सुन्नत
लुग़त में सुन्नत के माने है तरीका. लेकिन जहाँ तक शरीअत का ताल्लुक़ है तो उस में सुन्नत से मुराद वोह आमाल हैं जो बतौरे नफिल रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم से मनक़ूल है मसलन सुन्नत रकअतें। इन को फर्ज़ से फर्क़ करने के लिये सुन्नत कहा जात है। इन को सुन्नत कहने का मतलब यह नहीं कि यह रकअतें नबी صلى الله عليه وسلم की जानिब से है, और फर्ज़ अल्लाह तआला की तरफ से। बल्कि सुन्नत और फर्ज़ दानों अल्लाह तआला की जानिब से है। रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم तो सिर्फ अल्लाह तआला की तरफ से मुबल्लिग़ (पैग़म्बर) है। वोह अपनी ख्वाहिशात से कुछ नहीं बोलते बल्कि यह सब अल्लाह की तरफ से वही (revelation) है। पस अगरचे सुन्नत चूंकि नबी صلى الله عليه وسلم से मनक़ूल है लेकिन यह आप صلى الله عليه وسلم बतौरे नफिल मनक़ूल होता है, इसलिए उसे सुन्नत कहा जाता है। जिस तरह के फर्ज़ आप صلى الله عليه وسلم से बतौरे फर्ज़ मनक़ूल होता है इसलिए उसे फर्ज़ कहा जाता है। चुनाँचे फज्र की दो रकअतें बतौरे फर्ज़ आप صلى الله عليه وسلم से मुतवातिर रिवायात के साथ मनक़ूल है और फज्र की दो सुन्नतें बतौर सुन्नत नबी صلى الله عليه وسلم से मुतवातिर रिवायात के ज़रिये मनक़ूल हैं। और यह दोनों (फर्ज़ और सुन्नत) अल्लाह तआला की तरफ से है, रसूललुल्लाह صلى الله عليه وسلم की तरफ से नहीं। पस इबादत से मुताल्लिक़ अम्र (हुक्म) फर्ज़ या नफिल होता है। इबादत के अलावा दूसरे मुआमलात मे कोई अम्र (हुक्म) फर्ज़ या मन्दूब या मुबाह होता है। नफिल और मन्दूब एक ही चीज़ है, इसे नफिल कहा जाता है और इस पर लफ्ज़ सुन्नत का भी इतलाक़ होता है।
इसी तरह सुन्नत का इतलाक़ रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم से सादिर होने वाले उन शरई अदिल्ला (evidences) पर भी होता है, जो क़ुरआन के अलावा है। इसमें आप صلى الله عليه وسلم के अक़वाल, अफआल, और इकरार (तक़ारीर) यानी आप صلى الله عليه وسلم का सुकूत (खामोशी) भी शामिल हैं।
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