खिलाफते राशिदा (सानी) की माद्दी क़ुव्वत
जब कोई मुस्लिम दुनिया के बारे में सोचता है तो उसके सामने, गरिबी, भ्रष्टाचार और जंगो का मंजर घूमने लगता है। मुस्लिम दुनिया के बारे में कई सारे गैर-मुस्बत (Negative) विचार पाये जाते है, जिन्होंने अखबारों और मीडिया में अपनी जगह बना रखी है। आज का आलमी मीडिया मुसलमानों की उपलब्धियो को और मुसलमानो के ज़रिये की गयी इंसानियत की खिदमात को नजरअंदाज करने की मानसिकता रखता है। मुस्लिम दुनिया का तरक्की और आविष्कारो का बहुत समृद्ध इतिहास है, जिसके फलो को दुनिया आज भी काट रही है पिछली आखरी दहाई में एक मुत्तहिद इस्लामी दुनिया की पुकार को रफ्तार मिलती जा रही है और यह बड़ती जा रही है। एक खलिफा के पीछे पूरी मुत्तहिद मुस्लिम दुनिया की संभावना कोई ऐसा विचार है, जिसे उम्मते मुस्लिमा हासिल कर सकती है, जैसे कि अतीत में उसने हासिल किया था और इस हक़ीक़त की गवाही खुद मग़रिबी इतिहासकारो ने दी है। मुस्लिम सरज़मीनो में इस वक्त मुन्दरजाजे़ल (निम्नलिखित) वसाईल पाये जाते है:-
1. दुनिया की सबसे बडी़ आबादी (1.6 बीलियन)
2. दुनिया की सबसे बडी़ फौज़
3. दुनिया में मौजूद तेल के आधे खजा़ने और दूसरे संसाधनो पर इख्तियार
4. दुनिया के सबसे बहतरीन समुद्री रास्तो पर इख्तियार (दुनिया का एक तिहाई तेल ईरान और अरब अमीरात के बीच में मौजूद हरमूज़ की खाडी़ से होकर गुज़रता है।)
5. और दुनिया के सबसे बहतरीन हवाई रास्तो पर इख्तियार
6. जमीन के सबसे बड़े खित्तो पर इख्तियार
7. परमाणु हाथियारो की मौजूदगी।
इस्लामी रियासत के स्वर्णिम युग (Golden age) ने कई सारी तकनीकी तरक्कियॉ देखी। मुसलमान उस तकनीक से फायदा उठाते थे, जिसके बारे में यूरोप सपने में भी नही सोच सकता था। मिसाल के तौर पर कई टेक्नोलोजी जिसे हम आज आम समझते है वो मौजूद नही होती अगर गणित के सिद्धांत जैसे एलजेबरा, इस्लाम के स्वर्णिम युग में विकसित नही होता। आज हम जिस कम्प्यूटर को इस्तेमाल करते है उसका वजूद नही होता अगर गणित अलगोरिथम (algorithm) का तसव्वुर मौजूद न होता। कई पश्चिमी विचारक जैसे डोनाल्ड रूट लेज हील बयान करते है कि मुसलमानों की उपलब्धियो के पीछे इस्लाम की ताकत थी। जबकि रोबर्ट ब्रिफोल्ट आधुनिक साइंस की बुनियाद इस्लामी सांइस को मानते है। ऑलिवर जॉसेफ लॉज अपनी किताब पॉयनियर्स ऑफ सांइस में लिखते है, ‘‘पुराने और जदीद साइंस के बीच असरकारक संबध को बनाने वाले अरब (मुस्लिम) थे।
यूरोप के सांइसी इतिहास मे डार्क एजेस (अंधेरो का युग) एक बहुत बड़ी खला (gap) थी और तकरीबन एक हजार सालो से ज़्यादा एक भी काबिले जिक्र सांइसदा मौजूद न था, सिवाये अरब दुनिया के।'' इस्लाम को लागू करके उम्मते मुस्लिमा इस्लामी व्यवस्था से बंध गयी थी, इसकी वजह से मुस्लिमो और गै़र-मुस्लिमो ने शांति और सुरक्षा के साथ जिंदगी गुजा़री। उम्मते मुस्लिमा को अपने उस पुराने ओहदे पर दुबारा फाईज़ होना है जो कि क़यादत और इज़्ज़त से ताल्लुक रखता है। सिर्फ एक यही ओहदा है जो उम्मते मुस्लिमा को मौजूदा बोहरान (crises) से बचाता है। अगर आज खिलाफत वजूद में आती है तो वो नयी टेक्नोलोजी को अपनायेगी और ऐसी अर्थव्यवस्था का विकास करेगी जो दौलत को पुरअसर अंदाज में बांटती है और कानून और व्यवस्था को क़ायम करती है। एक कामयाब रियासत होने की कुंजी यह है कि एक ऐसी सरकार हो जो वाकई अपने शहरियों का ख्याल रखे चूंकि उनकी बुनियादी ज़रूरीयात के ठीक तरह से पूरा होने की वजह से उम्मत आगे तरक्की कर सकेगी। इस्लाम हुक्मरान पर यह फर्ज़ करार देता है कि वे अपने नागरिको के अधिकारो को पूरा करे। यही वजह है कि माजी़ मे खिलाफत कामयाब रही। खिलाफत अपने संसाधनो का इस्तेमाल ऐसे करेगी कि सारे नागरिको की जरूरते पूरी हो सकें। जबकि आज उम्मत के पास संसाधनो के बहुत बड़े खजा़ने होने के बावजूद भी गरिबी से दो चार है। कोई भी फर्द (व्यक्ति) या कम्पनी बुनियादी ज़रूरियात के उपर इजारादारी (monopoly) रियासते खिलाफत में हासिल नही कर सकता। जैसे कि पानी के साधन और तेल के कुओं पर, क्योंकि अल्लाह के रसूल ने एक हदीस में फरमाया,
‘‘लोग तीन चीजो में शरीक है - (1) पानी (2) चारागाह और (3) आग (Fire)” (अबूदाउद)।
मुस्लिम सरज़मीनो में उर्जा के साधनो की कमी नही है, इसके बावजूद भी ज़्यादातर यहॉ के लोग बिजली की कटौती और घटिया ईन्फ्रास्टक्चर का सामना करते है।
मुस्लिम दुनिया की अक्सीरियत उर्जा के बोहरान (crises) का सामना कर रही है। इस उर्जा के बोहरान की असल वजह उनकी मौजूदा सरकारो की तरफ से उर्जा से इस संसाधनो का निजीकरण करना है। निजीकरण ने ऐसी बुनियादी ज़रूरियात की चीजो़ की कीमत बढ़ा दी है, जिसकी वजह से जनता गरीबी से जूझ रही है। खिलाफत इन मिल्कियतो को एक साथ व्यवस्थित करेगी और जरूरी इन्फ्रास्टक्चर का विकास करेगी ताकि नागरिको को इससे फायदा हासिल हो।
दुनिया के बड़े तेल के भण्डार (दुनिया के 56 प्रतिशत तेल के भण्डार मश्रिके वस्ता मे है) जो कि मध्य पूर्वी देशों में मौजूद है। उनको खिलाफत के नागरिको की उर्जा की बुनियादी ज़रूरियात को पूरा करने के लिये इस्तेमाल करेगी और इस उर्जा को पूरी रियासत में भिजवाया जायेगा। उर्जा की यह पॉलिसी सिर्फ एक मिसाल है कि खिलाफत कैसे विकास कर सकती है। कई मुस्लिम देशो ने जैसे पाकिस्तान, इन्डोनेशिया और तुर्की अपने उद्योगो के कई पहलुओं को विकसित कर लिया है, जिसकी वजह से वोह तकनीकी विकास हासिल कर सकते है खास तौर से उनकी फौजी उद्योगो (Military Industry)। पाकिस्तान अपने दिफाई (रक्षात्मक) हथियार जैसे क्रूज मिसाईल जो परमाणु हथियारो का इस्तेमाल कर सकते है, फौजी जंगी जहाज और मशहूर अल-खलिद टेंक (जिसका दुनिया में सातवा नम्बर है) बनाने में कामयाब हो गया है। अगर मुस्लिम फौज को एक लीडर के तहत मुत्तहिद कर दिया जाये तो वह दुनिया की सबसे बड़ी फौज होगी, जिसकी कुव्वत 3 मिलियन (30 लाख) फौजी होंगे। मुस्लिम सरज़मीनो को कई तरह की कु़व्वत और वसाईल हासिल है। सबसे बुनियादी फ़जीलत और बरतरी एक मुत्तहिदा मुस्लिम दुनिया को यह है कि दुनिया के सबसे कूटनितिक हवाई और समुद्री रास्ते मुसलमानो के कब्जे में है।
सुल्तान मोहम्मद फातेह के दौर में बोसफोरस की खाडी़ पर मुस्लिम काबिज़ थे और दुसरे देशो के जहाज बोसफोरस की खाडी़ से इस्लामी रियासत की ईजाज़त के बिना गुज़र नही सकते थे। इसी तरह से खिलाफत भी कूटनीतिक खाड़ियो और समुद्री रास्तो मे काबिज़ होगी जैसे कि बासफोरस और होरमूज की खाड़ी और हवाई रास्ते जो उसके कब्जो में आएगे। इस तरह खिलाफत यह तय करेगी कि कौनसा देश इन खाड़ियो और हवाई रास्तों का इस्तेमाल करेगा। इसके नतीजे में अमरीका जैसे देश के लिये मुस्लिम दुनिया पर हमला करना मुश्किल होगा क्योंकि खिलाफत अमरीका की नकल और हरकत पर पाबन्दी लगा देगी। अगर अमरीका हो हरमूज़ की खाड़ी और तुर्की, पाकिस्तान, सउदी अरब और खाड़ी देशों का हवाई रास्ते का इस्तेमाल नही करने दिया गया होता तो अमरीका के लिये ईराक और अफगानिस्तान पर हमला करना बहुत मुश्किल होता। यानी अमरीका को अपने खुद के हवाई रास्ते और हवाई अड्डो की इन फौजी ऑपरेशनो के लिये ज़रूरत पड़ती। लड़ाकू जहाज बिना रूके सिधे अमरीका से ईराक और अफगानिस्तान की तरफ नही उड़ सकते। इसके लिये अमरीका को खुद अपने हवाई अड्डो की ज़रूरत पड़ेगी। इस बात को नज़रअन्दाज़ नही किया जा सकता कि खिलाफत के वजूद मे आने पर उसे कई चेलेन्ज का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह से तकनीकी विकास और मौजूदा सूरतेहाल को सुधारने में वक्त लगेगा। हांलाकि सबसे अहम बात यह है मुत्तहिद (संयुक्त) मुस्लिम रियासत दुनिया मे एक सूपर पॉवर बनने की कु़व्वत मौजूद है।
मौजूदा सूरते हाल में मुस्लिम दुनिया ने कुछ उपलब्ध्यिॉ हासिल की है और अगर एक मुखालिस ईस्लामी क़यादत वजूद में आ गई तो यह क़यादत मुस्लिम दुनिया को नई उचाईयों तक ले जायेगी और खिलाफत पूरी दुनिया के लिये रौशनी का एक मीनार साबिर होगा, ईन्शा अल्लाह। अल्लाह के रसूल صلى الله عليه وسلم ने फरमाया ‘‘बेशक अल्लाह ने मेरे लिये जमीन को समेट दिया ताकि मे उसके पूरब और पश्चिम के हिस्सो को देख सकूं और बेशक मेरी उम्मत का ग़लबा (सत्ता) वहां तक पहुचेगा, जो कुछ भी दुनिया मे मेरे लिये समेटा गया है।'' (सहीह मुस्लिम)
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