अफग़ानिस्तान: नाटो का क़ब्रिस्तान

अफग़ानिस्तान: नाटो का क़ब्रिस्तान


अमरीका और नाटो फोर्स के कमांडरों को नौकरी से निकालने के वाकयात ने इस बात की तस्दीक कर दी है की “अफग़ान की लानत” ने अमरीकियों को अफग़ानिस्तान के खिलाफ जंग मे “वियतनाम के लक्षण” को मानने के लिये मजबूर कर दिया है. ऐसा इस लिये की अफग़ानिस्तान की जंग सरकारी तौर पर अमरीका की अब तक की सबसे लम्बी साम्राज़्यवादी जंग है जो वियतनाम की जंग की हदों को भी पार कर चुकी है. यह “अफग़ानिस्तान की लानत” डेविड पेट्रियस को उसी तरह खा जायेगी जिस तरह उसने मेक्क्रिस्टल को खाया और उससे पहले डेविड मेक्कियरनेन को खाया था, जो पहला जनरल था जिस को नौकरी से आज़ाद किया गया था.
ऐसा लगता है की वोह भविष्यवाणी जो रिक हिलीयर, रिटायर्ड जनरल और केनेडा का भूतपूर्व डिफेंस चीफ ऑफ स्टाफ, ने ऑक्टूबर सन 2009 मे कि थी बिल्कुल उचित थी जब उसने कहा था की “अफग़ानिस्तान ने यह ज़ाहिर कर दिया है की नाटो इस मरहले पर पहुंच गया है जहाँ वोह एक सडी हुई लाश से ज़्यादा कुछ नही है”
नाटो की बढती हुई जनहानी की लिस्ट, 22 जून 2010 को पिछले 9 सालों की सबसे खूनी रही. रूस के जनरल, जो अभी भी “अफग़ानिस्तान की लानत” के दिये ज़ख्मों को भुला नही पाऐ है, अपने पश्चिमी साथीयों के सामने आखरी खुशी मना रहे है. यह वोह पश्चिमी साथी है जिन्होने 19वी शताब्दी के रूस और ब्रिटेन से सबक़ भी नही सीखा.
हालांकि “अच्छे अफग़ानी” मिस्टर करज़ई का रद्देअमल भी क़ाबिलेग़ौर है जिसने अपने दोस्त को नौकरी से निकाल दिये जाने का अफसोस किया. आखिरकार उसके अच्छे दोस्त मेक्क्रिस्टल ने उससे मुस्लिम आवाम के क़त्लेआम और पीडा की क़िमत पर सुरक्षा और शांती का वादा, अफीम की हिस्सेदारी के साथ किया था.
तालिबान के ज़रिये 42 देशो की गठबन्धन फौजों का प्रतिरोध जिसमे “मुस्लिम” जोर्डन और तुर्की, और एक लाख चालीस हज़ार अंतर्राष्ट्रिय फौज भी शामिल है, और नाटो के उच्चपदीय अफसरान का इस बात को क़ुबूल करना की अफग़ानिस्तान की जंग जीतना नामुम्किन है, इस बात को पूरी तरह से साबित करती है के जब भी मुसलमान कुरआन के इस फरमान पर प्रतिक्रिया करते है: “और मुश्रिकों से उसी तरह मुत्तहिद हो कर लडो जिस तरह से वोह तुम्हारे खिलाफ इत्तिहाद बना कर लडते है” तो यह साबित हो जाता है की वोह इस बात की पूरी क़बलियत रखते है की वोह अमरीका के अफग़ानिस्तान और इराक़ मे साम्रज्यवादी क़ब्ज़े को जड से उखाड कर फेंक सकते है और फिलिस्तीन के गले मे बन्धा इस्राईली अंसबंध को भी.
आने वाली अंतर्राष्ट्रिय कांफ्रेंस मे जिसका आयोजन हम बैरूत मे करने जा रहे है, हम उम्मत को वोह व्यवहारिक तरीका बताऐगें की इस मक़सद को अल्लाह (सुभहानहु व तआला) के हुक्म से कैसे हासिल किया जा सकता है।


उस्मान बखच
डारेक्टर केन्द्रिय मिडीया ऑफिस
हिज़्बुत्तहरीर
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