संयुक्त राष्ट्र संघ कि करारदाद नम्बर 1860 मुस्लिम हुक्मरानों के मुंह पर एक तमाचा है





1860 मुस्लिम हुक्मरानों के मुंह पर एक तमाचा है. उन्होंने न सिर्फ़ यह की अपनी फौजों को गाज़ा के मुसलमानों की मदद के लिए नहीं भेजा बल्कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ की करारदाद के ज़रिये यहूदीयों के सुपुर्द कर दिया.




गाज़ा की पट्टी पर यहूदी रियासत के वहशियाना हमले के मुताल्लिक़ 9 जनवरी को संयुक्त राष्ट्र संघ की सिक्यूरिटी काउंसिल ने करारदाद नम्बर 1860 मंज़ूर की. इस करारदाद के मतन में इस तरह मक्कारी बरती गयी है जिस तरह 1967 के इस्राईली हमले के बाद करारदाद नम्बर 242 मैं इस्तेमाल की गयी थी. करारदाद के मतन में यहूदी फौजों की इन्खला (withdrawal) का ज़िक्र करते हुए "मखसूस सरज़मीन" (the land) की बजाये कोई भी ज़मीन (a land) का लफ्ज़ इस्तेमाल किया गया. ताकि यहूदियों के लिए उन इलाको पर कब्जा बरक़रार रखने की गुंजाईश मौजूद हो जिस पर उन्होंने कब्जा कर रखा है.

इसी तरह इस क़रारदाद में यहूदी फौजों की इन्खला (वापसी) की बजाये यह कहा गया है की ज़ंग बंदी की जाए जो की इन्खला का बाईस होगा. किस तरह और क्यों कर यह ज़ंग बंदी यहूदी फौजों की इन्खला (वापसी) की "वजह" बनेगी. इससे पहले कई वाज़ह करारादादें यहूदियों के हमलों को नहीं रोक सकी है तो फिर किस तरह यह मुबहम करारादादें यहूदियों के हमलों को रोकने का सबब बन सकती है ?!

अगरचे संयुक्त राष्ट्र संघ की सिक्यूरिटी काउंसिल की यह करारादादें काग़ज़ के टुकडों से ज़्यादा कुछ नहीं और करारदादों पर यहूदी रियासत अमल नहीं करती. यह करारादादें सयुंक्त राष्ट्र संघ की रद्दी की टोकरी को भरने का काम करती है और इन सब के बावजूद भी अमेरिका और उनके हवारियों ने सिक्यूरिटी काउंसिल की जानिब से इस करारदाद को मंज़ूर करने की मुखालिफत की बात की ताकि यहूदी रियासत को गाज़ा पर वहशियाना हमले में मुसलमानों का मज़ीद खून बहाने की मोहलत मिल जाए और यहूदी रियासत अपने मकसद को पुरा कर ले.....

मुस्लिम दुनिया के हुक्मरानों ने अमेरिका की इत्तेबा की और उन्होंने अमरीका के इस मक़सद को खुशदिली से कुबूल किया और इस पर रजामंदी का इज़हार किया. पस उन्होंने इस करारदाद पर आपस में इख्तालाफ किया और वोह इस करारदाद पर मुत्तफिक न हुए ताकि यहूदी रियासत को मज़ीद मोहलत मिल जाए.

जब यहूदी रियासत ने देखा की उसे शदीद मज़ाहमत का सामना है और उसने जान लिया की वोह अपने मकसद को अस्करी कार्यवाही से हासिल नहीं कर सकती है. और दूसरी तरफ़ उन्हें चुनाव (इलेक्शन) का सामना है यह मामला तूल पकडेगा और वोह चाहते हैं की इनके लिए फतह का माहौल हो ख्वाह यह फतह ज़ंग के ज़रिये हो या अमन के ज़रिये. इस सूरतेहाल में अमरीका सरगर्म हुआ ताकि इस मकसद को सिक्यूरिटी काउंसिल के ज़रिये हासिल किया जाए. चुनाचे कोंडोलीसा राइस मुख्तलिफ मुलाकातों और मीटिंगों में बुनियादी किरदार अदा कर रही थी. और उसने मुस्लिम दुनिया के बुत बने हुक्मरानों को हरकत में लाना शुरू किया. और वोह सिक्यूरिटी काउंसिल की ज़ियारत के लिए रवाना हो गए. और इस मुसलसल कोशिश में उन्होंने दिन-रात एक कर दिए. यह वोह हुक्मरान हैं जो गाज़ा में मुसलमानों की मदद के लिए अपनी फौजों को हरकत में लाने को इस तरह देखते हैं जैसे मौत को देख रहे हो. जबके सूरते हाल यह है की अगर इस वक्त इन हुक्मरानों की तरफ़ से ज़ंग का दहाना खोल दिया जाए तो यह अगर यहूदी रियासत को मुकम्मल तौर पर ख़त्म न कर सके तो उसे हिला तो सकते ही हैं. मुस्लिम दुनिया के हुक्मरान इस करारदाद के ज़ामिन है अगरचे यह करारदाद यहूदी रियासत को वोह कुछ अता कर रही है जो वोह हमलों के ज़रिये हांसिल नहीं कर सकते. वह यह है कि इस्राइल की फौजें गाज़ा में मौजूद हैं और गाज़ा पर असलहा और कुव्वत के ज़राए हांसिल करने पर पाबन्दी है बर्क़रार है. इस क़रारदाद मे गिज़ाई इम्दाद का ज़िक्र क़ुव्वत के ज़राए पर आयद इस पाबन्दी को तब्दील नही करेगा...!

इस करारदाद को क़ुव्वत देने के लिए अमरीका ने इस करारदाद के हक़ मे विटो न डाला. ताकि यह तास्सुर दिया जा सके कि गोया अमरीका इस क़रारदाद के पीछे नही है. और ताकि मुस्लिम दुनिया के हुक्मरान यह तास्सुर देने के क़ाबिल हो सके के वोह अमरीका कि मदद के बिना भी एक बडी क़ामयाबी हासिल करने मै क़ामयाब हो गये है.

लेकिन वोह दरोगगोई कर रहे है. और कोई भी ऐसा शख्स जो अक्ल रखता है इस बात को समझ सकता है कि अगर अमरीका का इस करारदाद के लिये सहियोग नही होता तो वोह इस क़रारदाद को पास ही नही होने देता.

ऐ मुसलमानो ! बेशक नबी-ए-सदिक़ (स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने फ़रमायाः "अगर तुम्हे कोई शर्म नही तो जो चाहे करो", और बेशक ऐसा ही है. यह हुक्मरान गाज़ातु हाशिम', के जिसका नाम रसूलुल्लाह (स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम) के दादा के नाम पर रखा गया था, मे मसूम मुसलमानो का खून बहते हुए देख रहे है. और फिर भी अपनी फ़ौज को हरकत मै नही लाते. और ना हि उनके खिलाफ़ अपनी मिज़ाईल इस्तेमाल करते है. और न ही बमबार हवाई जहाज़ो को हरकत मै लाते है. बल्कि इससे बढकर यह कि जो रज़ाकार गाज़ा के मुसलमानो कि मदद के लिये जाना चाहते है उन्हे ऐसा करने से रोकते है.... ! जब के दूसरी तरफ़ वोह क़रारदाद जो गाज़ा के लोगो को असलहा हांसिल करने और क़ुव्वत के ज़राऐ हांसिल करने से रोकती है और गाज़ा पर यहूदी फ़ौज के मौजूद रहने कि बात करती है, उसे मन्ज़ूर करने के लिऐ यह लपकते है. और एक दूसरे पर सबक़त ले जाने कि कोशिश करते है. अल्लाह इन्हे हलाक़ करे, उसके सबब जो यह कर रहे है.

अगर हम यहूदी वजूद पर नज़र डाले के जिस ने फिलिस्तीन कि सरज़मीन को गसब कर रखा है और इन हुक्मरानो कि रियासते जो इस यहूदी वजूद के इर्द गिर्द मौजूद है, इस यहूदी रियासत कि बक़ा इन हुक्मरानो की मरहूने मिन्नत है. और यहूदी रियासत अपनी हिफ़ाज़त तो कर हि रही है लेकिन इसके साथ-साथ यह् हुक्मरान भी इस यहूदी वजूद कि हिफ़ाज़त का काम अनजाम दे रहे हैं. अगर इन हुक्मरानो के दर्मियान एक भी मर्द मौजूद होता तो अमरीका और मगरीबी रियासतें भी यहूदी रियासत कि दिफ़ाअ के क़ाबिल नहीं होती.

हम कई बार यह कह चुके हैं और एक मरतबा फिर दोहराते हैं कि जो कोई भी इस यहूदी रियासत के खात्मे का मुतमन्नी है और तमाम तर फिलिस्तीन को दारुल इस्लाम बनाना चाहता है तो उसके लिऐ ज़रूरी है कि वोह ऐसे मुख्लिस हुक्मरान के तक़र्रुर और मुख्लिस रियासत यानी खिलाफ़ते राशिदा के लिऐ काम करे क्योंकि रसूलुल्लाह (स्वललल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमायाः बेशक़, खलीफ़ा ऐसे है जैसे ढाल जिसके पीछे रह कर लडा जाता है और हिफ़ाज़त हासिल कि जाती है (मुस्लिम). तब ही यहूदी रियासत का वजूद खत्म हो सकेगा और दिगर क़ाफ़िर इस्तेमारी रियासतों का वजूद भी जो कि यहूदी रियासत से ज्यादा मज़बूत और असरो-रसूख कि हामिल हैं और जल्दी ही तमाम ज़लील और रुसवा हो जाऐंगी.




إِنَّ فِي ذٲلِكَ لَذِكْرَى لِمَنْ كَانَ لَهُ قَلْبٌ أَوْ أَلْقَى السَّمْعَ وَهُوَ شَهِيدٌ



"उस मै हर साहिबे दिल के लिये इबरत है और उसके लिये जो दिल से मुतवज्जेह हो कर कान लगाऐ और वोह हाज़िर हो". (क़ाफ़ः 37)


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