खिलाफ़त क्या है? : हुकूमती निज़ाम




हुकूमती निज़ाम

1. खलिफ़ा अवाम के बिलवास्ता या बिलावास्ता इन्तिखाब से मुन्तखिब होता है. मुन्तखिब होने वाला उम्मिद्वार उम्मत कि बैत से खिलाफ़त के मनसब पर फ़ाइज़ होता है. इस् इन्तिखाब मे अवामुन्नास पर किसी भी किस्म का जब्र या दबाव नही होना चाहीये. नेज़ बैत इस शर्त पर ली जाती है कि मुन्तखिब शख्स इन पर मुकम्मल इस्लाम नाफ़िज़ करेगा.

2. इस्लाम ने निज़ाम के मुतल्लिक़ उसूली ही नही बल्कि जुज़्वी क़वानीन भी दिये है. मिसाल के तौर पर म'आशी निज़ाम मे अराज़ी, सूद, करन्सी, अवामी मिल्कियत के मुताल्लिक़ शरई अहकामात; खारजा पोलिसी मे जिहाद, बैनुल अक़वामि मुआहिदात, सिफ़ारती ताल्लुकात से मुताल्लिक अहकामात, निज़ामे हुकुमत मे इन्तिखाब, बैत, वालियों का तकर्रुर और उन कि बरखास्तगी के मुतल्लिक अहकामात वगैराह मे शरिअत के तफ़्सीली अहकाम मौजूद है. खलिफ़ा इन क़वानीन का मिनोअन नाफ़िज़ करने का पाबन्द होता है. नेज़ खलिफ़ा को इन अहकामात को नाफ़िज़ करने के लिये न तो अवाम के नुमाइन्दो कि अक्सीरियत कि इजाज़त दरकार होती है ना ही वोह् इन मुआमलात मे ज़ाति पसन्द ना पसन्द पर अमल कर सकता हे. चुनाचे इन मुआमलात मे खलिफ़ा और अवामी नुमाइन्दो के पास अपनी मरज़ी और् मनशा से क़ानून साज़ी का कोइ इखतियार नहीं. लिहज़ा खिलाफ़त मे अल्लाह और रसूल (स्वलल्लाहो अलैहि वस्सल्लम) के अहकामात को मुल्कि क़ानून बनाने के लिये अक्सरियत की बैसाखी या तौसीफ़ की ज़रूरत नही होती जो के जमहूरी तर्ज़ेहुकूमत मे क़ानून् साज़ी के लिये एक लाज़मी शर्त होती है. मिसाल के तौर पर आज पाकिस्तान मे इस्लाम के निफ़ाज़ मे अक्सीरियत कि शर्त सब से बडी रुकावट बनी हुई हे. इसी तरह खिलाफ़त मे इक़तदारे आला या क़ानून साज़ी का इख्तियार अमलन अक्सीरियत कि बजाए अल्लाह ताआला को हांसिल होता है. यह उस बात से बिल्कुल मुख्तलिफ़ है जो आज पाकिस्तान और मुस्लिम दुनिया मे राईज है कि हक़ीक़ी इक़तदार पार्लियामेन्ट मे बैठे अफ़राद या बावरदी डिक्टेटर के पास है. इस्लाम इन्फ़रादी डिक्टेटरशिप और् मखसूस गिरोह कि डिकटेटरशिप (जमहूरियत) दोनो को यकसर मुसतरद करता है और् क़नूनसाज़ी का इख्तियार रब को सौंप कर अल्लाह कि हाकिमीयत को अमलन नफ़िज़ करता है. यूं इस्तेमार के लिये क़ानून साज़ी का चोर दरवाज़ा बन्द हो जाता है जिसे के ज़रिये दखिल हो कर वोह अपने मफ़ाद के लिये क़ानून साज़ी करता है. डिक्टेटरशिप मे एक शक्स को खरीदना पढता है, जबके जमहूरियत मे एक अक्सीरियती गिरोह को, जो आईनी तर्मीम के ज़रिये स्याह को सफ़ेद बना सके. पाकिस्तान मे तरमीम के ज़रिये एक डिक्टेटर के ज़रिये बनाए गये कुफ़रिया क़ानून को जमहूरी तरीक़ेकार के ज़रिये आईनी हैसियत देदी गयी है. जिहाद को दहशतगर्दी क़रार दे दिया गया है, अमरीकी अड्डों को क़ानूनी हैसियत हासिल हो गई है और अफ़गनिस्तान कि जंग मे आपने ही भाईयो का क़त्ले आम मुल्क के मफ़ात मे जाइज़ ठहरा.

3. मुबाह और इन्तेज़ामी उमूर से मुताल्लिक हुकूमती फ़ैसले क़ानून साज़ी (legislation) से मुखतलिफ़ है क्योंकि इन उमूर को शारेह (अल्लाह) ने पहले ही हलाल क़रार दे दिया है, हुकूमत फ़क़त यह फ़ैसला करती है कि आया इन् हलाल उमूर को इख्तियार् किया जाये के नहीं. अल्लाह ने हमे इख्तियार दिया है की हम अपने मुआमलात मे अपने मफ़ादात को सामने रखते हुए फ़ैसला करें. मुबाह उमूर कि दो क़िस्मे हैं: (1) वोह उमूर जिन मे अवाम खतिर ख्वाह इल्म रखती है, (2) वोह उमूर जिन् के बारे मे सिर्फ़ अहले इल्म और तकनीकी माहिरीन ही सही राय दे सकते हैं और अवाम उनके बारे मे ज़्यादा नहीं जानते.

4. वोह मुबाह उमूर जिन मे अवाम खातिर ख्वाह इल्म रखते हैं उनमे अवाम कि अक्सीरियत कि राय पर खलीफ़ा चलने का पाबन्ध होता है. मसलन अगर खलीफ़ा एक शहर के रहने वालों से यह मालूम कर ले कि उन्हें अस्पताल या स्कूलों मे से कौनसी शय की ज़्यादा ज़रूरत है तो ऐसी सूरत मे अवाम कि अक्सीरीयत (यानि उनके नुमाइन्दों कि अक्सीरियत) का फ़ैसला खलीफ़ा के लिये नाफ़िज़ करना लाज़िम है.

5. दूसरी तरफ़ खलीफ़ा मुबाह तकनीकी मसाइल मे अवामुन्नास कि बजाय फ़क़त माहिरीन से रुजूअ करता है और उन से मशवरा करने के बाद उस कि नज़र मे जो भी राये मुनासिब हो उसे इख्तियार करता है. इसमे अवाम कि या तकनीकी महिरीन कि अक्सीरिेयत को मलहूज़ नही रखा जाता है. चुनाचे अगर पानी कि क़िल्लत का सामना हो तो खलीफ़ा तक़निकी माहिरीन से मशवरा करने के बाद हतमी फ़ैसला करने का मजाज़ होगा कि डेम कहां और कितना बडा बनाया जाये. लेकिन इन तमाम उमूर मे उम्मत और उन के नुमाइन्दे उसका मुहासबा करने का हक़ रखते है ताकि वोह अपने इख्तियारात का इस्तेमाल अवाम कि भलाई मे करे न के ज़ाति मफ़ात मे.

6. जमहूरी निज़ाम मे मज़कूरा बाला तीनो जहतो मे (यानि क़ानून साज़ी और दोनो मुबाह उमूर मे) आखरी फ़ैसले के लिये अवाम कि अक्सिरियत से ही रुजूअ किया जाता है जब के खिलाफ़त मे अवाम कि अक्सिरियत सिर्फ़ एक पहलू मे फ़ैसले का इख्तियार रखती है. इसी तरह डिक्टेटरशिप मे तीनो जहतों के बारे मे एक फ़र्दे वाहिद फ़ैसला सादिर करता है. लेकिन खिलाफ़त मे खलिफ़ा के पास सिर्फ़ एक जहत मे अपनी मरज़ी नाफ़िज़ करने का इख्तियार होता है यानी मुबाह तकनीकी उमूर मे. यूं खिलाफ़त नो तो डिक्टेटरशिप है ना हि जमहूरियत.

7. क़वानीन बनाने और अहम उमूर पर फ़ैसला करने का यह बुनियादी फ़र्क़ एक ऐसे मुआशरे को जनम देत है जो अपनी असास और जुज़ियात मे आमरियत और जमहूरियत से जनम लेने वाले निज़ाम और मुआशरे से मुकम्मल तौर पर मुख्तलिफ़ होता है.

8. खलीफ़ा मुन्दरजा बाला तीनो जहतों मे मुशावरत का खैर मक़दम करेगा और मुल्क मे एक मुस्बत मुशावरत कि फ़िज़ा को यक़ीनी बनाएगा.

9. खलीफ़ा मुत-लक़ुल-अनान (absolute) नहीं होता. बल्की उसका मुहासबा करन अवाम का इन्फ़रादी और इज्तिमाई फ़र्ज़ होता है. नेज़ क़ाज़ी-ए-मज़ालिम बदउनवानी कि सूरत मे खलीफ़ा को माज़ूल तक कर सकता है.

10. मजलिसे उम्मत अवाम के नुमाइन्दों पर मुश्तमिल एक ऐसा इदारा होता है जिस की ज़िम्मेदारियों मे खलीफ़ा को मशवरा देने के साथ साथ उस का मुहासबा करना भी शामिल है.

11. एक से ज़्यादा सियासी जमाते क़ायम कारने कि इजाज़त होगी. लेकिन तमाम सियासी जमातों कि बुनियाद इस्लाम पर होना लाज़मी है. सेक्युलर, सोशलिस्ट या किसी और नज़रिये पर पार्टी क़ायम करने कि इजाज़त नहीं होगी.

12. पूरी उम्मत कि एक ही रियासत और एक ही खलीफ़ा हो सकता है. एक से ज़ाईद रियासत बनाना या एक खलिफ़ा कि मौजूदगी मे कोइ और दूसर खलीफ़ा मुक़र्रर करना शरअन हराम है. मुसलमानों की वहदत और ताक़त एक रियासत और एक अमीर मे मुज़मर है जिसकी इस्लाम बढी सख्ति से तलक़ीन करता है. उम्मत सिर्फ़ इसी सूरत मे इस्तेमारी तसल्लुत और सलीबी यल्गार से बाहर निकल सकती है जब वोह दुनिया के चालीस फ़ीसद वसाइल और एक बिलीयन से ज़्यादा अफ़रादी क़ुव्वत को एक रियासत तले मुत्तहिद करे. यह वहदत ही क़ाफ़िरों कि सफ़ों मे खल बली मचाने के लिये काफ़ी है.

13. उम्मत कुफ़रन बुवाहन (वाज़ेह कुफ़र) के निफ़ाज़ पर खलीफ़ा को ताक़त के साथ उतारने कि क़ानूनन मजाज़ होती है.

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