आलमी कॉन्फ्रेन्स से अमीरे हिज़्ब उत्तहरीर अता बिन खलील अबू रूश्ता के खिताब का तजुर्मा

एक मई, 2012 को लेबानान मे मुनक्किद होने वाली आलमी कॉन्फ्रेन्स से अमीरे हिज़्ब उत्तहरीर अता बिन खलील अबू रूश्ता के खिताब का तजुर्मा: ईफ्तताही खिताब

मुअज़्ज़ि भाईयो! अस्सालामु अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू।

अल्हमदु लिल्लाह, अल्लाह की रहमते और बरकते नाज़िल हो, रसूल्लाह (صلى الله عليه وسلم) पर और उनके अहलो व अयाल पर, उनके असहाब पर।

{وَلَا تَحْسَبَنَّ اللَّهَ غَافِلًا عَمَّا يَعْمَلُ الظَّالِمُونَ إِنَّمَا يُؤَخِّرُهُمْ لِيَوْمٍ تَشْخَصُ فِيهِ الْأَبْصَارُ*مُهْطِعِينَ مُقْنِعِي رُءُوسِهِمْ لَا يَرْتَدُّ إِلَيْهِمْ طَرْفُهُمْ وَأَفْئِدَتُهُمْ هَوَاءٌ}

‘ना इन्साफियो  के आमाल से अल्लाह को ग़ाफिल न समझो, वह तो उन्हे उस दिन तक मोहलत दिए हुए है, जिस दिन आंखे फटी की फटी रह जाएगी।’ (इब्राहिम: 24)
अबू मूसा रिवायत करते है के रसूल्लाह صلى الله عليه وسلم ने फरमाया: ‘‘अल्लाह जाबिर हुक्मरानो को मोहलत देता है, मगर जब वोह उन्हे सज़ा देने का फैसला करता है तो सख्त सज़ा देता है।” (बुखारी व मुस्लिम)
फिर आप (صلى الله عليه وسلم) ने यह आयत तिलावत की

{وَكَذَلِكَ أَخْذُ رَبِّكَ إِذَا أَخَذَ القُرَى وَهِيَ ظَالِمَةٌ إِنَّ أَخْذَهُ أَلِيمٌ شَدِيدٌ}

‘‘तेरे परवरदिगार की पकड़ का यही तरीका है जब तक बस्तियो के रहने वाले ज़ालिमो को पकड़ता है। बेशक उसकी पकड़ दुख देने वाली और निहायत सख्त है।” (अलहूद: 102)
अल्लाह ने हमे सबसे बड़े जाबिर की मिसाल दी, यानी फिरऔन। उसने ज़ुल्म किया, बगावत की, लोगो को गुलाम बनाया और इतना मुतकब्बिर था कि ऐलान किया कि मै ही तुम्हारा रब हॅू।

{فَأَخَذَهُ اللَّهُ نَكَالَ الْآخِرَةِ وَالْأُولَى}

‘‘तो अल्लाह ने भी उसे आखिरत के और दुनिया के अजा़ब में गिरफ्तार कर लिया। ” (अल-नाज़आत: 25)

वह लोगो की ज़बानो को खामोश करता और हक़ बात के कहने को रोकता। वोह सिर्फ उस बात को क़ुबूल करता, जो उसके मुताबिक होती। सिर्फ यही नही, बल्कि अगर उसके खिलाफ, उसकी मर्जी़ के बगैर, मामूली से मुज़ाहिरे भी होते, तो वह ईल्ज़ाम लगाता के ये मुल्क को कमज़ोर करने के लिए एक साज़िश है और उसमे बैरूनी हाथ शामिल है।

{قَالَ فِرْعَوْنُ آمَنْتُمْ بِهِ قَبْلَ أَنْ آذَنَ لَكُمْ إِنَّ هَذَا لَمَكْرٌ مَكَرْتُمُوهُ فِي الْمَدِينَةِ لِتُخْرِجُوا مِنْهَا أَهْلَهَا فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ}

''फिरऔन कहने लगा के तुम मूसा पर ईमान लाए हो बगैर इसके के मैं तुमको इजाज़त दू? बेशक ये साज़िश जिस पर तुमने अमल किया है, इस शहर में ताकि तुम सब इस शहर से यहॉ के रहने वालो को बाहर निकाल दो। सो अब तुमको हकी़क़त मालूम होती है” (अल आराफ: 123)
मगर आखिर में फिरऔन खत्म हो गया और वह सब कुछ पीछे छोड़ गया, जिसके जरिए वह हुक्मरानी के मजे़ लूट रहा था और उस पर न तो आसमान रोया न ज़मीन। उसकी मज़म्मत की गई और फिर मगजू़ब ठहरा।

{كَمْ تَرَكُوا مِنْ جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ * وَزُرُوعٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ * وَنَعْمَةٍ كَانُوا فِيهَا فَاكِهِينَ * كَذَلِكَ وَأَوْرَثْنَاهَا قَوْمًا آخَرِينَ * فَمَا بَكَتْ عَلَيْهِمُ السَّمَاءُ وَالْأَرْضُ وَمَا كَانُوا مُنْظَرِينَ}

“वह बहुत से बाग़ात और चश्मेُ छोड़ गए और खेतीयॉ और राहत बख्श ठिकाने। और वह आराम की चीजे जिनमें ऐश कर रहे थे। इस तरह हुआ और हमने इन सबका वारिस दूसरी कौम को बना दिया। सो इन पर न तो आसमान व ज़मीन रोए और न इन्हे मोहलत मिली”  (अल अद-दखान: 25-29)
मुअज़्ज़िज़ भाईयो! आज के जाबिरो ने फिरऔन की दो बुरी बातो की तक्लीद की, पहली और दूसरी, मगर वह तीसरे मामले को भूल गए। 
उन्होंने लोगो को खामोश किया और हक़ बात कहने पर पाबन्दी लगाई, मगर सिर्फ वह जो उनकी मदद सराई मे हो और मनफअत (फायदे) पर मबनी हो, या उनकी बातो की तारीफ मे हो, चाहे वोह बात सही हो या ग़लत। दर हकी़क़त, वह ख़ैर से आरी है हत्ता के ख़ैर के शाएबे (अंश) तक से, और उनके हर पहलू में शर (बुराई) हावी है। ये जाबिर हर उस ऐहतजाज (Protest) पर जो उनकी मर्ज़ी और इजाज़त के बगैर किया जाए, बैरूनी ताकतो की साज़िश होने का इल्ज़ाम लगाते है। जबकि हर कोई जानता है के दरहकीकत ये खुद बैरूनी ताकतो के पैदावार है, जिन्हे अल्लाह और उसके रसूल (صلى الله عليه وسلم) और मोमिनो के साथ जंग और यहूद और काफिर इस्तेमार के मफादात के तहफ्फुज़ के लिए, मुसलमानो पर मुसल्लत किया गया। उन्होने फिरऔन से ये दोनो बुरी खसलतें अपनाई, इन पर अमल किया और इन पर खुशियां मनाई, मगर उन्होने फिरऔन के तीसरे मामले से सबक हासिल नही किया, के किस तरह तारीख ने उसे भूला दिया, सिर्फ इस अम्र के अलावा के रहती दुनिया तक उस पर लानत की जाए और आखिरत में भी। उन्होंने एक ज़ालिम जाबिर हुक्मरान के इख्तेताम से कोई सबक हासिल नही किया और अपने ज़ुल्म पर मुसलसल कायम रहे। आज उनमें से एक तो (फरार) है, जो मुस्तरद होने और........... के बाईस भाग खड़ा हुआ, अपने तय्यारे में बैठे हुए अपने लिए जाए पनाह तलाश करता रहा, हर जगह से इन्कार होते हुए आखिर एक और जाबिर के दर पर पहुंचा, जिसने उसके लिए रहने का बन्दोबस्त किया। और उनमें से एक (हुस्ने  मुबारक) और, आज बेयार व मददगार, एक अदालत से दूसरी अदालत में व्हील-चेयर पर धक्के खा रहा है। और आज वह महकूमो के लहजे में जवाब देता है . . . .  जबकि ये वोह है जो अपनी उंगली के ईशारे से अपनी मरज़ी के लोगो का चयन करता था। और तीसरा जाबिर समझता था के उससे बड़ा कोई नही है। उसने अपने लोगो को बग़ैर किसी जुर्म के कत्ल किया, न सिर्फ अच्छे लोगो को बगैर किसी जुर्म के बल्कि सबसे मुत्तिकी़ और नेक लोगो को, और उन्हे गाड़ियो के साथ बांधकर सड़को पर घसीटा यहां तक के वह शहीद हो गए, और उनके जिस्मो के टुकड़े-टुकड़े करवा दिया। वह जाबिर आखिर में छिपकली की तरह एक सुराख में छिपता फिरता था और उसे छिपने के लिए भी सिर्फ गटर का पाईप ही नसीब हुआ। वोह लोगो को चुहे कहा करता था और आखिर में उसकी मौत एक चूहे की तरह हुई (मूअम्मोर गद्दाफी)।
चौथा जाबिर हुक्म दिया करता था और मना किया करता था, मगर उसी को हुक्म दिया गया और मना कर दिया गया। वह एक दिन अपने मुल्क मे था, फिर दो दिन नज्द  मे रहा और फिर पनाह के लिए मुल्क से मुल्क फिरता रहा, यहां तक के वह अम्मान पहुंच गया। फिर उसने अपने आका बरतानिया का रूख किया और फिर जिस्मानी और ज़हनी थैरेपी (ईलाज) के लिए वाशिंगठन का।
और पांचवी की आंखे और अक्ल माऊफ हो चुकी है, वह अपने गिर्द जाबिरो का हश्र देख चुका है मगर फिर भी मासूम मुसलमानो के खून से उसकी प्यास अभी तक नही बुझी, वह कत्ल कर रहा है . . . . और कत्ल कर रहा है . . . . . और कत्ल कर रहा है (बशारूल असद)- शायद वह मुज़ाहिरीन की शमा बुझाना चाहता है, ये भूलते हुए या फिर अपने आपको जानबूझ कर भूलाते हुए, के अल्लाह के इज्न से जलने वाली हक की शमा जो एक दफा रोशन हो चुकी है, अब बुझने वाली नही यहां तक के उसे ही जला दे, और उसे एक मगजू़ब और लानती कि हैसियत से तारीख के कूड़ादान में फैक दे। बिल्कुल इसी तरह जैसे उससे पहले जाबिर हुक्मरानो के साथ हो चुका है, और इस तहर अल-शाम को अपनी अस्ल हैसियत की तरफ लौटा दे जिसके बारे में रसूल्लाह صلى الله عليه وسلم ने फरमाया: ‘‘मोमिनो का घर शाम है” (अहमद) ‘‘इस्लाम का मसकन (घर) शाम है” (तिबरानी)
मुअज़्ज़िज़ भाईयो! आपने खुद अपनी आंखो और कानो से मुशाहिदा किया के वह जाबिर हुक्मरान जिनके इक्तिदार के खात्मे के बारे मे लोग गुमान भी नही कर सकते थे, उम्मत ने उन्हे ऊखाड़ बाहर फेंका। और आपने इस बात का भी मुशाहिदा किया के वह खोफ की दीवार के जिसके गिरने का कोई सोच भी नही सकता था, उम्मत ने वह दीवार भी गिरा दी है। इसमें हर हस्सास आदमी के लिए एक मिसाल है के हालात की तब्दीली मुमकिन है और जु़ल्म के अंधेरे का खात्मा करीब है, चाहे उसके लिए ऐसी मुसलसल जद्दोजहद करनी पड़े जिसमें जान व माल लुटाए जाए और आग और रियासती ताकत का मुक़ाबला किया जाए। उम्मत ने जाबिर हुक्मरानो के खौफ के खात्मे ने ख़ैर को खकीनन आसान किया है और हमारी भरपूर कोशिश होनी चाहिए के हम मज़बूत और समझदार सरगर्मियो (गतिविधियों) का इन्अेकाद करते हुए इस ख़ैर में इजा़फा करे. . . ताकि उम्मत अपने ज़ख्म का ईलाज करें। और इस ख़ैर का फायदा उठाए। वह तहरीक और इन्कलाब जो हम आज देख रहे है, जो अबू अजी़जी़ की खुदखुशी के बाद खुद बखुद शुरू हुआ, आग की तरह फैल रहा है............ आलमी ताकते इन तहरीको के तेजी़ और जोश पर.................. थी और वह उन इन्कलाब के सामने अपने ऐजेन्टो को न बचा सके। उन्होंने अपनी तमाम कोशिशे इस बात पर लगा दी, के ये तब्दीली सिर्फ जाबिरो के जाने तक ही रूक जाए और उनके बचाए हुए निजा़म की बुनियादो को बचा लिया जाए। मगर जब उन्होंने इस इन्कलाब मे मसाजिद से शुरू होते हुए मुज़ाहिरे देखे और फिर सड़को पर हज़ारो मुसलमानो को नमाज़ पढ़ते देखा, तो वह खौफज़दा रह गए के उनके निज़ाम, इस्लामी निज़ामे हुकूमत से तब्दील न हो जाए। चुनांचे उन्होंने दो मुमकिन मंसूबो पर अमल करना शुरू किया:-
अव्वल: इन तब्दीली के जज़्बात को नाम-निहाद ‘ऐतदाल पसन्द मुसलमानो’(या Moderate Muslim)  की तरफ से एक गुमराही पर आधारित मुहिम के जरिए ठंडा किया जाए। ये नाम-निहाद ऐतदाल पसन्द सेक्यूलर तबके से सिर्फ इस हद तक मुख्तलिफ है के ये इस्लाम के हक मे ज़बानी बयानात देते है। इसके अलावा इन दोनो तबको मे कोई खास फर्क नही। यकीनन, वह एक जम्हूरी रियासत की तरफ दावत दे रहे है, बिल्कुल सेक्यूलर तबके (गिरोह) की तरह।
दोवम:-उन लोगो के खिलाफ एक सख्त मौकफ अपना कर और उनको रोककर और उन पर तन्कीद करके, कभी खुद और कभी अपने ऐजेन्टो के जरीए, जो खिलाफत के क़याम के जरीए इस्लाम के हक़ीक़ी निज़ाम की दावत दे रहे है, जिसका अल्लाह और उसके रसूल صلى الله عليه وسلم ने हुक्म दिया।
ये है जो वह कर रहे है। मगर हमारा काम ये है के हम उम्मत को आगाह करे, खासतौर पर इन तहरीको के क़ायदीन को, और उनको इस्तेमार और उसके ऐजेन्टो के इस ज़हर से खबरदार करें। उन्हे नाम निहाद ‘ऐतदाल पसन्द मुसलमान’ तबके की तरफ से गुमराही पर मबनी मुहिम से खबरदार करे, जो वह एक जम्हूरी रियासत (लोकतान्त्रिक राज्य ) के क़याम के लिए चला रहे है। क्योंकि अगर वह कामयाब हो गए तो ये तमाम कुरबानियॉ और खून राएगा चला जाएगा। इसके साथ-साथ हमें पूरी कोशिश करनी है के इन तेहरीको की सिम्त (दिशा) दुरूस्त तब्दीली की तरफ मोड़ी जाए, वह तब्दीली जो उनके निज़ामो, तसव्वुरात और कवानीन को खत्म करे, जो पश्चिम की गुलामी की बुनियाद है। वह तब्दीली जहॉ उम्मत इस्लाम को एक इस्लामी रियासत, यानी खिलाफत की शक्ल में नाफिज़ करे, और अल्लाह तआला, रसूल (صلى الله عليه وسلم) और मोमिनो को खुश करें। उम्मत में इस तहरीक को सही रूख देना और अफवाज से नुसरत तलब करना ही दुरूस्त तब्दीली का ज़ामिन है। आलमी तंजीमो (international organisations) और इस्तेमारी क़ुव्वतो को दावत देना न सिर्फ एक ऐसा ज़हर है, जो न सिर्फ दुरूस्त तब्दीली की राह में रूकावट है, बल्कि ये ग़लत और मनफी तब्दीली (negative change) का र्फामूला है। ये रहमत लाना जरूर लगता है मगर है नही, इसलिए उम्मत को खबरदार रहते हुए अपनी क़ुव्वत पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि इन्ही इस्तेमारी क़ुव्वतो ही ने इस्लामी रियासत, खिलाफत के खिलाफ साज़िशे की और इस्लामी सरज़मीनो को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और इनके माबेन सफर करने तक को नामुमकिन बना दिया।
ये दुरूस्तक है कि मग़रिब और उसके ऐजेन्टो की माद्दी क़ुव्वत हमसे कहीं ज्यादा है। मगर चाहे ये मामला कुछ वक्त ले, इस उम्मत के बेटे और बेटियॉ, अपने लोगो के साथ इन जाबिरो पर ज़रूर गलबा हासिल करेगें और इनकी कमर तोड़ देगें, इन्शा अल्लाह। क्योंकि ये मग़रिबी इस्तेमार और इसके ऐजेन्ट बातिल पर जमा है और बातिल मिटने के लिए ही है और जो इसकी जगह लेगा वह हक़ है।
अल्लाह (سبحانه وتعالى) कुरान में इरशाद फरमातें है:

{هُمُ الْعَدُوُّ فَاحْذَرْهُمْ قَاتَلَهُمُ اللَّهُ أَنَّى يُؤْفَكُونَ}

‘‘और ऐलान कर दे के हक़ आ गया और बातिल मिट गया और बातिल मिटने के लिए ही है” (बनी इस्रोईल: 81)
आखिर में, मैं आपकी इस कॉन्फ्रेस ‘‘उम्मत का इन्कलाब  . . . . . . और इस्लामी हुक्मरानी की वापसी, इन्शा अल्लाह” का आगाज करता हॅू और अल्लाह से कामयाबी और ख़ैर की दुआ करता हॅू। हमारी आखिरी दुआ यही है के तमाम तारीफे अल्लाह ही के लिए है।
अस्सलामु व अलैकुम वरहमतुल्लाही व बरकातहु ।
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