इक़तसादी निज़ाम
1. इस्लाम मे कुछ मुतय्यन टेक्स और सदक़ात है मसलन खिराज, उशर, जिज़या, ज़कात, खुम्स और हंगामी हलात मे सिर्फ़ अमीरों पर टेक्स वगैराह है. इन मुतय्यन टेक्सो और सदक़ात के अलवा अवाम पर किसी किस्म का कोई टेक्स लगाना शरअन हराम है. चुनाचे खिलाफ़त मे मुरवज्जा जी. एस. टी., इन्कम टेक्स, प्रोपर्टी टेक्स्, टोल टेक्स नही होते. पैसे और माल पर साल के आखिर मे ढाई फ़िसद ज़कात ली जाती है लेकिन इस के अलवा और किसी किस्म का कोई टेक्स नही लिया जाता है.
इसीलिये मुसलमान ताजिर कि दरामदी य बरमदीए अशया पर सिर्फ़ ढाई फ़िसद ज़कात ली जाती है और उस के अलवा और कोई इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट टेक्स आयद नही किया जाता है. चुनाचे जी. एच. टी. इन्कम टेक्स जैसे इस्तेहसाली टेक्सो की अदम मौजूदगी मे एक आम शहरी को फ़ौरी राहत मिलती है. इसके अलवा इम्पोर्ट और एक्स्पोर्ट ड्युटीयों कि अदम मौजूदगी कि वजह से तिजारत को भी फ़रोग मिलता है. नेज़ खिराज, उशर और् ज़कात कि शकल मे पैसे उससे लिये जाते है जो जागीरें और पैसा रखता है और वोह भी इतना जिससे अमीर लोगों पर भी बोझ न पढे. जबके एक गरीब नदार पर किसी भी किस्म का कोई टेक्स लागू नही होता. अल्लाह के अहकाम होने के नाते इन अहकाम को कोई तबदील नहीं कर सकता और यूं अल्लाह इन्सान से क़ानून साज़ी का इख्तियार छीन कर इन्सानियत को ज़ुल्म से बचा लेता है.
2. इस्लाम मे हर मर्द पर अपनी और अपने अह्ले खाना की किफ़ालत करना फ़र्ज़ है. नादारी कि सूरत मे इस के क़रीबी रिश्ते दारों पर नान नक़फ़े कि जिम्मेदारी आन पढती है. क़रीबी रिश्तेदारो की तरफ़ से अदम अदाएगी कि सूरत मे एक शक्स अदालत के ज़रिये वसूल कर सकता है. वोह तमाम लोग जिन कि बुनियादी ज़रूरीयात इन दोनो ज़राए से भी पूरी न हो सके तो फिर यह ज़िम्मेदारी रियासत कि होगी कि उन की बुनयादी ज़रूरीयात पूरी करे. इनमे खुराक़, लिबास, मकान, तालीम, सेहत वगैराह शामिल है. यूं लोगों की बुनियादी ज़रूरीयात पूरी करना इस्लामी रियासत की अव्वलीन ज़िम्मेदारी होती है. जब के एक सरमायादाराना रियासत मे ऐसा नही होता. यही वजह है कि दुनिया के अमीर तरीन मुल्क अमरीका मे लोग लाखों कि तादाद मे बे घर हैं और रात खुले आसमान के नीचे गुज़ारने पर मजबूर हैं.
3. एक सरमायादार या मल्टिनेशनल को अवामी असासाजात पर मिलकीयत कि इजाज़त नही होती मसलन तेल और गैस के कुऐ, मादीनीयात की काने, नहरे, शाहराहें, पब्लिक पार्कस वगैराह. चुनाचे हर वोह शै जिन पर अवाम का इनहेसार हो और जिसकी अदम मौजूदगी कि सूरत मे वोह मुन्तशिर हो जायें, ज़ाति मिल्कियत मे नही आ सकती. आज मल्टीनेशनल कम्पनियों कि सूरत मे पैसे का इतकाज़ सिर्फ़ इस लिये हो रहा है कि तमाम वसाइल को चन्द हाथों मे मरकूज़ कर दिया गया है और अवाम इनको हासिल करने के लिये इन्हें मुहंमांगा मुनाफ़ा देने के लिये मजबूर है. जैसा की पकिस्तान कि आई.पी.पी. (इन्डीपेन्डेन्ट पावर प्लान्ट) के क़याम के बाद बिजली का हशर हुआ. खिलाफ़त इन अवामी असासाजात को मुफ़्त फ़रहम करेगी या उस क़ीमत पर, जितना उन्हे मुहय्या कराने पर खर्च हुआ. यूं तैल, गैस, बिजली, पानी वगैराह एक शहरी को निहायत सस्ती मिलेगी जिसको हासिल करने के लिये उन्हे दो-दो नौकरियां करनी पडती है. नेज़ मुल्क कि ज़राआत और इन्डस्ट्रीज़ को नई ज़िन्दगी मिलेगी. चुनाचे इस्लाम का एक हुक्म मगरिबी सरमयदाराना मल्टिनेशनल कम्पनियोनं को अवामुन्नास कि बुनियादी ज़रूरियात पर डाका डालने से रोक देता है और पैसे को चन्द हाथों मे मुर्तकिज़ होने से रोकता है.
3. मज़ारअत या काशत के लिये ज़मीन किराये पर देने कि इजाज़त नहीं होगी. ताहम ज़मीन्दार को काश्तकारी के लिये उजरत पर मजदूर रखने कि इजाज़त होगी.
अगर एक ज़मीनदार खुद अपनी ज़मीन काश्त न कर सके तो उसे किसी दूसरे मुसलमान को बगैर मुआवज़ा देने की तरगीब दि जाती है. और अगर वोह तीन साल तक एक खित्ताऐ अरज़ी को काश्त करने पर क़ासिर है तो रियासत इस ज़मीन को ज़ब्त कर के किसी दूसरे शहरी को देने का मजाज़ होती है.
4. शहरी इलाक़े से बाहर एक बन्जर ज़मीन को क़ाबिले काश्त बनाने वाला इस ज़मीन का मालिक भी बन जाता है. इस वक़्त मुस्लिम ममालिकों मे ज़मीन का एक बहुत बढा हिस्सा बन्जर पढा है जो 40% से 60% तक है जिस को क़ाबिले काश्त बनाया जा सकता है. मालिकाना हुक़ूक़ कि पुरकशिश तरगीब न सिर्फ़ गांव मे रहने वाली 70% आबादी को न सिर्फ़ बाइज़्ज़त रोज़गार हासिल करने के लिये मुतहर्रिक़ करेगी बल्की मुल्कि पैदवार मे खातिर ख्वाह इज़ाफ़े का बाअस बनेगी. नेज़ इस अराज़ि से खिराज और उशर के मद मे खातिर रक़म बैतुल माल मे जमा होगी.
5. शहरी इलाक़े से बाहर एक बन्जर ज़मीन पर घर बनाने या बाढ लगा कर उसमे मवेशी पालने या उस पर सनअत लगाने पर भी एक शख्स उस बन्जर ज़मीन का मालिक बन जाता है. रिहायशी ज़मीन की क़िमतो मे, जो आज आसमान से बाते कर रही है, फ़ौरी कमी आएगी और यूं अवामुन्नास का मकान का मसला फ़ौरन हल हो जायेगा.
6. करन्सी मुकम्मल तौर पर सोने और चान्दी पर मुन्हसर होगी यूं पैसे की क़ीमत के घटने का मसला खतम हो जयेगा. और क़र्ज़ख्वाह के सूद मांगने को तोजीह भी खत्म हो जायेगी. सोने चान्दी (करन्सी) की ज़खीरा अन्दोज़ी हराम होती है. यूं पैसे को जमा करने की ज़हनियत की हौसला शिकनी होगी, और पैसा इक़तसादी चक्कर से बाहर नही निकलेगा.
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