तौहीने रिसालत और हमारा रद्दे अमल
अभी हाल ही मे मुसलमानों को बेवजह दोबरा भड़काने कोशिश की गई और अल्लाह के रसूल, मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के किरदार पर हमला किया गया जिन्हे मुस्लिम अपनी जान से अज़ीज़ समझते है। मुसलमानों की तरफ से भी वही रद्दे अमल आया जिसकी तवक़्क़ो की जाती है। यानी शदीद गुस्सा, नफरत और झुंझलाहट. इन्डोनेशिया से लेकर बंग्लादेश तक, शिमाली अफ्रीक़ा से मश्रिके वस्ता तक मुसलमानों ने इसके खिलाफ मुज़ाहिरे किये जिसमें मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) की शख्सियत को बहुत बद-मज़ाही के साथ पेश किया गया है। फिल्म Innocence of Muslims बुनियादी तौर पर इस्लाम को तशदुद और नफरत का दीन और पैगम्बर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) को जिन्सी तौर पर गुमराह, खून का प्यास और ताक़त का भूखे शख्स (नऊज़ो बिल्लाह) के तौर पर पेश किया गया है। इसके खदीजा (रजि.) की भी बेईज़्ज़ती की गई है और मज़ीद हजरत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के सहाबाऐ इकराम को क़ातिल, दौलत के भूखे और बच्चे और औरतों का क़त्ल करने वाले किरदार की लोगों की हैसियत मे पेश किया गया है. पैगम्बर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) और उनके सहाबा (रज़ि.) के किरदार को इतने घिनौने अन्दाज से पेश करने पर कई गैर-मुस्लिम ने भी शदीद गुस्से का इज़हार किया और उन्होने इस फिल्म की सख्ती से मज़म्मत की।
अलमिया यह है की कुछ मुठ्ठी भर मुसलमान ऐसे भी है जिन्होने, अपने निजी स्वार्थ और अपने आकाओं के तल्लुत के असर मे, उन मुसलमानों की तरदीद की जिन्होने इस फिल्म के खिलाफ मुज़ाहिरे किये. इसी तरह का एक कमेंट कहता है, “हम ग़ैर-मुस्लिमों से यह कैसे उम्मीद कर सकते है को वोह इस बात पर यक़ीन करे की इस्लाम तशद्दुद का मज़हब नहीं है जबकि मुस्लिम आवाम (इस वाकिये को लेकर) हमलों के लिये इकठ्ठी हो रही है, यह तो हम सब, और मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) को झुटा बनाना है”. इस तरह के खुद से नफरत करने वाले मुस्लिम असली मसले को तो मुखातिक नही करते बल्कि उलटा मज़लूम के खिलाफ तनकीदे शुरू कर देते है.
यह मज़मून इस्लाम और उससे जुड़े हस्सासी मुआमलात पर इस तरह बिला वजह के हमलों के पीछे हक़ीक़ी नियत का पता लगाऐगा। यह मज़मून मगरीबी तहज़ीबी जारहियत को तारीखी पसमंजर में रख कर इसकी जांच करेगा और यह बताएगा की कैसे इस इस्लामोफोबिया ने इक्कीसवी सदी में तरक़्क़ी की. आखिर में यह अमली इक़दाम की निशानदेही करेगा जो इस तरह के इश्तेआल के वक्त मुसलमानों के लेने होते है।
दहशतगर्दि के खिलाफ जंग (यानी इस्लाम के खिलाफ जंग)
इस फिल्म को मग़रिब की इस्लाम के खलाफ जंग के पसमंजर से अलग कर के नहीं देखना चाहिए। यह जंग पिछली कुछ दहाईयों पूरी दुनिया मे अलग-अलग तरह से जाहिर हुई है। जैसे फौजी चढाई; इराक और अफग़ानिस्तान पर, ऐजेंटो के ज़रिये जंग (proxy war); सोमालिया और सुडान मे, अपने कूटनीति (diplomatic या सिफारती) और आर्थिक अत्याचार; ईरान के खिलाफ, इल्मि और तहज़ीबी जारहियत (अत्याचार) जैसे की मग़रिबी मुमालिक के खुद अपनी (मुस्लिम) रिआया के साथ.
मग़रिब का इस्लाम के खिलाफ हमलों की तारीख 9/11 से शुरू नहीं हुई है। यह फिक्री और तहज़ीबी जारहियत पिछली दहाई में तेज हुई है, और मग़रिब की इस्लाम के खिलाफ तास्सुब ज्यादा खुलकर सामने आने लगा है। अब तो इस्लाम पर हमला करने वालों के दर्मिया मुकाबला होने लगा है की कौन ज्यादा जुर्रत दिखाने का खिताब जीत ले जायेगा और कौन इस्लाम के खिलाफ नफरत फैलने के मामले में नई तरकीबे ईजाद करने में जुनूनी है।
इसकी हाल ही की कुछ मिसाले जैसे पैगम्बर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के डेनमार्क से सन 2006 में कार्टून छापे गये, फिर 2010 में फ्लोरिडा में एक इसाई पादरी, टेरी जोन्स ने 9/11 की नवीं बरसी को क़ुरआन की कापिया जलाने का ऐलान किया और फरवरी 2012 अमरीका सैनिकों ने अफगानिस्तान की बगराम की जेल में कुरआन की 315 कापिया जलाई जिसमें दूसरी दीनी किताबें भी थी। इन सब वाकियात में सारी दुनिया के मुसलमानों को शदीद गुस्से में मुबतिला कर दिया।
मग़रिब की सरपरस्ती मे इस्लाम की किरदारकशी
जब से फिल्म ‘इनोसेन्स ऑफ मुस्लिम’ (Innocence of Muslims) जारी हुई है अमरीकी सियासदनों ने कुछ ऐसे ईशारे किये है जैसे कि वोह मफरूज़ा तौर पर वोह फिल्म बनाने वाले की तरदीद कर रहे हो। हेलेरी क्लिनटन, सेक्रेटीह ऑफ स्टेट ने इस फिल्म की, जिसने बहुत सारे मुज़ाहिरी को उकसाया, तरदीद करते हुए इसे काबिले नफरत क़रार दिया। जैसे की अमरीका मुसलमानों पर अहसान कर रहा हो, और व्हाईट हाउस ने सिर्फ यू-ट्यूब को यह विचार करने को कहा कि क्या यह विडियो उसके नीजी उसूलों को नहीं तोडती. लेकिन गुगल जो की यू-ट्यूब का मालिक है, ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि यह वीडियो पूरे तौर पर “हमारी गाईडलाईन्स” के दायरे में आता है और इसलिये यह यू-ट्यूब पर मौजूद रहेगी। मुसलमान इस तरह के खोखले बयानों को बेमआनी (अर्थहीन) मानते है। खास तौर से जब वोह मग़रिब की इस्लाम के खिलाफ जारहियत का इतिहास देखते है।
मगरिबी रियासते इन जैसे वाकियात की सीधे तौर पर सरपरसी करती हो या नही करती हो लेकिन मगरिबी अफराद या जमातें की तरफ से ऐसा इश्तियाल अंगेज़ी (provocation) उनकी अपनी नीजी करस्तानी होना तो बहुत दूर की बात है (यानी नीजी कारस्तानी नहीं हो सकती). साफ तौर पर ऐसे जारिहत पसन्द लोगो को पूर मदद, पुश्तपनाही और फिक्री हौसला अफजाई मिलती है ताकि वोह ऐसे इश्तियाल आमेज़ आमाल को अंजाम दे सके।
मुसलमानों को इस बात पर शक नही है की इस्लाम और मुसलमानों की किरदारकशी की नियत से फैलाई गई नफरत और प्रोपगंडे के साये मे पलने वाले इन ज़ालिम की सीधे तौर पर या बिला वास्ता सरपरस्ती मग़रिब ही कर रहा है. अल्लाह (سبحانه وتعالى) का फरमान है:
قَدْ بَدَتِ الْبَغْضَاءُ مِنْ أَفْوَاهِهِمْ وَمَا تُخْفِي صُدُورُهُمْ أَكْبَرُ
“नफरत उनकी ज़बानों से ज़ाहिर हो चुकी है, लेकिन जो कुछ वोह अपने सीनों मे छुपाते है वोह उससे कहीं बदतर है”
पश्चिम का इतिहास: इस्लाम के खिलाफ तास्सुब और तज़लील के पस मंज़र मे
मग़रिब (पश्चिम) की तारीख (इतिहास) पर एक सरसरी निगाह डालने से पता चलता है की मग़रिब ने इस्लाम के खिलाफ नफरता की तश्हीर (propaganda) सदियों से करता आ रहा है. हालांकि ऐतिहासिक तौर पर बरतानवी और फ्रांसिसी इस्तेमार हमेशा इस्लाम के खिलाफ हमलों की अगुवाइ करते थे, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद से इस ऐजेंडे को अमरीका ने इख्तियार कर लिया और आज अमरीका इस्लाम के साथ बिल्कुल वैसा ही मामला कर रहा है जैसा की उसके पहले गुज़रने वालो इस्तेमारी देशो ने किया.
आज इस्लाम और मग़रिब के मुक़ाबले मे जितनी भी गुफ्तगू कि जाती है, उसको आकार देने मे मुस्तशर्रिक़ीन (orientalists) की रिवायतों ने बहुत बडा किरदार अदा किया है. प्रोफेसर एडवर्ड सईद (Edward Said) ने अपनी कुछ मश्हूर किताबों मे मग़रिब की मश्रिक़ और खास तौर से इस्लाम के खिलाफ गहरी नफरत का तजज़िया किया है. यह मुस्तशर्रिक़ रिवायत इस्लाम की तुलना जंगली और क़दीम जाहिलाना तहज़ीब से करती है, जिसे निचा दिखाना और क़ाबू मे रखने की ज़रूरत है. “ओरिएंटलिज़्म खुद कुछ सियासी ताक़तों और अवामिल एक नतीजा है. ओरिएंटलिज़्म (पूरब के मामले मे) तफसीर का मक्तबऐ फिक्र है जिसका मौज़अ (विषय) ओरिएन्ट (मश्रिक या the East), उसकी तहज़ीब, उसके लोग और इलाक़े है” [Edward Said, Orientalism, 2003, Penguin Books, p-203]
इस्लाम को ज़लील करने के पीछे वजह मग़रिब की सरमायादाराना (capitalist) बालादस्ती को इस्लामी का खौफनाक अन्दाज़ मे चेलेंज देना और इस्लाम की ग़ैर-इसाई बुनायाद होना है. इसलिये मग़रिब इस बात से खुश है की वोह इस्लाम को गद्दार (villain) के तौर पर पेश करे. मुस्तशर्रिक़ीन की फिक्री गुफ्तगू के बारे मे, “यह कहना सही है की हर यूरोपीय शहरी, जो कुछ भी ओरियंट (मश्रिक़ या पूरब) के बारे मे कहता है वोह नसलपरस्ती, साम्राज्यवादी ज़हनियत और अपनी नस्लो का दूसरी नस्लो से तुलना करने पर मबनी है”. [Said, Orientalism, p-204]
अब तक मग़रिब को जो तश्वीश (चिन्ता) रही है वह यह है कि मशरिक और मुस्लिम दुनिया जहालत, पिछड़ापन और जंगलीपन के मरकज़ है। गौरे आदमी की यह जिम्मेदारी भी है और मिशन भी की वोह ऐसे लोग को तहज़ीबयाफ्ता बनाऐ.
“चूंकी ओरिएंटल (पूरब निवासी) एक मग़लूब नस्ल की रिआया है, इसलिये उसको मग़लूब बनाया जाय: यह बात बहुत आसान है”. [Said, Orientalism, p-207]
मग़रिब तालीमी और फिक्री गुफ्तगू में, इस बात पर ईजमा है कि मशिरक (पूरब) के बारे में खास तरह के जानिबदारान (भेदभाव पर मबनी) राय, बयान और कमेन्ट्स सही और काबिले कुबूल है। जैसा की सईद कहते है ‘‘कुरूने वस्ता (मध्यकालीन युग) के ज्यादातर हिस्से में और यूरोप की निशाते सानिया (पुनर्जागरन) के इब्तिदाई दौर में इस्लाम को एक शैतानी मुर्तदो का मजहब, नाक़बिले फहम और कुफ्र (blasphemy) माना जाता रहा है............... मुहम्मद एक झूठे पैगम्बर थे, झगडों के बीज़ बौने वाले, नफ्स परस्त, एक मुनाफिक, शैतान के एजेन्ट (नाऊजू बिल्लाह) [Edward Said, Covering Islam, 1997, Vintage, p-5]
मग़रिब को इस्लाम का चेलेन्ज मतलब है कि मग़रिब इस्लाम और उसके पैग़ाम को समझने की बजाऐ, लगातार उसको शैतानी बताए। “जहां तक मशरिक़ की दूसरी तहज़ीबों का ताल्लुक़ है, इण्डिया और चीन को हारा हुआ और दूर का माना जा सकता है। इसलिये उनके मामले में मुस्तक़िल तशवीश (चिंता) की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ इस्लाम ने ही मग़रिब के सामने पूरी तरह से अपने आप को सुपुर्द नहीं किया है। [Said, Covering Islam, p-5]
ऐसे तसव्वुरात और उसके साथ-साथ मग़रिब का लगातार बाहरी खतरात को तलाश करना, इस्लाम को सबसे बड़ा दुश्मन बना देता है। गुज़िश्ता दहाई से मग़रिब सामाजिक, सियासी और आर्थिक बोहरान (crises) से मुकाबला कर रहा है। जिसकी मिसाल मौजूदा आर्थिक गिरावट है। प्रोफेसर नोम चामेस्की (Noam Chomsky) दावा करते है कि ऐसी घरेलू आफतों से दोचार होने की सूरत में ‘‘तुम इन भोचक्की भेड़ों का ध्यान बांटना चाहते हो, क्योंकि अगर उन्होंने इस बात को समझना शुरू कर दिया तो यह बात उन्हें पसन्द नहीं आयेगी। क्योंकि यह वही (लोग) है जो इसका नुकसान भुगत रहे है। उनको सिर्फ अमरीकी फुटबाल और मज़ाहिया ड्रामे दिखाना ही काफी नहीं है। पिछले दस सालों में हर एक या दो साल के अन्दर कोई बडा राक्षस को पैदा किया किया जाता है। जिससे हमे अपने आप को बचाना होता है। और ऐसा कोई न कोई होता है जो हमेशा तैयार रहता है। [Noam Chomsky, Media Control, 2002, Seven Stories Press, p-43]
इसलिये मग़रिब के जारिये इस्लाम के किरदार कशी और ज़िल्लत को देखने वालो को इस तारीखी पसमंजर को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए ताकि वोह यह समझ सके की मग़रिब इस्लाम के क्यों बदनाम करता है। मग़रिब इस्लाम के साथ फिक्री (intellectual) मुकाबला नहीं कर सकता इसलिये वोह इस्लाम के खिलाफ बोहतान तराशी और किरदारकशी से काम लेते है। इस्लाम को डेमोनाईज (शैतानीकरण) करके मग़रिब अपनी सदियों पुरानी दुश्मनी को बाकी रखता है। जबकि वोह अपने निज़ाम की नाकामयाबी और घरेलू मसाईल के दुखों से लोगों की तवज्जोह हटाने की कोशिश करता है।
बोलने या वक्तव्य की आज़ादी: दोगलेपन की जानी पहचानी कहानी
आज़ादिये राय के मंत्र को बार-बार दोहराने के पीछे मकसद यह समझमे आता है की मग़रिब हर उस चीज की बेइज़्ज़ती कर सकता है और बुरा भरा कह सकता है जिससे दूसरे लोग अज़ीज़ रखते है। जिस तरह से लिबरल (आज़ाद खयाल लोग) इस बात के आदी हो चुके है कि वोह किसी भी ईसाई मजहब की अलमतो और अल्फाज़ों का मज़ाक़ उड़ाते है जिसे इसाई लोग आज खामोशी से बर्दाश्त करते है उसी तरह ऐसे शिद्दत पसंद सेक्यूलरिस्ट (कट्टर धर्मनिर्पेक्षेवादी) मुसलमानों से भी इसी तरह की उम्मीद रखते है जब वोह इस्लाम को बुरा भला कहते है। हालांकि अगर मग़रिब की अपनी खुद की हस्सासियात (sensitivities) का मामला होता है तो वोह इस पैगाम को अपने उपर ठीक उसी तरह से लागू नहीं करता । मिसाल के तौर पर हाल ही मे होने वाले दो घटनाओं का जायज़ लेते है:-
केट मिडिलटन, केम्ब्रिज के डच (नवाब) की बीवी, की जब बरहना तस्वीर यूरोप की कई मेगज़ीनों और अखबारों में छपी तो बरतानिया के शाही खानदान के इसके खिलाफ बड़ा सख्त रवय्या ईख्तियार किया और छापने वालों की तरदीद करते हुये उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की धमकी दी। ऐसे मौको पर आज़ादीये राय का उसूल हवा में उड़ जाता है। इसमें कोई शक नहीं की उन तस्वीरों को छापने वालो को जल्दी ही अदालत में घसीटा जायेगा।
एक दूसरा वाकया देखिये जिस की रिपोर्ट बीबीसी में शाया हुई की वेस्ट यार्कशायर का रहने वाला एक मुस्लिम नाबालिग (teenager) अज़हर अहमद पर मुकदमा इसलिये चलागया गया क्योंकि उसने अफगानिस्तान में मुकीम एक बरतानवी फौजी के लिये ‘‘काबिले ऐतराज’’ बात कही। जज ने कहा की उसके कमेन्ट्स “ज़िल्लत आमेज़” और “भड़काऊ” है। इस तरह आजादीये राय एक बार फिर अहमद को नहीं बचा सकी और सरकारी वकील अहमद के मामले में आजादीये राय के हक को मलहूज नहीं रख सका। यह दोनो मिसाले साफ तौर पर ज़ाहिर करती है कि आज़ादीये राय मग़रिब के लिये एक आसान हथियार है जिसे वोह जब चाहता है अपने सियासी मक़ासिद को हासिल करने के लिये इस्तेमाल करता है।
यह बात बिल्कुल साफ है कि हर क़ौम के साथ कोई हस्सास पहलू (sensitivities) और लाल रेखाऐं होती है जहाँ पर हदों को लागू किया जाता है ताकि इस लाल रेखा से आगे न बड़ा जाए। अफसोस है इस बात पर की मग़रिब मुसलमानों को वोह बात सिखाता है जिसे वोह खुद अपने घर पर अमल नहीं करता।
ऐसे वाकियात पर मुस्लिम हुक्मरानों का रद्दे अमल
जब कभी भी इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ उनको बिला वजह इश्तेआल दिलाने का वाकिया पेश आता है तो यह तय शुदा बात है कि आम मुसलमानों और मुस्लिम देशों के हुक्मरानो के रद्दे अमल मे बहुत बड़ा फर्क पाया जाता है। चाहे यह हुक्मरान जम्हूरी (लोकतांत्रिक) हो या तानाशाही। जबकि मुसलमान बिना थके मुज़ाहिरे और अपने ग़म और गुस्से का इज़हार करते है उनके हुक्मरान रोज़ के मामले की तरह मग़रिबी लीडरों के साथ शराब और कबाब की महफिले गर्म करते रहते है।
इस हालिया मसले पर भी मुस्लिम दुनिया का कोई एक भी हुक्मरान ऐसा नहीं है जिसने इख्लास के साथ मुनासिब तरीके से अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) के खिलाफ जारहियत की लहर का मुकाबला करने के लिये केाई मुनासिब कदम उठाऐ हो। मिस्त्र के नए प्रेसिडेंट मुहम्मद मोरसी, जो की नाम-निहाद इस्लामी क्रांतिकारी हैं, ने इस फिल्म की कुछ अलफाज़ो मे तरदीद करके रस्म अदा कर दी है। उनके वज़ीरे आजम (प्रधानमंत्री) ने सिर्फ यह कह कर की ‘‘हमारे पैगम्बर की तौहीन हम गवारा नहीं कर सकते’’ पल्लू झाड़ लिया। हालांकि कोई मुस्बत कदम उठाना या अपने मुल्क के अमरीका से सिफारती ताल्लुकात तोड़ने बजाये उन्होने कहा की अमरीका और मिस्र के समबन्ध “एक ऐसा रिश्ता है जिसे हमे आपसी मफाद और एहतराम की बुनियाद पर और ज्यादा मज़बूत बनाना चाहिए’’. इस तरह के बयान इन हुक्मारानों की ज़ालिमाना फितरत पर रोशनी डालते है जिनका मौक़फ अपने साम्राज्यवादी (इस्तेमारी) आक़ाओ के मामले मे उनकी मुस्लिम रिआया से बिल्कुल मुख्तलिफ है जो ऐसी हरकतों के खिलाफ मुस्बत इक़दाम चाहते है। इसमें हैरत की बात नहीं है कि पूरी दुनिया के मुसलमान यह महसूस करते है की उनका राय की नुमाईन्दगी कोई भी नहीं करता।
हमारा रद्दे अमल
यह बात साफ हो गई है कि मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) की शख्सियत पर हमले करने के पीछे एक तारीखी पसमन्ज़र है और यह बात भी साफ हो गई है कि मग़रिब दोहरे पैमाने से काम लेता है अगर मामल उसकी खुद के अहसासात का हो। हमे इन हमलों के खिलाफ फिक्री (intellectual) रद्दे अमल देना चाहिए और इसके साथ मुन्दरजाबाला बातें ध्यान में रखनी चाहिए:
1. इस्लाम एक हतमी सच्चाई है और उसकी फिक्री क़ुव्वत सदियों से क़ायम रही है और हमेशा रहेगी। इंसानी अक्ल से बनाई गई क़दरे (मूल्य) बातिल (झूठ) पर मबनी है। इसलिये उनका खात्मा होना तय है। अल्लाह (سبحانه وتعالى) फरमाता है:
بَلْ نَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَى الْبَاطِلِ فَيَدْمَغُهُ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٌ ۚ وَلَكُمُ الْوَيْلُ مِمَّا تَصِفُونَ
‘‘हम बातिल के मुकाबले में हक लाते है ओर वोह उसे काट देता है बौर (बातिल) गायब हो जाता है .” (सूरह: अम्बिया 21:18)
2. हमें अपने दीन के मामले में समझौता (compromise) नहीं करना चाहिऐ, जैसे की अल्लाह سبحانه وتعالى हमे आगाह करता है:
وَدُّوا لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُوا فَتَكُونُونَ سَوَاءً
‘‘वोह यह चाहेंगे की तुम काफिर बन जाओ जैसे की वोह काफिर है, ताकि तुम बिल्कुल उनक तरह हो जाओ’’ (सूरहः निसा 4:89)
3. इस्लाम प्रोपर्टी की तबाही की इजाज़त नहीं देता, हमे इस्लाम की सच्चाई को मज़बूती से थामे रहना चाहिए और उसी आला कदरों (मूल्यों) और उसके पैग़ाम फरोग़ देना चाहिये. हालांकि हमारा तरीक़ेकार साफ, सटीक और इल्मी होना चाहिए। जैसा की अल्लाह سبحانه وتعالى ने हमें हुक्म दिया है:
ادْعُ إِلَىٰ سَبِيلِ رَبِّكَ بِالْحِكْمَةِ وَالْمَوْعِظَةِ الْحَسَنَةِ ۖ وَجَادِلْهُمْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ
“उन्हें अपने रब की तरफ हिकमत और अच्छी नसीहत के साथ बुलाओं और अहसन तरीक़े से बहस करो’’ (अल-नहल 16:125)
4. इस्लाम के खिलाफ, हमारे आक़ा (صلى الله عليه وسلم), आपके परिवर के लोग, आपके सहाबा (रज़ि.) और कुरआन के खिलाफ बुग्ज़ और किना से भरी बिला वजह की जारहियत काबिले बर्दाश्त नहीं है। जबकी मुसलमान संजीदा बहसो-मुबाहिसे के लिये हमेशा आमादा है। लेकिन बुग्ज़ो-किना रख कर हमले करना काबिले क़ुबूल नहीं है।
5. मग़रिब आजादी और जम्हूरियत के नाम पर लगातार मुस्लिम दुनिया में जंगे थोप रहा है। हमे उन सब काबिले नफरत उसूलों को तर्क कर देना चाहिए जो कि लोगों की हस्सासियात (sensitivities) पर हमला करने की इजाज़त देता है। हमे उन उसूलों को भी तर्क कर देना चाहिए जो दोगलेपन सिखाता है।
6. असली मुजरिम मुस्लिम हुक्मराना है जो कि अपने मगरिबी आकाओं के साथ मिलीभगत किये हुए है। इन हुक्मरानों ने अल्लाह, उसके रसूल (صلى الله عليه وسلم) को दसयों साल पहले बेच दिया था और इनकी कोई मर्ज़ी नहीं हैं कि इस्लाम को थामे रखे। इसके अलावा यह मुस्लिम अवाम के जज़बात मे हिस्सेदार नहीं हैं बल्कि मगरिबी सरमायदारों और उनके आला तबक़ो की नुमाईन्दगी करते है।
7. जब तक मुस्लिम दुनिया में इंसान के बनाऐ हुए निज़ाम हावी है चाहे वोह ‘‘इस्लामी जम्हूरियत’’ हो या ‘‘सेक्यूलर तानाशाही’’ हो, अल्लाह और उसके रसूल صلى الله عليه وسلم की हिफ़जात और इस्लाम और मुसलमानों की जान व माल ऐसे ही पामाल होती रहेगी।
8. यह सिर्फ मुस्लिम इस्लामी क़यादत, जो सिर्फ खिलाफत में पाई जाती है, वही इस्लाम और मुसलमानों की हिफाजत करेगी और लगातार होने वाले फौजी हमलों और तहज़ीबी जारहियत का जवाब दे सकेगी। इस मक़सद के लिये हमें काम करना चाहिये ओर मुस्लिम दुनिया में खिलाफत को दोबारा क़ायम करना चाहिए।
अभी हाल ही मे मुसलमानों को बेवजह दोबरा भड़काने कोशिश की गई और अल्लाह के रसूल, मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के किरदार पर हमला किया गया जिन्हे मुस्लिम अपनी जान से अज़ीज़ समझते है। मुसलमानों की तरफ से भी वही रद्दे अमल आया जिसकी तवक़्क़ो की जाती है। यानी शदीद गुस्सा, नफरत और झुंझलाहट. इन्डोनेशिया से लेकर बंग्लादेश तक, शिमाली अफ्रीक़ा से मश्रिके वस्ता तक मुसलमानों ने इसके खिलाफ मुज़ाहिरे किये जिसमें मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) की शख्सियत को बहुत बद-मज़ाही के साथ पेश किया गया है। फिल्म Innocence of Muslims बुनियादी तौर पर इस्लाम को तशदुद और नफरत का दीन और पैगम्बर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) को जिन्सी तौर पर गुमराह, खून का प्यास और ताक़त का भूखे शख्स (नऊज़ो बिल्लाह) के तौर पर पेश किया गया है। इसके खदीजा (रजि.) की भी बेईज़्ज़ती की गई है और मज़ीद हजरत मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के सहाबाऐ इकराम को क़ातिल, दौलत के भूखे और बच्चे और औरतों का क़त्ल करने वाले किरदार की लोगों की हैसियत मे पेश किया गया है. पैगम्बर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) और उनके सहाबा (रज़ि.) के किरदार को इतने घिनौने अन्दाज से पेश करने पर कई गैर-मुस्लिम ने भी शदीद गुस्से का इज़हार किया और उन्होने इस फिल्म की सख्ती से मज़म्मत की।
अलमिया यह है की कुछ मुठ्ठी भर मुसलमान ऐसे भी है जिन्होने, अपने निजी स्वार्थ और अपने आकाओं के तल्लुत के असर मे, उन मुसलमानों की तरदीद की जिन्होने इस फिल्म के खिलाफ मुज़ाहिरे किये. इसी तरह का एक कमेंट कहता है, “हम ग़ैर-मुस्लिमों से यह कैसे उम्मीद कर सकते है को वोह इस बात पर यक़ीन करे की इस्लाम तशद्दुद का मज़हब नहीं है जबकि मुस्लिम आवाम (इस वाकिये को लेकर) हमलों के लिये इकठ्ठी हो रही है, यह तो हम सब, और मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) को झुटा बनाना है”. इस तरह के खुद से नफरत करने वाले मुस्लिम असली मसले को तो मुखातिक नही करते बल्कि उलटा मज़लूम के खिलाफ तनकीदे शुरू कर देते है.
यह मज़मून इस्लाम और उससे जुड़े हस्सासी मुआमलात पर इस तरह बिला वजह के हमलों के पीछे हक़ीक़ी नियत का पता लगाऐगा। यह मज़मून मगरीबी तहज़ीबी जारहियत को तारीखी पसमंजर में रख कर इसकी जांच करेगा और यह बताएगा की कैसे इस इस्लामोफोबिया ने इक्कीसवी सदी में तरक़्क़ी की. आखिर में यह अमली इक़दाम की निशानदेही करेगा जो इस तरह के इश्तेआल के वक्त मुसलमानों के लेने होते है।
दहशतगर्दि के खिलाफ जंग (यानी इस्लाम के खिलाफ जंग)
इस फिल्म को मग़रिब की इस्लाम के खलाफ जंग के पसमंजर से अलग कर के नहीं देखना चाहिए। यह जंग पिछली कुछ दहाईयों पूरी दुनिया मे अलग-अलग तरह से जाहिर हुई है। जैसे फौजी चढाई; इराक और अफग़ानिस्तान पर, ऐजेंटो के ज़रिये जंग (proxy war); सोमालिया और सुडान मे, अपने कूटनीति (diplomatic या सिफारती) और आर्थिक अत्याचार; ईरान के खिलाफ, इल्मि और तहज़ीबी जारहियत (अत्याचार) जैसे की मग़रिबी मुमालिक के खुद अपनी (मुस्लिम) रिआया के साथ.
मग़रिब का इस्लाम के खिलाफ हमलों की तारीख 9/11 से शुरू नहीं हुई है। यह फिक्री और तहज़ीबी जारहियत पिछली दहाई में तेज हुई है, और मग़रिब की इस्लाम के खिलाफ तास्सुब ज्यादा खुलकर सामने आने लगा है। अब तो इस्लाम पर हमला करने वालों के दर्मिया मुकाबला होने लगा है की कौन ज्यादा जुर्रत दिखाने का खिताब जीत ले जायेगा और कौन इस्लाम के खिलाफ नफरत फैलने के मामले में नई तरकीबे ईजाद करने में जुनूनी है।
इसकी हाल ही की कुछ मिसाले जैसे पैगम्बर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के डेनमार्क से सन 2006 में कार्टून छापे गये, फिर 2010 में फ्लोरिडा में एक इसाई पादरी, टेरी जोन्स ने 9/11 की नवीं बरसी को क़ुरआन की कापिया जलाने का ऐलान किया और फरवरी 2012 अमरीका सैनिकों ने अफगानिस्तान की बगराम की जेल में कुरआन की 315 कापिया जलाई जिसमें दूसरी दीनी किताबें भी थी। इन सब वाकियात में सारी दुनिया के मुसलमानों को शदीद गुस्से में मुबतिला कर दिया।
मग़रिब की सरपरस्ती मे इस्लाम की किरदारकशी
जब से फिल्म ‘इनोसेन्स ऑफ मुस्लिम’ (Innocence of Muslims) जारी हुई है अमरीकी सियासदनों ने कुछ ऐसे ईशारे किये है जैसे कि वोह मफरूज़ा तौर पर वोह फिल्म बनाने वाले की तरदीद कर रहे हो। हेलेरी क्लिनटन, सेक्रेटीह ऑफ स्टेट ने इस फिल्म की, जिसने बहुत सारे मुज़ाहिरी को उकसाया, तरदीद करते हुए इसे काबिले नफरत क़रार दिया। जैसे की अमरीका मुसलमानों पर अहसान कर रहा हो, और व्हाईट हाउस ने सिर्फ यू-ट्यूब को यह विचार करने को कहा कि क्या यह विडियो उसके नीजी उसूलों को नहीं तोडती. लेकिन गुगल जो की यू-ट्यूब का मालिक है, ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि यह वीडियो पूरे तौर पर “हमारी गाईडलाईन्स” के दायरे में आता है और इसलिये यह यू-ट्यूब पर मौजूद रहेगी। मुसलमान इस तरह के खोखले बयानों को बेमआनी (अर्थहीन) मानते है। खास तौर से जब वोह मग़रिब की इस्लाम के खिलाफ जारहियत का इतिहास देखते है।
मगरिबी रियासते इन जैसे वाकियात की सीधे तौर पर सरपरसी करती हो या नही करती हो लेकिन मगरिबी अफराद या जमातें की तरफ से ऐसा इश्तियाल अंगेज़ी (provocation) उनकी अपनी नीजी करस्तानी होना तो बहुत दूर की बात है (यानी नीजी कारस्तानी नहीं हो सकती). साफ तौर पर ऐसे जारिहत पसन्द लोगो को पूर मदद, पुश्तपनाही और फिक्री हौसला अफजाई मिलती है ताकि वोह ऐसे इश्तियाल आमेज़ आमाल को अंजाम दे सके।
मुसलमानों को इस बात पर शक नही है की इस्लाम और मुसलमानों की किरदारकशी की नियत से फैलाई गई नफरत और प्रोपगंडे के साये मे पलने वाले इन ज़ालिम की सीधे तौर पर या बिला वास्ता सरपरस्ती मग़रिब ही कर रहा है. अल्लाह (سبحانه وتعالى) का फरमान है:
قَدْ بَدَتِ الْبَغْضَاءُ مِنْ أَفْوَاهِهِمْ وَمَا تُخْفِي صُدُورُهُمْ أَكْبَرُ
“नफरत उनकी ज़बानों से ज़ाहिर हो चुकी है, लेकिन जो कुछ वोह अपने सीनों मे छुपाते है वोह उससे कहीं बदतर है”
पश्चिम का इतिहास: इस्लाम के खिलाफ तास्सुब और तज़लील के पस मंज़र मे
मग़रिब (पश्चिम) की तारीख (इतिहास) पर एक सरसरी निगाह डालने से पता चलता है की मग़रिब ने इस्लाम के खिलाफ नफरता की तश्हीर (propaganda) सदियों से करता आ रहा है. हालांकि ऐतिहासिक तौर पर बरतानवी और फ्रांसिसी इस्तेमार हमेशा इस्लाम के खिलाफ हमलों की अगुवाइ करते थे, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद से इस ऐजेंडे को अमरीका ने इख्तियार कर लिया और आज अमरीका इस्लाम के साथ बिल्कुल वैसा ही मामला कर रहा है जैसा की उसके पहले गुज़रने वालो इस्तेमारी देशो ने किया.
आज इस्लाम और मग़रिब के मुक़ाबले मे जितनी भी गुफ्तगू कि जाती है, उसको आकार देने मे मुस्तशर्रिक़ीन (orientalists) की रिवायतों ने बहुत बडा किरदार अदा किया है. प्रोफेसर एडवर्ड सईद (Edward Said) ने अपनी कुछ मश्हूर किताबों मे मग़रिब की मश्रिक़ और खास तौर से इस्लाम के खिलाफ गहरी नफरत का तजज़िया किया है. यह मुस्तशर्रिक़ रिवायत इस्लाम की तुलना जंगली और क़दीम जाहिलाना तहज़ीब से करती है, जिसे निचा दिखाना और क़ाबू मे रखने की ज़रूरत है. “ओरिएंटलिज़्म खुद कुछ सियासी ताक़तों और अवामिल एक नतीजा है. ओरिएंटलिज़्म (पूरब के मामले मे) तफसीर का मक्तबऐ फिक्र है जिसका मौज़अ (विषय) ओरिएन्ट (मश्रिक या the East), उसकी तहज़ीब, उसके लोग और इलाक़े है” [Edward Said, Orientalism, 2003, Penguin Books, p-203]
इस्लाम को ज़लील करने के पीछे वजह मग़रिब की सरमायादाराना (capitalist) बालादस्ती को इस्लामी का खौफनाक अन्दाज़ मे चेलेंज देना और इस्लाम की ग़ैर-इसाई बुनायाद होना है. इसलिये मग़रिब इस बात से खुश है की वोह इस्लाम को गद्दार (villain) के तौर पर पेश करे. मुस्तशर्रिक़ीन की फिक्री गुफ्तगू के बारे मे, “यह कहना सही है की हर यूरोपीय शहरी, जो कुछ भी ओरियंट (मश्रिक़ या पूरब) के बारे मे कहता है वोह नसलपरस्ती, साम्राज्यवादी ज़हनियत और अपनी नस्लो का दूसरी नस्लो से तुलना करने पर मबनी है”. [Said, Orientalism, p-204]
अब तक मग़रिब को जो तश्वीश (चिन्ता) रही है वह यह है कि मशरिक और मुस्लिम दुनिया जहालत, पिछड़ापन और जंगलीपन के मरकज़ है। गौरे आदमी की यह जिम्मेदारी भी है और मिशन भी की वोह ऐसे लोग को तहज़ीबयाफ्ता बनाऐ.
“चूंकी ओरिएंटल (पूरब निवासी) एक मग़लूब नस्ल की रिआया है, इसलिये उसको मग़लूब बनाया जाय: यह बात बहुत आसान है”. [Said, Orientalism, p-207]
मग़रिब तालीमी और फिक्री गुफ्तगू में, इस बात पर ईजमा है कि मशिरक (पूरब) के बारे में खास तरह के जानिबदारान (भेदभाव पर मबनी) राय, बयान और कमेन्ट्स सही और काबिले कुबूल है। जैसा की सईद कहते है ‘‘कुरूने वस्ता (मध्यकालीन युग) के ज्यादातर हिस्से में और यूरोप की निशाते सानिया (पुनर्जागरन) के इब्तिदाई दौर में इस्लाम को एक शैतानी मुर्तदो का मजहब, नाक़बिले फहम और कुफ्र (blasphemy) माना जाता रहा है............... मुहम्मद एक झूठे पैगम्बर थे, झगडों के बीज़ बौने वाले, नफ्स परस्त, एक मुनाफिक, शैतान के एजेन्ट (नाऊजू बिल्लाह) [Edward Said, Covering Islam, 1997, Vintage, p-5]
मग़रिब को इस्लाम का चेलेन्ज मतलब है कि मग़रिब इस्लाम और उसके पैग़ाम को समझने की बजाऐ, लगातार उसको शैतानी बताए। “जहां तक मशरिक़ की दूसरी तहज़ीबों का ताल्लुक़ है, इण्डिया और चीन को हारा हुआ और दूर का माना जा सकता है। इसलिये उनके मामले में मुस्तक़िल तशवीश (चिंता) की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ इस्लाम ने ही मग़रिब के सामने पूरी तरह से अपने आप को सुपुर्द नहीं किया है। [Said, Covering Islam, p-5]
ऐसे तसव्वुरात और उसके साथ-साथ मग़रिब का लगातार बाहरी खतरात को तलाश करना, इस्लाम को सबसे बड़ा दुश्मन बना देता है। गुज़िश्ता दहाई से मग़रिब सामाजिक, सियासी और आर्थिक बोहरान (crises) से मुकाबला कर रहा है। जिसकी मिसाल मौजूदा आर्थिक गिरावट है। प्रोफेसर नोम चामेस्की (Noam Chomsky) दावा करते है कि ऐसी घरेलू आफतों से दोचार होने की सूरत में ‘‘तुम इन भोचक्की भेड़ों का ध्यान बांटना चाहते हो, क्योंकि अगर उन्होंने इस बात को समझना शुरू कर दिया तो यह बात उन्हें पसन्द नहीं आयेगी। क्योंकि यह वही (लोग) है जो इसका नुकसान भुगत रहे है। उनको सिर्फ अमरीकी फुटबाल और मज़ाहिया ड्रामे दिखाना ही काफी नहीं है। पिछले दस सालों में हर एक या दो साल के अन्दर कोई बडा राक्षस को पैदा किया किया जाता है। जिससे हमे अपने आप को बचाना होता है। और ऐसा कोई न कोई होता है जो हमेशा तैयार रहता है। [Noam Chomsky, Media Control, 2002, Seven Stories Press, p-43]
इसलिये मग़रिब के जारिये इस्लाम के किरदार कशी और ज़िल्लत को देखने वालो को इस तारीखी पसमंजर को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए ताकि वोह यह समझ सके की मग़रिब इस्लाम के क्यों बदनाम करता है। मग़रिब इस्लाम के साथ फिक्री (intellectual) मुकाबला नहीं कर सकता इसलिये वोह इस्लाम के खिलाफ बोहतान तराशी और किरदारकशी से काम लेते है। इस्लाम को डेमोनाईज (शैतानीकरण) करके मग़रिब अपनी सदियों पुरानी दुश्मनी को बाकी रखता है। जबकि वोह अपने निज़ाम की नाकामयाबी और घरेलू मसाईल के दुखों से लोगों की तवज्जोह हटाने की कोशिश करता है।
बोलने या वक्तव्य की आज़ादी: दोगलेपन की जानी पहचानी कहानी
आज़ादिये राय के मंत्र को बार-बार दोहराने के पीछे मकसद यह समझमे आता है की मग़रिब हर उस चीज की बेइज़्ज़ती कर सकता है और बुरा भरा कह सकता है जिससे दूसरे लोग अज़ीज़ रखते है। जिस तरह से लिबरल (आज़ाद खयाल लोग) इस बात के आदी हो चुके है कि वोह किसी भी ईसाई मजहब की अलमतो और अल्फाज़ों का मज़ाक़ उड़ाते है जिसे इसाई लोग आज खामोशी से बर्दाश्त करते है उसी तरह ऐसे शिद्दत पसंद सेक्यूलरिस्ट (कट्टर धर्मनिर्पेक्षेवादी) मुसलमानों से भी इसी तरह की उम्मीद रखते है जब वोह इस्लाम को बुरा भला कहते है। हालांकि अगर मग़रिब की अपनी खुद की हस्सासियात (sensitivities) का मामला होता है तो वोह इस पैगाम को अपने उपर ठीक उसी तरह से लागू नहीं करता । मिसाल के तौर पर हाल ही मे होने वाले दो घटनाओं का जायज़ लेते है:-
केट मिडिलटन, केम्ब्रिज के डच (नवाब) की बीवी, की जब बरहना तस्वीर यूरोप की कई मेगज़ीनों और अखबारों में छपी तो बरतानिया के शाही खानदान के इसके खिलाफ बड़ा सख्त रवय्या ईख्तियार किया और छापने वालों की तरदीद करते हुये उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने की धमकी दी। ऐसे मौको पर आज़ादीये राय का उसूल हवा में उड़ जाता है। इसमें कोई शक नहीं की उन तस्वीरों को छापने वालो को जल्दी ही अदालत में घसीटा जायेगा।
एक दूसरा वाकया देखिये जिस की रिपोर्ट बीबीसी में शाया हुई की वेस्ट यार्कशायर का रहने वाला एक मुस्लिम नाबालिग (teenager) अज़हर अहमद पर मुकदमा इसलिये चलागया गया क्योंकि उसने अफगानिस्तान में मुकीम एक बरतानवी फौजी के लिये ‘‘काबिले ऐतराज’’ बात कही। जज ने कहा की उसके कमेन्ट्स “ज़िल्लत आमेज़” और “भड़काऊ” है। इस तरह आजादीये राय एक बार फिर अहमद को नहीं बचा सकी और सरकारी वकील अहमद के मामले में आजादीये राय के हक को मलहूज नहीं रख सका। यह दोनो मिसाले साफ तौर पर ज़ाहिर करती है कि आज़ादीये राय मग़रिब के लिये एक आसान हथियार है जिसे वोह जब चाहता है अपने सियासी मक़ासिद को हासिल करने के लिये इस्तेमाल करता है।
यह बात बिल्कुल साफ है कि हर क़ौम के साथ कोई हस्सास पहलू (sensitivities) और लाल रेखाऐं होती है जहाँ पर हदों को लागू किया जाता है ताकि इस लाल रेखा से आगे न बड़ा जाए। अफसोस है इस बात पर की मग़रिब मुसलमानों को वोह बात सिखाता है जिसे वोह खुद अपने घर पर अमल नहीं करता।
ऐसे वाकियात पर मुस्लिम हुक्मरानों का रद्दे अमल
जब कभी भी इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ उनको बिला वजह इश्तेआल दिलाने का वाकिया पेश आता है तो यह तय शुदा बात है कि आम मुसलमानों और मुस्लिम देशों के हुक्मरानो के रद्दे अमल मे बहुत बड़ा फर्क पाया जाता है। चाहे यह हुक्मरान जम्हूरी (लोकतांत्रिक) हो या तानाशाही। जबकि मुसलमान बिना थके मुज़ाहिरे और अपने ग़म और गुस्से का इज़हार करते है उनके हुक्मरान रोज़ के मामले की तरह मग़रिबी लीडरों के साथ शराब और कबाब की महफिले गर्म करते रहते है।
इस हालिया मसले पर भी मुस्लिम दुनिया का कोई एक भी हुक्मरान ऐसा नहीं है जिसने इख्लास के साथ मुनासिब तरीके से अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) के खिलाफ जारहियत की लहर का मुकाबला करने के लिये केाई मुनासिब कदम उठाऐ हो। मिस्त्र के नए प्रेसिडेंट मुहम्मद मोरसी, जो की नाम-निहाद इस्लामी क्रांतिकारी हैं, ने इस फिल्म की कुछ अलफाज़ो मे तरदीद करके रस्म अदा कर दी है। उनके वज़ीरे आजम (प्रधानमंत्री) ने सिर्फ यह कह कर की ‘‘हमारे पैगम्बर की तौहीन हम गवारा नहीं कर सकते’’ पल्लू झाड़ लिया। हालांकि कोई मुस्बत कदम उठाना या अपने मुल्क के अमरीका से सिफारती ताल्लुकात तोड़ने बजाये उन्होने कहा की अमरीका और मिस्र के समबन्ध “एक ऐसा रिश्ता है जिसे हमे आपसी मफाद और एहतराम की बुनियाद पर और ज्यादा मज़बूत बनाना चाहिए’’. इस तरह के बयान इन हुक्मारानों की ज़ालिमाना फितरत पर रोशनी डालते है जिनका मौक़फ अपने साम्राज्यवादी (इस्तेमारी) आक़ाओ के मामले मे उनकी मुस्लिम रिआया से बिल्कुल मुख्तलिफ है जो ऐसी हरकतों के खिलाफ मुस्बत इक़दाम चाहते है। इसमें हैरत की बात नहीं है कि पूरी दुनिया के मुसलमान यह महसूस करते है की उनका राय की नुमाईन्दगी कोई भी नहीं करता।
हमारा रद्दे अमल
यह बात साफ हो गई है कि मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) की शख्सियत पर हमले करने के पीछे एक तारीखी पसमन्ज़र है और यह बात भी साफ हो गई है कि मग़रिब दोहरे पैमाने से काम लेता है अगर मामल उसकी खुद के अहसासात का हो। हमे इन हमलों के खिलाफ फिक्री (intellectual) रद्दे अमल देना चाहिए और इसके साथ मुन्दरजाबाला बातें ध्यान में रखनी चाहिए:
1. इस्लाम एक हतमी सच्चाई है और उसकी फिक्री क़ुव्वत सदियों से क़ायम रही है और हमेशा रहेगी। इंसानी अक्ल से बनाई गई क़दरे (मूल्य) बातिल (झूठ) पर मबनी है। इसलिये उनका खात्मा होना तय है। अल्लाह (سبحانه وتعالى) फरमाता है:
بَلْ نَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَى الْبَاطِلِ فَيَدْمَغُهُ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٌ ۚ وَلَكُمُ الْوَيْلُ مِمَّا تَصِفُونَ
‘‘हम बातिल के मुकाबले में हक लाते है ओर वोह उसे काट देता है बौर (बातिल) गायब हो जाता है .” (सूरह: अम्बिया 21:18)
2. हमें अपने दीन के मामले में समझौता (compromise) नहीं करना चाहिऐ, जैसे की अल्लाह سبحانه وتعالى हमे आगाह करता है:
وَدُّوا لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُوا فَتَكُونُونَ سَوَاءً
‘‘वोह यह चाहेंगे की तुम काफिर बन जाओ जैसे की वोह काफिर है, ताकि तुम बिल्कुल उनक तरह हो जाओ’’ (सूरहः निसा 4:89)
3. इस्लाम प्रोपर्टी की तबाही की इजाज़त नहीं देता, हमे इस्लाम की सच्चाई को मज़बूती से थामे रहना चाहिए और उसी आला कदरों (मूल्यों) और उसके पैग़ाम फरोग़ देना चाहिये. हालांकि हमारा तरीक़ेकार साफ, सटीक और इल्मी होना चाहिए। जैसा की अल्लाह سبحانه وتعالى ने हमें हुक्म दिया है:
ادْعُ إِلَىٰ سَبِيلِ رَبِّكَ بِالْحِكْمَةِ وَالْمَوْعِظَةِ الْحَسَنَةِ ۖ وَجَادِلْهُمْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ
“उन्हें अपने रब की तरफ हिकमत और अच्छी नसीहत के साथ बुलाओं और अहसन तरीक़े से बहस करो’’ (अल-नहल 16:125)
4. इस्लाम के खिलाफ, हमारे आक़ा (صلى الله عليه وسلم), आपके परिवर के लोग, आपके सहाबा (रज़ि.) और कुरआन के खिलाफ बुग्ज़ और किना से भरी बिला वजह की जारहियत काबिले बर्दाश्त नहीं है। जबकी मुसलमान संजीदा बहसो-मुबाहिसे के लिये हमेशा आमादा है। लेकिन बुग्ज़ो-किना रख कर हमले करना काबिले क़ुबूल नहीं है।
5. मग़रिब आजादी और जम्हूरियत के नाम पर लगातार मुस्लिम दुनिया में जंगे थोप रहा है। हमे उन सब काबिले नफरत उसूलों को तर्क कर देना चाहिए जो कि लोगों की हस्सासियात (sensitivities) पर हमला करने की इजाज़त देता है। हमे उन उसूलों को भी तर्क कर देना चाहिए जो दोगलेपन सिखाता है।
6. असली मुजरिम मुस्लिम हुक्मराना है जो कि अपने मगरिबी आकाओं के साथ मिलीभगत किये हुए है। इन हुक्मरानों ने अल्लाह, उसके रसूल (صلى الله عليه وسلم) को दसयों साल पहले बेच दिया था और इनकी कोई मर्ज़ी नहीं हैं कि इस्लाम को थामे रखे। इसके अलावा यह मुस्लिम अवाम के जज़बात मे हिस्सेदार नहीं हैं बल्कि मगरिबी सरमायदारों और उनके आला तबक़ो की नुमाईन्दगी करते है।
7. जब तक मुस्लिम दुनिया में इंसान के बनाऐ हुए निज़ाम हावी है चाहे वोह ‘‘इस्लामी जम्हूरियत’’ हो या ‘‘सेक्यूलर तानाशाही’’ हो, अल्लाह और उसके रसूल صلى الله عليه وسلم की हिफ़जात और इस्लाम और मुसलमानों की जान व माल ऐसे ही पामाल होती रहेगी।
8. यह सिर्फ मुस्लिम इस्लामी क़यादत, जो सिर्फ खिलाफत में पाई जाती है, वही इस्लाम और मुसलमानों की हिफाजत करेगी और लगातार होने वाले फौजी हमलों और तहज़ीबी जारहियत का जवाब दे सकेगी। इस मक़सद के लिये हमें काम करना चाहिये ओर मुस्लिम दुनिया में खिलाफत को दोबारा क़ायम करना चाहिए।
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