पश्चिमी दुनिया एक अरसे से आर्थिक तरक्की पर हावी है यहाँ तक की वोह तरक्की करने का रास्ता भी वही बताती है जिस के ज़रिये उसने खुद तरक्की हासिल की. जैसा की आज के अर्थशास्त्री, जिओपॉलिटिकल एक्सपर्ट और इंटेलिजेंस एजेंसीज़ ने भारत और चीन के सम्बन्ध मे कह रहे है. भारत के वैश्विक पूंजीवाद (Global Capitalism) के अपनाने के कारण उस की गिनती तेजी से तरक्की करने वाले देशो मे की जाने लगी है. मगर यह समझना मुश्किल है की ऐसा अन्दाज़ा भारत के लूनर मिशन की कामयाबी की वजह से लगाया जा रहा है या दुनिया की सबसे सस्ती कार यानी टाटा नेनो के उत्पादन से या जेगुअर लेंड रोवर का अपनी ही कम्पनी के ज़रिये खरीद लिये जाने से या इस से की भारत दुनिया मे सब से ज्यादा कॉल सेंटरों का घर है।
बहुत से लोगों भारत का न्यूक्लियर हथियारों का तैयार कर लेना, 1.2 बिलियन की आबादी का होना, जिसमे 500 मिलियन कार्यसक्षम लोग शामिल है, वग़ैराह जैसी सूरत देखते हुऐ यह नतीजा निकालते है की भारत मे एक सुपर पावर बनने के सारे गुण है।
टिप्पणी लिखने वाले ने भारत का ग्लोबल फ्री मार्केट का मेम्बर बनने की बहुत तारीफ की है और भारत की तरक्की का मॉडल पूंजीवाद की कामयाबी की एक और मिसाल के रूप मे देखा जा रहा है.
यह मज़मून भारत के विकास पर एक ब्यौरा पेश करेगा और इस बात के इम्कान पर रौशनी डालेगा की क्या भारत वाकई एक सूपर पावर बन सकता है और यह की इस तरक्की से क्या कोई सबक़ भी सीखा जा सकता है? भारत का विकास: भूत और वर्तमान भारत ने आर्थिक विकास और समृध्दि हासिल करने के लिये बटवारे के बाद से समाजवाद के तरीके पर कई पंचवर्षिय योजनाऐ शुरू की. शीत युद्ध के दौरान सोवियत रूस से गठजोड करने पर भारत मे टेक्नॉलोजी के लिये दरवाज़े खुले और सोवियत रूस भारत के लिये एक महत्वपूर्ण निर्यात (export) का बाज़ार साबित हुआ. 1990 मे उदारीकरण (Liberalization) की शुरूआत से पहले तक भारत की अर्थव्यवस्था को ‘लाइसेंस राज’ कहा जाता था. और ऐसा इस लिये कहा जाता था क्योंकि यहाँ विदेशी कम्पनियों को अपना बिजनेस शुरू करने के लिये लम्बी चौडी पाबन्दियाँ, लाइसेंस की प्रक्रियाओं और लालफिताशाही से गुज़रना पडता था. भारत की अर्शव्यवस्था अपनी रक्षित व्यापारवाद (Protectionism), जनता की मिल्कियत (public property) और भ्रष्टाचार (corruption) के लिये जाना जाता था।
सोवियत रूस के पतन ने हिन्दुस्तान को मजबूर किया की वह अपनी दिशा बदले. सोवियत यूनियन का पतन, जो हिन्दुस्तान का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार था, आर्थिक मन्दी की वजह बनी. उसके साथ-साथ गल्फ की जंग ने तेल की क़िमतो मे बढोतरी कर दी जिस से आर्थिक मन्दी मे और तेज़ी आई और ऐसे हालात ने हिन्दुस्तान को मजबूर कर दिया की वोह आई.एम.एफ (International Monetary Fund) की तरफ पलटे. आई.एम.एफ ने हिन्दुस्तान को 1.8 बिलियन का क़र्ज़ा दिया और बदले मे सख्ती के साथ कई आर्थिक सुधार चाहे. तक़रीबन 50 साल तक हिन्दुस्तान की क़यादत ने विदेशी दुनिया के लिये भारतीय अर्थव्यावस्था के दरवाज़े बन्द कर रखे थे. आई.एम.एफ ने हिन्दुस्तान से मांग की कि वोह 1 बिलियन डालर का घरेलू बाजार विदेशी कम्पनियों के लिये खोल दे. ऐसे मौके पर अमरीका ने हिन्दुस्तान के समर्थन मे कश्मीर के मामले मे प्रभावी बाते कही. और इसी के साथ ही नरसिम्हा राव सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण शुरू कर दिया, जिस ने मल्टिनेश्नल कम्पनियों के लिये भारतीय बाज़ार के दरवाज़े खोल दिये और तभी से भारत ने वैश्विक पूंजीवाद (global capitalism) को अपना लिया।
इस उदारीकरण, निजीकरण और अर्थव्यावस्था का विदेशीयों के लिये खोलने का काम उस वक्त के फाईनेंस मिनिस्टर, एक ग़ैरमारूफ अर्थशास्त्री, मनमोहन सिंह (मौजूदा प्रधानमंत्री) के हाथो मे दिया गया. मनमोहन सिंह ने सुधार की शुरूआत भारतीय बाज़ारो मे विदेशी पूंजीनिवेश (foreign investment) से की और भारत के घरेलू व्यापार से बहुत से नियमितताओं (regulations) को हटा दिया गया. उदारीकरण से लाईसेंस राज खत्म हो गया और उसके साथ-साथ सार्वजनिक एकाअधिकार (public monopolies) भी. इससे कई विभागो मे सिधे विदेशी पूंजीनिवेश को अपने आप इजाज़त मिल गई.
आज का भारत
सुधार की इस प्रक्रिया के चलते हुए तक़रीबन 20 साल गुज़रने के बाद भारत के कुछ शहर जैसे बैंगलोर ने प्रगती और महत्वपूर्ण आर्थिक विशिष्टता हासिल की और विदेशी पूंजीनिवेश का केन्द्र बन गया. सुधार की शुरूआत के समय मे भारत की अर्थव्यवस्था 317 बिलियन डालर की किमत रखती थी जो आज बढ कर 1.2 ट्रिलियन डालर हो गई और चीन के बाद दुनिया मे 12वे स्थान पर गिनी जाने लगी और दुनिया मे सबसे तेज़ी से बढने वाली अर्थव्यवस्था समझी जाने लगी.
उदारिकरण की इस प्रक्रिया ने भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यावस्था को बदल कर सेवा प्रधान (service sector) बना दिया जो देश की सम्पदा मे 54% योगदान दे रहा. इसमे आई.टी. सेक्टर और बिज़निस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) का योगदान 33% है. कई भारतीय फर्मे सन 2009 मे दुनिया की टॉप 15 टेकनोलोजिकल आउटसोरर्सिंग फर्मों मे गिनी गई. भारत मे आई. टी सेक्टर मे बढोतरी होने की वजह यहाँ बडी तादाद मे मौजूद शिक्षित और कुशल श्रमिक है. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था मे आई.टी. उधोग का योगदान तुलानात्मक दृष्टी से कम है और मौजूदा समय मे सिर्फ 7% है. आउटसोर्सिंग ऑपरेशन से इस समय सालान आमदनी 60 बिलियन डालर है जिसकी सन 2020 तक बढ कर 225 बिलियन डालर होने की उम्मीद की जा रही है.
भारतीय सम्पदा का 29% हिस्सा उधोग से आता है जहाँ अभी भी आम घरेलू उपयोग की वस्तुओ का उत्पादन किया जाता है. हालांकि सोफ्टवेयर के उत्पादन मे बढोतरी हुई है लेकिन अभी भी पुरानी स्वदेशी फर्मे विदेशी कम्पनियों से कम्पिटीशन होने की सूरत मे राजनैतिक समबन्धो का फायदा उठाती है. सरकार की पॉलिसी नये उत्पादनों की डिज़ाईनिंग और सस्ती क़िमत और टेक्नॉलॉजी पर केंद्रित है.
भारत की सम्पदा मे 17% योगदान कृषि का है हालांकि श्रमिको की सबसे बडी तादाद को रोज़गार इसी क्षेत्र से मिलता है यानी 3 मे से 2 लोग कृषि क्षेत्र मे काम करते है. भारत चीन के बाद सबसे बडा कृषि उत्पादक देश है और दुनिया मे सबसे ज्यादा केले, दूध, काजू, नारियल, चाय, हल्दी और काली मिर्च का उत्पान करने वाला देश है. भारत मे दुनिया की सबसे बडी मवेशियों की जनसंख्या है जो अंको मे 193 बिलियन है और दुनिया मे पैदा होने वाले फलों का 10% भारत मे होता है.
मौजूदा मसाइल हिन्दुस्तान उदारिकरण के 20 वे साल मे प्रवेश करने वाला है लेकिन वोह अभी पीछे है उन सभी समान पैमानो के अपनाने के बाद जिन को चीन ने अपनाया है. विश्व शक्ति बनने के लिये भारत को अभी बहुत से चेलेंजेज़ का सामना करना है जिनको निम्नलिखित बिन्दुओं मे पेश किया जा रहा है:
उर्ज़ा
किसी भी देश की प्रगती के लिये घरेलू उर्जा के साधनों द्वारा सुरक्षित और स्थिर सप्लाई का बडा महत्व है. इस मामले मे हिन्दुस्तान की दशा बहुत खराब है. भारत के 80% गॉवो है बिजली की सिर्फ एक लाइन मौजूद होती है, तकरीबन 600 मिलियन हिन्दुस्तानियों को बिजली की सुविधा उपलब्ध नही है. गॉवो मे रहने वाले सिर्फ 44% लोगों को बिजली उपलब्ध है. आर्थिक प्रगति के बढने के सबब उर्जा की मांग बहुत तेज़ी से बढ रही है जिसने लगातार उर्जा का बोहरान (crisis) पैदा कर दिया है. भारत की स्थिती तेल के संसाधनो के मामले मे बहुत खराब है और उसे पूरी तरह से उर्जा सम्बन्धित अवश्यकताओ को पूरा करने के लिये तेल और कोयले के मामले मे विदेशी निर्यात पर निर्भर रहना पडता है. हालांकि भारत कुछ उर्जा के साधन, जिनका नवीनीकरण (renewable) सम्भव होता है, मे समृध्द है जो के भविष्य मे फायदे मन्द हो सकते है जैसे के सूर्य उर्जा, वायु उर्जा और बायोफ्यूल्स बग़ैराह, लेकिन यह अभी विकास की प्रारम्भिक हालत मे है और किसी भी तरह से औधोगिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिये काफी नही है.
सम्पत्ति का वितरण पिछले बीस सालों मे भारत की प्रगती तकरीब बराबर ही रही है. उदारीकरण (liberalization) और वैश्वीकरण (globalization) के फल सिर्फ भगोलिक और आर्थिक क्षेत्रों तक सिमित है. आई. टी. का बूम सिर्फ दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों तक सिमित है और पेट्रोकेमिकल्स का क्षेत्र अधिकतर गुजरात और पश्चिमी राज्यों तक सिमित है. भारत का अधिकतर भाग यानि उत्तर और पूर्वी भारत अभी भी आर्थिक प्रगती मे बहुत पीछे है. पारम्परिक तौर से देश के गरीब और सबसे घनी आबादी वाले राज्य जिन्हे बिमारू भी कहा जाता है, यानि बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार वग़ैराह, आज भी कृषि समबन्धित अर्थव्यवस्था पर निर्भर है।
हालांकि भारत की आर्थिक स्थिती मे पिछले दो दशक मे चार गुना वृद्धि हुई है, लेकिन यह नई सम्पत्ती सिर्फ चन्द लोगों के हाथों मे है. 85% (930 मिलियन) जनसंख्या 2.50 डालर प्रति दिन पर गुज़ारा करती है. यह सबसहारा अफ्रिकी देशों से ज्यादा है. 75% (822 मिलियन) जनसंख्या 2 डालर प्रति दिन पर गुज़ारा करती है. 24% (300 मिलियन) जनसंख्या 1 डालर प्रति दिन पर गुज़ारा करती है. इसका मतलब है की 41% (444 मिलियन) भारतीय अंतर्राष्ट्रिय गरीबी रेखा (1.25 डालर प्रति दिन) के नीचे ज़िन्दगी गुज़ारते है. इस तरह दुनिया की 33% गरीब जनसंख्या भारत मे निवास करती है।
देश की प्रगती के लिये आवश्यक बुनियादी डांचा
किसी भे देश को वैश्विक शक्ति बनने के लिये ज़रूरी है की वोह अपना घरेलू बुनियादी ढांचे को यानी रोड, बन्दरगाहें, बिजली, पानी की सप्लाई, टेलीकोम सुविधाओं का विकास करें ताके प्रगती को तेजी दी जा सके. जहाँ तक हिन्दुस्तान के बुनियादी डांचे की बात है, यह अपनी टूटी-फूटी सडके, ऐयरपोर्टों पर यातायात का ठप रहना, बिजली के ब्लेकआउट, और राष्ट्रीय स्तर के बडे प्रोजेक्टों मे भ्रष्टाचार के लिये जाना जाता है. भारत की मशहूर टेक्नोलोजीकल फर्म इंफोसिस टेक्नोलोजी ने इस बात की पुष्टी की है की व्यवहारिक तौर पर बैंगलोर मे बडी संख्या मे लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिये यातायात मौजूद नही है जिस के कारण उन्हें सालाना 5 मिलियन डालर बसों, मिनीबसों और टेक्सियों पर अपने 18000 कर्मचारियो के लिये खर्च करने पडते है. इसके अलावा ट्रेफिक जाम का मतलब कर्मचारीयों का चार घंटे आने जाने बरबाद होना है. भारत मे अब तक इस क्षेत्र मे खर्चा सिर्फ 31 बिलियन डालर किया गया है. पूरी दुनिया मे पाये जाने वाले वाहनो का सिर्फ एक प्रतिशत भारत मे पाया जाता है जबकि, दुनिया मे होने वाली दुर्घटनाओं मे 8 प्रतिशत दुर्घटनाऐ भारत मे धटित होती है. गोल्डमेन सेचेस के एक अनुमान के अनुसार भारत को आने वाले दस सालो मे तेज़ आर्थिक विकास से फायदा उठाना के लिये 1.7 ट्रिलियन डालर अपने बुनियादी डांचे के विकास पर लगाना ज़रूरी है.
इसके साथ-साथ भारत के सामने दूसरी समस्याऐं है जिन पर काबू पाना उसका वैश्विक शक्ति बनने के लिये ज़रूरी है, उनमे से कुछ इस तरह है: 1. भारत मे 1000 बच्चे रोज़ उल्टि-दस्त से मर जाते है. 2. तीन साल से कम उम्र के 40% बच्चे कुपोषण का शिकार होते है. 3. एक लाख गावों ने अभी भी टेलिफोन की घंटी की आवाज़ नही सुनी है. 4. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक एक उधोगपती को भारत मे 35 दिन उधोग को शुरू करने मे, 270 दिन कई तरह के लाइसेंस और पर्मिट हासिल करने मे, 62 दिन प्रोपर्टी को रजिस्टर करने मे, 4 साल एक कांट्रेक्ट को अमल मे लाने मे, और 10 साल बिजनिस को बन्द करने मे लगते है! 5. शहर मे रहने वाले तीन मे से एक शहरी के घर की हालत इतनी खस्ता होती है की वह घर अमरीका के जेल की कम से कम शर्तों के भी पूरा नही करता है.
6. 338 मिलियन भारतीय पढ लिख नही सकते।
..................आगे जारी
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