मुस्लिम हुक्मरानो का इज़राईल के लिये समर्थन

मुस्लिम हुक्मरानो का इज़राईल के लिये समर्थन

‘‘अगर मै कोई अरब नेता होता तो मैं कभी भी इज़राईल के साथ समझौते पर दस्तखत नही करता। यह बिल्कुल सिधी बात है, हमने उनका मुल्क लिया (छीना) है। यह सच है कि खुदा ने इसका हम से वादा किया है लेकिन इससे उन्हे क्या दिलचस्पी? हमारा खुदा उनका खुदा नही है। ऐन्टी-सिमेटिज़्म, नाज़ीवाद और ओस्चविज मौजूद रहा है, लेकिन इसमें उनकी क्या गलती, उन्हे सिर्फ एक ही चीज दिखाई देती है और वोह यह की हमने उनका मुल्क छीन लिया है। वोह इसे क्यो कबूल करेगे ?’’ डेविड बेन गरियन पहला इज़राईली प्रधानमंत्री [Quoted by Nahum Goldmann in Le Paraddoxe Juif (The Jewish Paradox), p.121]

1948 में बेन गरियन के जरिये दिये गया यह बयान मुस्लिम हुक्मरानो के, एक सेहूनी (Zionists) की निगाह में, मौकफ को बहुत कुछ खोल कर रख देता है। इज़राईल के पहले प्रधानमंत्री बेन गुरियन (Ben Gurion) ने मुस्लिम हुक्मरानो के जरिये इज़राईली रियासत के साथ दस्तखत किये गये मुआहिद को अपनी आवाम के साथ धोके से ताबीर किया है। हालाकि आज मुस्लिम हुक्मरानो ने सिर्फ इस गद्दारी पर ही ईक्तिफा नही किया बल्कि वोह लम्ब समय से इस नाजायज़ वजूद और मुस्लिम मुमालिक के बीच रिश्तो को ठीक करने में लगे हुए है और वोह इज़राईल की रियासत के खिलाफ किसी भी किस्म के विरोध की मुखालिफत करते है। यही वजह है कि बेन गुरियन ने मुस्लिम हुक्मरानो को इज़राईल के केम्प का हिस्सा करार दिया जब उसने कहा कि अरब हुकूमते इज़राईल के बचाव की पहली लकीर (रूकावट) है। उसने मज़ीद कहा ‘‘मुस्लिम हुकूमते मसनूई (बनावटी/नकली) है और हमारे लिये उनकी जड़े खोखली करना आसान है”। [David Ben-Gurion, May 1948, to the General Staff. From Ben-Gurion, A Biography, by Michael Ben-Zohar, Delacorte, New York 1978.]

यहाँ मसनूई (artificial) का मतलब यह है कि यें मुस्लिम हुक्मरान मुस्लिम उम्मत पर ग़ैर-फितरी तरीकें से थोपे गये है जब 1924 में उस्मानी खिलाफत खत्म हुई। कई सालो से जारी ग़ैर-मुस्लिम देशों की मुस्लिम उम्मत के खिलाफ जारहियत और ज़ुल्म का जवाब देने के मामले में इन मुस्लिम हुक्मरानो की नाकामयाबी ने इनकी गद्दारी को ज़ाहिर कर दिया है।

अभी हाल ही (नवम्बर 2012) मे यहूदी रियासत इज़राईल ने एक बार फिर मासूम और निहत्ते फिलिस्तीनी मुस्लमानो पर बमबारी शुरू कर दी. ग़ाज़ा पर किये गये हमलों की तादाद अब तक 90 से ज़्यादा हो चुकी है. हालिया हमले मे 50 से ज़्यादा लोग शहीद और 300 लोग ज़ख्मी हो गये जिन्मे 140 लोग औरते और बच्चे हैं. यहूदी रियासत बिना किसी खौफ के ऐसे दिल दहलाने वाले ज़ुल्म करती रहती है और मुस्लिम देशों के हुक्मरान ज़बानी तरदीद करके रस्म अदा कर देते है. सन 2009 मे होने वाली हिज़्बुल्ला और इज़राईल के बीच जंग में भी इनकी बहुत बड़ी फरेबकारी सामने आई थी जब मुस्लिम हुक्मरानो ने हिज़्बुल्लाह को इस जंग को छेड़ने के लिये जिम्मेदार ठहराया। दरहक़ीक़त इस जंग की शुरूआत इज़राईल ने की थी, जिसका मकसद हिज़्बुल्लाह को निहत्ता करना था, जो कि अब तक सामने आने वाली अकेली मीलीटी फोर्स है जो इस इलाके में इज़राईली जरहियत को रोक कर रही थी और लोगो को बचा रही थी। मग़रिबी मीडिया ने हमेशा भेदभाव से काम लिया है और हमेशा हिज़्बुल्लाह पर जंग को छेडने का इल्ज़ाम लगाया. हालांकि अगर हम सन 2000 से लेबनान से इज़राईली सैनिकों की वापसी के बाद शुरू होने वाले झगडों के मामले पर संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट देखें तो रिपोर्ट मे साफ तौर से इज़राईल के ज़रिये की गई खिलाफर्ज़ीयो का ज़िक्र है [देखें : Secretary-General report to the Security Council in 2001/2002/2004].  सिक्यूरिटी काउन्सेल के सेक्रेटरी जनरल के सन 2004 के बयान के मुताबिक वोह इज़राईल ही था, जिसने जंग को उकसाया था और हिज़्बुल्लाह सिर्फ उसकी जवाबी कार्यवाही कर रहा था।

जहाँ तक इज़राईल के सैनिको की ‘किडनेपिंग’ का मामला है ‘ईन्टरनेशनल कमीटी ऑफ रेडक्रोस (ICRC) 2006 की इज़राईल पर रिपोर्ट बयान करती है: “सन 2005 के आखिर में इज़राईल के पूछताछ यूनिट आरज़ी जेलें, सैनिक जेल, आम जेल और पुलिस स्टेशनो ने तकरीबन 11200 फिलिस्तिनियो को कैद किया गया। (ICRC के ज़रिये) 12,192 कैदियो को दौरा किया गया, जिनमें 7504 पर व्यक्तिगत तौर पर निगाह रखी गई, जिनमें 131 औरते और 565 बच्चे शामिल हैं.”

यह दस्तावेज बयान करता है की ऐसे कई मुस्लिम लोग थे जो गुम हो गये थे और रिपोर्ट में शामिल नही किये गये। ज्यादातर कैदियों को फिलिस्तीन और लेबनान की गलियो से या तो अगुआ किया गया या उठा लिया गया। गौर करने की बात यह भी है कि इसमें 565 बच्चे भी थे। इसलिये जब इज़राईल ने यह दावा किया कि लेबनान के साथ इस जंग में उसे भड़काने के पीछे हिज़्बुल्लाह के जरिये तीन इज़राईल सैनिको की अगवा करना है। इसमे हक़ीक़त को पूरी तरह से तोड़ा मरोड़ा गया । हक़ीक़त का मुशाहिदा करने से यह बात साफ हो जाती है कि इज़राईल ने ही इस जंग को भड़काया था।

मश्रिके वुस्ता के देशों मे उपर ज़िक्र की गई हक़ीक़त जानी पहचानी है। खास तौर से मुस्लिम हुक्मरान इससे अच्छी तरफ वाक़िफ है की इस जंग का मुहर्रिक कौन था. फिर भी उन्हौने इस जंग को छेड़ने के लिये हिज़्बुल्लाह को जिम्मेदार ठहराया, जिससे उनकी नीयत का पता चलता है कि ऐसे हालात में उनकी तरफ से कोई इक़दाम नही किया जाये। बल्कि उन्होने मुस्लिम उम्मत को बांटने की कोशिश की यह कह कर कि यह मुद्दा मसलकी झगड़े ;यानी सुन्नी और शिया से जुड़ा हुआ है और लोगो की तबज्जोह इस तरफ मबज़ूल की के हिज़्बुल्लाह एक शिया तन्ज़ीम है और इसको ईरान से मदद मिल रही है। इन मुस्लिम हुक्मरानो की बेहिसी और ईकदाम (कार्यवाही) नही करने की खास वजह यह है कि वोह इस उम्मत के मफाद के लिये काम नही कर रहे है बल्कि अपने इस्तेमारी (साम्राज्यवादी) आका यानी अमरीका और बरतानिया के लिये काम रहे है।

कुवैत यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अब्दुल्लाह मोहम्मद के मुताबिक हिज़्बुल्लाह को दोशी बनाने की वजह अमरीका को इन (मुस्लिम) देशो की तरफ से यह संदेश देना है कि वोह इस इलाके में इस्तेहकाम (stability) का जारिया है और अमरीकी मफाद के लिये वोह लगातार काम करते रहेगें।

मिस्र के साबिका सदर हुस्ने मुबारक का बयान इस इलाके के मुस्लिम हुक्मरानो के मोकफ को ज़ाहिर करता है ‘‘जो लोग मिस्र को जंग मे लेबनान और हिज़्बुल्लाह की मदद के लिये भेजना चाहते है वोह इस बात से आगाह नही है कि ज़ाहिरी जोखिम भरे काम करने का दौर खत्म हो चुका है।’’

‘‘जो हमसे जंग करने के लिये कह रहे है वोह हमारे पास जो कुछ भी है उसे पलक झपकते ही सब खोने पर मजबूर कर देगें।’’

‘‘मिस्र की फौज सिर्फ मिस्र की हिफाज़त के लिये है और यह बदलने वाला नही है।’’ (प्रेस ट्रस्ट आफॅ ईण्डिया, 26 जुलाई 2006)

इन हुक्मरानो ने कभी अरब एकता को बढ़ाने की बात की थी और दावा किया था आरगनाजेशन आफॅ इस्लामिक कॉन्फ्रेन्स (OIC) के ज़रिये इत्तेहाद को बढ़ावा देंगे। मुबारक का यह बयान हमे मुशर्रफ का वोह बयान याद दिलाता है जब अमरीका ने सन 2002 में अफगानिस्तान पर कब्जा किया, उसने कहा ‘‘पाकिस्तान सबसे पहले है।’’

हमे यह सोच कर भी बेवकूफ नही बनाना चाहिए कि यह अपने क़ौमी मुल्क को भी कभी बचा सकेंगे, जैसा कि हम ईराक़ के बारे में जानते है। सद्दाम हुसैन ने फौजो को अमरीकी फौजो से अपनी कौम को बचाने का हुक्म नही दिया, बल्कि अमरीका के खिलाफ लड़ने वाले तो आम आदमी और इन्फिरादी सैनिक थे।

दरहक़ीक़त उरदुन के बादशाह, सउदी अरब के किंग अब्दुल्लाह और हुस्ने मुबारक ने हिज़्बुल्लाह की तनक़ीद करके इज़राईल की तरफ से हमला करने को सही करार दिया था और इज़राईल ने इसे लेबनान पर कब्जा करने के लिये हरा सिंग्नल समझा था। मुस्लिम हुक्मरानो ने इज़राईल के खिलाफ इक़दाम नही करने के लिये कई कारण बताये। उसमें से खास वजह है इज़राईल की आलातरीन फौज और यह की इज़राईल का मुकाबिला करने से उनकी कौमी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुचेगा। हम इस बात का जायजा लेते है कि इन हुक्मरानो के पास दरहक़ीक़त कौन से विकल्प मौजूद है:

1.     फौज – जिस के ज़रिये यह इज़राईल से सिधा मुकाबला कर सकते हैं.  

2.     यह मुस्लिम देश इज़राईल को आर्थिक और सामाजिक तौर पर अलग-थलक कर देने की ताक़त रखते है ।

फौज के पासमन्जर से

नीचे दिये गये आंकड़े बताते है कि मुसलमानो की सारी फौज मिलाकर एक इज़राईली फौजी के मुकाबले में 68 मुस्लिम फौजी आते है। मुस्लिम देश इज़राईल के जंगी बजट से 17 गुना रक़म जंगी बजट पर ज़्यादा खर्च करते है। तो यह बात बिल्कुल साफ है कि मुत्तहिदा मुस्लिम फौज इस ईलाके की सबसे ग़ालिब फौज है। अपनी बहुत जदीद टेक्नोलोजी के बावजूद भी इज़राईल इतनी बड़ी मीलिट्री फोर्स पर कभी हावी नही हो सकती।
 




जनसंख्या
फौजी क़ुव्वत   
फौज की अफरादी क़ुव्वत को खिदमत देने के लिये फौरी तौर पर तय्यार है             
फौजी इखराजाता
 इज़राईल
7,112,359
3,353,936
 2,836,722
 11.8187





 मिस्र
81,713,520
41,654,185
35,558,995 
13.7836 
 इरान
65,875,224 
39,815,026
34,344,352 
 19.0725
 जोरडन (उरदुन)
 6,198,677
 3,371,706
2,886,132
 2.4467
 सीरिया (शाम)
 19,747,586
10,218,242
 10,218,242
 5.33183
 सऊदी
 28,146,656
 14,928,539
 8,461,049
 54.6
 तुर्की
 71,892,808
 39,645,893
 33,444,999
 45.2567
 यमन
 23,013,376
9,932,593
 3,585,947
 3.71184
 लीबिया
  6,173,579
3,293,184
2,821,855
2.91408
 लेबनान
3,971,941
2,229,474
1,883,155
1.25364
 क़ुव्वेत
2,596,799
1,601,065
1,393,356
7.42
 ओमान
3,311,640
1,429,296
1,207,291
6.94146
 मोरक्को
34,343,220
18,233,410
15,382,861
6.25
 अलजीरिया (अलजज़ायर)
33,769,668
19,327,735
16,357,759
7.3359
 ट्यूनीसिया
10,383,577
5,905,068
5,005,257
1.06498
 सूडान
40,218,456
18,961,029
11,264,895
2.4294





मुस्लिम मश्रिके वस्ता (Middle East )
431,356,727      
230,582,445
 182,058,952
 179.81263




इसके अलावा इज़राईल का नक्शा और उसकी सरहदो को देखने से पता लगता है कि यह इज़राईल के लिय अमली तौर पर नामुमकिन की वो तीन तरफ से (मिस्र, उरदुन और सिरिया) की तरफ से एक साथ और लगातार होने वाले जमीनी हमलो से अपने आपको बचा सकता है। आपको इस बात पर हैरत होगी कि क्या इन देशो ने कभी इज़राईल के खिलाफ पहले कभी जंग नही लड़ी ? हाँ लड़ी है, मगर दरहक़ीक़त वोह जंगे दिखावटी जंगे थी जिन्हे ‘जिन्हे मफरूज़ा जंगे या scenario wars' भी कहा जाता है जिसका मकसद इज़राईल के साथ अमन मुआहिदा करना था। इसका जिक्र मुहम्मद हैकल ने अपनी किताब "The Road to Ramadan" में सादात के एक जनरल (मुहम्मद फौवज़ी) के बयान का जिक्र किया, जिसने इज़राईल के साथ मिस्र की जंग की मवाज़ना (तुलना) समूरई की दो तलवारें के इस्तेमाल से की - जंग की तैयारी के लिये एक छोटी और एक बड़ी तलवार। फौवज़ी ने कहा था कि यह जंग (1967 की छः दिन की जंग) एक छोटी तलवार की तरह है जो कुछ खास मकासिद को हांसिल करने के लिये दिखावे की मुख्तसर लडाई लडी जाने के लिये इस्तेमाल की जाती है।

मिस्र के हुस्ने मुबारक की उम्मत के साथ यह खुली गद्दारी का मवाज़ना  (तुलना) 2008 में होने वाली तुर्की के जरिये इज़राईल की फौज को फौजी मश्क (military exercises) देने में मदद करना से की जा सकती है। तुर्की की न्यूज ऐजन्सी का बयान है:

“इज़राईल और तुर्की के दर्मियान कई बिलियन डालरो के फौजी मुआहिदे हुए, खुफिया ऐजेन्सियो और ऑपरेशन्स में परस्पर सहयोग किया। इज़राईली जंगी जहाज़ कोनिया के उपर से उड़ रहे थे। दोनेा देशो के बीच एक मुश्तरक (common) मिसाईल शील्ड प्रोजेक्ट का ऐजेन्डा है। ईरान और सीरिया की सरहदो पर मिसाईलो को लगाने के बारे में विचार किया जा रहा है। कोनिया घाटी के बीस हजार मील लम्बे इलाके में दोनो देशो ने फौजी जहाजो ने परमाणु हमलो की वर्जिश की। ऐसे वाक़ियात की दर्जनो मिसाले दी जा सकती है। मुखतसर यह की तुर्की इज़राईल का दोस्त और इत्तेहादी (ally) है।

आर्थिक रूकावट

यह बात बिल्कुल साफ और ज़ाहिर है की इज़राईल के ज़मीनी, हवाई और समुन्द्री इलाके चारो तरफ से मुस्लिम देशो से घिरे हुए है। इसलिये इज़राईल अपने वजूद और दुनिया के दूसरे देशो तक पहुंचने के लिये मुस्लिम देशा का मोहताज है। इसलिये अगर इज़राईल पर ज़मीनी, हवाई ओर समुद्री रूकावटों डाल दी जायें तो इसका उसके वजूद पर क्या असर पड़ेगा।

समुंद्री रूकावट

इज़राईल के आयात और निर्यात का 98 प्रतिशत समुद्र के जरिये होता है। जिस तरह से इज़राईल की मामूली फौज ने लेबनान के लिये समुद्री रूकावट पैदा कर दी, उसी तरह मिस्र, सीरिया और तुर्की के लिये यह निहायत आसान है कि इज़राईल पर समुद्री रूकावट लगा सकते है, जिसे वोह बहरे रोम (Mediterranean sea) की तरफ नही बड़ सकता। इज़राईल तेल का 90 प्रतिशत आयात करता है और इस तेल को ज्यादातर टेंकरो के जरिये आयात किया जाता है। इसको रोक कर उसकी तवानाई (उर्जा) की ज़रूरतो पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला जा सकता है। इज़राईल के महत्वपूर्ण बन्दरगाह अष्कलोन और ईलात (Ashkelon and Eilat) है। अष्कलोन रूस से टेंकरो में तेल हासिल करता है, जो बोसफोरस से गुजर कर आते है और जिस पर तुर्की क़ाबिज़ है। सन् 1989 तक मिस्र इज़राईल की 45 प्रतिशत तेल की ज़रूरतो को पूरा करता रहा। बाद में धीरे-धीरे रूस से वह इस ज़रूरत को पूरा करने लगा और अभी भी यह तादाद 26-30 प्रतिशत है। ईलात पर आये इन तेल के टेंकरो को अकाबा की खाड़ी से गुजरना पड़ता है, जिस पर मिस्र और सउदी अरब को इख्तियार हासिल हैं। यह एक बहुत तंग रास्ता है, जिस पर आसानी से रूकावट लगाई जा सकती है। इलात की बन्दरगाह आर्थिक लिहाज़ से बहुत महत्वपूर्ण है और यह सेन्ट्रल ऐशिया के तेल को दुनिया के बाजार मे बाटने का बहुत अहम बिन्दू है। बी.पी. (BP) इज़राईल की पाईप लाईन को तुर्की से होते हुये बाक्-तिबलीसी-सिहान तेल और गैस की पाईप लाईन से जोड़कर तेल निकालने का मन्सूबा रखती है। इन तमाम रास्तो से गुजरने के लिये मुस्लिम देशो की रज़ामन्दी जरूरी है। इज़राईल ने तवानाई (उर्जा) की ज़रूरतो को पूरा करने के लिये मिस्र के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके मुताबिक मिस्र को 1.7 से 3 बिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गेस 15 साल तक इज़राईल को सप्लाई करनी है। ( www.arabicnews.com).

यह रूकावट (blockade) मुन्दजबाला मुआहिदा का मुस्तरद कर देगा, जिससे पता चलता है कि हमारे हुक्मरान मुसलमानों के खिलाफ इजराईल की मदद करने मे कितने बड़े धोकेबाज है । “इज़राईल से आने वाले जहाज़ और मालवाहक जहाज़ो को स्विज़ केनाल की तरफ से मुफ्त में गुजरने का हक होगा ओर स्विज़ की नहर और बहरे रोम (Mediterranean sea) की तरफ से उसका गुजरना 1888 की कोंसटेंटिनोपल कंवेंशन के मुताबिक होगा।”

“यह पक्ष (parties) यह समझते है कि तिरान की और अकाबा की खाड़ी अंतराष्ट्रीय रास्ता होगा, जो सभी देशो के लिये बिना किसी रूकावट के पानी और जहाज़ की आजादाना गुज़रगाह होगी।”

“यह भी तय पाया गया कि इन सम्बन्धो मे यह सभी शामिल होगा कि मिस्र अपनी आम तौर से तेल की बिकवाली इज़राईल को करेगा और इज़राईल पूरी तरह से मिस्र में निकले हुये तेल की निलामी में बोली लगा सके।” [Treaty Of Peace Between The State Of Israel and The Arab Republic of Egypt - 26/03/1979]

समुद्री रास्ते पर रूकावट लगाकर तुर्की से इज़राईल जाने वाली पानी की सप्लाई, जो कि इज़राईल की बड़ी ज़रूरतो मे से है, पर रोक लगाई जा सकती है। इज़राईल और तुर्की के बीच जनवरी 2004 मे एक मुआहिदे ‘हथियार के बदले पानी’ पर दस्तखत किये गये जिसके मुताबिक तुर्की ‘‘50 मिलियन क्यूबिक मिटर पानी हर साल अंतोलिया की मनवगत नदी से 20 साल तक” इज़राईल को पानी के टेंकरो में भेजेगा।

ज़मीनी रूकावट

आगे दिये गये तिजारती मुआहिदे के मुताबिक इज़राईल, मिस्र और जोरडन (उरदुन) के दर्मियान सामान की तिजारत आपसी सरहदो के दर्मियान होगी:  तिजारत और खरीदो फरोख्त पर मुआहिदा (08/05/1980) – “दोनो देशो के माल के आयात और निर्यात से सम्बन्धित आजादाना लेने देने के लिये हर पार्टी (पक्ष) दूसरे पक्ष के लिये अपने देश में चलने वाले कानून, ज़ाब्ते और कारोबारी तरीक़े अमल को दूसरे देश के लिये जारी रखेगी।”

‘‘दोनो देश एक दूसरे के साथ सबसे ज्यादा महरबानी और रिआयत का सुलूक रखेंगे।’’ इस मुआहिदे का असर यह हुआ कि इज़राईल से मिस्र औ उरदुन की तरफ निर्यात बढ़ गया जैसा की मुन्दरजाज़ेल रिपोर्ट बताती है:

‘‘जनवरी-मई 2006 में इज़राईल का मिस्र और उरदुन की तरफ निर्यात बढ़ गया, इसकी वजह Qualifying Industrial Zone (QIZ) का निर्यात मुआहिदा है जो इज़राईल ने दो पड़ौसी देशो के साथ किया है। मिस्र को निर्यात 93 प्रतिशत यानी 98.7 मिलियन अमरीकी डालर बढ़ गया है।’’ [http://www.port2port.com]

इज़राईल पर लगाई जाने वाली ज़मीनी रूकावटे इज़राईल और अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच होने वाली तिजारत, डाक और यातायात को प्रभावित कर सकती है।

फिजाई (हवाई) रूकावट

हवाई यातायात मुआहिदा 08/05/1980 - ‘‘दूसरी मुआहिद पक्ष (other Contracting Party) की रियासत में बिना रूके उड़ना’’ “इस रियासत में ग़ैर-ट्रेफिकी उद्देश्यों के लिये रूकना.............. इस बात पर मुआहिदा की दूसरे मुआहिद पक्ष कि रियासत में अन्तर्राष्ट्रीय यात्री, मालवाहक जहाज़ और डाक उठाना और लेना’’. ईजराईल की आने और जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय फलाईट्स मुस्लिम देशो के हवाई इलाके इस्तेमाल करती है। हवाई रूकावटें लगाकर इज़राईल की पर्यटन व्यवस्था और अहम यातायात के रास्तो को मुतास्सिर किया जा सकता है।

मुस्लिम देशो ने उम्मत की इस पुकार का समर्थन किया कि व्यक्तिगत तौर पर इज़राईल के सामान का बहिष्कार किया जाये मगर रियासती (राज्य) के पैमाने पर इस पर कोई कदम नही उठाया गया। उम्मत ने पुरअसर तौर से इज़राईली और अमरीकी सामान का बहिष्कार किया। सन् 2002 अमरीकी उत्पदनो के बहिष्कार के कारण सउदी अरब में 2 मिलियन डालर के अमरीकी निर्यात में गिरावट आईं। लेकिन अगर हम खाड़ी देशो के अमरीका में पूंजी निवेश (इंवेस्टमेंट) को देखे तो यह रकम कुछ भी नही है। रूस के एक अखबार ‘प्रवदा’ के मुताबिक छः खाड़ी देशो का कुल पूंजी निवेश तकरीबन 1.4 ट्रिलीयन डालर है, जिसका 75 प्रतिशत जी-8 देशो में लगा है। यह संख्या दुगनी है अगर हम खाड़ी देशो का पश्चिमी देशो में पूजीनिवेश या भागीदार को देखे। अमरीकी हमलों से मुत्तास्सिर परिवारो के द्वारा सउदी अरब हुकूमत के खिलाफ 1 ट्रिलीयन डालर के दावों के मुकदमो न सउदी अरब की पश्चिमी देशों मे पूजीनिवेश की हक़ीक़त को उजागर कर दिया जो कि 750 बिलीयन डालर हैं। (अगस्त 2002-बीबीसी)

तहज़ीबी रूकावट

इज़राईल और मुस्लिम देशो के बीच तालीम (शिक्षा) मीडिया, तहज़ीबी शोबो के सम्बन्ध में भी मुआहिदे (समझौते) हुए है। इन समझौतो का मक़सद ईस्लामी तहज़ीब को तहलील करना और इज़राईल को मुसलमानो के लिये ज्यादा से ज्यादा क़ाबिले क़ुबुल बनाना है। ईस मुआहिदे की तीन मिसाले इस तरह है।

तालीमी प्रोटोकोल- काहिरा में इज़राईली शौक्षिक केन्द्र की स्थापना के सम्बन्ध में (25/02/1982)  -‘‘दोनो पक्ष इस बात पर राज़ी हुये की काहिरा में एक इज़राईली शौक्षणिक संस्थान (तालीमी इदारा) का क़ायम होगा। यह केन्द्र इज़राईली ओरिऐन्टल सोसायटी के जरिये कायम होगा।’’

इज़राईली शहरियो को स्कोलरशिप की बुनियाद पर और दौरे पर आये इज़रीईली विद्वानों, की महमान नवाज़ी और सहायता दी जायेगी। इन विज़ीटिंग विद्वानो और मुहक़्क़िक़ो (researchers) के लिये सेमिनार आयोजित करेगे और उन्हे मौके फराहत करेगे कि वोह मिस्र के विद्वानो और मुहक़्क़िक़ो से मुलाकात और सहयोग हासिल करें।

मीडिया

इज़राईल की ब्रोडकास्टिंग ओथोरिटी और अरब गणराज्य मिस्र के बीच सहयोग का प्रोटोकोल (16/02/1982) ‘‘दोनो पक्ष रेडियो और टेलिविजन प्रोग्राम और फिल्मे जो कि इन देशो की सामाजिक आर्थिक और वैज्ञानिक जीवन के बारे में होती है, का तबादला और प्रसारण करेगे।’’

तहजीबी - मिस्र और इज़राईल के दर्मियान तहजीबी मुआहिदा (08/05/1980) -‘‘दोनो पक्ष खेल और युवा वर्ग से सम्बन्धित गतिविधियो को बढ़ावा और हौसला अफजाई करेंगे और इनसे सम्बन्धित संस्थानो को दोनो पक्ष तहज़ीबी, कलात्मक और वैज्ञानिक शौबो में  सहयोग को बढ़ावा देगें।”  ‘‘तहजीबी, सांईटिफिक और तालीमी तबाअत (publication) का तबादला’’

यह बात यही खत्म नही हो जाती। पी.ऐल.ओ (PLO or Palestine Liberation Organisation) जैसी संस्थाओ के क़याम का मक़सद फिलिस्तीनी मुसलमानो और मस्जिदे अक्सा की हिफाज़त की जिम्मेदारी को राष्ट्रवादी संगठन, जैसे PLO पर डालना है। दरहक़ीक़त यह मुस्लिम हुक्मरानो की जिम्मेदारी है, जिनके पास इसकी क़ुव्वत और सामर्थ है, लेकिन इस तरह से उन्होने लोगो की उम्मीदो को अपने से हटाने की कोशिश की। उसी तरह जब इज़राईली उत्पादनो के बहिष्कार का मुद्दा आया तो उन्हौने उम्मत को इज़राईली और अमरीकी उत्पादनो का बहिष्कार करने का प्रोत्साहन दिया, लेकिन खुद उन्होने मुस्लिम कम्पनियों के नाम से इज़राईली उत्पादनो का आयात करवा के उम्मत को धोका दिया। सन 2002 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इज़राईल से 150 मिलियन डालर की क़ीमत का आयात अकेले सउदी अरब ने उरदुन की 73 कम्पनियो व साईप्रस का 70 कम्पनियां, मिस्र की 23 कम्पनियां और तुर्की की 11 कम्पनियों के जरिये किया। ये हुकूमते सामान के असल उत्पादक को छुपाने के लिये तीसरे देश का सहारा लेती है। (Deutsche Presse-Agentur)

नतीजा

इस ब्योरे को पढ कर कोई यह सोच सकता है कि यह स्थिती को आसान तरीके से देखना है और यह की फौज को हरकत देना आसान नही है और यह कि किसी देश पर रूकावट और सेंकशन (आर्थिक पाबन्दियाँ) लगाने के लिये मुआहिदा करना बहुत मुश्किल है। अगर ऐसा होता तो मुस्लिम हुक्मरान कैसे फौज जमा करते और सद्दाम हुसैन को कुवैत से हटाने के लिये अमरीकी-बरतानवी गठबन्धन मे शामिल होते। यकीनन संयुक्त राष्ट संघ और अंतराष्टीय समुदाय की निगाह में सद्दाम हुसैन का क़ुवैत का कब्जा बिल्कुल वैसा ही जैसा कि इज़राईल का लेबनान पर कब्जा है। क्या संयुक्त राष्ट संघ के लिये यह मुमकिन है कि बिना मुस्लिम हुक्मरानो के सहयोग के वह 10 साल के लिये आर्थिक पाबन्दियाँ,  समुद्री रूकावट, या नो फ्लाई जोन को लागू कर सके ? ईराक भी ठीक इज़राईल की तरह मुस्लिम देशो से घिरा हुआ है। दरहक़ीक़त वो मुस्लिम हुक्मरान ही थे, जिन्हौने अमली तौर पर इराक़ के खिलाफ आर्थिक पाबन्दि को लागू करवाया था। क्या आप किसी ऐसे मुस्लिम हुक्मरान को याद कर सकते है, जिसने इन सेन्कशन्स की मुखालफत की हो या तोडने की कोशिश की?

अब तक आपके दिमाग मे यह सवाल आ चुका होगा कि हमे इन हुक्मरानो से कैसे छुटकारा मिले। इसके लिये कई तरह के विकल्प बताये जाते है, जैसे की उनके खिलाफ वोटिंग करके उन्हे निकाल दिया जाये। हमने दूसरे विश्व युद्ध के ज़माने से मुस्लिम दुनिया में ऐसे कई लोकतान्त्रिक चुनाव देखे है और फिर भी यह किसी तरह की तब्दीली नही ला सके। इन चुनावो ने तब्दीली को रोका है और मौजूदा हालात को जबरन बाकी रखा है। कई बार तब्दीली लाने के लिये असलहे (हथियारों) के साथ कोशिश (arm struggle) की गई। लेकिन इसने अस्थिरता और तबाही पैदा की और हमे फिर वही पहुंचा दिया जहां से हमने शुरू किया था।

असल मुश्किल यह है कि मुलसमान इस जाल में फंस गये कि उन्होने इन भ्रष्ट और मग़रिब को समर्थन देने वाली हुकूमतों से अपने पॉलिसी और मसाईल का हल लेने के कोशिश करते है जिन्होने हमेशा उन्हे गुमराह किया। लेकिन हमे हमारी पॉलिसीयाँ दूसरे हर काम की तरह हमारे प्यारे पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (स्वल्लल्लाहो अलयहिवसल्लम) की उस्वाऐ हसना से लेनी चाहिये।

सिर्फ खिलाफत, जो की ईस्लामी निजामें हुक्मरानी है, के ज़रिये ही मुस्लिम जमीनो को एक करेगी और इस्तेमारी (colonialists) ताकतो के जरिये किये गये बटवारे को दूर करेगी जिसने मुस्लिम उम्मत को मुस्तक़िल कमजोरी और पिछड़ेपन के गड्डे में डाल दिया है। सिर्फ खिलाफत की सरकार ही ऐसी स्वतंत्र सरकार को कायम करेगी जो पश्चिम के इख्तियार से आज़ाद होगी और जिस पर मुस्लिम और दूसरे शहरियो की जान और ईज़्ज़त की हिफाज़त करना फज़्र है।

हिज़्बुत्तहरीर एक आलमी राजनैतिक पार्टी है जो कई मुस्लिम देशो में काम कर रही है ताकि वोह उम्मत की खिलाफत के कयाम मे रहनुमाई करे। वोह सियासी तौर पर लोगो को हर पैमाने से मुत्तहिद करने की कोशिश कर रही है ताकि इस्लामी रियासत का क़याम अमल में आये और जामेअ तब्दीली वाके हो। आज ही इस बात का पता लगायें कि आप खिलाफत के कयाम मे कैसे सहयोग कर सकते है और मुस्लिम सरज़मीनो को इन मगरिब परवर्दा हुक्मरानो और उनके इस्तेमारी आक़ाओ से आज़ादी दिला सकते है।

ईमाम मुस्लिम ने हजरत अबू हुरैरा (रजि.) से रिवायत किया है कि रसूलुल्लाह (स्वल्लल्लाहो अलयहिवसल्लम) ने फरमाया, ‘‘ईमाम, (खलीफा) वोह ढाल है जिसके पीछे तुम लड़ते हो और हिफाज़त हासिल करते हो।’’
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