सवाल - जवाब : बर्मा

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

सावल: बराए मेहरबानी मीयानमार (बरमा) की सियासी सुरतेहाल का एक जाएज़ा पेश करे और उन वजुहात से आगाह करे जिस के बाईस वहां के मुसलमानों पर इंसानियत सोज़ मज़ालिम ढाये जा रहे है। मज़ीद बराहेकरम हमे इलाकाई और आलमी मुमालिक का इस पर मोकिफ भी बयान करें, आपका पेशगी शुक्रीया।

जवाब: सूरते हाल का जायज़ा ज़ेल में दर्ज है जो इस मस्ले को समझले के लिए ज़रूरी है:

(1)   इस मुल्क की आबादी 5 करोड़ से ज़्यादा है जिस में करीबन 20 फीसद के करीब मुसलमान जो के ज्यादा तर दारूल हुकुमत रँगून, मांडले के शहर और सूबा आराकान मुकीम है। 70 फिसद आबादी बुद्ध मज़हब, जबके बाकी आबादी हिन्दु, इसाई और दीगर मज़हब से ताल्लुक रखती है। बर्मा सिर्फ 4 फीसद मुसलमानों को अपना शहरी तस्लीम करता है और इनके नज़दीक बाकी मुसलमान गैर-मुल्कि है। इसलिए वह मुसलसल इनको मुल्क बदर करने की कोशिश करता है। बरमा इन्हें शहरीयत देता है न ही इनके कोई और हकूक तस्लीम करता है इसलिए इन मुसलमानों को बुद्ध मजहब के अफराद की जानिब से मुसलसल हमलों का सामना रहता है। ये सब कुछ हुकूमती आशीरबाद से होता है, यहां तक के इनको कत्ल किया जाता है और जबदस्ती हिजरत पर मजबूर किया जाता है।

(2)   तारीख़दानो ने लिखा है कि बरमा में ईस्लाम 788 ई. में खलीफा हारून अलरशीद के दौर में दाखिल हुआ जब सदियों से खिलाफत दुनिया मे अव्वलीन रियासत का दर्जा रखती थी। जब बरमी अफराद ने इस्लाम की अज़मत, सच्चाई और अदल का मुशाहिदा किया तो इस्लाम पूरे बरमा में फैलता चला गया। मुसलमान ने अराकान सूबे पर तीन सौ साल (1784 ई. 1430 हि.) से ज्यादा अरसे तक हुकूमत की। इसी साल कुफ्फार  इस सूबे के खिलाफ मुत्तहिद हुए और बिल आखिर बुद्ध मजहब के मानने वाले इस पर क़ाबिज हो गए और इन्होंने सूबे में तबाही फैला दी और मुसलमानों को कत्ल किया, इनका खून बहाया, खुसूसन ओलमा और हामिलीने  दावत का। यह इसके अलावा है उन्होंने मुसलमानों के वसाइल लूटने, इस्लामी आर्किटेक्चर जैसे मस्जिद और स्कूलो को तबाह करके किया, जो कि उनकी बुद्ध जाहिलियत के बाईस उनकी नफरत और तास्सुब और जनूनियत की निशान देही करता है।

(3)   उस खित्ते में बरतानिया और फ्रांस के दरमियान इस्तेमारी चकलस और मुकाबला मौजूद रहा है। बरतानिया ने 1824 ई. में बर्मा पर कब्जा किया और इसे अपनी कॉलोनी बनाया जबकि फ्रांस ने उसके पड़ौस में मौजूद लाउस पर कब्ज़ा करके अपनी कॉलोनी बनाया। 1937 में बरतानिया ने उस कालोनी को ब्रिटिश इंडिया कॉलोनी से जूदा करके हुकूमत ब्रिटिश बरमा के नाम से उसके एक अलग कालोनी बना दिया और अराकान सूबे को उस हुकूमत के जै़रे तहत बुद्धों के हवाले कर दिया।

(4) 1940 में दूसरी जंग अज़ीम के दौरान उस कॉलोनी में तीस मलेशिया कामरेड - हुर्रियत बर्मा अरमी के नाम से एक तहरीक कायम हुई। यह तहरीक 30 बरमी अफराद ने कायम की  जिन्ह¨ने  जापान में तरबीयत हासिल की थी और उन्होंने अहद किया के वह बरतानिया को निकाल बाहर करेंगे। यह लोग जापानी काबिज़ों के साथ अपने  मुल्क में 1941 मे दाखिल हुए। इस वक्त बरमा जापान और बरतानिया की चकलस के अव्वलीन महाज़ में से था । जापान 1945 में दूसरी जंग अज़ीम के इख्तीताम पर शिकस्त खा गया। इस तरह बरतानिया एक बार फिर बरमा को अपनी कॉलोनी बनाने में कामयाब हो गया। 1942 में बुद्ध के हाथो एक लाख के करीब मुसलमानों का कत्ले आम हुआ। जबकि लाखों मुसलमानों को मुल्क बदर कर दिया गया। 1948 में बरतानिया ने बर्मा को सरकारी तौर पर आजादी दे दी। इसके एक साल पहले 1947 में बरतानिया ने आजादी के हवाले से एक कांफ्रेंस का इनेकाद किया और उसमें तमाम गिरोहों और नस्ल के लोगों को दावत दी, सिवाए मुसलमानों के। कांफ्रेंस मे बरतानिया ने एक घ¨शणा पत्र मे एक आर्टिकल रखा कि के आजादी के दस साल के अन्दर तमाम गिरोहों और नस्ल के हुकूक दिया जाऐंगे। बर्मी हुकूमत ने इसे नाफिज़ नहीं किया और मुसलसल मुसलमानों पर जुल्म के पहाड़ तौड़ती रही।

(5)   1962 में बर्मा में फौजी जनरल नी व¨न ने फौजी बगावत की। इसने इस्टेट  इस्टेट कॉंउंसिल बराऐ बहाली लॉ एंड आॅडर  के नाम से  एक मिलिट्री कॉंउंसिल कायम की जिसके जरिए उसने 1988 तक मुल्क  पर  बराएरास्त हुकूमत की जबके कॉंउंसिल 1997 तक जनरल नी व¨न की क़यादत में मौजूद रही । 1990 में इलेक्षन हुए और अपोजीशन नेशनल डमोक्रेटिक पार्टी ने अक्सीरियत हासिल कर ली। लेकिन फौजी हुकूमत ने एकतदार को तसलीम नही किया ताकि नऐ आईन (संविधान) का मुसव्वदा तैयार न हो जाए । 1993 ई. आईन के मुत्तालिक मिटिंग होती रही । फौजी बगावत के बाद मुसलमानों को जनूनी फौजी हुक्मरानों की जानिब से जुल्म व सितम का सामना रहा जिस ने तीन लाख से ज़्यादा मुसलमानो को बंगलादेश हिजरत पर मजूबर किया । 1978 मे भी 5 लाख से ज़्यादा लोगों को जिलावतन किया गया (निकाल दिया गया) जिसमें से 40 हजार से ज्यादा अफराद बुरे हालात की वजह से मौत के शिकार हो गए जिसमें बूढ़ी औरते और बच्चे शामिल हैं। ये तादादों शुमार अकवामे मुतहिद (संयुक्त राष्ट्र संघ) की इमदाद मुहाजरीन अेजेन्सी की है। 1988 मे डेढ़ लाख अफराद ने बेरून मुल्क हिजरत की और 5 लाख अफराद को जबरदस्ती मुल्कबदर कर दिया गया। ऐसा मुसलमानों की जानिब से अपोजिशन पार्टी की हिमायत की वजह से किया गया। जिसने 1990 में इलेक्षन में कामयाबी हासिल की। हुकूमत ने मुसलमानों को गैर-मुल्की नजर से देखना शुरू किया और उनको मुल्की शहरी मानने से इन्कार किया। उन्होंने मुसलमानों पर तालीम के दरवाजे बन्द कर दिये और 30 साल की उमर से कब्ल उनकी शादियों पर भी पाबन्दी लगा दी थी। ताकी 3 साल तक मुसलमानों की आबादी को कम किया जा सके। इसके अलावा भी बदतरीन कदम उठाऐ गये । 1989 में हुकूमत ने मुल्क का नाम अंग्रेजी में मीयानमार रखा। कुछ मुमालिक ने इस नए नाम को तसलीम किया। बाज़ अब भी इसे पहले नाम से याद करते है।

(6)   फौज बरमा पर मुसलसल हुकूमत करती रही है। कभी बराहेरास्त बरतानिया की पुश्तपनाही से और कभी बरतानवी एजेन्ट इंडिया के ज़रिये के जरिया। बरमा की हुकूमती निज़ाम को बज़ाहिर कभी कम्यूनिस्ट निज़ाम के करीब रखा गया है ताके  रूस और चीन की मदद हासिल ह¨ सके और अपनी हकीकत पर पर्दा डाला जा सके। जैसा के बहुत सारी अरब हुकूमते करती रहीं है। ताके अपनी बरतानवी और अमरीकी एजेन्ट होने को छुपा सके और रूस और चीन से ताअल्लुक को मजबूत की कर सके। अमरीका माज़ी में भारत की जानिब से बरमा की फौजी हुकूमत की मदद करने के रवय्ये पर पर अहतिजाज करता आया है। फ्रांसीसी न्यूज एजेन्सी ने भारतीय वजिरे आजम मनमोहन सिंह के 28 मई 2012 के दराये मीयानमर और वहां मुख्तलीफ मुआहिद¨ की खबर देते हुये लिखा: ‘इंडिया ने 90 की दहाई में मीलेटरी कॉंउंसिल के साथ अपने राबते कायम किये खुसूसन सलामती और तावानई के शोबो में।’ 2010 में अमेरिका ने मीयानमर में इन्सानी हुकूक के खिलाफवरज़ियों पर भारत की खमोशी की मज़म्मत की। यहाँ तक की सूकी (ओंग सेन सूकी) जिस ने अपनी तालिम इन्डिया में मुकम्मल की और जिस कि वालिदा भारत में सफीर है, भारत की फौजी हुकूमत की मदद पर दुख का इज़हार किया। नवम्बर 2007 ने नियूज़ ऐजेन्सियों ने इंडिया, चीन से अमेरीका की अपील कर खबर दी के वे बरमा के फौजी हुकमरानों को असलेह की फरहामी बंद कर दे। बर्मा की फौजी हुकूमत ने अमरीकी हमले की सूरत मे चीन की हिमायत हांसिल करने के लिये चीन को खलीज बंगाल और बहरे हिंद में अपनी बदंरगाह पर फौजी तनसीबात की इजाज़त दी। बहरेहिंद में बरमा की हुदूद में बंदरगाह का कयाम चीन के भी मफाद में है। इंडिया अपनी शुमाली मष्रीकी जानिब चीन के साथ 2000 कि.मि. की बार्डर रखता है। जबकि इंडिया बरमा की शुमाली मग़रीबी जानिब बरमा के साथ जमीनी बार्डर से मुंसलक है जिसको बरतानवी हिन्दुस्तान के वक्त इस्तेमाल करते थे। बरतानिया को बरमा से रूख्सती के बाद से इंडिया इसका निगहबान है। यूँ बरमा हिन्दुस्तान की मदद व हिफाजत में है।

(7)   अमरीका ने बरमा की फौजी हुकूमत के खिलाफ राएआम्मा हमवार करनी शुरू की और राएआम्मा की तवज्जो अपोजिशन रहनुमा ओंग सेन सूकी पर मरकूज़ की यहां तक कि उसे नवम्बर 2010 में रिहा कर दिया गया। फिर अमरीका ने दबाव मजीद बढाया ताकि मिलेट्री कॉंउंसिल को बर्खास्त कर दिया जाए और इक़्तिदार सिविलियन के हवाले की दिया जाए। लेकिन बरतानिया और इंडिया की हुकूमत ने चालाकी से मामले को निपटाया। उन्होंने आम इलेक्षन की आवाज बुलन्द की और उन तरीकों को इस्तेमाल किया जिसके वह इन्तेहाई माहिर थे। पस 2010 में इलेक्षन हुए और सालीडेरिटी एण्ड डवलपमेन्ट पार्टी इलेक्षन में 80 फीसदी नशिश्तें हासिल करने में कामयाब हो गई। जो कि दरअसल फौज ही की पार्टी थी । फौजी कॉंउंसिल ने अपने आपको तहलील कर लिया और इक़तदार सिविलियन हुकूमत के हवाले कर दिया था। यह सिविलियन रिटायर्ड जनरल है और इनकी कयादत रिटायर्ड जनरल तेन सेन  कर रहा है। जिसने इक़तदार मार्च 2001 में संभाला।

(8) अमरीका बदस्तूर बरमी हुकूमत पर दबाव डालता रहा है ताके इन रिटायर्ड फौजी जनरलों को भी हटाया जा सके और अपोजिशन रहनुमा ओंग सेन सूकी और इनकी पार्टी नेशनल डमोक्रेटिक पार्टी की भरपूर हिमायत करता रहा। पस वह मुस्तकबिल के तजजिये शाया करता रहा जिस मे 2015 के आम इलेक्शन मे अपोजिशन रहनुमा के इलेशन मे जीतने के इम्कानात का जिक्र है। दिसम्बर 2011 के अमरीकी सेक्रेट्री खारिजा हिलेरी किलिंटन ने बरमा दौरा कया और एलान किया के उनका मुल्क 20 साल में पहली बरमा के लिए एक सफीर मुकर्रर करेगा और ये के अमरीका जमहुरी इस्लाहात की बुनियाद पर बर्मा पर कर लगाई गई पाबन्दियों में नरमी करेगा। अप्रेल 2011 के जुजवी इन्तेखाब मुनक्किद  हुये जिसमें 45 में से 43 सीटों पर अपोजीशन पार्टी जीत गई। इस की कयादत आंग साग सूची कर रही है। इसके बावजूद अमरीकी हिलेरी किलिंटन ने कहा, “ये फैसला करना अभी कब्ल अजवक्त है कि बर्मा में हालिया महिनों में कितनी तरक्की (इस्लाहात) हुई और ये के क्या मुक्तकबिल में भी ये जारी रहेगी? इस तरह अमरीकी सेक्रेट्री खारिजा ने बरमी हुकूमत पर दबाव डालने की कोशिश की ताके जमहूरियत की जानिब सफर पर शकूक बे शुबहात खड़े किये जा सकें। क्योंकि ये सिविल कपड़ों में फौजी हुक्मरान ही है जो अब तक बरमा के सियासी मंजरनामे को कन्ट्रोल कर रहे है। नब्बे की दहाई में बनाई गए आईन के मुताबिक फौज पार्लियामेंट की एक चैथाई नशिश्तो पर बिना किसी इलेक्शन के अपने उम्मीद्वार मुकर्रर कर सकती है। यू अमरीका बरमा की सियासी सुरतेहाल से मुतमाइन नहीं है। अगरचे अमरीका ने दबाव डालकर अपोजिशन रहनुमा को रिहा करवा दिया है जिसकी पार्टी सियासी सरगर्मिया कर रही है, यूं कुछ तरक्की तो अमल में आइ है. हालांकि अमरीका मुसलसल दबाव में इजाफा कर रहा है और बजाहिर उनकी साख के मुताल्लिक सवाल खड़े कर रहा है ताकि फौज को हुकूमत से बेदखल किया जा सके जो के बरतानिया के वाफादार है।

(9) दूसरी जानिब बरतानिया बर्मा की मदद कर रहा है. बरतानीया के वजीरे खारजा विलियम हेग ने बरमा की सुरतेहाल पर मुस्बत तबसिरा करते हुए कहा  “बरतानिया जो की बरमा की अवाम को सबसे ज्यादा मदद देने वाला मुल्क है, बरमा मे सियासी अम्ल में मदद देने के लिए तैयार है।“ (ऐसोसिऐटेड प्रेस, 19 अप्रेल 2012) . बरतानवी वजीरे आजम डेविड केमरोन ने बरमी इलेक्शन के बाद बरमा का दौरा किया। यह 1962 के फौजी बगावत के बाद किसी भी मगरीबी रहनुमा का बरमा का पहला सियासी दौरा था उसने बरमी हुकूमत की तारीफ करते हुए कहा, “अब यहां वह हुकूमत है जो इस्लाहत के लिए पूरी तरह से तैयार है और उन्होंने बाज इकदामात उठाये हैं और मेरा ख्याल है कि यह अच्छा वक्त है कि यहां आया जाए और इनकी इकदामात की हौस्ला अफजाई की जाए”. वह बरमी सद्र थेन सेन से मिला जिसने कहा “हम जमहूरियत और इन्सानी हुकूक के फरोग में आप की मदद से इन्तेहाई खुश है”. यूँ बरतानिया मियानमार की सियासी सूरतेहाल से मुतमईन है जो उनकी पुश्त पनाही पर कायम है।

(10) 3 जून 2012 को बुद्धो के एक टोले ने बस पर हमला किया और उसने 9 मुसलमानों को कत्ल कर दिया। उस वक्त के तनाजुर में बुद्धो और मुसलमानों के दर्मियान कत्ल, घरों को जलाना और घर से निकालने जैसे वाक्यात फूट पड़ें। जिसने जल्द ही मुस्लिम अक्सीरियती इलाकों को लपेटे में ले लिया और लाखों मुसलमानों ने वहां से हिजरत शु कर दी। बांग्लादेश की हुकूमत ने किसी किस्म की मदद से इन्कार कर दिया और उन लोगों को वापस भेजकर बार्डर बन्द कर दिया।

पिछले साल भी इसी वक्त मुसलमानों को इन जुल्मों का शिकार होना पड़ता था और वह मुल्क से भागने पर मजबूर हुए थे. कई दहाईयों से हर साल मुसलमानों को मुतास्सुब (फिर्कापरस्त) बुद्धों के हाथो बरमी मुहकूमत की मदद से कत्ल, घर-बदरी, घर जलाने जैसे वकियात का सामना करना पड़ रहा है। मगरीब, अमरीका की कयादत मे, मुसलसल बरमी हुकूमत की जम्हूरिया के सफर और अपोजिशन रहनुमा की रिहाई पर तारीफों के पुल बांध रहा है। जबके मुसलमानों पर होने वाले जुल्मों पर को कोई तवज्जेह नहीं है। ऐसोसियेट प्रेस ने 14 जून 2012 को बरमा में अमरीकी एजेंसी का बयान जारी किया जिस के मुताबिक अमरीकी एम्बेसी (दूतावास) के जार्ज डी. माइकल त्रंसटन रंगोन में मकामी मुसलमान इदारों और नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी आराकान से जुदा-जुदा मिले. उसने कहा, “सबसे अहम चीज यह है के तमाम पार्टीयाँ पुरसुकून हो जाऐं। यहाँ मजीद गुफ्तगू की जरत हो और ये तब होगा जब चीजे पुरसुकून हो जाऐंगी”। इसने मजीद कहा ऐम्बेसी हुकूमत म्यानमार की हौंसला अफजाई करती है के वे वाक्यात की इस तरह तहकीकात करे जो कानूनी अमल और कानून की हुक्मरानी की ताबीर के मुताबिक हो”. यानि के अमरीका उन लोगों को नसीहत करता है जिनका कत्ले आम हो रहा है और जिन पर जुल्म ढाए जा रहे है और जिला वतन किये जा रहे है के वो खामोश हो जाए और उन्हें हर सूरत डायलोग और कानूनी मूशगाफियाँ (खेल) का अहतराम करना चाहिए। क्योंकि जो लोग मारे जा रहे है वो मुसलमान है। लेकिन जब बुद्धमत के पुजारियों ने 20 सितम्बर 2007 में अहतिजाज किया था और फौजी हुकूमत ने उन पर जुल्म किया तो अमरीका उनके लिए खड़ा हुआ, उनके लिये तशवीश का इजहार किया और बरमा पर सख्त पाबंदियॉ आइद कर दी। जिसके बाद दिगर मगरीबी मुमालिक ने भी यही किया. ये जाहिर करता है कि मगरिब (पश्चिम) को मुसलमानों की तकलीफ की कोई परवाह नहीं है। वो सिफ अपने मकसद की तकमील चाहता है और अपना असर बढ़ाना इसका टारगेट है और आम तौर पर यही दूसरे मगरीबी मुमालिक की पोजीशन है जो के इस्लाम और मुसलमानों की दुश्मन है।

(11) खुलासा यह है कि बरमा की हुकूमत जो के हाजिर सर्विस जनरलो के हाथो में थी और अब सिविलियन कपडे पहने रिटायर्ड जनरलों के हाथों में है, अब भी बरतानिया की वफादार है. बरतानिया बरमा हुकूमत की खुलकर और दरपदा, बराहेरास्त था बिल-वास्ता बजरिये इंडिया, मदद जारी रखे हुए है। इसके अलावा यह है कि बरतानिया ने न सिर्फ हाल में बल्के माजी में भी जबसे इस्लामी हुकूमत खत्म हुई है, मुसलमानों पर हिंसा और कत्लेआम में बुद्धमत के पुजारियो की मदद की है. अपनी सियासी धोखेबाजी और शातिरपन में बरतानिया ने बरमा की हुकूमत की स और चीन के कम्यूनिष्टो के करीब किया है ताकि अमरिकी हमले की सूरत में उनकी मदद हासिल की जा सके. जहां तक अमरीका का ताअल्लुक है तो अमरीका अपोजिशन नेशनल डेमोक्रेटिक र्पाटी की हिमायत करता है और उसी ने इसकी सरबराहा ओंग सेंग सूकी को नोबल ईनाम से नवाजा है। ओंग सेंग सूकी का वालिद आंग सेंग बरतानिया का शदीद मुखालिफ था। और 1947 में मारा गया था जिसका इल्जाम अपोजिशन रहनुमा पर लगाया गया था। इसके वालिद को आजादी का चेम्पियन बताया जाता है। अमरीका और बरतानिया की बरमा में सियासी चकलस के बावजूद दोनो बुद्ध पुजारीयों (उवदो) की मुसलमानों पर तशद्दुद (हिंसा) और कत्लेआम के हामी है। इससे मगरीब के इन्सानी जज्बात में कोई हलचल पैदा नहीं होती सिवाय चंद खाली-खोले बयानात के. अगर बुद्ध साधू (उवदो) एहतिजाज करते है और मुखालिफ बुद्ध उन पर जुल्म करें या उन्हें जेल में बंद करे तो ये फौरन एतजाज करते है। जहां तक चीन का ताअल्लुक है तो ये अपने आर्थिक और इस्ट्रेटिजिक फायदों के लिए बर्मा हुकूमत की हिमायत करता है। इसे बरमा में सियासी असरो-रसूख हांसिल नहीं है। जहां तक मुसलमानों हुक्मरान का ताअल्लुक है तो ये मुकम्मिल तौर पर मगरिब और अमरीका के गुलाम है। इसलिए मुकम्मिल तौर पर कोई हरकत नही करते है। यहां तक के पडौसी बंगलादेश उन मुसलमानों की मदद नहीं करता जो बदतरीन जुल्म व सितम और नस्लकुशी का कई सदियों से सामना कर रहे है। इस पर सितम यह है की बंगलादेशी हुकूमत उन पर क्रेक-डाउन करते है जो यहाँ पनाह के लिए आए है और उनके लिए अपनी बार्डर बंद कर देते है बजाए इसके के यह हुकमरान अल्लाह के इस अम्र का जवाद दें.

अगर ये दीन के मामले में तुमसे मदद मांगे तो तुम पर इनकी मदद लाजमी है। (सूरह अनफाल : 72)

यह अमरीका और मगरिब के अहकाम का जवाब देते है और लड़ाई के इलाकों में अपनी फौजे भेजते है, सिर्फ अपने सरों और कांधो पर अकवामे मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्रसंघ) के बेज (तमगा) लगाकर!!! इन हुकमरानों से अच्छे अम्ल की तवक्कोह नहीं है बल्कि यह तो सरापा शर है। बरमा में अमनो आमान बहाल नहीं होगा जब तक के खिलाफत वापस नहीं लौट आए। जिसके के साहे मे उन्होंने पहले भी पनाह पायी थी और हिफाजत में रहे थे। खलीफा हान अल रशीद के दौर में और इसके बाद भी साढ़े तीन सदियों तक क्योंकि यह खिलाफत ही है जो इन्हें सिक्यूरिटी मुहय्या करेगी और तमाम आलम में खैर को फैलाएगी। ये खिलाफत इंशा अल्लाह उफक पर नमूदार होने ही वाली है। ( 6 शाबान 1433 हिजरी मुताबिक 26 जून 2012 ई.) 
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