रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के अफआल को बतौरे उसवा इख्तियार करना

रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के अफआल को बतौरे उसवा इख्तियार करना

रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने जो अफआल सर अंजाम दिये उन की दो अक़साम है : एक: जिबिल्ली (instinctive या फितरी) अफआल, दूसरे गैर जिबिल्ली अफआल। जहाँ तक जिबिल्ली अफआल जैसे उठना, बैठना खाना, पीना वग़ैरा तो इन अफआल के आप صلى الله عليه وسلم और उम्मत के लिये मुबाह होने मे किसी को इख्तिलाफ नहीं। यह ही वजह है कि यह अफआल मन्दूबात में दाखिल नहीं।

जहाँ तक गैर जिबिल्ली अफआल का ताल्लुक़ है तो यह या तो रसूल صلى الله عليه وسلم के साथ खास होंगे यानी यह किसी दूसरे के लिये नहीं होंगे, और या फिर यह अफआल आप صلى الله عليه وسلم के साथ मख़सूस नहीं होंगे। अगर यह अफआल आप صلى الله عليه وسلم के साथ मख़सूस हों, जैसे सोमे-विसाल (दिन रात रोजा रखना) का आप صلى الله عليه وسلم के लिये मुबाह होना या चार से ज्यादा औरतों से आप صلى الله عليه وسلم का निकाह का जायज़ होना वग़ैरा, तो यह अफआल आप صلى الله عليه وسلم की ख़ुसूसियात में से हैं। इन अफआल का करना हमारे लिये जायज़ नहीं। इन अफआल का आप صلى الله عليه وسلم के साथ मख़सूस होना इज्माऐ सहाबा (रज़िअल्लाहो अन्हुमा) से साबित है। लिहाज़ा इन अफआल को बतौरे उसवा (नमूना) इख्तियार करना जायज़ नहीं।

जो फैल आप صلى الله عليه وسلم ने हमारे लिये बयान किया हो तो उस फैल की दलील होने में कोई इख्तिलाफ नहीं। यह बयान या तो आप صلى الله عليه وسلم के सरीह क़ौल की सूरत में होगा, जैसे आप صلى الله عليه وسلم ने इरशाद फरमाया : “नमाज़ इस तरह पढ़ो जिस तरह कि तुम मुझे पढ़ते हुए देखते हो”। और “मुझ से अपने मनासिक (हज वगैरा का तरीका) सीखो”। यह इस बात की दलील है कि आप صلى الله عليه وسلم का फैल हमें बताने के लिये है, ताकि हम आप की इत्तिबा करें। या फिर यह हो सकता है कि आप صلى الله عليه وسلم का बयान सरीह क़ौल की सूरत में न हो, बल्कि अमल के क़रीने के ज़रिये से हो। जैसा की अल्लाह तआला के इस इरशाद की बुनियाद पर :

] فَاقْطَعُوا أَيْدِيَهُمَا[

“उन दोनों के हाथ काट दो” (सूरे मायदा)

चोर का हाथ कलाई से काटना, आप صلى الله عليه وسلم के फैल में, कौल या कराइने अहवाल के ज़रिये बयान हुआ है। यह वाजिब, मंदूब या मुबाह होने से दलील के मुताबिक़ मुबय्यन का ताबेअ है।

आप صلى الله عليه وسلم के वोह अफआल, जिन में कोई ऐसी चीज़ मौजूद न हो जो इस बात पर दलालत करे की आप صلى الله عليه وسلم का यह फैल हमें समझाने के लिये है, न नफी की सूरत में और ना ही इस्बात की सूरत में, तो देखा जाएगा की इन अफआल में (अल्लाह से) क़ुरबत का क़स्द है या नहीं है। अगर इन अफआल में (अल्लाह की) क़ुरबत का क़स्द हो तो वोह मन्दूब में दाखिल होंगे। इन अफआल की अंजाम देही पर इंसान को सवाब मिलेगा और तर्क करने पर सज़ा नहीं होगी, मसलन चाश्त की नफिल नमाज़। अगर इन अफआल में क़ुरबत का क़स्द न हो, तो वोह मुबाहात में शुमार होंगे।
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