इस्लामी सियासत और हुकूमत से मुताल्लिक़ अहादीसों का मजमुआ
खि़लाफ़त की फर्ज़ियत के दलायल क़ुरआन मजीद से:
आयत 1: ‘‘पस लोगों के दर्मियान तुम इसके मुताबिक़ फैसला करो जो अल्लाह ने नाजि़ल किया है और जो हक़ तुम्हारे पास आ चुका है, उसे छोड़ कर उनके ख़्वाहिशात की पैरवी न करना।’’
तर्जुमा मानी ए क़ुरआन: अलमाइदा: 48
आयत 2: ‘‘पस तुम्हें तुम्हारे रब की क़सम! यह मोमिन नहीं हो सकते, जब तक कि उनके दर्मियान जो निज़ाअ हो, उसमें यह तुम से पफैसले न कराऐं, पिफर तुम जो पफैसला कर दो उस पर यह अपने दिल में कोई तँगी भी न पाऐं, और पूरी तरह तसलीम कर लें।’’ तर्जुमा मआनी ए क़ुरआन: निसा:65
आयत 3: और सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और तप़फर्रिक़ा में न पड़ो।’’ तर्जुमा मआनी क़ुरआन: आले इमरान: 103
आयत 4: और सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और तप़फर्रिक़ा में न पड़ो।’’ (तर्जुमा मआनी कुरआन आले इमरान: 103)
खि़लाफ़त के दलायल सुन्नते नबवी सल्ल. के मुताबिक़
हदीस 1: मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रजि़ से रिवायत नक़ल है कि उन्होंने हुज़ूर नबी अकरम सल्ल. से सुना:
‘‘जिसने अमीर की इताअत से अपना हाथ खींच लिया, वह क़यामत के दिन अल्लाह तआला से इस हाल में मिलेगा कि उस पर कोई हुज्जत नहीं होगी और जो कोई इस हाल में मरा कि उसकी गर्दन पर ख़लीफ़ा की बैत का तौक़ ही न हो, तो वह जाहिलियत की मौत मरा।’’
हदीस 2: बनी इस्राईल पर अम्बिया हुकूमत करते थे, जब किसी पैग़म्बर का इंतेक़ाल हो जाता था तो उसकी जगह दूसरा पैग़म्बर ले लेता था, और मेरे बाद कोई नबी नहीं होगा बल्कि खुलफा (कई खलीफा) होंगे और वोह (तादाद मे) कई होंगे.” सहाबा ने पूछा की “हमारे बारे मे क्या हुक्म है?” इस पर हुज़ूर (स.अ.व.) ने जवाब दिया, “तुम एक के बाद दूसरे से अक़्दे बैअत पूरी करो, और उन्हे उनका हक़ दो, और यक़ीनन अल्लाह उन से उनकी ज़िम्मेदारी के बारे मे पूछेगा” (बुखारी और मुस्लिम)
हदीस 3: हज़रत अबु हुरैरा रजि़. से मरवी है कि आप सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘बेशक इमाम (खलीफा) एक ढाल है जिसके पीछे लड़ा जाता है और अपना बचाव किया जाता है।’’
हदीस 4: मुसनद अहमद, निसाई और तयालसी में हारिसुल अशअरी से नक्ल किया कि नबी करीम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘मैं तुम्हें पाँच चीज़ों का हुक्म देता हूँ जिनका अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है: जमाअत में रहना, सुनना, इताअत करना (अमीर की), दारुल इस्लाम की तरफ़ हिजरत करना और अल्लाह के रास्ते में जिहाद (क़िताल) करना, क्योंकि जो भी कोई जमाअत से बालिश्त भर भी बाहर हुआ उसने इस्लाम का तौक़ अपनी गर्दन से उतार फेका यहाँ तक कि वह वापस रुजूअ़ न कर ले और जिसने जाहिलियत (दूसरे अदयान) की दावत दी वह जहन्नुमी है। सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह (स.अ.व) अगर्चे वह रोज़ा रखे और नमाज़ पढ़े? फ़रमाया हाँ गर्चे वह नमाज़ पढ़े और रोज़े रखे और मुसलमान होने का दावा करे।’’
हदीस 5: हज़रत हज़ैफ़ा बिन यमान रजि़. से मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत किया गया कि नबी करीम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘तुम मुसलमानों की जमाअत और उनके अमीर के साथ रहना।’’
हदीस 6: मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत उरफ़जा रजि़. से नक़्ल किया गया है: ‘‘जब तुम एक ख़लीफ़ा के तहत मुत्तहिद हो और कोई दूसरा आकर तुम में तफ़र्रका पैदा करना चाहे और तुम्हारे इत्तिहाद को तोड़ना चाहे तो उसको क़त्ल कर दो।’’ (यानी मुसलमानों के लिये एक वक्त मे दो खलीफा जाईज़ नही)
हदीस 7: अहमद और बैहक़ी में फुज़ाल इब्ने उबैद रजि़. से मरवी है कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘तीन लोगों के बारे में न पूछो कि वह बदबख़्त हैं एक वह जो जमाअत से अलेहदा हुआ, दूसरा वह जिसने इमाम (खलीफा) की नाफ़रमानी की और वह शख़्स जो इसी नाफ़रमानी की हालत में फौत हो गया।’’
शरीअ़त का उसूल है कि जिस चीज़ के बग़ैर कोई फ़र्ज़ पूरा नहीं होता हो तो वह चीज़ भी फ़र्ज़ हो जाती है। इसी तरह चूँकि एक ख़लीफ़ा के बग़ैर जमाअ़त का तसव्वुर नहीं, इसलिए ख़लीफ़ा की तक़र्रुरी भी फ़र्ज़ हो जाती है।
इजमाअ़ सहाबा रजि़ से माखूज़ दलायल
सहाबा-ए-किराम का इस बात पर इजमाअ़ रहा कि ख़लीफ़ा का तक़र्रुर तीन दिन के अंदर अंदर हो जाना चाहिए और यह इस क़द्र मुसतहकम इजमाअ है कि इसमें मज़ीद किसी तपफ़सील की ज़रूरत नहीं। लिहाज़ा खि़लाफ़त को क़ायम करना फ़ज़र् हुआ और यह ऐसा फ़ज़र् है जिस पर दिगर फ़राएज़ का दारोमदार है.
हदीस 8: हज़रत हुज़ेफ़ा रजि़. ने कहा कि हुज़्ाूरे अकरम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘तुम में उस वक़्त तक नबूवत रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मज़र्ी होगी कि नबूवत रहे, फिर अल्लाह तआला जब चाहेगा उसे उठा लेगा।’’ फिर ऎन नबूवत ही की तज़र् पर खि़लाफ़त होगी तो वह रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मर्ज़ी होगी, फिर वह जब चाहेगा उसे उसे उठा लेगा। फिर काट खाने वाली बादशाहत होगी तो वह रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मर्ज़ी होगी, फिर वह जब चाहेगा उसे उठा लेगा। फिर जबरी और इसतबदादी हुकूमत होगी तो वह रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मर्ज़ी होगी, फिर वह जब चाहेगा उसे उठा लेगा।
फिर ऎन नबूवत ही की तर्ज़ पर खि़लाफ़त क़ायम होगी। फिर आप सल्ल. ख़ामोश हो गये।
हदीस 9: मुसनद अहमद में तमीमुददारी रजि़. से रिवायत है, वह कहते हैं कि नबी करीम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘बेशक यह (इस्लाम) हर उस जगह पहुँचेगा जहाँ दिन और रात होते हैं, मिट्टी से बना कोई घर या खाल से बना कोई ख़ेमा ऐसा न होगा जिसे अल्लाह इस दीन में न ले आए, ख़्वाह वह इज़्ज़त वालों की तरह इज़्ज़त से हो या ज़लील होकर, इज़्ज़त वह है जो अल्लाह तआला इस्लाम से दे और रुसवाई वह है जो अल्लाह तआला कुफ्र से दे।’’ यही हदीस सुनन बैहक़ी में भी रिवायत की गई है लेकिन उसके इख़तितामी अलफ़ाज़ यूँ हैं: ‘‘या वह उन्हें ज़लील कर देगा और वह उसकी इताअत कुबूल कर लेंगे।’’
हदीस 10: हाकिम रह. ने अबु शलबा रजि़. से रिवायत किया है कि ‘‘जब आँहज़रत (स.अ.व) किसी ग़ज़वे से लौटते तो पहले मस्जिदे नबवी जाकर दो रकअत नमाज़ अदा करते, फिर अपनी बेटी के घर जाते और फिर अपनी अज़वाजे मुत्तहरात के घर जाते थे। एक बार जब आप सल्ल. लौटे तो नमाज़ अदा करने के बाद हज़रत फ़ातिमा रजि़. के घर पहुँचे जहाँ वह दरवाज़े पर थीं, वह रोती जा रही थीं और आप सल्ल. का बशरा-ए-मुबारक चूम रही थीं कि आप सल्ल. ने दर्याफ्त किया कि बेटी क्यों रोती हो? कहा कि आप (स.अ.व.) के पफटे कपड़े और आप (स.अ.व.) की यह हालत देख कर रोना आता है, आप (स.अ.व.)सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘ रो मत, अल्लाह तआला ने तुम्हारे बाप (स.अ.व.) को ऐसा काम दिया है कि दुनिया भर में मिट्टी या खाल से बना कोई भी घर ऐसा न होगा कि अल्लाह का हुक्म उनमें दाखि़ल न हो, चाहे इज़्ज़त से या उन्हें ज़लील करके, और यह वहाँ तक होगा जहां तक रात पहुँचती है।’’
इसमें कहा गया है कि इस्लाम दुनिया के हर घर में दाखि़ल होगा, आज मग़रिबी यूरोप के बेश्तर हिस्सों, शुमाली और जुनूबी अमरीका और अफरीक़ा के एक बड़े हिस्से में इस्लाम नहीं पहुँचा है। यहाँ इस्लाम में दाखि़ल होने से मुराद उनका मुस्लिम हो जाना या इस्लामी रियासत की इताअत कुबूल कर लेने के अर्थ में है और यह उन पर हुकूमत किए बिना मुमकिन नहीं।
हदीस 11: हाकिम रह. ने अपनी मुसतदरक में हज़रत उमर रजि़. से नक़्ल किया है, वह कहते हैं कि हम नबी करीम सल्ल. के साथ बैठे थे कि आप सल्ल. ने पूछा:
‘‘सबसे आला ईमान रखने वाले कौन हैं?’’ हज़रत उमर रजि़. ने जवाब दिया कि वह फ़रिश्ते हैं, आप सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘वह ऐसे हैं और यह उनका हक़ है, जो अल्लाह ने उन्हें मर्तबा दिया है तो फिर उन्हें क्या चीज़ इससे रोक सकती है, लेकिन बेहतरीन ईमान वाले कोई और हैं’’ हज़रत उमर रजि़. ने जवाब दिया कि वह अल्लाह के अम्बिया अलैहिस्सलाम हैं, आप सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘वह ऐसे हैं और यह उनका हक़ है, जो अल्लाह ने उन्हें मर्तबा दिया है तो फिर उन्हें क्या चीज़ इससे रोक सकती है, लेकिन बेहतरीन ईमान वाले कोई और हैं।’’ आप सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘वह लोग वह क़ौम हैं जो पेटों में हैं और मेरे बाद आऐंगे, उन्होंने गो कि मुझे देखा नहीं होगा लेकिन उन्हें मुझ पर ईमान होगा, उन्हें वह नुसूस एहकाम मिलेंगी जो मुअल्लक (क़ायम न) होंगे और वह उसके मुताबिक़ अमल करेंगे, उनका उनका ईमान बेहतरीन ईमान है।’’
हदीस 12: सुनन अबु दाऊद में इब्न ज़ग़बी अल्अयादी से रिवायत है कि अली अब्दुल्लाह बिन हवाला अल अज़दी रजि़. ने उन्हें बताया कि हुज़ूरे अकरम सल्ल. ने उन्हें माले ग़नीमत वसूल करने के लिए भेजा और इन्हें माल नहीं मिला, जब यह हुज़ूरे सल्ल. के पास वापिस पहुँचे तो आप सल्ल. ने उनके चेहरे पर थकावट के आसार देखे और उठ कर खड़े हुए और दुआ की कि:
‘‘ऐ अल्लाह तू इन्हें मेरे हवाले न कर क्योंकि मैं इनकी देख भाल के लिए कमज़ोर हूँ, न ही इन्हें इन्ही के हाल पर छोड़ दे क्योंकि यह अपनी देख भाल नहीं कर सकते, न ही तू उन लोगों के हवाले कर क्योंकि वह लोग बेहतरीन अशया इन्हें न देकर अपने लिए रख लेंगे।’’
फिर उनके सर और पेशानी पर अपना दस्ते मुबारक रखा और फ़रमाया:
‘‘ऐ इब्ने हवाला जब तुम देखो कि खि़लाफ़त अर्ज़े मुक़द्दस (अल्क़ुदस) में आ गई है तो ज़लज़ला, आफ़ात और अज़ीम वाकि़आत होंगे। उस वक़्त क़यामत लोगों से इतना क़रीब होगी जितना मेरा हाथ तुम्हारे सर से है।’’
हदीस 13: मुसनद अहमद में मुअकि़्क़ल इब्ने यसार रजि़. से रिवायत है:
‘‘मेरे बाद नाइंसाफ़ी देर तक ख़ामोश नहीं बैठी रहेगी, यह सर उठाएगी। जिस क़द्र नाइंसाफ़ी पैदा होगी, उस क़द्र इंसाफ़ ख़त्म होगा और लोग इसी नाइंसाफ़ी की दुनिया में पैदा होंगे और उन्हें इस नाइंसाफ़ी के सिवा कुछ न पता होगा, फिर अल्लाह तआला इंसाफ़ लाएगा, इसमें जिस क़द्र इंसाफ़ किया जाएगा, इस क़द्र नाइंसाफ़ी ख़त्म होती जाएगी और लोग अद्ल के आलम में पैदा होंगे और उन्हें इस अद्ल के सिवा कुछ न मालूम होगा।’’
हदीस 14: सुनन अबु दाऊद में हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमरू रजि़. से रिवायत है कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘हिजरत के बाद एक और हिजरत होगी, पस सबसे बेहतर वह लोग हैं जो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की हिजरत वाली ज़मीन (शाम) की तरपफ़ हिजरत करेंगे।’’
हदीस 15: हज़रत अबु हुरैरा रजि़. से सही मुस्लिम शरीपफ़ में नक़ल है कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘बेशक दीने इस्लाम अजनबी हैसियत से शुरू हुआ और यह फिर अजनबी बन जाएगा, तो खुशख़बरी है अजनबियों के लिए।’’
हदीस 16: इब्ने माजा में हज़रत अनस इब्ने मालिक रजि़. से रिवायत किया गया है, एक और रिवायत हज़रत अब्दुल्लाह से नक़्ल की है जिसमें आता है:
‘‘बेशक दीने इस्लाम अजनबी हैसियत से शुरू हुआ और यह फिर अजनबी बन जाएगा, तो खुशख़बरी है अजनबियों के लिए। पूछा गया कि यह अजनबी कौन हैं? फ़रमाया कि यह वह लोग हैं जो अपने क़बीलों से अलेहदा हो गए हैं।’’
हदीस 17: कसीर इब्ने अब्दुल्लाह अपने वालिद और वह अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘दीने इस्लाम सिमट कर हजाज़ में इस तरह आ जाएगा जैसे साँप अपने बिल में सिमट जाता है और दीन हजाज़ से इस तरह जुड़ा होगा जैसे बकरियाँ पहाड़ों की चोंटियों से।’’
तमाम अहादीस पर मजमूई नज़र डालें तो रियासते इस्लामी की वापसी की रिवायात अपनी कसरत की वजह से मुतवातिर हैं। मजमूई तौर पर इनकी रिवायत में 25 सहाबा-ए-किराम रजि़. ने इन रिवायात को 39 ताबईन तक पहुँचाया और उन्होंने 62 तबेअ़ ताबईन को नक़ल कीं, जिसमें तवातुर क़ायम होता है और किसी कि़स्म के शक की
हदीस 18: हाकिम रह. ने अबी शुरैह से नक़ल किया है कि मैंने सुना है कि:
‘‘बारह परचम (झण्डे) होंगे और हर एक परचम तले बारह हज़ार आदमी होंगे जो अपने इमाम के साथ बैतुल मुक़द्दस में जमा होंगे।’’
हदीस 19: इब्ने असाकर मसीरा इब्ने जलीस से नक़ल की है कि हुज़ूर सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘यह मामला खि़लाफ़त मेरे बाद मदीना में जारी रहेगा फिर शाम पहुँच जाएगा, फिर ज़ज़ीरा-ए-अरब आ जाएगा, फिर इराक़, बलद (शहर), फिर बैतुल मुक़द्दस जो उसका ठिकाना होगा। फिर जो लोग उसके मर्कज़ को हटा देंगे, उन्हें इसका मर्कज़ फिर कभी हासिल न होगा।’’
हदीस 20: हाकिम रह. ने हज़रत अबु हुरैरा रजि़. से नक़ल किया है कि हुज़ूरे अक़दस (स.अ.व.) ने फ़रमाया:
‘‘अगर एक संगीन जंग हुई तो दमिश्क़ से बेहतरीन घुड़सवार अरबों का एक झुन्ड आएगा जो असलहा चलाने में माहिर होंगे और अल्लाह तआला उनसे दीन की मदद लेगा।’’
खि़लाफ़त की फर्ज़ियत के दलायल क़ुरआन मजीद से:
आयत 1: ‘‘पस लोगों के दर्मियान तुम इसके मुताबिक़ फैसला करो जो अल्लाह ने नाजि़ल किया है और जो हक़ तुम्हारे पास आ चुका है, उसे छोड़ कर उनके ख़्वाहिशात की पैरवी न करना।’’
तर्जुमा मानी ए क़ुरआन: अलमाइदा: 48
आयत 2: ‘‘पस तुम्हें तुम्हारे रब की क़सम! यह मोमिन नहीं हो सकते, जब तक कि उनके दर्मियान जो निज़ाअ हो, उसमें यह तुम से पफैसले न कराऐं, पिफर तुम जो पफैसला कर दो उस पर यह अपने दिल में कोई तँगी भी न पाऐं, और पूरी तरह तसलीम कर लें।’’ तर्जुमा मआनी ए क़ुरआन: निसा:65
आयत 3: और सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और तप़फर्रिक़ा में न पड़ो।’’ तर्जुमा मआनी क़ुरआन: आले इमरान: 103
आयत 4: और सब मिल कर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और तप़फर्रिक़ा में न पड़ो।’’ (तर्जुमा मआनी कुरआन आले इमरान: 103)
खि़लाफ़त के दलायल सुन्नते नबवी सल्ल. के मुताबिक़
हदीस 1: मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रजि़ से रिवायत नक़ल है कि उन्होंने हुज़ूर नबी अकरम सल्ल. से सुना:
‘‘जिसने अमीर की इताअत से अपना हाथ खींच लिया, वह क़यामत के दिन अल्लाह तआला से इस हाल में मिलेगा कि उस पर कोई हुज्जत नहीं होगी और जो कोई इस हाल में मरा कि उसकी गर्दन पर ख़लीफ़ा की बैत का तौक़ ही न हो, तो वह जाहिलियत की मौत मरा।’’
हदीस 2: बनी इस्राईल पर अम्बिया हुकूमत करते थे, जब किसी पैग़म्बर का इंतेक़ाल हो जाता था तो उसकी जगह दूसरा पैग़म्बर ले लेता था, और मेरे बाद कोई नबी नहीं होगा बल्कि खुलफा (कई खलीफा) होंगे और वोह (तादाद मे) कई होंगे.” सहाबा ने पूछा की “हमारे बारे मे क्या हुक्म है?” इस पर हुज़ूर (स.अ.व.) ने जवाब दिया, “तुम एक के बाद दूसरे से अक़्दे बैअत पूरी करो, और उन्हे उनका हक़ दो, और यक़ीनन अल्लाह उन से उनकी ज़िम्मेदारी के बारे मे पूछेगा” (बुखारी और मुस्लिम)
हदीस 3: हज़रत अबु हुरैरा रजि़. से मरवी है कि आप सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘बेशक इमाम (खलीफा) एक ढाल है जिसके पीछे लड़ा जाता है और अपना बचाव किया जाता है।’’
हदीस 4: मुसनद अहमद, निसाई और तयालसी में हारिसुल अशअरी से नक्ल किया कि नबी करीम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘मैं तुम्हें पाँच चीज़ों का हुक्म देता हूँ जिनका अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है: जमाअत में रहना, सुनना, इताअत करना (अमीर की), दारुल इस्लाम की तरफ़ हिजरत करना और अल्लाह के रास्ते में जिहाद (क़िताल) करना, क्योंकि जो भी कोई जमाअत से बालिश्त भर भी बाहर हुआ उसने इस्लाम का तौक़ अपनी गर्दन से उतार फेका यहाँ तक कि वह वापस रुजूअ़ न कर ले और जिसने जाहिलियत (दूसरे अदयान) की दावत दी वह जहन्नुमी है। सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह (स.अ.व) अगर्चे वह रोज़ा रखे और नमाज़ पढ़े? फ़रमाया हाँ गर्चे वह नमाज़ पढ़े और रोज़े रखे और मुसलमान होने का दावा करे।’’
हदीस 5: हज़रत हज़ैफ़ा बिन यमान रजि़. से मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत किया गया कि नबी करीम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘तुम मुसलमानों की जमाअत और उनके अमीर के साथ रहना।’’
हदीस 6: मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत उरफ़जा रजि़. से नक़्ल किया गया है: ‘‘जब तुम एक ख़लीफ़ा के तहत मुत्तहिद हो और कोई दूसरा आकर तुम में तफ़र्रका पैदा करना चाहे और तुम्हारे इत्तिहाद को तोड़ना चाहे तो उसको क़त्ल कर दो।’’ (यानी मुसलमानों के लिये एक वक्त मे दो खलीफा जाईज़ नही)
हदीस 7: अहमद और बैहक़ी में फुज़ाल इब्ने उबैद रजि़. से मरवी है कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘तीन लोगों के बारे में न पूछो कि वह बदबख़्त हैं एक वह जो जमाअत से अलेहदा हुआ, दूसरा वह जिसने इमाम (खलीफा) की नाफ़रमानी की और वह शख़्स जो इसी नाफ़रमानी की हालत में फौत हो गया।’’
शरीअ़त का उसूल है कि जिस चीज़ के बग़ैर कोई फ़र्ज़ पूरा नहीं होता हो तो वह चीज़ भी फ़र्ज़ हो जाती है। इसी तरह चूँकि एक ख़लीफ़ा के बग़ैर जमाअ़त का तसव्वुर नहीं, इसलिए ख़लीफ़ा की तक़र्रुरी भी फ़र्ज़ हो जाती है।
इजमाअ़ सहाबा रजि़ से माखूज़ दलायल
सहाबा-ए-किराम का इस बात पर इजमाअ़ रहा कि ख़लीफ़ा का तक़र्रुर तीन दिन के अंदर अंदर हो जाना चाहिए और यह इस क़द्र मुसतहकम इजमाअ है कि इसमें मज़ीद किसी तपफ़सील की ज़रूरत नहीं। लिहाज़ा खि़लाफ़त को क़ायम करना फ़ज़र् हुआ और यह ऐसा फ़ज़र् है जिस पर दिगर फ़राएज़ का दारोमदार है.
हदीस 8: हज़रत हुज़ेफ़ा रजि़. ने कहा कि हुज़्ाूरे अकरम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘तुम में उस वक़्त तक नबूवत रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मज़र्ी होगी कि नबूवत रहे, फिर अल्लाह तआला जब चाहेगा उसे उठा लेगा।’’ फिर ऎन नबूवत ही की तज़र् पर खि़लाफ़त होगी तो वह रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मर्ज़ी होगी, फिर वह जब चाहेगा उसे उसे उठा लेगा। फिर काट खाने वाली बादशाहत होगी तो वह रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मर्ज़ी होगी, फिर वह जब चाहेगा उसे उठा लेगा। फिर जबरी और इसतबदादी हुकूमत होगी तो वह रहेगी जब तक अल्लाह तआला की मर्ज़ी होगी, फिर वह जब चाहेगा उसे उठा लेगा।
फिर ऎन नबूवत ही की तर्ज़ पर खि़लाफ़त क़ायम होगी। फिर आप सल्ल. ख़ामोश हो गये।
हदीस 9: मुसनद अहमद में तमीमुददारी रजि़. से रिवायत है, वह कहते हैं कि नबी करीम सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘बेशक यह (इस्लाम) हर उस जगह पहुँचेगा जहाँ दिन और रात होते हैं, मिट्टी से बना कोई घर या खाल से बना कोई ख़ेमा ऐसा न होगा जिसे अल्लाह इस दीन में न ले आए, ख़्वाह वह इज़्ज़त वालों की तरह इज़्ज़त से हो या ज़लील होकर, इज़्ज़त वह है जो अल्लाह तआला इस्लाम से दे और रुसवाई वह है जो अल्लाह तआला कुफ्र से दे।’’ यही हदीस सुनन बैहक़ी में भी रिवायत की गई है लेकिन उसके इख़तितामी अलफ़ाज़ यूँ हैं: ‘‘या वह उन्हें ज़लील कर देगा और वह उसकी इताअत कुबूल कर लेंगे।’’
हदीस 10: हाकिम रह. ने अबु शलबा रजि़. से रिवायत किया है कि ‘‘जब आँहज़रत (स.अ.व) किसी ग़ज़वे से लौटते तो पहले मस्जिदे नबवी जाकर दो रकअत नमाज़ अदा करते, फिर अपनी बेटी के घर जाते और फिर अपनी अज़वाजे मुत्तहरात के घर जाते थे। एक बार जब आप सल्ल. लौटे तो नमाज़ अदा करने के बाद हज़रत फ़ातिमा रजि़. के घर पहुँचे जहाँ वह दरवाज़े पर थीं, वह रोती जा रही थीं और आप सल्ल. का बशरा-ए-मुबारक चूम रही थीं कि आप सल्ल. ने दर्याफ्त किया कि बेटी क्यों रोती हो? कहा कि आप (स.अ.व.) के पफटे कपड़े और आप (स.अ.व.) की यह हालत देख कर रोना आता है, आप (स.अ.व.)सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘ रो मत, अल्लाह तआला ने तुम्हारे बाप (स.अ.व.) को ऐसा काम दिया है कि दुनिया भर में मिट्टी या खाल से बना कोई भी घर ऐसा न होगा कि अल्लाह का हुक्म उनमें दाखि़ल न हो, चाहे इज़्ज़त से या उन्हें ज़लील करके, और यह वहाँ तक होगा जहां तक रात पहुँचती है।’’
इसमें कहा गया है कि इस्लाम दुनिया के हर घर में दाखि़ल होगा, आज मग़रिबी यूरोप के बेश्तर हिस्सों, शुमाली और जुनूबी अमरीका और अफरीक़ा के एक बड़े हिस्से में इस्लाम नहीं पहुँचा है। यहाँ इस्लाम में दाखि़ल होने से मुराद उनका मुस्लिम हो जाना या इस्लामी रियासत की इताअत कुबूल कर लेने के अर्थ में है और यह उन पर हुकूमत किए बिना मुमकिन नहीं।
हदीस 11: हाकिम रह. ने अपनी मुसतदरक में हज़रत उमर रजि़. से नक़्ल किया है, वह कहते हैं कि हम नबी करीम सल्ल. के साथ बैठे थे कि आप सल्ल. ने पूछा:
‘‘सबसे आला ईमान रखने वाले कौन हैं?’’ हज़रत उमर रजि़. ने जवाब दिया कि वह फ़रिश्ते हैं, आप सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘वह ऐसे हैं और यह उनका हक़ है, जो अल्लाह ने उन्हें मर्तबा दिया है तो फिर उन्हें क्या चीज़ इससे रोक सकती है, लेकिन बेहतरीन ईमान वाले कोई और हैं’’ हज़रत उमर रजि़. ने जवाब दिया कि वह अल्लाह के अम्बिया अलैहिस्सलाम हैं, आप सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘वह ऐसे हैं और यह उनका हक़ है, जो अल्लाह ने उन्हें मर्तबा दिया है तो फिर उन्हें क्या चीज़ इससे रोक सकती है, लेकिन बेहतरीन ईमान वाले कोई और हैं।’’ आप सल्ल. ने फ़रमाया: ‘‘वह लोग वह क़ौम हैं जो पेटों में हैं और मेरे बाद आऐंगे, उन्होंने गो कि मुझे देखा नहीं होगा लेकिन उन्हें मुझ पर ईमान होगा, उन्हें वह नुसूस एहकाम मिलेंगी जो मुअल्लक (क़ायम न) होंगे और वह उसके मुताबिक़ अमल करेंगे, उनका उनका ईमान बेहतरीन ईमान है।’’
हदीस 12: सुनन अबु दाऊद में इब्न ज़ग़बी अल्अयादी से रिवायत है कि अली अब्दुल्लाह बिन हवाला अल अज़दी रजि़. ने उन्हें बताया कि हुज़ूरे अकरम सल्ल. ने उन्हें माले ग़नीमत वसूल करने के लिए भेजा और इन्हें माल नहीं मिला, जब यह हुज़ूरे सल्ल. के पास वापिस पहुँचे तो आप सल्ल. ने उनके चेहरे पर थकावट के आसार देखे और उठ कर खड़े हुए और दुआ की कि:
‘‘ऐ अल्लाह तू इन्हें मेरे हवाले न कर क्योंकि मैं इनकी देख भाल के लिए कमज़ोर हूँ, न ही इन्हें इन्ही के हाल पर छोड़ दे क्योंकि यह अपनी देख भाल नहीं कर सकते, न ही तू उन लोगों के हवाले कर क्योंकि वह लोग बेहतरीन अशया इन्हें न देकर अपने लिए रख लेंगे।’’
फिर उनके सर और पेशानी पर अपना दस्ते मुबारक रखा और फ़रमाया:
‘‘ऐ इब्ने हवाला जब तुम देखो कि खि़लाफ़त अर्ज़े मुक़द्दस (अल्क़ुदस) में आ गई है तो ज़लज़ला, आफ़ात और अज़ीम वाकि़आत होंगे। उस वक़्त क़यामत लोगों से इतना क़रीब होगी जितना मेरा हाथ तुम्हारे सर से है।’’
हदीस 13: मुसनद अहमद में मुअकि़्क़ल इब्ने यसार रजि़. से रिवायत है:
‘‘मेरे बाद नाइंसाफ़ी देर तक ख़ामोश नहीं बैठी रहेगी, यह सर उठाएगी। जिस क़द्र नाइंसाफ़ी पैदा होगी, उस क़द्र इंसाफ़ ख़त्म होगा और लोग इसी नाइंसाफ़ी की दुनिया में पैदा होंगे और उन्हें इस नाइंसाफ़ी के सिवा कुछ न पता होगा, फिर अल्लाह तआला इंसाफ़ लाएगा, इसमें जिस क़द्र इंसाफ़ किया जाएगा, इस क़द्र नाइंसाफ़ी ख़त्म होती जाएगी और लोग अद्ल के आलम में पैदा होंगे और उन्हें इस अद्ल के सिवा कुछ न मालूम होगा।’’
हदीस 14: सुनन अबु दाऊद में हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमरू रजि़. से रिवायत है कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘हिजरत के बाद एक और हिजरत होगी, पस सबसे बेहतर वह लोग हैं जो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की हिजरत वाली ज़मीन (शाम) की तरपफ़ हिजरत करेंगे।’’
हदीस 15: हज़रत अबु हुरैरा रजि़. से सही मुस्लिम शरीपफ़ में नक़ल है कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘बेशक दीने इस्लाम अजनबी हैसियत से शुरू हुआ और यह फिर अजनबी बन जाएगा, तो खुशख़बरी है अजनबियों के लिए।’’
हदीस 16: इब्ने माजा में हज़रत अनस इब्ने मालिक रजि़. से रिवायत किया गया है, एक और रिवायत हज़रत अब्दुल्लाह से नक़्ल की है जिसमें आता है:
‘‘बेशक दीने इस्लाम अजनबी हैसियत से शुरू हुआ और यह फिर अजनबी बन जाएगा, तो खुशख़बरी है अजनबियों के लिए। पूछा गया कि यह अजनबी कौन हैं? फ़रमाया कि यह वह लोग हैं जो अपने क़बीलों से अलेहदा हो गए हैं।’’
हदीस 17: कसीर इब्ने अब्दुल्लाह अपने वालिद और वह अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि आँहज़रत सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘दीने इस्लाम सिमट कर हजाज़ में इस तरह आ जाएगा जैसे साँप अपने बिल में सिमट जाता है और दीन हजाज़ से इस तरह जुड़ा होगा जैसे बकरियाँ पहाड़ों की चोंटियों से।’’
तमाम अहादीस पर मजमूई नज़र डालें तो रियासते इस्लामी की वापसी की रिवायात अपनी कसरत की वजह से मुतवातिर हैं। मजमूई तौर पर इनकी रिवायत में 25 सहाबा-ए-किराम रजि़. ने इन रिवायात को 39 ताबईन तक पहुँचाया और उन्होंने 62 तबेअ़ ताबईन को नक़ल कीं, जिसमें तवातुर क़ायम होता है और किसी कि़स्म के शक की
हदीस 18: हाकिम रह. ने अबी शुरैह से नक़ल किया है कि मैंने सुना है कि:
‘‘बारह परचम (झण्डे) होंगे और हर एक परचम तले बारह हज़ार आदमी होंगे जो अपने इमाम के साथ बैतुल मुक़द्दस में जमा होंगे।’’
हदीस 19: इब्ने असाकर मसीरा इब्ने जलीस से नक़ल की है कि हुज़ूर सल्ल. ने फ़रमाया:
‘‘यह मामला खि़लाफ़त मेरे बाद मदीना में जारी रहेगा फिर शाम पहुँच जाएगा, फिर ज़ज़ीरा-ए-अरब आ जाएगा, फिर इराक़, बलद (शहर), फिर बैतुल मुक़द्दस जो उसका ठिकाना होगा। फिर जो लोग उसके मर्कज़ को हटा देंगे, उन्हें इसका मर्कज़ फिर कभी हासिल न होगा।’’
हदीस 20: हाकिम रह. ने हज़रत अबु हुरैरा रजि़. से नक़ल किया है कि हुज़ूरे अक़दस (स.अ.व.) ने फ़रमाया:
‘‘अगर एक संगीन जंग हुई तो दमिश्क़ से बेहतरीन घुड़सवार अरबों का एक झुन्ड आएगा जो असलहा चलाने में माहिर होंगे और अल्लाह तआला उनसे दीन की मदद लेगा।’’
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