उठ ऐ क़ौमे मुस्लिम बदल अपनी हालत
फारस खयाल
तू मशरिक़ से मग़रिब दौडा अपने घोडे
तू पूरब से पश्चिम लगा अपने ख़ैमे,
समन्दर समन्दर चला बहरी बेढे
बुलन्दी पे लेजा हवाई तय्यारे,
फिलिस्तीनी, अफग़ानी, कश्मीरी भाई
घडी मुश्किल की यह जिनपे है आई,
फिरंगी के शर से लहुजो हुऐ हैं
सभी मिल के देते हैं तुझ को दुहाई,
वोह बग़दाद जैसे इदारे बना फिर
तू मैदाने तिब मे नज़ारे दिखा फिर
कभी मिस्ले रूमी, कभी मिस्ले राज़ी
उलूमो फुनों के सितारे दिखा फिर
वोह ला उन्दलुस का ज़माना दोबारा
बना क़रतबा मे ठिकाना दोबारा
पडाओ ग़ुलामी का छोडो चलो अब
ज़रा क़फिलो को जगाओ दोबारा,
खज़ाने अरब के बचा काफिरों से
सदा हमको धोका मिला काफिरों से
फिरंगी हुकूमत का टूटे तिलस्म
न ले ऐशिया जो गदा काफिरों से
ज़मीनी फिज़ाई बना फौज़ी ताक़त
उठ ऐ मुस्लिम बदल अपनी हालत
ज़माने मे ले आ निज़ामे ख़िलाफत
यही दीन व दुनिया, यही है इबादत
उठ ऐ मुस्लिम बदल अपनी हालत
ज़माने मे ले आ निज़ामे ख़िलाफत
समझ फिर क़ुरआन, यक़ीन रख सलामत
उठ ऐ मुस्लिम बदल अपनी हालत
ज़माने मे ले आ निज़ामे ख़िलाफत
यह आपस का झगडा, मिटा हर अदावत
उठ ऐ मुस्लिम बदल अपनी हालत
ज़माने मे ले आ निज़ामे ख़िलाफत
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