कि मग़रिब और मशरिक़ इस्लाम से नफ़रत करते हैं और इस्लाम और ख़िलाफ़त के ख़िलाफ़ मंसूबे बनाते हैं और वो इस के तसव्वुर को बिगाड़ देना चाहते हैं क्योंकि वो इस का नाम मिटाने में नाकाम हो चुके हैं । लिहाज़ा वो इस बात को यक़ीनी बनाना चाहते हैं कि ख़िलाफ़त महिज़ एक नाम ही रह जाये जिस के तसव्वुर में कोई वज़न ना हो। लिहाज़ा वो ये चाहते हैं कि वो वाक़िया जो एक अज़ीम वाक़िया होता और जिस के नतीजे में कुफ़्फ़ार हवासे बाख़्ता (बद हवास) हो कर रह जाते, इस का ऐलान हमारे दुश्मनों के लिए एक मज़ाक़ बन कर रह जाये।
ऐ अज़ीज़ भाईयों,
इस बात के साथ साथ जो ये शयातीन कर रहे हैं , हम मशरिक़ और मग़रिब में मौजूद इस्लाम के दुश्मनों और उन के एजैंटों और उन के पैरोकारों को बता देना चाहते हैं कि वो ख़िलाफ़त आज भी मारूफ़ है जिस ने सदीयों तक दुनिया की क़ियादत की ,और उन की तमाम तर चालों और साज़िशों के बावजूद नाक़ाबिल-ए-तसख़ीर होगी ।
وَيَمۡكُرُونَ وَيَمۡكُرُ ٱللَّهُۖ وَٱللَّهُ خَيۡرُ ٱلۡمَـٰڪِرِينَ
"और वो अपनी तदबीरें कर रहे थे और अल्लाह अपनी तदबीर कर रहा था और सब से ज़्यादा मुस्तहकम तदबीर वाला सिर्फ़ अल्लाह ही है" (अल अनफ़ाल:30)।
अल्लाह ने हमें ख़िलाफ़त के क़ियाम के लिए एक मज़बूत जमात से नवाज़ा है जिस में ऐसे मर्द-ओ-ख़वातीन शामिल हैं जिन्हें कोई दुनियावी काम अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल नहीं करता, उन्होंने ख़िलाफ़त के तसव्वुर को अपने दिल-ओ-दिमाग़ से क़बूल किया है, इसके लिए जिस चीज़ की ज़रूरत है ये उस की तैय्यारी करते हैं और इस्लाम से अहकामात और आईन (क़ानून) को अख़ज़ करते हैं जिस में हुक्मरानी और इंतिज़ामी ढांचा भी शामिल है। वो इस के हुसूल के लिए ऐन रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार के मुताबिक़ आगे बढ़ रहे हैं। अल्लाह के हुक्म से वो एक ऐसी ढाल हैं जो किसी भी ग़ैर इस्लामी फ़िक्र और अमल के ख़िलाफ़ जद्दोजहद करती हैं। ये वो पत्थर हैं जिस पर कुफ़्फ़ार और उन के एजैंटों की साज़िशें तबाह बर्बाद हो जाती हैं, अल्लाह की दी हुई ताक़त की बदौलत वो ऐसे बाअलम सियासतदान हैं जो अल्लाह की मदद-ओ-नुसरत से इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों के मंसूबों के ख़िलाफ़ मुज़ाहमत (प्रतिरोध) करते हैं और उन के मंसूबों को इन ही पर उलट देते हैं
अल्लाह ने हमें ख़िलाफ़त के क़ियाम के लिए एक मज़बूत जमात से नवाज़ा है जिस में ऐसे मर्द-ओ-ख़वातीन शामिल हैं जिन्हें कोई दुनियावी काम अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल नहीं करता, उन्होंने ख़िलाफ़त के तसव्वुर को अपने दिल-ओ-दिमाग़ से क़बूल किया है, इसके लिए जिस चीज़ की ज़रूरत है ये उस की तैय्यारी करते हैं और इस्लाम से अहकामात और आईन (क़ानून) को अख़ज़ करते हैं जिस में हुक्मरानी और इंतिज़ामी ढांचा भी शामिल है। वो इस के हुसूल के लिए ऐन रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार के मुताबिक़ आगे बढ़ रहे हैं। अल्लाह के हुक्म से वो एक ऐसी ढाल हैं जो किसी भी ग़ैर इस्लामी फ़िक्र और अमल के ख़िलाफ़ जद्दोजहद करती हैं। ये वो पत्थर हैं जिस पर कुफ़्फ़ार और उन के एजैंटों की साज़िशें तबाह बर्बाद हो जाती हैं, अल्लाह की दी हुई ताक़त की बदौलत वो ऐसे बाअलम सियासतदान हैं जो अल्लाह की मदद-ओ-नुसरत से इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों के मंसूबों के ख़िलाफ़ मुज़ाहमत (प्रतिरोध) करते हैं और उन के मंसूबों को इन ही पर उलट देते हैं
وَلَا يَحِيقُ ٱلۡمَكۡرُ ٱلسَّيِّئُ إِلَّا بِأَهۡلِهِۚۦ
"और बुरी तदबीरों का वबाल इन तदबीर करने वालों ही पर पड़ता है" (फ़ातिर:43)
ऐ मेरे अज़ीज़ भाईयों,
ख़िलाफ़त का मुआमला अज़ीम और बहुत बड़ा है और इस का क़याम धोका देने वाले मीडीया में महिज़ एक ख़बर नहीं होगी बल्कि अल्लाह के हुक्म से इस का क़याम एक ऐसा ज़लज़ला होगा जो अंतर्राष्ट्रिय ताक़तों को हिला कर रख देगा और वो तारीख़ के धारे का रुख़ ही तबदील कर देगा। और ख़िलाफ़त रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार के मुताबिक़ ही क़ायम होगी जैसा कि रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया था और जो उस को क़ायम करेंगे वो वैसे ही होंगे जिन्होंने पहली ख़िलाफ़त-ए-राशिदा क़ायम की थी। उम्मत उन से मुहब्बत करेगी और वो उम्मत से मुहब्बत करेंगे, उम्मत उन के लिए दुआ करेगी और वो उम्मत के लिए दुआ करेंगे, उम्मत उन से मिल कर ख़ुश होगी और वो उम्मत से मिल कर ख़ुश होंगे ना कि उम्मत अपने बीच उन के वजूद को नफ़रत की निगाह से देखेगी। ऐसे होंगे वो लोग जो रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के तरीका-ए-कार के मुताबिक़ आने वाली ख़िलाफ़त को क़ायम करेंगे। अल्लाह ये सआदत उन्हीं को देगा जो इस के हक़दार होंगे और हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि हम उन लोगों में से हों, और हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वो हमें उस को क़ायम करने की क़ुव्वत अता फ़रमाए,
فَٱسۡتَبۡشِرُواْ بِبَيۡعِكُمُ ٱلَّذِى بَايَعۡتُم بِهِۦۚ
"तो तुम लोग अपनी इस बैअ (सौदे) पर जिस का तुम ने मुआमला ठहराया है ख़ुशी मनाओ"
(अत्तोबाৃ:111)।
अल्लाह से बिलकुल भी नाउम्मीद मत हो, अल्लाह आप की किसी भी कोशिश को ज़ाया नहीं करेगा और जो दुआ आप उस से करते हैं उस को रद्द नहीं करेगा और ना ही इस उम्मीद को रद्द करेगा जिस की आप को अल्लाह से तवक़्क़ो है। लिहाज़ा अपनी कोशिशों को बढ़ा कर हमारी मदद करें ताकि अल्लाह के सामने आप में मौजूद ख़ैर साबित हो जाए और अल्लाह आप में मौजूद ख़ैर को मज़ीद बढ़ा देगा और इस संजीदा काम में महज़ नारों और बातों की वजह से किसी किस्म की सुस्ती ना बरतें।
अस्सलामु अलैयकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातिहू व मग़फिरतहू
आप का भाई
3 रमज़ान 1435 हिज्री
1 जून 2014
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