ईमाम महदी का ज़हूर, सय्यदन ईसा (अलैहिस्सलाम) और दज्जाल
हज़रत आदम से लेकर आज तक इन्सानियत ने अपनी तारीख में कई परेशानियां और संकट देखें है । आज के दौर की नसल शदीद किस्म का भ्रष्टाचार (बदउनवानी) और ज़ुल्म देख रही है जो पूरी दुनिया पर हावी हो गये हैं। पूंजीवादी (सरमायादाराना) व्यवस्था ने दुनिया को ताक़तवर और मालदार लोगों के लिये आम जनता का जान माल और दौलत को लूटने-खसूटने के खेल का मैदान बना दिया है। इन हालात के नतीजे में कई लोग अपने आपको इन से पूरी तरह घिरा हुआ पाते है और वोह महसूस करते है कि वोह खुद इन हालात को बदलने में नाकामयाब है। यहूदी और नसरानी सबसे पहले थे जो मुश्किलात का सामना पडने पर, उनको काबू करने का हौंसला जुटाने की जगह, दुनिया के अंत और खात्मे की बात करने लगे और दूसरी बार ज़ाहिर होने (ईसा अलैहिस्सलाम) की। उनके मुताबिक सिर्फ इसा (अलैहिस्सलाम) के दूसरी बार ज़ाहिर होने के बाद ही दुनिया फिर से बहतर और इंसाफ पर मबनी बन पाऐगी। उन्होंने अपनी असक्रियता और किस्मत के भरोसे बैठे रहने की यह तावील दी कि इन परेशानियों से छुटकारा हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के दोबारा ज़ाहिर होने से होगा। यानी की हम हालात को बदलने के लिये कुछ नही कर सकते, इसलिये हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के दोबारा ज़ाहिर होने का इंतजार किया जाऐ और दुनिया को अपने हाल पर छोड़ दिया जाऐ।
आज मुसलमान भी चारो तरफ से बेशुमार परेशानियों और चेलेन्जेस का सामना कर रहे है और अफसोस की बात यह है कि उनमें से कई इसी मानसिकता का शिकार हो गये है। कुछ मुसलमान भी इस फंदे में फस गये और इस्लामी नस (क़ुरआन और सुन्नत) की इस अन्दाज ने तश्रीह करने लगे जो निष्क्रियता (inactivity) और किस्मत के भरोसे बैठे रहने की तरफ ले जाता है। इस तश्रीह का असर यह पडा़ की लोग परेशानियों की वजह को हटाने की कोशिश नहीं करते जिसके कारण उम्मत की हालत बद से बदतर होती जा रही है। बल्कि वोह अपना ज़्यादातर वक्त अपनी सुस्ती और निष्क्रियता को सहीह साबित करने के लिये दज्जाल के ज़हूर की निशानियां, इमाम महदी का इंतज़ार और हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की वापसी जिसके ज़रिऐ उम्मत का इस पश्चिमी ज़ालिमाना निज़ाम और ज़ुल्म से निजात पाने पर भरोसा करके बैठें है। हमारे लिये यह समझना बहुत ज़रूरी है कि शरई दलील (नस) को समझने के लिये हमारे पास कौन सी ज़हनियत हो और किस तरह यह दलील हमारे बर्ताव, अमल और फिक्र को दिशा (सिम्त) दे। यह बात साफ ज़ाहिर है कि कज़ा (Fatalism) के अकीदे पर आधारित मानसिकता मुसलमान ज़िन्दगी के कई पहलुओं से जोड कर देखते है, लेकिन उसे सब मसलों (पहलुओं) से नही जोडते। हम देखते है की कई लोग जो सियासी हालात मे तब्दीली को किस्मत (कज़ा) के नज़रिये या मानसिकता से देखते है, लेकिन जब रिज़्क (रोज़ी-रोटी) की बात आती है, जिसे अल्लाह मुहय्या करता है तो इस मामले में कज़ा पर भरोसा नहीं करते यानी रिज़्क हासिल करने के लिये हर तरह की कोशिश और जद्दोजहद करते है, यहॉ तक की अपने घर परिवार को और अपने प्यारों को छोडकर परदेश तक जाने के लिये तैयार रहते है ताकि उन्हे कोई काम-धन्धा मिल जाऐ। हांलाकि शरीअत की नस में यह बात क़तई तौर पर (जिसकी दलील और मफहूम दोनो क़तई हैं) साबित है कि रिज़्क अल्लाह (سبحانه وتعالى) की तरफ से होता है।
यह बात भी बिल्कुल साफ है कि वोह मुस्लिम जो कज़ा (fatalistic) मानसिकता रखते है, अगर किसी तरह उनकी जान पर बन आऐ तो वोह उसे बचाने के लिये हर तरह की कोशिश करेंगे। वोह उस बस के सामने नही ठहरेंगे जब वोह उनकी तरफ आ रही होगी। जब उन पर बिमारी आ जाती है, तो वोह डॉक्टर से ईलाज कराते है और अगर वोह डाक्टर मदद नही कर सके तो वोह बहतर ईलाज कराने की कोशिश करतें है। वोह अपनी जान बचाने के लिये खतरनाक जगहों पर जाने से बचेगें और जिन्हे वोह चाहते है उन्हे भी बचाने की कोशिश करेगें। ऐसा इसके बावजूद भी करेगे जबकि अल्लाह (स.) ने क़तई तौर पर (क़तई सुबूत और क़तई दलील) बयान किया है कि मौत अल्लाह की तरफ से आती है और ज़िन्दगी के वक्त का खात्म उसी की तरफ से है।
जब हम नस (कुरआन और सुन्नत) में देखते है तो पाते है कि इनमे से कुछ र्इमान से ताल्लुक रखते है। चूंकि इस दलील का ताल्लुक ईमान से होता है इसलिए इस नस को क़तई दलील और सुबूत के ऐतबार से होना ज़रूरी है। कुरआन में ऐसी कई आयात है जो ईमान से जुडे़ तत्वों को निर्धारित करती है जैसे :
“ऐ इमान वालों! अल्लाह तआला पर, उसके रसूल (صلى الله عليه وسلم) पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी है और उन किताबों पर जो इस से पहले उस ने नाज़िल फरमाई है, इमान लाओ! जो शख्स अल्लाह तआला से, और उसके फरिश्तों से और उसकी किताबों से, और उसके रसूलों से और क़यामत के दिन से कुफ्र करे, वोह तो बहुत बढी दूर की गुमराही मे जा पडा.” (तर्जुमा मआनीऐ कुरआन सूर निसा : 136)
वोह सुन्नत जो सुबूत और दलील (दलाला) के ऐतबार से क़तई हो वो मुतवातिर होती है। मुतवातिर रिवायत को दो हिस्सो में बांटा जा सकता है। पहली लफ्जुन (ज़बानी) मुतवातिर जैसे की हदीस :
''जो कोई भी मेरे तरफ झूठ गढ कर बोलेगा वोह अपना मकाम जहन्नुम में बनाऐगा।'' दूसरा मुतवातिरे मानवी यानी जो मायने (अर्थ) में मुतवातिर हो, मिसाल के तौर पर रावियों को अलग-अलग वाकियात से इस बात पर ईत्तिफाक़ है कि फज्र की नमाज की सुन्नत रक़ातों की तादाद दो है। जहॉ तक हदीसे अखबारिया (मुस्तक़बिल की खबरे देने वाली) का ताल्लुक है, वोह उन चीज़ों के बारे में बात करती है जो हकीक़त में मौजूद नहीं होती और इसलिये वह उस ग़ैब की तरह है जिसके बारे में हमारे पास पेशनगोई (भविष्यवाणी) की शक्ल में सिर्फ कुछ खबरे और इशारे मौजूद होते है, लेकिन उसकी सारी तफ्सील को समझना अब भी हमारी अक़्ल से परे है। इसलिये हम इन मामलात में कोई फैसला नहीं ले सकते। हम इसको पूरी तरह उसी वक्त समझ सकते और तस्दीक कर सकते है जब हकीक़त पूरी तरह से सामने न आ जाऐ।
सहाबाऐ ईकराम (رضی اللہ عنھم) ऐसी बहुत सारी हदीसे अखबारिया को जानते थे लेकिन वो उसे तभी समझ पाये जब उनकी आंखों के सामने हकीक़त आ गई। और सबसे अहम बात यह है कि उन्होंने इन हदीसो को निठल्ले बैठ जाने और कुछ न करने का जवाज़ नहीं बनाया, की वोह वाकिये के धटित होने का इंतजार करे। बल्कि उन्होंने अल्लाह के ज़रिये आयद किये गये फराईज़ को पूरा करने के लिये सख्त मेहनत की। मिसाल के तौर पर इब्ने हिशाम ने अपनी सीरते इब्ने इस्हाक़ में बयान किया है :
हज़रत सलमान अल-फारसी ने कहा : ''(खन्दक़ की जंग के दौरान) मैं एक खन्दक (खाई) के एक कोने पर खुदाई कर रहा था कि एक चट्टान के मेरी खुदाई में मुश्किल पैदा कर दी अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) मेरे पास आऐ और मेरी परेशानी को देखा जब मै खुदाई कर रहा था। वोह नीचे उतरे और औज़ार मेरे हाथ से अपने हाथ में ले लिया। फिर उन्होंने (चट्टान पर) चोट मारी और औज़ार के नीचे तेज़ आग चमकी। उन्होंने एक चोट और मारी और तेज चिंगारी चमकी। उन्होंने तीसरी बार भी चोट मारी और तीसरी बार चिंगारी निकली। मैने कहा : ''ऐ अल्लाह के रसूल, मेरे मां-बाप आप पर कुरबान, वोह क्या था जिसे मैने औज़ार के नीचे चमकते देखा जब आप चोट मार रहे थे? उन्होंने कहा : ऐ सलमान, क्या तुमने इसे देखा? मैने कहा : हॉ। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया : पहली चोट में अल्लाह ने मेरे लिये यमन को खोल दिया (दक्षिण में) दूसरी बार, उसने मेरे लिेये जुनूब (अल-शाम) और अल मग़रिब (the west) खोल दिया; और तीसरी बार, उसने अल-मश्रिक (the east) खोल दिया।'' (इब्ने हिशाम ने इसे अपनी सीरत में बयान किया है, बैरूत, दारूल अल-विफाक़)
जब यह खबर सहाबा के दर्मियान फैली, तो वोह आस लगाकर बैठ नही गये, न ही उसके होने की इंतजार करने लगे। इसके उल्टा, उन्होंने सख्त मेहनत की, और अल्लाह (سبحانه وتعالى) तआला के खातिर नई सर-जमीनो को खोलने (दारूल ईस्लाम के दायरे में लाने) के लिये अपनी पूरी कोशिशें लगा दी।
हदीस अखबारिया (जिसमें भविष्य में होने वाले वाकियात की खबरे दी गई हो) पडते वक्त उन्हें समझने का सहीह नुक्ताऐ नज़र होना ज़रूरी है। ऐसी हदीसो को समझने के लिये पांच नुक्तों को ध्यान में रखना चाहिऐ :-
इन हदीसो में पहले जिस चीज़ को देखने की ज़रूरत है वोह यह कि क्या यह मुसलमानों को मुस्तक़बिल में होने वाले वाकियात की पहले से तैय्यारी करने की ताकीद कर रही है। अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने दज्जाल के फित्ने से बचने के लिये सहाबा को यह दुआ सिखाई :- अबू हुरैरा (रजि.) ने रिवायत किया : अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया : तुम मे से कोई भी तशह्हुद पढते वक्त (नमाज में) आज़माईशों से अल्लाह की पनाह चाहे और कहे : ऐ अल्लाह, मैं जहन्नुम के अजाब से तेरी पनाह चाहता हॅू, अज़ाबे कब्र से, ज़िन्दगी और मौत की आज़माईश से और मसीह दज्जाल के फित्ने से।
दूसरी चीज़ इनमें देखने की यह है कि क्या यह मुसलमानों को काई लाऐ अमल (Course of action) बताती है जब यह वाकिया (घटना) घटित हो। अन-नव्वास इब्ने समआन से रिवायत है कि सहाबा (رضی اللہ عنھم) ने अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) से पूछा की वोह (दज्जाल) कितने वक्त तक के लिये धरती पर रहेगा?’’ आप (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया : चालीस दिन, (जिसका) एक दिन साल के बराबर होगा, एक दिन एक महीने के बराबर और एक दिन एक हफ्ते के बराबर और बाकी दिन तुम्हारे आम दिनों की तरह होंगे।'' हमने अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) से पूछा, ‘क्या एक दिन की नमाज़ एक साल के बराबर दिन के बराबर होगी?’ इस पर उन्होंने कहा, ‘नही, बल्कि तुम्हे वक्त का अन्दाज़ा लगाना होगा (और उसके मुताबिक नमाज़ पडनी होगी) (सहीह मुस्लिम) इस हदीस में मुलसमानो का नमाज़ के औक़ात गिनने का हुक्म दिया गया है जब हम एक साल के बराबर वाले दिन का सामना करें, जो दज्जाल के दौर में होगा।
यह हदीसे उन लोगों के हौंसला को बडाती है जो अल्लाह के दीन के दोबारा क़याम, उसकी हिफाज़त और उसे दुनिया तक पहुंचाने के लिये जद्दोजहद कर रहे है। हज़रत अबू उमामा से मरवी एक हदीस में अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया : ''मेरी उम्मत का एक गिरोह हमेशा हक़ पर साबित क़दम रहेगा, वोह अपने दुश्मन को फतह करेगा यहॉ तक अल्लाह का हुक्म उनके पास आयेगा जबकि वोह अभी भी इसी हाल में होंगे।'' आप (صلى الله عليه وسلم) से पूछा गया, ''अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم), वोह कहॉ है?’’ आप ने जवाब दिया, ''जेरूसलम में’’. (अहमद और तिबरानी)
एक और ज़रूरी नुक्ता यह है कि ग़ैब से मुताल्लिक मामले पर तफ्सील से बहस और गुफ्तगू नहीं करना। ऐसी गुफ्तगू और वार्तालाप जो माबादुल तबीआत (Metaphysics या दुनिया की हकीक़त से परे) पर की जाऐ या जो महसूस हकीक़त से परे हो, उस पर बहस करना, और यह दावा करना की किसी की राय दूसरों से बहतर है, जिसके लिये बहुत क़िमती वक्त लगाया गया हो, यह मुसलमानों के सबसे अहम और ज़रूरी मसले से लोगों की तवज्जोह हटा देता है, जिसके लिये मुसलमानों को काम करना ज़रूरी है। अल्लाह (سبحانه وتعالى) ने ऐसी एक बहस की मिसाल जो अहले किताब (यहूद और नसारा) गुफा में पनाह लेने वाले लोगों की तादाद के बारे में करते थे, ''तो अब लोग कहेंगे, वोह तीन है और उनका कुत्ता चौथा, और कुछ कहेंगे, वोह पांच है और उनका कुत्ता छटा, बिल्कुल अन्धी अटकल, और कुछ कहेंगे, वोह सात हैं और उनकार कुत्ता आठवा’’, कह दीजिए, ''मेरा रब उनकी तादाद को अच्छी तरह जानता है उनमें से कोई नहीं जानता मगर बहुत कम। इसलिये उनके बारे में कोई बहस न करो, सिवाऐ इसके की क्या हुआ है, और अहले किताब से उनके बारे में कुछ भी न पूछो। (तर्जुमा माअनिऐ कुरआन मज़ीद, अल-कहफ : 22)
इन हदीसों को कभी भी निष्क्रियता (inactivity), काहिली और मायूसी के लिये बुनियाद नहीं बनाया जाये। इन अहादीसों को अल्लाह के ज़रिये आयद किये गये फराईज़ को नज़रअन्दाज़ करने का ज़रिया न बनाया जाऐ, जैसे ईस्लाम का अहया (नये सिरे से ज़िन्दा करना या पुनर्जीवन), सिर्फ इसलिये कि यह हदीसे हमें खबर दे रही है के एक दिन उम्मत का अहया हो जायेगा। और उससे भी खतरनाक और ग़लत ज़हनियत यह है कि उन फराईज़ के लिये, जैसे खिलाफत राशिदा को दोबारा क़ायम करना, हमारे खुद के अमल और कोशिशों के ज़रिये से बिल्कुल नामुमकिन है क्योंकि अल्लाह (سبحانه وتعالى) इसे हमारे लिये खुद अपने चुनिंदा वक्त पर क़ायम करेगा।
ईमाम महदी (हिदायत याफ्ता) का ज़हूर
अगर हम ईमाम महदी (अलैहिस्सलाम) से मुताल्लिक कुछ हदीसों को देखते है जैसे :
अबू दाउद ने उम्मे सलमा से रिवायत किया है कि आप (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया : ''एक खलीफा के इन्तक़ाल के बाद इख्तिलाफ हो जायेगा, तो मदीना से मक्का की तरफ एक आदमी फरार होगा, तो मक्का के लोग उसके पास आऐगें और उसको उसकी मर्जी़ के खिलाफ बाहर लायेंगे (खलीफा के दावेदार के तौर पर) और उसे (काबे के) कोने और मकामे ईब्राहीम, के बीच बैअत देंगे। उसके खिलाफ एक फैजी टुकडी़ भेजी जायेगी शाम से (सीरिया) से, और ज़मीन उन्हें मक्का और मदीना के बीच में मौजूद बिना पानी के रेगिस्तान में निगल जायेगी। जब लोग यह देखेगे तो शाम के लोगों मे से अब्दाल उसकी तरफ आयेगे और ईराक़ से भी लोग आयेगे और वोह लोग उसे बैअत देगें फिर कुरेश में से एक आदमी (बगावत के लिये) उठेगा जिसका मामू (मॉ का भाई) कल्ब (कबीले) से होगा। उसके खिलाफ फौज भेजी जायेगी और यह उसे फतह कर लेगी, यानी कल्ब की फौज की टुकडी़ को, और जो कोई भी कल्ब के मालेगनीमत को हासिल नही करता है उसके लिये मायूसी है। तो वोह (महदी) दौलत को तक़सीम करेगा और अपने रसूलल्लाह (صلى الله عليه وسلم) की सुन्नत के मुताबिक अमल करेगा और ईस्लाम को ज़मीन पर उसकी गर्दन के बल फेकेगा। वोह सात साल रहेगा और उसका इंतकाल हो जायेगा और मुसलमान उसकी नमाज़ पडेगें। (अबू दाउद, किताब-36, नम्बर-427)
ईमाम महदी की हदीस हम पर कई चीजे़ ज़ाहिर करती है। वोह इस उम्मत के मुलसमानों में से एक मुस्लिम होगें। कुछ हदीसे इशारा करती हैं कि वोह मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के वंशजों में से होगें। वोह कोई करिश्मा या मोजज़ा ज़ाहिर नहीं करेंगे ना ही उन पर वह्नी नाजिल होगी बल्कि वोह इंसाफ के साथ हुकूमत करेंगे जिसके सबब खिलाफत में खुशहाली आऐगी। उन्हें खुद पता नहीं होगा कि वोह महदी हैं, जैसा कि हदीस में इशारा किया गया कि वोह बैअत लेने से कतराऐंगे और उसके लिये उन्हे यक़ीन दिलाना पडेगा। हदीस साफ तौर पर बताती है कि वोह एक खलीफा की मौत के बाद खलीफा बनेगे और उस वक्त नये खलीफा के ताअय्युन (नियुक्ती) में इख्तिलाफ पैदा होगा। इन सब दलीलों से पता चलता है कि उम्मत के पास रियासते खिलाफत होगी और वोह यह जानते होगें कि खलीफा का इनेक़ाद (स्थापना) कैसे किया जाता है। इस हदीस से यह भी पता चलता है कि महदी अपने आस-पास से इस्लाम सीखेगें। और उन पर कोई वह्नी नाजिल नहीं होगी। हदीस बताती है कि वोह लोगों के दर्मिया सुन्नत से फैसला करेंगे जिससे फिर ईशारा मिलता है कि वोह उम्मत है जिसको इस बात के लिये तैयार होना है कि वोह महदी की परवरिश और तालीम करे ताकि वोह खिलाफत के काम को अपने हाथों में ले सके। इसलिये इस बात की कोई दलील नहीं है मुसलमान गैर-मुतहर्रिक और निष्क्रिय रहें और इसके लिये कुछ न करें, क्योंकि इस घटना के (महदी के) वजूद में आने से पहले कुछ वाकियात का होना ज़रूरी है जैसे रियासते खिलाफत का दोबारा क़याम और उम्मत का इस्लामी तर्ज़े ज़िन्दगी को दोबारा ज़िन्दा करने के लिये तय्यार होना। यह फर्ज़ अब भी मुसलमानों के सर पर है न कि ईमाम महदी के।
हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का नुज़ूल और दज्जाल की तबाही
‘’और (याद करो) जब अल्लाह (سبحانه وتعالى) ने कहा : ऐ इसा! में तुम्हे ले जाउगा और . . . . . (सूरे : आले इमरान : 55)
इस आयत का मआनी यह है कि हज़रत ईसा को अल्लाह (سبحانه وتعالى) उठा लेगें और उनका मिशन खत्म हो जायेगा। ऐसी कई हदीसें है जो उनकी वापसी से ताल्लुक रखती है। जैसे अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) मे फरमाया:
''कसम है उसकी जिसके कब्ज़े में मेरी जान है, मरयम का बेटा (ईसा अलैहिस्सलाम) जल्दी ही तुम्हारे दर्मियान एक मुन्सिफ हुक्म्रान की हैसियत से उतरेगा और वोह सलीब (cross) को तोड देगा, खिंज़ीर को खत्म कर देगा और जिज़ये को मन्सूख कर देगा। उसके बाद बेशुमार दौलत हो जायेगी और फिर कोई भी सदक़ात कुबूल नही करेगा। उस वक्त एक सजदा इस दुनिया और इस दुनिया मे जो कुछ है, उससे बहतर होगा”.
अल-बुखारी ने हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत किया की अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया: तुम उस वक्त कैसे होंगे जब अल-मसीह, मरयम के बेटे, तुम्हारे दर्मियान होंगे और जबकि तुम्हारा इमाम तुम मे से होगा”.
सहीह मुस्लिम की एक और हदीस जिसे हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि) के रिवायत किया है, मे फितनाऐ दज्जाल और मुसलमानों को भ्रम मे ढालने वाली और उन आंखों को धोका देने वाली शक्तियों का ज़िक्र है. यह हज़रत इसा (अलैहिस्सलाम) के नुजूल का भी ज़िक्र करती है:
''वोह हवाओ के ज़रिये लाऐ गये तूफान की तरफ लेगों के पास आऐगा और लोगों को बुलाऐगा (अपनी ईबादत की तरफ), और वोह उस पर ईमान लाऐंगे और उसकी दावत कुबूल करेगें। वोह आसमान को हुक्म देगा और वोह बरसेगा, ज़मीन (से कहेगा) और वोह उगाऐगी (नबातात), उनके जानवर उनके पास लौट आयेगें, जबकि उनके लम्बे-लम्बे बाल होंगे और उनके थन (दूध से) भरे होंगे और उनके पेट मोटे होंगे। फिर वह अलग किस्म के लोगों के पास जायेगा और उन्हें बुलाऐगा (अपनी ईबादत की तरफ) तो वोह उसकी पुकार को मुस्तरद कर देंगे। वोह उन्हें छोडकर चला जायेगा। जब (यह) लोग सुबह (सो कर) उठेंगे तो गरीबी की हालत में होंगे और अपना सारा सामान खो चुके होंगे। वोह रेगिस्तानों से गुज़रेगा और उससे कहेगा, अपने खज़ाने निकाल दे, और उसके खज़ाने उसका पीछा मख्खियों के झुण्ड के मानिन्द करेंगे। वोह एक मर्द को बुलाऐगा जो पूरी तरह जवान होगा और उस पर तलवार से एक चोट मारकर दो टुकडे कर देगा (और इस तरह वोह उन टुकडो़ को अलग करेगा) इतनी दूरी में (जैसे की शिकारी और) शिकार के बीच होती है। फिर वोह इस मरे हुऐ आदमी को पुकारेगा और वोह आ मौजूद होगा और उसका चेहरा खुशी और हंसी से चमक रहा होगा। उसके बाद (जब दज्जाल के साथ यह सब कुछ हो रहा होगा) अल्लाह अल-मसीह (ईसा अलैहिस्सलाम), मरयम के बेटे को नाज़िल फरमाऐंगे। वोह दमिश्क शहर के पूरब के एक सफेद मिनार के पास उतरेंगे। उन्होंने ऐसे कपडे पहन रखे होंगे जिसका रंग हल्का केसरी होगा और उनके हाथ दो फरिश्तों के परो पर होंगे। जब भी वोह अपना सर नीचे की तरफ करेंगे तो बून्दे गिरेंगी। जब भी वह अपना सर उपर की तरफ उठाऐगे तो कीमती पत्थर, जो मोतियों की तरह, होगें गिरने लगेगें। ईसा (अलैहिस्सलाम) की सांस से कोई भी काफिर नही बच पाऐगा, जो उनकी वहॉ तक पहुचेगी जहॉ तक उनकी नजर पहुंचेगी। वोह दज्जाल का पीछा करेंगे और (फिलिस्तीन के शहर) लुद तक पीछा करेंगे जहॉ वोह उसे मार देगें। लोगों का एक गिरोह जो दज्जाल (के शर) से बच गये थे, ईसा (अलैहिस्सलाम) के पास से गुजरेगें और वोह (ईसा अलैहिस्सलाम) उनके चेहरो पर खुशबूदार तेल लगायेंगे और उन्हें जन्नत में उनके मर्तबो के बारे में खबर देगें। जल्दी ही जबकि ईसा (अलैहिस्सलाम) के साथ ऐसा हो रहा होगा, अल्लाह उन पर ज़ाहिर करेगा, ''मैने मेरी मखलूक मे ऐसे लोगों को पैदा किया है जिनसे कोई भी लडने की ताक़त नही रखता। इसलिये मेरे बन्दों को अत-तूर (सिनाई में मौजूद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का पहाड) में इकट्ठा करो। फिर अल्लाह याजूज और माजूज को उठाऐगा और वोह बडी़ तेज़ी से हर छोटी पहाडी से निकल कर बडी़ तादाद में इकट्ठे होगें. उनकी आगे वाली (फौज की) टुकडी़ तबारिया (गेलीली का सागर) की झील पर पहुंचेगी और उसका सारा पानी पी जायेगी। उनकी आखरी टुकडी़ जब वहॉ से गुजरेगी तो कहेगी, ''इस झील में कभी पानी हुआ करता था।'' इसी दौरान ईसा, अल्लाह के पैग़म्बर, अपने साथियों के साथ मुश्किल हालात मे पड जायेगें यहॉ तक की उनके लिये बैल का एक सर तुम्हारे सौ दीनारों से बहतर होगा। ईसा, अल्लाह के पैग़म्बर, अल्लाह को मदद के लिये पुकारेंगे और अल्लाह अल-नग़फ (एक तरह का कीडा़) याजूज और माजूज के गलो में भेज देगा। सुबह आयेगी और वोह सारे के सारे ऐसे मर जायेंगे जैसे की एक जिस्म की मौत होती है। इसके बाद ईसा, अल्लाह के पैग़म्बर, अपने साथियों के साथ (कोहे तूर से) नीचे उतरेंगे। वोह पायेगें की ज़मीन पर उनकी चर्बी और सडे (हुए अजज़ा) से एक हाथ भर ज़मीन भी खाली नहीं होगी। ईसा, अल्लाह के पैग़म्बर, अपने साथियों के साथ अल्लाह से दुआ करेगें। अल्लाह ऐसी चिडियाऐ भेजेगा जिनकी गर्दने उंठ के बराबर बडी़ होगी। वोह उनको (याजूज और माजूज की लाशों) को उठा कर ले जायेगा और उन्हे वहॉ फेंक देगें जहॉ अल्लाह चाहता है। उसके बाद अल्लाह ऐसी बरसात भेजेगा कि कोई भी मिट्टी या जानवर की खाल से बना घर उससे महफूज़ नही रह पायेगा, और यह ज़मीन को ऐसे साफ कर देगी जैसे की आईना। अल्लाह ज़मीन हो हुक्म देगा, ''अपने फल उगाओ और अपनी बहारों को फिर हासिल करो, फिर यह गिरोह एक अनार से खायेगा और उसकी खाल में पनाह लेगा। दूध की बरकत होगी इतनी ज़्यादा की दूध देने वाली उटनी इतना दूध देगी की वह एक बहुत बडे गिरोह के लिये काफी होगा। इस दौरान अल्लाह एक पाक हवा चलाऐगा और जो मुसलमानों को उनकी बगलों से काबू कर लेगी और हर मुस्लिम और ईमान वाले की रूह कब्ज़ कर लेगी। सिर्फ गुनहगार बाकी रह जाऐगें। वोह गधो की तरह बेशर्मी से खुले आम हम बिस्तर होगें। उन पर (फिर) क़यामत बरपा (वाकेअ) होगी।''
जो कोई भी इस हदीस पर ग़ौर करता है तो उस पर यह साफ हो जाता है कि ईसा (अलैहिस्सलाम) लौटकर आयेगें, वोह हुकूमत करेंगे, और हज़रत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) की शरीअत की इत्तेबा करेगें। कई हदीसे इस तरफ ईशारा करती है कि उनकी मुसलमानों के खलीफा से गुफ्तगू होगी यानी मुसलमानों का खलीफा/इमाम पहले से मौजूद होगा और यह कि ईसा (अलैहिस्सलाम) इस्लामी रियासत के शहरी होगें। इससे फिर इस बात की तरफ ईशारा मिलता है कि हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की वापसी तभी होगी जब खिलाफत मौजूद होगी. इससे हमे दोबारा उसके क़याम की कोशिशे करने के लिये हौसला और तरग़ीब मिलती है, क्योंकि ईसा (अलैहिस्सलाम) उस वक्त तक नहीं आयेगें जब तक खिलाफत कायम न हो। यह हदीस साफ तौर पर यह बात उजागर करती है कि खिलाफत रियासत एक ढाल होगी दज्जाल के फितने से। यही सबब है कि अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया:
''खलीफा उनके लिये (मुसलामनों के लिये) एक ढा़ल है। वोह उसके पीछे से लडते है और उसके ज़रिये उन्हे हिफाज़त मिलती है (ज़ालिमों से)। अगर वोह अल्लाह से डरने का हुक्म देता है और इंसाफ करता है तो उसके लिये (बडा़) अजर है, और अगर वोह किसी और चीज़ का हुक्म देता है तो यह आखिर मे उसके लिये नुक्सानदायक होगा”। (मुस्लिम)
तो इस मौजूअ पर हदीस पढने पर पता चलता है कि इस बात की कोई बुनियाद नही है कोई गै़र-मुतहर्रिक रहे और इन हदीसों को कुछ नही करने की दलील बनाऐ और बेकार बैठकर ईमाम महदी और हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का इंतज़ार करें। कई मुसलमानों ने इन हदीसों को सियासी हालात को तब्दील करने, खिलाफत रियासत को वापस लाने के लिये कोई अमल नहीं करने का जवाज़ बनाया है। उन्होंने ग़लती से यह समझ लिया है कि जब ज़मीने पूरी नाइंसाफियों से भर जायेगी तब ईमाम महदी ज़ाहिर होगें और उम्मते मुस्लिमा की हालत को ठीक करेगें। दरहकीक़त न तो इन हदीसों में और न ही दूसरी हदीसो मे ऐसा कोई ईशारा मिलता है जिससे हम ईस्लाम को जामेअ तौर पर नाफिज़ करने के फर्ज़ से आजादी मिल जाऐ, जबकि ईस्लामी रियासत मौजूद न हो, और हम ऐसे हालत में अल्लाह (سبحانه وتعالى) के दीन के ग़लब के लिये काम न करें।
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