आहकाम-ऐ-शरिया के अक़साम
आहकामे शरिया यह हंै:
* फर्ज़,
* हराम,
* मंदूब,
* मकरूह और
* मुबाह।
शरई हुक्म या तो किसी फैल को करने के बारे में खिताब होगा, या फैल को तर्क करने के बारे में। पस अगर इस खिताब मे किसी फैल के करने की तलब मौजूद हो और यह तलब तलबे जाज़िम (क़तई तलब) हो, तो यह फैल या अमल फर्ज़ और वाजिब होगा। फर्ज़ और वाजिब का एक ही मआनी है। अगर इस खिताब मे किसी फैल के करने की तलब गैर-जाज़िम हो तो यह अमल मंदूब होगा। अगर खिताब मे किसी फेल के तर्क की तलब मौजूद हो और यह तलब जाज़िम (क़तई) हो तो इस अमल को हराम और महज़ूर कहते है। इन दोनां का भी एक ही मायने है। अगर यह तलब गैर-जाज़िम हो तो यह मकरूह है। लिहाज़ा फर्ज़ और वाजिब वोह है जिसके करने वाले की तारीफ की जाऐ और न करने वाले की मज़म्मत की जाऐ, या इसक छोड़ने वाला सज़ा का मुस्तहिक़ करार पाऐ। हराम वोह है जिसके करने वाले की मज़म्मत की जाए और छोड़ने वाले की तारीफ की जाए या करने वाला सज़ा का मुस्तहिक़ हो। मंदूब वोह अमल है जिसके करने वाले की तारीफ की जाए, और छोड़ने वाली की मज़म्मत न की जाए। यानि करने वाला सवाब का मुस्तहिक़ हो और छोड़ने वला सज़ा का मुस्तहक़ ना हो। मकरूह वोह अमल है जिसके छोड़ने की तारीफ की जाए, या जिसका अमल का छोड़ना उस फैल को करने से बेहतर हो। मुबाह वोह अमल है जिसके मुताल्लिक़ समई दलील यह ज़ाहिर करें की यहां शारेह का खिताब इंसान को यह इख्तियार दे रहा है कि ख्वाह वोह यह अमल करे या ना करे.
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