अगर कल खिलाफत क़ायम हो जाये (भाग-2)

रियासत का खाका



रियासत का खाका बयान करने से पहले ज़ेल में कुछ अमूर बयान किये गये है:
1. हुकूमत मरकज़ियत (centralization) जब के इदारा (इंतेज़ामिया-administration) लामरकज़ियत (decentralization) की बुनियाद पर होगा.
2. हुकूमती महकमों में मौजूदा करप्शन और राइज शुदा ग़लत आदात को खत्म करना चाहिये मसलन ऐसे मुलाज़िमीन की कोई खास ज़रुरत नहीं, औरतों और मर्दों का इकट्ठा काम करना जो काम में खलल पैदा करता है और मुलाज़ीमीन को ग़लत कामों में मसरूफ करता है. मुख्तलिफ मुआमलात में पेचीदा तरीक़ेकार को खत्म किया जाऐगा.
3. चोरी रिश्वत के खात्मे के लिये मुलाज़ीमीन की तनख़्वाहें बढाई जानी चाहिए.
4. हुकूमत को आम सरकारी फिसेज़ और टेक्स, पानी और सीवर्ज के टेक्स, स्कूल फीस, दरआमद (export) बरआमद (import) के लाइसेंस और फीस, कोंसल के टेक्स, रोड टेक्स और सालाना टेक्स खतम करनी चाहिये, इस्लामी शरीअत (क़ानून) के मुताबिक़ यह सब सहुलियात मुहय्या कराना रियासत (राज्य) का काम है. इस्लाम में रियासत एक मुहाफिज़ (रक्षक) है ना की फीज़े और टेक्स वसूल करने वाला. रियासत का काम तमाम बुनियादी लोगों की ज़रूरत को पूरा करना और हर फर्द को अपनी इस्तेताअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी की सहूलियात से इस्तेफादा हासिल करने का मौका मुहय्या करना है.
5. बहुत से महकमो की कार्यवाही में तेज़ी दरकार है इसके लिये तमाम शहरों और क़स्बों में मराकिज़ कायम होने चाहिये ताकि इस काम को तेज़ किया जा सके. क़ाज़ियो को हर गांव और शहर में तैनात किया जाना चाहिये ताकि लोगों के तनाज़ात (झगडे) को एक सेशन में हल किया जाये.
6. रियासत के हर शहरी (नागरिक) का मक़ाम और मरतबा बराबर है, इसलिये तमाम हुकूमती महकमो में बैठने की जगह होनी चाहिये ताकि लोगों को धूप और बारिश में खुले आसमान के नीचे क़तारो में ना खड़ा होना पडे. बूढ़ों और औरतों के मुआमलात को पहले निपटा लेने चाहिये और उन इक़दार (मूल्यों) को जिन की शरीअत हौसला अफज़ाई करती है. ज़हन में रखना चाहिये.
7. मुलाज़ीमीन, मुंतज़ीमीन और महकमों के अफसरो की भरती भी शरीअत के मुताबिक़ होनी चाहिये. अल-हाकिम अपनी सहीह में लिखते है की नबी (स्वल्लल्लाहो अलैही वसल्लम) ने फरमाया, “अगर किसी शख्स को मुसलमान पर इख्तियार दिया गया और उस ने किसी शख्स को किसी मक़ाम पर मुंतखब किया जबकी कोई और शख्स उस जगह का ज़्यादा हक़दार था तो उस ने अल्लाह, उसके रसूल और मोमिनों को धोका दिया.”
इब्ने तैमिया इस मौज़ूअ पर फरमाते है, “अगर कोई बाइख्तियार शख्स किसी को सलाहियत की बुनियाद पर नहीं चुनता बल्की खानदानी मरासिम की बुनियाद पर, या पुरानी दोस्ती की बुनियाद पर, या यह की वह भी उस के शहर का है या उसकी नसल का है, या यह की वह भी वही खयालात रखता है, या उस के मज़हब का है, या उस ने रिश्वत ली है या यह की वह उस शख्स से हसद करता है जो असल में उस जगह का हक़दार है, या दुश्मनी की बुनियाद पर, तो वोह अल्लाह और उस के रसूल और मोमिनो को धोका देगा और वोह एक ऐसा काम करेगा जिसे अल्लाह ने मना फरमाया है: अल्लाह तआला फरमाता है:
“और किसी गिरोह की दुश्मनी तुम्हें इतना मुश्तअल ना कर दे की तुम इंसाफ से फिर जाओ.”
जहाँ तक हुकूमती निज़ाम का ताल्लुक़ है तो वोह एक मरकज़ी निज़ाम है, इस्लाम में रियासत वाहिद इदारे पर मुश्तमिल है जो की खिलाफत है खलीफा वोह इकाई है जिस का तमाम हुकूमती महकमो, इंतेज़ामिया (administration) और दफातिर पर मुकम्मल कंट्रोल है और वही इन तमाम का ज़िम्मेदार है. तमाम मौजूदा इदारों को खत्म करना चाहिए खास तौर से वोह इदारे जो अवाम की नाम निहाद खिदमत कर रहे है जैसे की मौजूदा वज़ारतें और एन.जी.ओज़ (N.G.O.s) खलीफा ही उम्मत की खिदमत की ज़िम्मेदारी उठाएगा और सिर्फ उस के पास यह इख्तेयार है के वोह रियासत का ढांचा इस्लाम के मुताबिक़ इस्तेवार करे।
रियासत का ढांचा
मुस्लिम दुनिया में मौजूदा हुकूमती निज़ाम को तबदील होना चाहिये ख्वाह वोह बादशाहत हो जम्हूरी निज़ाम (लोकतांत्रिक व्यवस्था). वज़ारतें, पारलियामानी ऐवान, और मक़ामी हुकूमते खत्म होनी चाहिए. सीनेट की तमाम कमेटियाँ, तिजारती यूनियनें, चन्दे के इदारे और वोह सियासी पार्टीयाँ जिन की बुनियाद ग़ैर-इस्लमी है, खत्म होनी चाहिये, मौजूदा सियासी निज़ाम को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिये. तमाम सिफारत खाने बन्द, उन का इस्टाफ मुल्क बदर और उन में पाया जाने वाला तमाम मवाद ज़्बत किया जाये ताकि उन साज़िशों को बेनक़ाब किया जा सके जो के मौजूदा हुक्मरान मग़रिब (पश्चिम) के साथ मिल कर मुसलमानों के खिलाफ करते थे और मुस्तक़बिल में अहतियाती तदाबीरे इस्तेमाल की जा सकें.
खलीफा और उस की टीम मौजूदा सेक्यूलर निज़ाम (धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था) की जगह नीचे बयान किये जा रहे निज़ाम को नाफिज़ करेगी:
1. खलीफा कुछ वज़ीर मुक़र्रर करेगा जो के बाइख्तेयार होंगे. किसी एक वज़ारत में महारत की बजाये उनके पास भी खलीफा जैसी जिम्मेदारियां होगी. दरअसल वोह खलीफा के नायब (deputy) है और मुख्तलिफ मुआमलात में अपनी राय देने का हक़ रखते है.
2. खलीफा तमाम सूबाई अमीर (वाली) गवर्नर (आमिल) और दूसरे ओहदेदार तैनात करेगा.
3. खलीफा क़ाज़ी अलक़ुज़ा और क़ाज़ी मज़ालिम (शिकायत की अदालत का सरबराह), मुख्तलिफ महकमों के सरबराह और दिगर सरकारी महकमों के सेक्रेटरी मुंतखब करेगा.
4. खलीफा अमीरे जिहाद की हैसियत से तीन महकमे क़ायम करेगा और उन के सरबराह मुक़र्रर करेगा. उन में महकमाऐ खारिजा, महकमा बराऐ जंगी उमूर, महकमा बराऐ दाखिली उमूर और महकमा सनअत शमिल है.
5. खलीफा मुआविने तनफीज़ मुक़र्रर करेगा ताकि खलीफा के अहकामात तमाम मुल्कि महकमो के सरबराहान तक पहुंच सके और हर मामले पर उन की कार्यवाही भी खलीफा तक पहुंच सके.
6. खलीफा मजलिसे दावत के नाम से एक मजलिस क़ायम करेगा, जिस का सरबराह वोह खुद होगा और उस में तमाम महकमों के सरबराह के अलावा खलीफा के सियासी और फौजी मामलात में मआविनीन भी शामिल होंगे. इस मजलिस का मक़सद आलमी दुनिया को इस्लाम के पैग़ाम के पहुंचाने के लिये मंसूबे तैयार करना है. इस का सालान इजलास होगा जबकि हंगामी इजलास किसी भी वक़्त हो सकता है. इससे खलीफा को रियासती पालिसी बनाने और उसे उस का मुआईना करने में आसानी होगी ख्वाह वोह फौजी मामलात हो या दाखिली और खारिजी. इस मजलिस की सिफारिशात को मानना खलीफ पर लाज़िम नहीं होगा.
7. मजलिसे शूरा या मजलिसे उम्मत उस वक्त अमल में लाना चाहिये के जब तक मौजूदा हुकूमती निज़ाम खतम और इस्लामी सियासी फिज़ा पैदा न हो जाये और उम्मत में दीन की समझ और इस्लाम की तरफ राग़बत पैदा हो जाये ताकि मौजूदा तमाम मसाइल का हल उस में मौजूद हो. क़ुरआन व सुन्नत में से क़वानीन अखज़ करने का काम वोह एक ओलमा के गिरोह को सोंपेगा. फिर इन क़वानीन को मजलिसे दावत के सामने बहस व मुबाहिसे और नज़र सानी के लिये रखने का बाद नाफिज़ करेगा. वोह तमाम सज़ाऐं, शहादतों, तिजारती क़वानीन और लेन देन के तरीक़ेकार की तफ्सीलात भी अवाम के सामने लायेगा।
महकमाऐ खारिजा
यह इदारा मौजूदा वज़ारते खारिजा की जगह लेगा. इस का काम खिलाफत और बाक़ी तमाम ममालिक के माबैन मुआमलात की निगरानी करना है. खलीफा इस महकमे का सरबराह मुंतखिब करेगा. उन तमाम लोगों को जो मौजूदा वज़ारत में काम कर रहे है, बर तरफ कर दिया जायेगा क्योंकी वोह एक ऐसे निज़ाम की नुमाईन्दगी करते है जो के इस्लाम से नहीं है. उन की जगह जानिसा, वफादार और तालीमयाफ्ता इस्लामी सियासतदां मुकर्रर किये जायेंगे. तमाम वोह क़ागज़ात और मुआहिदे जो मौजूदा वज़ारत ने किये थे, देखे जायेंगे ताकि गद्दारों की गद्दारियां सामने आ सके. इन को शाया भी किया जायेगा जाकि उम्मत जान सके कि खिलाफत अपने फरीज़े पर कारबन्द है और उस की मदद करें और बाक़ी तमाम मुसलमान हुकूमतों के खिलाफ भी अवाम की नफरत बड़े क्योंकि ऐसे क़ागज़ात उन की हुकूमतों के कुफ्फार के साथ खुफिया तआल्लुक़ को भी बेनक़ाब कर देंगे।
महकमा बराऐ जंगी उमूर
इस महकमे का काम मुसल्लेह अफ़वाज से तआल्लुक़ रखने वाले तमाम उमूर की निगरानी है, जैसे की बुरी अफ़वाज, पुलिस अकेडमी, फौजी दफातिर, असलेहा साज़ी, फौजी हिकमते अमली और जंगी तरीक़ेकार की तरबियत. माज़ी में मुसलमान इसे दारूलहजन्द के नाम से पुकारते थे. खलीफा इस महकमे का सरबराह मुक़र्रर करेगा. इसके अलावा खलीफा मुख्तलिफ रेजिमेंट्स के ब्रिगेडियर्स भी मुक़र्रर करेगा जो के वफादार और दिल लगा कर काम करने वाले होंगे ना की मौजूदा फौज की तरह जिस का काम सिर्फ कुफ्र निज़ाम की हिफाज़त करना रह गया है. पुराने कमांडरों के तंजुर्बे से तर्बियत से फायदा उठाया जायेगा लेकिन उन्हें रूत्बे वाला ओहदा नहीं दिया जायेगा.पूरी फौज की नई तशकील की जायेगी और एक नया निज़ाम मुतार्रुफ कराया जायेगा जिस के मुताबिक़ फौज के मुख्तलिफ हिस्से किये जायेंगे और उन्हें मुख्तलिफ काम दिये जायेंगे. इन हिस्सों को अव्वल फौज, दोयम फौज, सोयम फौज वग़ैराह के नाम दिये जायेंगे. अव्वल फौज का काम सरहदों की हिफाज़त है. दोयम, सोयम (तीसरी) और चहारमं (चौथी) फौज से बर्री (ज़मीनी) और बहरी फौज (थल सेना) तश्कील दी जायेगी. पंजम (पांचवी), शशम (छटी) और हफ्तम (सातवीं) फौज से फिज़ाई अफ़वाज और फिज़ाई दिफाई निज़ाम और साज़ो सामान का काम लिया जायेगा. हश्तम (आठवी) फौज लो मीलिट्री इंजीनियरिंग का काम सौंपा जायेगा. इस फौज को बाक़ी तमाम डिविज़नो में तैनात किया जायेगा लेकिन यह अपने ब्रिगेडियर के ज़ेरे क़यादत भी काम करेंगे. इंतज़ामी उमूर में यह फौज उसी डिवीज़न की ज़ेरेनिगरानी होगी जहां इस का तक़र्रुर होगा. नहम (नवी) फौज का काम अहम जगहों की हिफाज़त है मसलन खलीफा की रिहाइशगाह, हुकूमती दिफाई, नशरयाती स्टेशन, बन्दरगाहें और हवाईअड्डे वगैराह. नई फौजी अकेडमी और तरबियती इदारे क़ायम किये जायेंगे और तमाम सफरी तर्ज़ के खेल और तरबियत रोक कर फौज लो असलहे और जंगी तदाबीरे और हिमतेअमली की तरबियत दी जायेगी. तरबियत का मेयार बेहतर किया जायेगा और दिफाअ के साथ-साथ हमलों की भी तरबियत दी जायेगी.
ऐसे असलहे (arms) की फराहमी यक़ीनी बनाई जायेगी जो के इस जिहादी क़ौम को ज़ेब देता है, वोह क़ौम जिसका मक़सद “लाईलाहा इल्लल्लाह मुहमदुर्रसूलुल्लाह” के झंडे को दुनिया पर लहराना हो, वोह तमाम मर्द जो 15 साल से बडे है, की फौजी तरबियत की जायेगी ताकि ज़रूरत पडने पर वोह जिहाद के लिये तैयार हों. मुसल्लेह अफ़वाज की फौजी तरबियत के साथ-साथ दीनी और सियासी तरबियत भी की जायेगी. यह तालीम व तरबियत सख्त और तेज़ होनी चाहिये ताकि रियासत अपनी बर्री और फिज़ाई हदूद का सहीह तौर पर दिफाअ कर सके.
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