बिलादे
शाम के इलाक़े फिलस्तीन और लेबनान में यहूदी रियासत शहरों और कस्बों पर पिछले 5
दहाईयो से बमों की बरसात कर रही है जिसकी वजह से मुसलमान इंतिहाई दर्दनाक सूरते हाल
से दो-चार रहते हैं। छोटे छोटे मासूम बच्चे अपने वालिद के इंतिज़ार में हैं जो अब कभी
घर वापिस नहीं लौटेंगे। माओं को अपने बच्चों की लाशों के जले हुए टुकड़े प्लास्टिक के
थैलों में मिल रहे हैं। ये वो सिला है जो कि यहूदीयों ने उम्मते मुस्लिमा को दिया
है,
वो उम्मत कि जिसने पंद्रहवीं सदी ईसवी में ख़लीफ़ा बायज़ीद दोयम
के दौर में यहूदियों को उस वक़्त ख़िलाफ़त के शहरों में पनाह दी थी, जब यहूदी ईसाईयों के ज़ुल्मो सितम की वजह से स्पेन से भागे
थे। बिलाशुबा मुसलमानों से दुश्मनी में सिर्फ़ यहूदी ही हिंदू मुशरिकीन के हमपल्ला
हो सकते हैं।
जैसा कि
अल्लाह (سبحانه
وتعالى) ने इरशाद फ़रमाया:
لَتَجِدَنَّ اَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَۃً لِّلَّذِےْنَ
اٰمَنُوا الْےَھُوْدَ وَالَّذِےْنَ اَشْرَکُوْا
''यक़ीनन आप ईमान वालों का सबसे ज़्यादा दुश्मन यहूदियों और मुश्रिको को पाएंगे।''
तो इस वहशियाना
जारहियत के ख़िलाफ़ उम्मते मुस्लिमा का रद्दे अमल क्या था? जहां तक पूरी दुनिया के मुसलमानों का ताल्लुक़ है तो उनके दिल
इस नंगी जारहियत पर ख़ून के आँसू रोते रहते हैं। मुसलमानों ने ग़म व ग़ुस्से का इज़हार
करते है और उन ज़ालिमाना कार्यवाहियों के ख़िलाफ़ एहतिजाज (प्रदर्शन) के लिए वो सड़कों
पर निकल आते है। इस ख़ित्ते में मौजूद मुसलमानों ने मुतास्सिरीन (प्रभावित लोगों) को
अपने घरों का तमाम सामान मुहैय्या कराते है और अपने घरों को पनाह गज़ीनों के लिए खोल
देते है ।
लेकिन जहां
तक मुसलमानों के हुक्मरानों का ताल्लुक़ है, तो अगरचे वो उस वक़्त मजमूई तौर पर बीसियों लाख फ़ौज पर अथार्टी रखते हैं, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी फ़ौज है और उनकी फौज में मौजूद सिपाहियों
के दिल फ़तह या शहादत की आरज़ू करते हैं, जो कि जंग के दौरान सबसे ताक़तवर हथियार होता है और उन हुक्मरानों को बेपनाह वसाइल
और दौलत पर इख्तियार हासिल है, जो यूरोप और अमरीका
की दौलत से दस गुना ज़्यादा है। अपने पास ये सब कुछ मौजूद होने के बावजूद मुसलमान हुक्मरानों
ने इस्तिमारी मग़रिब (साम्राज्यवादी पश्चिम) के सामने अपने हाथ फैलाए हुए हैं कि वो
मुसलमानों की मदद करें गोया कि ये भिखारी हैं जिनके पास अपना कुछ भी नहीं।
20 जुलाई 2006 को क़ौमी ख़िताब के दौरान सदर जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने कहा: ''मै
दुनिया से अपील करता हूँ कि वो इस बोहरान (संकट) का ख़ात्मा करवाए, जंगबंदी की तरफ़ पेशरफ़्त करे और मुज़ाकरात (वार्तालाप) के ज़रिए
मसले को हल करे।''
मुसलमानों
के हुक्मरानों ने इन्ही साम्राज्यवादी कुफ़्फ़ार के सामने अपनी झोली फैलाई हुई है
जिन्होंने 28 रजब 1342 हिजरी
को मुसलमानों की ढाल यानी ख़िलाफ़त को तबाह किया था। ये वो ख़िलाफ़त थी जिसने कई सदीयों
तक बिलादे शाम के मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम बाशिंदों की हिफ़ाज़त की और वहां अमन को क़ायम
किया।
० ये ख़िलाफ़त
ही थी जिसने उमर बिन अलखत्ताब (رضي الله عنه) के दौर में बिलादे शाम को फ़तह किया था, जिसमें फ़लस्तीन और लेबनान भी शामिल थे।
० ये ख़िलाफ़त
ही थी जिसने ख़लीफ़ा नूरउद्दीन के दौर में बिलादे शाम को सलीबियों से आज़ाद कराया था, और उस फ़ौज की क़ियादत (नेतृत्व) सलाहउद्दीन अय्यूबी कर रहा था, अगरचे सलीबी बिलादे शाम के कुछ इलाक़ों पर दो सदीयों से क़ाबिज़
थे।
० ये ख़िलाफ़त
की मिस्र की विलायत थी जिसने तातारियों के मुक़ाबले के लिए ख़िलाफ़त की फौज की क़ियादत
(नेतृत्व) की और बिलादे शाम को तातारियों से आज़ाद कराया और वहां अमन को क़ायम
किया और इसके बाद कई सदीयों तक इस ख़ित्ते में अमन क़ायम रहा।
० और ये
ख़िलाफ़त ही थी जिसने यहूदीयों की रिश्वत को ठुकरा दिया, जो फ़लस्तीन के इलाक़े को हासिल करना चाहते थे। 1901 में यहूदीयों ने उस्मानी ख़िलाफ़त के आर्थिक संकट से फ़ायदा
उठाने की कोशिश की और यहूदियों को फ़लस्तीन में बसाने के बदले में ख़िलाफ़त को भारी माल
व दौलत की पेशकश की,
जिसके जवाब में ख़लीफ़ा अब्दुल हमीद दोयम ने कहा:
''मै फ़लस्तीन की सरज़मीन का बालिशत बराबर हिस्सा
देने का भी रवादार नहीं क्योंकि ये मेरी ज़मीन नहीं कि मै उसे किसी को अता कर दूं
...बल्कि ये उम्मते मुस्लिमा की मिल्कियत है ...मेरे लोगों ने इस ज़मीन की ख़ातिर जिहाद
किया और अपने ख़ून से उसे सेराब किया, पस यहूदी अपने लाखों अपने पास रखें। ताहम अगर रियासते ख़िलाफ़त को एक दिन तबाह कर दिया गया
तो उस दिन वो उसे बिना किसी क़ीमत हासिल कर लें। लेकिन जब तक मै ज़िंदा हूँ तो मेरे लिए
ये आसान है कि फ़लस्तीन को रियासते ख़िलाफ़त से काट देने की बजाय कोई मेरे जिस्म में
ख़ंजर घोंप दे। मै इस बात को क़बूल नहीं कर सकता कि कोई हमारे जीते जी हमारे जिस्मों
के हिस्से बख़रे कर डाले।''
मुसलमानों
के हुक्मरान उन्ही साम्राज्यवादी कुफ़्फ़ार को पुकार रहे हैं जिन्होंने 28 रजब 1342 हिजरी
को ख़िलाफ़त को तबाह करने के बाद मस्जिद अल-अक़सा के इलाक़े और इस्रा व मेराज की सरज़मीन
पर यहूदी रियासत क़ायम की और दुनिया के तमाम कोनों से यहूदियों को इकट्ठा करके वहां
बसाया।
ये साम्राज्यवादी
कुफ़्फ़ार ही थे जिन्होंने यहूदी रियासत की पुश्तपनाही की और दुनिया में सबसे ज़्यादा
फ़ौजी मदद उसे मुहैय्या की जाती है। ये साम्राज्यवादी कुफ़्फ़ार ही थे जिन्होंने यहूदी
रियासत के कई भयानक जुर्मो पर अपनी आँखें बंद किए रखें और यहूदी रियासत उनके सामने
उनके मुक़द्दस अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून और संयुक्त राष्ट्र की क़रारदादों की धज्जियां
बिखेरती रही।
और ये साम्राज्यवादी
कुफ़्फ़ार ही थे जिन्होंने यहूदी रियासत को तस्लीम करने की सोच मुतआरिफ़ (परिचित) कराई
यानी मुसलमान फ़लस्तीन के उस हिस्से पर यहूदियों की अथार्टी को तस्लीम कर लें जिस पर
यहूदियों ने 1948 में ग़ासिबाना क़ब्ज़ा किया था। ये इन तमाम जुर्मो का सिला है
जो उस यहूदी रियासत ने सरअंजाम दिए हैं और जिन्हें सरअंजाम देने के लिए वो हर वक्त
तैय्यार रहती है!!
मुसलमान
हुक्मरान यहूदी रियासत को तस्लीम करने पर तैय्यार हैं, जब वो अपनी सरहद के साथ फ़लस्तीनियों को मुहाजिर कैंप अता कर
देगी,
जिसे फ़लस्तीनी रियासत कहा जाएगा। एक ऐसी रियासत जो सिर्फ नाम
की रियासत होगी। 22 जुलाई को पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म शौकत अज़ीज़ ने ऐलान क्या:
''हम उस वक़्त तक इस्राईल को तस्लीम नहीं करेंगे जब तक कि फ़लस्तीन का मसला हल
नहीं हो जाता।''
उम्मते
मुस्लिमा अपनी कसीर बहादुर फौज के ज़रिए यहूदी रियासत को सफ़ाए हस्ती से मिटाने, तमाम के तमाम फ़लस्तीन को दुबारा दारुल इस्लाम बनाने और बिलादे
शाम के लोगों को इस्लाम की हुक्मरानी तले अमन मुहैया करने पर क़ादिर है, जैसा कि इसने कई सदीयों तक ऐसा किया। उसके रास्ते में वाहिद
रुकावट मुसलमानों के हुक्मरान और हुकूमतें हैं जो कि यहूदी रियासत को तस्लीम करने
की तरफ़ लपकते हैं और उसकी रक्षा को मुम्किन बनाते हैं। इन हुक्मरानों ने मुस्लिम फौज
को जिहाद और शहादत के मक़सद से हटा कर फ़ौजी परेडों और अपने तख़्त की हिफ़ाज़त पर लगा रखा
है।
सिर्फ़
ख़िलाफ़त ही यहूदी रियासत का ख़ात्मा करेगी। वो इन यहूदियों के ख़िलाफ़ जिहाद के लिए अज़ीम
इस्लामी फ़ौज तैय्यार करेगी. यह यहूदी फौज इस क़दर बुज़दिल हैं कि वो फ़लस्तीनी
लड़कों के पत्थरों से डर कर अपने टैंकों में छुप जाते हैं। लेकिन उस दिन वो इस क़दर ख़ौफ़ज़दा
होंगे कि वो ये गुमान करेंगे कि वो पत्थर और दरख़्त कि जिनके पीछे वो छिपे हुए हैं, वो भी उनके ख़िलाफ़ मुसलमानों को आवाज़ दे रहे हैं।
जैसा कि
रसूलल्लाह (صلى الله
عليه وسلم) ने इरशाद फ़रमाया :
ستقاتلون
یھود وتقتلونھم حتی یقول الشجر والحجر یامسلم یا عبداللّٰہ ھذایھودی وراءي تعال
فاقتلہ الا الغرقد فانہ من شجر الیھود
''तुम यहूदियों से लड़ोगे और उन्हें क़त्ल करोगे यहां तक कि पत्थर और दरख़्त कहेंगे
ए मुसलमान! ए अल्लाह के बंदे! मेरे पीछे यहूदी पनाह लिए हुए है, आओ और उसे क़त्ल करो, मासवाए ग़रक़द के दरख़्त के, क्योंकि वो यहूदीयों के दरख़्तों में से है।''
इन हुक्मरानों
की जगह पर ख़िलाफ़त को दुबारा क़ायम करने के संधर्ष मे मुसलामानों को पूरी तरह लग
जाना चाहिय। उम्मत इस्लामी रियासते ख़िलाफ़त के क़याम के लिए काम करें ताकि उसका हुक्मरान
ऐसा हो जिसकी वोह मुस्तहिक़ हैं। इस काम का आग़ाज़ और आज से ही शुरू करे यानी खिलाफत
की अहमियत और उसके क़याम के लिये जनता मे रायेआम्मा (जनमत) तय्यार करे. ताकि यह
उम्मत आने वाली ख़िलाफ़त में ख़ुशी व कामरानी से हमकिनार हो सके, वो ख़िलाफ़त जो जल्द क़ायम होने वाली है, इससे बहुत जल्द जितना कि कई लोग तसव्वुर करते हैं!! रसूलल्लाह
(صلى الله عليه وسلم) ने इरशाद फ़रमाया :
ثم
تکون خلافۃ علی منھاج النبوۃ
''फिर नबुव्वत के नक़्शे क़दम पर ख़िलाफ़त क़ायम होगी।''
अल्लाह
से दुआ है की खिलाफत के खात्मे के 100 साल पूरे होने से पहले खिलाफते राशिदा की
वापसी कर दे.
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