भारत ‘‘दुनिया का सबसे बडा़ लोकतान्त्रिक देश’’ अपनी महिलाओं की हिफाज़त करने में नाकामयाब हो गया है।
02 जनवरी, 2013
डॉ. नाज़रीन नवाज़
28 दिसम्बर 2012 को भारत की एक मेडिकल विद्यार्थी, जिस पर शदीद हमला और छः लोगो द्वारा गेंग रेप (मर्दो के एक टोले के द्वारा असमतदारी करना) किया था, ने शदीद ज़ख्मो के कारण दम तोड़ दिया। इस वाकिऐ ने पूरे भारत भर में सरकार और पुलिस की औरतों के जिन्सी तशद्दुत (Sexual Violence) के मामले में लापरवाह और कमजो़र रवय्ये के खिलाफ पूरे देश में मुजा़हिरे और प्रदर्षन होने लगे। भारत में औरतों की असमदरी (Rape) एक महामारी का रूप ले चुकी है और ऐसी घटनाऐं अब रोज़ का काम हो गया है। दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत (लोकतंत्र) में यह तेजी से बढ़ता हुआ जुर्म है। कई जिन्सी हमलो (Sexual assault) की रिपोर्ट तक नहीं होती क्योंकि महिलाऐ इस व्यवस्था में भरोसा खो चुकी हैं जो इस जुर्म के बढ़े पैमाने पर होने के सबब उनकी अस्मत की रक्षा करने में नाकामयाब हो गई है। यहॉ पुलिस के ज़रिऐ अस्मतदारी के मुजरिमों का सजा़ से बचने का रिवाज इतना आम हो गया है और अदालतो मे मुकदमे सालों तक घसीटे जाते है और बहुत कम फैसलो में मुजरिमों को सजा़ दी जाती है।
अलजजी़रा के मुताबिक भारत मे हर 20 मिनट में एक औरत की अस्मतदारी होती है और पिछले साल में सिर्फ 24,000 रेप के केस सामने आऐ। एक मिडिया आकटलेट ने रिपोर्ट किया है कि दिल्ली की 80 प्रतिशत औरतो को जिन्सी बुनियाद पर सताया गया है। ‘दी टाईम्स ऑफ इण्डिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 40 सालो के अन्दर भारत में 792 प्रतिशत अज़मतदरी (Rape) के वाकियात में ईजा़फा हुआ है।
डॉ. नाज़रीन नवाज़ सेन्ट्रल मीडिया आफिस की सदस्य का इस पर बयान इस तरह है, ‘‘पश्चिमी देश मुस्लिम दुनिया में औरतो की ईज़्ज़त और अधिकारो की हिफाज़त करने वाली व्यवस्था के रूप में ‘लोकतंत्र’ को निर्यात करना चाहती है, जबकि दुनिया की सबसे बडा़ लोकतान्त्रिक देश खुले तौर पर अपनी औरतों की रक्षा करने में नाकामयाब हो चुका है। औरतों के खिलाफ सेक्स क्राईम का जा़लिमाना पैमाने पर बड़ना, पुलिस का औरतों की अजमत की हिफाज़त के मामले मे नरम रवय्या और दुनिया की सबसे बड़े लोकतांत्रिक सरकार का अपनी औरतों की हिफाज़त करने के मामले में नरम रवय्या, यह नतीजा है उन लिबरन कल्चर (स्वतंत्रतावादी संस्कृति) का जिससे सुव्यवस्थित अन्दाज में औरतों के इंसानी मूल्यों को कम किया जाता है और जिसे खुद राज्य परवान चढ़ाता है और जिसका प्रदर्शन बॉलीवुड ईण्डस्ट्री खुल कर करती है।
यह बॉलीवुड संस्कृती, जिसमें दूसरे उद्योग जैसे मनोरंजन उद्योग, ऐडवरटाईजमेन्ट और पोरनोग्राफी (फहश फिल्मो का उद्योग), जिसकी ईजाज़त भारत की सेक्यूलर स्वतंत्रतावादी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने दी है, ने औरतों को मर्दो की ख्वाहिशो के मुताबिक खेलने की एक वस्तु बना दिया है, समाज का सेक्सीकरण कर दिया है, व्यक्तियों को अपने जिस्मानी ख्वाहिशात को बेलागी से पूरा करने की हौंसलाअफ्जा़ई की है, गै़र-शादीशुदा रिश्तो को बडा़वा दिया है, आजा़दाना जिन्सी मेल-मिलाप की संस्कृती को पाला-पोसा है, जिसके कारण मर्द और औरत का रिश्ता बहुत सस्ता हो गया है। इन सब विचारो ने मर्दो को उस कराहत और नफरत के खिलाफ भावनारहित (desensitized) बना दिया है जो उन्हे किसी औरत के अज़मत पर हमला होने की सूरत में महसूस करना चाहिए। इसीलिये इसमें कोई हैरत नहीं हेाना चाहिए कि भारत इस मामले में उन लिवरल (स्वतंत्रतवादी) देशो जैसे अमरिका और बरतानिया से मुकाबला कर रहा है, जो कि औरतों के खिलाफ हिंसा में आलमी लीडर की हैसियत रखते है। यह लोकतांत्रिक सेक्यूलर स्वतंत्रतावादी राज्य का मॉडल जिसमें आधी जनसंख्या खौफ और भय में जिन्दगी गुजा़रती है, किसी भी तरह से मुस्लिम दुनिया के अपनाने के लायक मॉडल नहीं है।
''वह ईस्लाम है, जो खिलाफत व्यवस्था के सम्पूर्ण तौर पर नाफिज़ किये जाने पर नारी की हिफाज़त के लिये ताकतवर और सही तरीका रखता है। ईस्लाम लिबरल स्वतंत्रता के मूल्यो को नकरता है और तकवा (खुदा का डर) का माहौल समाज मे पैदा करता है जो समाज में जवाबदेही की मानसिकता को बढ़ावा देता है, जिसकी बुनियाद पर मर्द औरतों को देखते है और व्यवहार करते है। यह समाज में हर तरह के सेक्सकरण (Sexualization) पर पाबन्दी लगाता है और औरतों के जिस्म को हर तरह के शोषण और वस्तुकरण से बचाता है। इस तरह से की दो लिंगो (Sexes) के बीच रिश्ते कभी भी सस्ते न हों या औरत की ईज़्ज़त कम न हो। यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को बनाता है जो मर्द औरत के रिश्तो को सुव्यवस्थित करती है, जिसमें शरीफाना ड्रेस कोड, मर्द-औरत को अलग रखना, बिना शादी के रिश्तो पर पाबन्दी वोह सब जो जिन्सी ख्वाहिशो (Sexual Desires) को पूरा करने के लिये सिर्फ शादी के रिश्तो की तरफ परिवर्तित करती है, जिससे नारी और समाज की रक्षा होती है।
यह सब खिलाफत व्यवस्था की छांव में क्रियान्वित किया जाता है, जिसका यह फर्ज़ है कि एक कुशल (efficient) न्याय व्यवस्था का इन्तेजा़म करे जो जराईम (Crimes) से निपटे और तेजी से सख्त सजा, जैसे औरतों पर ईल्जा़म लगाने पर कोड़े लगाना, और अस्मतदारी की सूरत में मौत तक लागू कर सकती है। यह वोह राज्य है जहॉ नारी के विरूद्ध एक बदनियती वाली नज़र, शब्द या अमल एक जुर्म समझा जाता है और बर्दाश्त नही किया जाता है। यह एक ऐसे समाज की रचना करता है जहॉ नारी का शिक्षा हासिल करना, नौकरी करना, सफर करना और जीवन व्यतीत करना सुरक्षित होता है। इसलिये हम मुस्लिम दुनिया की ख्वातीन को यह निमंत्रण देते है कि वोह खिलाफत को बतौर व्यवस्था के अपनाये, जिसमें उनकी हिफाज़त और भलाई करने वाले अपरिवर्तनीय सिद्धांत, पॉलीसी और कानून शामिल है।
02 जनवरी, 2013
डॉ. नाज़रीन नवाज़
28 दिसम्बर 2012 को भारत की एक मेडिकल विद्यार्थी, जिस पर शदीद हमला और छः लोगो द्वारा गेंग रेप (मर्दो के एक टोले के द्वारा असमतदारी करना) किया था, ने शदीद ज़ख्मो के कारण दम तोड़ दिया। इस वाकिऐ ने पूरे भारत भर में सरकार और पुलिस की औरतों के जिन्सी तशद्दुत (Sexual Violence) के मामले में लापरवाह और कमजो़र रवय्ये के खिलाफ पूरे देश में मुजा़हिरे और प्रदर्षन होने लगे। भारत में औरतों की असमदरी (Rape) एक महामारी का रूप ले चुकी है और ऐसी घटनाऐं अब रोज़ का काम हो गया है। दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत (लोकतंत्र) में यह तेजी से बढ़ता हुआ जुर्म है। कई जिन्सी हमलो (Sexual assault) की रिपोर्ट तक नहीं होती क्योंकि महिलाऐ इस व्यवस्था में भरोसा खो चुकी हैं जो इस जुर्म के बढ़े पैमाने पर होने के सबब उनकी अस्मत की रक्षा करने में नाकामयाब हो गई है। यहॉ पुलिस के ज़रिऐ अस्मतदारी के मुजरिमों का सजा़ से बचने का रिवाज इतना आम हो गया है और अदालतो मे मुकदमे सालों तक घसीटे जाते है और बहुत कम फैसलो में मुजरिमों को सजा़ दी जाती है।
अलजजी़रा के मुताबिक भारत मे हर 20 मिनट में एक औरत की अस्मतदारी होती है और पिछले साल में सिर्फ 24,000 रेप के केस सामने आऐ। एक मिडिया आकटलेट ने रिपोर्ट किया है कि दिल्ली की 80 प्रतिशत औरतो को जिन्सी बुनियाद पर सताया गया है। ‘दी टाईम्स ऑफ इण्डिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 40 सालो के अन्दर भारत में 792 प्रतिशत अज़मतदरी (Rape) के वाकियात में ईजा़फा हुआ है।
डॉ. नाज़रीन नवाज़ सेन्ट्रल मीडिया आफिस की सदस्य का इस पर बयान इस तरह है, ‘‘पश्चिमी देश मुस्लिम दुनिया में औरतो की ईज़्ज़त और अधिकारो की हिफाज़त करने वाली व्यवस्था के रूप में ‘लोकतंत्र’ को निर्यात करना चाहती है, जबकि दुनिया की सबसे बडा़ लोकतान्त्रिक देश खुले तौर पर अपनी औरतों की रक्षा करने में नाकामयाब हो चुका है। औरतों के खिलाफ सेक्स क्राईम का जा़लिमाना पैमाने पर बड़ना, पुलिस का औरतों की अजमत की हिफाज़त के मामले मे नरम रवय्या और दुनिया की सबसे बड़े लोकतांत्रिक सरकार का अपनी औरतों की हिफाज़त करने के मामले में नरम रवय्या, यह नतीजा है उन लिबरन कल्चर (स्वतंत्रतावादी संस्कृति) का जिससे सुव्यवस्थित अन्दाज में औरतों के इंसानी मूल्यों को कम किया जाता है और जिसे खुद राज्य परवान चढ़ाता है और जिसका प्रदर्शन बॉलीवुड ईण्डस्ट्री खुल कर करती है।
यह बॉलीवुड संस्कृती, जिसमें दूसरे उद्योग जैसे मनोरंजन उद्योग, ऐडवरटाईजमेन्ट और पोरनोग्राफी (फहश फिल्मो का उद्योग), जिसकी ईजाज़त भारत की सेक्यूलर स्वतंत्रतावादी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने दी है, ने औरतों को मर्दो की ख्वाहिशो के मुताबिक खेलने की एक वस्तु बना दिया है, समाज का सेक्सीकरण कर दिया है, व्यक्तियों को अपने जिस्मानी ख्वाहिशात को बेलागी से पूरा करने की हौंसलाअफ्जा़ई की है, गै़र-शादीशुदा रिश्तो को बडा़वा दिया है, आजा़दाना जिन्सी मेल-मिलाप की संस्कृती को पाला-पोसा है, जिसके कारण मर्द और औरत का रिश्ता बहुत सस्ता हो गया है। इन सब विचारो ने मर्दो को उस कराहत और नफरत के खिलाफ भावनारहित (desensitized) बना दिया है जो उन्हे किसी औरत के अज़मत पर हमला होने की सूरत में महसूस करना चाहिए। इसीलिये इसमें कोई हैरत नहीं हेाना चाहिए कि भारत इस मामले में उन लिवरल (स्वतंत्रतवादी) देशो जैसे अमरिका और बरतानिया से मुकाबला कर रहा है, जो कि औरतों के खिलाफ हिंसा में आलमी लीडर की हैसियत रखते है। यह लोकतांत्रिक सेक्यूलर स्वतंत्रतावादी राज्य का मॉडल जिसमें आधी जनसंख्या खौफ और भय में जिन्दगी गुजा़रती है, किसी भी तरह से मुस्लिम दुनिया के अपनाने के लायक मॉडल नहीं है।
''वह ईस्लाम है, जो खिलाफत व्यवस्था के सम्पूर्ण तौर पर नाफिज़ किये जाने पर नारी की हिफाज़त के लिये ताकतवर और सही तरीका रखता है। ईस्लाम लिबरल स्वतंत्रता के मूल्यो को नकरता है और तकवा (खुदा का डर) का माहौल समाज मे पैदा करता है जो समाज में जवाबदेही की मानसिकता को बढ़ावा देता है, जिसकी बुनियाद पर मर्द औरतों को देखते है और व्यवहार करते है। यह समाज में हर तरह के सेक्सकरण (Sexualization) पर पाबन्दी लगाता है और औरतों के जिस्म को हर तरह के शोषण और वस्तुकरण से बचाता है। इस तरह से की दो लिंगो (Sexes) के बीच रिश्ते कभी भी सस्ते न हों या औरत की ईज़्ज़त कम न हो। यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था को बनाता है जो मर्द औरत के रिश्तो को सुव्यवस्थित करती है, जिसमें शरीफाना ड्रेस कोड, मर्द-औरत को अलग रखना, बिना शादी के रिश्तो पर पाबन्दी वोह सब जो जिन्सी ख्वाहिशो (Sexual Desires) को पूरा करने के लिये सिर्फ शादी के रिश्तो की तरफ परिवर्तित करती है, जिससे नारी और समाज की रक्षा होती है।
यह सब खिलाफत व्यवस्था की छांव में क्रियान्वित किया जाता है, जिसका यह फर्ज़ है कि एक कुशल (efficient) न्याय व्यवस्था का इन्तेजा़म करे जो जराईम (Crimes) से निपटे और तेजी से सख्त सजा, जैसे औरतों पर ईल्जा़म लगाने पर कोड़े लगाना, और अस्मतदारी की सूरत में मौत तक लागू कर सकती है। यह वोह राज्य है जहॉ नारी के विरूद्ध एक बदनियती वाली नज़र, शब्द या अमल एक जुर्म समझा जाता है और बर्दाश्त नही किया जाता है। यह एक ऐसे समाज की रचना करता है जहॉ नारी का शिक्षा हासिल करना, नौकरी करना, सफर करना और जीवन व्यतीत करना सुरक्षित होता है। इसलिये हम मुस्लिम दुनिया की ख्वातीन को यह निमंत्रण देते है कि वोह खिलाफत को बतौर व्यवस्था के अपनाये, जिसमें उनकी हिफाज़त और भलाई करने वाले अपरिवर्तनीय सिद्धांत, पॉलीसी और कानून शामिल है।
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