शरीअ़त का फ़ौरी इल्तिज़ाम

शरीअ़त का फ़ौरी इल्तिज़ाम
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
وَ سَارِعُوْۤا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَ جَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَ الْاَرْضُ١ۙ اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِيْنَۙ۰۰۱۳۳
दौड़ कर चलो इस राह पर जो तुम्हारे रब की बख़्शिश और इस जन्नत की तरफ़ जाती है जिसकी वुस्अ़त ज़मीन-ओ-आसमान जैसी है और वो अल्लाह से डरने वालों के लिए मुहय्या की गई है। (तर्जुमा नी-ए-क़ुरआन-ए-करीम( सूरा आल इमरान( आयत(133)
एक दूसरे मुक़ाम पर अल्लाह तआला फ़रमाता है।
اِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِيْنَ اِذَا دُعُوْۤا اِلَى اللّٰهِ وَ رَسُوْلِهٖ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ اَنْ يَّقُوْلُوْا سَمِعْنَا وَ اَطَعْنَا١ؕ وَ اُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ۰۰۵۱ وَ مَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَ رَسُوْلَهٗ وَ يَخْشَ اللّٰهَ وَ يَتَّقْهِ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفَآىِٕزُوْنَ۠۰۰۵۲
ईमान लाने वालों का काम तो ये है के जब अल्लाह और रसूल की तरफ़ बुलाए जाऐं ताके रसूल उनके मुकद्दिमे का फ़ैसला करें तो वो कहें हम ने सुना और इताअ़त की। एैसे ही लोग फ़लाह पाने वाले हैं और कामयाब वही हैं जो अल्लाह और रसूल की फ़र्मांबरदारी करें और अल्लाह से डरते रहें और इस की नाफ़रमानी से बचें। ;तर्जुमा मआनी ए क़ुरआन ए करीम( नूर( आयत(51,52)]
एक दूसरे मक़ाम पर मोमिन मर्द और मोमिन अ़ौरत की सिफ़ात को यूँ बयान किया गया है।
وَ مَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَّ لَا مُؤْمِنَةٍ اِذَا قَضَى اللّٰهُ وَ رَسُوْلُهٗۤ اَمْرًا اَنْ يَّكُوْنَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ اَمْرِهِمْ١ؕ وَ مَنْ يَّعْصِ اللّٰهَ وَ رَسُوْلَهٗ فَقَدْ ضَلَّ ضَلٰلًا مُّبِيْنًاؕ۰۰۳۶
किसी मोमिन मर्द और किसी मोमिन अ़ौरत को ये हक़ नहीं है के जब अल्लाह और उसके रसूल किसी मुआमला का फ़ैसला कर दें तो फिर उसे अपने इस मुआमले मैं ख़ुद फ़ैसला करने का इख़्तियार हासिल रहे और जो कोई अल्लाह और इसके रसूल की नाफ़रमानी करेगा तो वो सरीह गुमराही में पड़ गया। (तर्जुमा मआनी-ए-कु़रआन) अहज़ाब(36)]
क़ुरआन में अल्लाह तआला मज़ीद फ़रमाता है।
فَلَا وَ رَبِّكَ لَا يُؤْمِنُوْنَ حَتّٰى يُحَكِّمُوْكَ فِيْمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوْا فِيْۤ اَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَ يُسَلِّمُوْا تَسْلِيْمًا۰۰۶۵
हरगिज़ नहीं, ऐ मुहम्मद ! तुम्हारे रब की क़सम ये कभी मोमिन नहीं हो सकते जब तक के अपने बाहमी इख़्तिलाफ़ात में तुम को ये फ़ैसला करने वाला ना मान लें, फिर जो कुछ तुम फ़ैसला करो इस पर अपने दिलों में कोई तंगी ना महसूस करें बल्के सरे तस्लीम ख़म कर दें। (तर्जुमा नी-ए-क़ुरआन निसा(65)
يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِيْكُمْ نَارًا وَّ قُوْدُهَا النَّاسُ وَ الْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلٰٓىِٕكَةٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَّا يَعْصُوْنَ اللّٰهَ مَاۤ اَمَرَهُمْ وَ يَفْعَلُوْنَ مَا يُؤْمَرُوْنَ۰۰۶
ऐ लोगो जो ईमान लाए! बचाओ अपने को और अपने एहल-ओ-अ़याल को इस आग से जिसका ईंधन इंसान और पत्थर होंगे जिस पर निहायत तुंद ख़ू और सख़्त गीर फ़रिश्ते मुक़र्रर होंगे जो कभी अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म भी उन्हें दिया जाता है उसे बजा लाते हैं। (तर्जुमा नी-ए-क़ुरआन तहरीम(06)]
فَاِمَّا يَاْتِيَنَّكُمْ مِّنِّيْ هُدًى١ۙ۬ فَمَنِ اتَّبَعَ هُدَايَ فَلَا يَضِلُّ وَ لَا يَشْقٰى۰۰۱۲۳ وَ مَنْ اَعْرَضَ عَنْ ذِكْرِيْ فَاِنَّ لَهٗ مَعِيْشَةً ضَنْكًا وَّ نَحْشُرُهٗ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ اَعْمٰى ۰۰۱۲۴ قَالَ رَبِّ لِمَ حَشَرْتَنِيْۤ اَعْمٰى وَ قَدْ كُنْتُ بَصِيْرًا۰۰۱۲۵ قَالَ كَذٰلِكَ اَتَتْكَ اٰيٰتُنَا فَنَسِيْتَهَا١ۚ وَ كَذٰلِكَ الْيَوْمَ تُنْسٰى۰۰۱۲۶
अगर मेरी तरफ़ से तुम्हें कोई हिदायत पहुंचे तो जो कोई मेरी इस हिदायत की पैरवी करेगा वो ना भटकेगा, और ना ही बदबख़्ती में मुब्तिला होगा और जो मेरे ज़िक्र (यानी दर्स ए नसीहत) से मुंह माड़ेगा इसके लिए दुनिया की ज़िंदगी तंग होगी और क़ियामत के रोज़ उसे हम अंधा उठाएंगे। वो कहेगा ऐ मेरे रब! दुनिया में तो मैं आँखों वाला था, यहाँ मुझे अंधा क्यों उठाया? अल्लाह तआला फ़रमाएगाः जब हमारी आयात तुम्हारे पास आई थीं तो तुमने इनको भुला दिया था। इसी तरह आज तुमको भी भुला दिया जा रहा है।  (तर्जुमा मनी आए क़ुरआन ए करीमः सूरा ताहाः 123 126)
मुस्लिम शरीफ़़ में हज़रत अबू हुरैरा इ से रिवायत है के अल्लाह के रसूल  ने फ़रमाया:
بَادِرُوا بِالأَعْمَالِ فِتَنًا كَقِطَعِ اللَّيْلِ الْمُظْلِمِ يُصْبِحُ الرَّجُلُ مُؤْمِنًا وَيُمْسِى كَافِرًا أَوْ يُمْسِى مُؤْمِنًا وَيُصْبِحُ كَافِرًا يَبِيعُ دِينَهُ بِعَرَضٍ مِنَ الدُّنْيَا क्ष्صحیح مسلم، ترمذی، مسند احمد द्व
नेकी के कामों को करने में जल्दी करो, उन फ़ित्नों से पेहले जो सख़्त तारीक रात के हिस्सों के मानिंद होंगे, आदमी ईमान की हालत में सुबह करेगा तो शाम कुफ्ऱ़ की हालत में होगी दुनिया की चीज़ों के लिए वो अपने दीन का सौदा करेगा।
जो लोग मग़्फ़िरत ए इलाही के हुसूल के लिए सरगरदाँ हैं और जन्नत की तलब और नेकी के आमाल  करने में सबक़त करते हैं, एैसे लोग नबी आख़िर-ऊज़-ज़मां के ज़माने में भी पाऐ जाते रहे हैं और बाद के अद्वार में भी मिलते हैं, उम्मत में एैसे लोग हर ज़माने में पैदा होते रहे हैं जो अपने रब की आवाज़ पर लब्बैक कहते हैं और अपने रब की रज़ा और ख़ुशनूदी के लिए अपनी जानों तक का सौदा कर लेते हैं।
चुनांचे सही बुख़ारी शरीफ़़ और सही मुस्लिम शरीफ़़ में हज़रत जाबिर इ की एक हदीस है, वो फ़रमाते हैं(
उहद के दिन एक शख़्स ने खजूरें खाते हुए रसूल अल्लाह  से दरयाफ़्त किया के:  अगर मैं क़त्ल कर दिया जाऊं तो आप मुझे कहाँ देखते हैं? आपने फ़रमाया: जन्नत में, ये सुन कर उस शख़्स ने अपनी खजूरें फेंक दीं और शरीके जिहाद हो कर जामे शहादत नोश कर गया।
सही मुस्लिम में हज़रत अनस इ से हदीस रिवायत हैः
रसूल अल्लाह  और सहाबा किराम जंगे बदर के लिए निकले और मुक़ाम बदर में मुशरिकीन से पेहले पहूंच गए फिर मुशरिकीने मक्का पहुंचे, रसूल अल्लाह  ने फ़रमाया: उस जन्नत के लिए तैय्यार हो जाओ जिसकी वुसअ़त ज़मीन-ओ-आसमान जैसी है। हज़रत उ़मैर बिन हमाम अल अनसारी फ़रमाते है: या रसूल अल्लाह! क्या वाक़ई एैसी जन्नत है जिसकी वुसअ़त ज़मीन-ओ-आसमान के बराबर है? आप  ने फ़रमाया हाँ, हज़रत उ़मैर ने ये सुन कर कहा( वाह! क्या बात है। आपने दरयाफ़्त किया के:  आख़िर तुम ने एैसा क्यों कहा? तो उन्होंने जवाब दिया के:  ऐ अल्लाह के रसूल( ख़ुदा की क़सम एैसी कोई बात नहीं बल्के में सिर्फ़ ये चाहता हूँ के में भी उन लोगों में से हूँ जिन के लिए ये तैय्यार की गई है। आप ने फ़रमाया: तुम उन लोगों में से हो। इसके बाद हज़रत उ़मैर ने अपनी खजूर निकालीं और खाने लगे। फिर उन्होंने कहा के अगर में इसी तरह जितनी देर खजूरें खाता रहा तो इतनी देर तक ज़िंदा रहूँगा और मेरी जिंदगी उतनी ही लंबी होगी। रावी का कहना है के उन्होंने अपनी खजूरें फेंक दीं और जंग में शरीक हो कर जामे शहादत नोश फ़रमाया।
हज़रत अनस इ से मरवी एक मुत्तफ़िक़ अ़लैह हदीस हैः
हज़रत अनस फ़रमाते हैं के मेरे चचा हज़रत अनस बिन नदर जंगे बदर में शरीक ना हो सके, तो उन्होंने कहा( या रसूल अल्लाह! मैं मुशरिकीन के साथ हुई पेहली जंग में हाजि़्ार ना हो सका अगर अल्लाह तआला ने बाद में किसी जंग में शरीक होने का मौक़ा दिया तो मैं दिखाउंगा के मैं क्या कारनामे अंजाम देता हूँ। चुनांचे उहद के दिन मुसलमानों को हज़ीमत का सामना करना पड़ा तो अनस बिन नदर इ ने कहा( ऐ अल्लाह! में इन (सहाबा) की कारकर्दगी से तेरी माफ़ी तलब करता हूँ और उन (मुशरिकीन) की कारस्तानियों से बराअत का इज़्हार करता हूँ। फिर हज़रत साद बिन मआज़ से उनकी मुलाक़ात हुई तो कहा( ऐ साद! में इस उहद की वादी में जन्नत की ख़ुशबू मेहसूस कर रहा हूँ। साद ने फ़रमाया ऐ अल्लाह के रसूल में वो नहीं कर सका जो उन्होंने कर दिखाया। अनस कहते हैं के हमने उनके जिस्म पर अस्सी (80) से ज़ाइद ज़ख़्म देखे या तो वो तलवार के थे या नेजों के या तीरों के। इनको शहीद कर दिया गया था और मुशरिकीन ने इन का मुस्ला किया हुआ था। इनको हम में से कोई नहीं पहचान सका सिवाए उनकी बहन के जिन्होंने उनकी उंगलियों के ज़रीये उनकी शनाख़्त की। इसके बाद हज़रत अनस फ़रमाते हैं के उन्हीं लोगों या उनजैसे लोगों के ताल्लुक़ से क़ुरआन की ये आयत नाज़िल हुई।
مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ رِجَالٌ صَدَقُوْا مَا عَاهَدُوا اللّٰهَ عَلَيْهِ١ۚ
एहले ईमान एैसे भी हैं जिन्होंने अल्लाह से किए अपने वादों को पूरा कर दिखाया। (तर्जुमा मआनी-ए-क़ुरआन-ए-करीम सूरा अल अहज़ाब( आयत(23)]
अबू स(आ से रिवायत की है के वो फ़रमाते हैं के मैंने रसूल अल्लाह  के पीछे अ़स्र की नमाज़ अदा की, फिर आप ने सलाम फेरा और तेज़ी से खड़े हुए और लोगों की गरदनों को फलांगते हुए अपनी बीवी के कमरे की तरफ़ गए, लोगों को इस पर बड़ा ताज्जुब हुआ, फिर आप आए और लोगों के हैरत ओ इस तेजाब को देख कर फ़रमाया: मुझे याद आया के मेरे पास कुछ सोना पड़ा हुआ है तो मुझे ये नागवार गुज़रा के वो मुझे रोक ले लिहाज़ा मैंने उसको तक़सीम करने का हुक्म दे दिया। अबू स(आ की एक दूसरी रिवायत में है के आप ने फ़रमाया के:  मैं अपने पीछे सद्क़े का कुछ सोना छोड़ आया था, तो मुझे नापसंद हुआ के में इसके साथ रात गुज़ारूं।
ये वाक़िया मुसलमानों की रहनुमाई करता है के अल्लाह रब उल इज़्ज़त के वाजिबात की अदायगी में किस क़दर सुरअ़त से काम लेना चाहिए।
हज़रत इमाम बुख़ारी (रह.) ने हज़रत बरा इ से रिवायत नक़्ल की है हज़रत बरा इ फ़रमाते हैं के जब रसूल अल्लाह  मदीना तशरीफ़़ लाए तो बैत उल मक़दिस की जानिब रुख़ करके सोलह या सतरह ;16 या 17) माह तक नमाज़ अदा की और आप की शदीद ख़्वाहिश थी के क़िब्ले का रुख़ काअ़बे की जानिब कर दिया जाये। चुनांचे अल्लाह तआला ने ये आयत नाज़िल की और क़िब्ला ख़ाना-ए-काबा-ए-की जानिब मुंतक़िल कर दिया गया।
قَدْ نَرٰى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَآءِ١ۚ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضٰىهَا١۪
एक शख़्स ने आप के साथ अ़स्र की नमाज़ अदा की। फिर वो बाहर निकला तो इसका गुज़र अंसार की एक जमाअ़त के पास से हुआ। उसने गवाही देते हुए कहा के इस ने रसूल अल्लाह के साथ ख़ाना-ए-काबा-ए-की जानिब (ख़ कर के नमाज़ पढ़ी है चुनांचे अंसार की जमाअ़त ने रुकू की हालत ही में अपना रुख़ मोड़ लिया ओर ये अ़स्र की नमाज़ का वक़्त था।
हज़रत इब्ने अबी औफ़ा फ़रमाते इ हैं के जंगे ख़ैबर के वक़्त हम शदीद भूक की हालत में थे, जब ख़ैबर फ़तह हो गया और माल ए ग़नीमत में गधे भी आए तो हम ने इनको ज़िबह कर दिया जब हांडियों में गोश्त उबल रहा था तो रसूल अल्लाह के मुनादी ने एैलान किया के हांडियों का गोश्त उलट दो और गोश्त बिलकुल मत खाओ। (एक शख़्स) अ़ब्दुल्लाह फ़रमाते हैं के हम ने कहा रसूल अल्लाह  ने इसलिए मना फ़रमाया है क्योंके इन का ख़ुम्स नहीं निकाला गया है, और बाअ़ज़ का कहना था के नहीं उनको मुकम्मल हराम क़रार दे दिया गया है हम ने सईद बिन ज़ुबैर से दरयाफ़्त किया तो उन्होंने कहा के इसको मुकम्मल हराम क़रार दे दिया गया है।
इमाम बुख़ारी (रह.) हज़रत अनस बिन मालक इ से रिवायत करते हैं के उन्होंने फ़रमाया के:  मैं अबू तलहा अंसारी और अबू उ़बैदा बिन अल जर्राह को और उबई इब्ने कअ़ब को फ़दीख़ (खजूर की एक किस्म) की बनी हुई शराब पिला रहा था तो एक शख़्स आया और कहने लगा( शराब को हराम क़रार दे दिया गया है। चुनांचे अबू तलहा इ ने कहा( अनस इन सुराहियों को तोड़ दो, लिहाज़ा मैंने अपनी लाठी उठाई और उनके निचले हिस्से से उन पर मारना शु( किया और उनतमाम को तोड़ दिया।
उम उल मोमिनीन हज़रत आईशा ब की एक रिवायत इमाम बुख़ारी (रह.) ने नक़्ल की है के आप ब फ़रमाती हैं के:  जब हम को ये ख़बर पहुंची के अल्लाह तआला की जानिब से ये नाज़िल कर दिया गया है के मुसलमानों को ये हुक्म हुआ है के वो काफ़िर अ़ौरतों को अपने निकाह में ना रखें, तो हज़रत उ़मर इ ने दो अ़ौरतों को तलाक़ दे दी।
बुख़ारी (रह.) की रिवायत है, जिस में हज़रत आइशा सिद्दीक़ा ब फ़रमाती हैं के:  अल्लाह तआला मुहाजिरीन अ़ौरतों पर रेहम फ़रमाए जब अल्लाह तआला ने ये आयत नाज़िल फ़रमाई (وَ لْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلٰى جُيُوْبِهِنَّ١۪) तो उन्होंने अपनी चादरों को फाड़ कर अपना ढुपट्टा और ओढ़नी बना लिया।
सुनन अबू दाऊद में हज़रत सफ़िया बिन्ते शैबा ब से हज़रत आइशा ब की रिवायत नक़्ल की है के हज़रत आइशा ब के सामने अंसार की अ़ौरतों का तजि़्करा किया गया तो आपने उनकी तारीफ़़ की और कहा( जब सूरत अल-नूर नाज़िल हुई तो अंसार की अ़ौरतें अपने घरों को गईं और अपनी चादरों को फाड़ कर पर्दा बना लिया।
साहिबे अल मग़ाज़ी हज़रत इब्ने इसहाक़ (रह.)कहते हैं के किंदा के वफ़्द के साथ अशअ़स बिन क़ैस, मुहम्मद  के पास आए, फिर हज़रत इसहाक़ कहते हैं के मुझ से ज़ुहरी (रह.) ने बयान किया के किंदा के इस वफ़्द में अस्सी ;80 अफ़्राद) थे, आप मस्जिद में तशरीफ़़ फ़रमा थे उन्होंने अपने घने बालों में कंघी की हुई थी और सुरमा लगा रखा था और यमनी लिबास पहन रखा था और काँधों पर रेशम की चादर थी चुनांचे जब आप के सामने आए तो आप ने फ़रमाया: क्या तुम ने इसलाम क़ुबूल नहीं किया? उन्होंने जवाब दिया: क्यों नहीं अल्लाह के रसूल! फिर आपने इरशाद फ़रमाया: आख़िर क्या बात है के तुम्हारे शानों पर ये रेशम क्यों पड़े हैं? ये सुनना था के उन्होंने फ़ौरन ही रेशम को फाड़ डाला और उतार कर फेंक दिया।
इब्ने जरीर हज़रत अबी बरदा से रिवायत करते हैं जो उन्होंने अपने वालिद से और उनके वालिद ने अपने वालिद से नक़्ल किया है के:  हम अपने मैख़ाने में बैठे हुए थे (वो रेत का एक टीला था) हमारी तादाद तकरीबन 3 या 4 थी और हमारे पास शराब का एक बड़ा बर्तन था और हम शराबनोशी कर रहे थे, उस वक़्त शराब हलाल थी फिर मैं रसूल अल्लाह के पास गया और इस वक़्त शराब की हुर्मत नाज़िल हो चुकी थी। फिर में अपने साथियों के पास गया और उन पर इन आयात की तिलावत की इस हाल में के उनके हाथों में अभी जाम थे और उन्होंने शराब पी ली थी और कुछ बर्तन में बची हुई थी और उनके जाम उनके होंटों से लगे हुए थे जैसे सेंगी लगाने वाला करता है, आयात सुनने के बाद उन्होंने अपने बर्तनों की शराब बहा दी और कहा( हमारे परवरदिगार ने हम को रोक दिया है।
ग़सील अलमलाइका हज़रत हन्ज़ला बिन अबी आमिर (उनकी नई नई शादी हुई थी) ने जब ग़ज़्वा ए उहद में शिरकत की निदा सुनी तो लब्बैक कहते हुए तेज़ी से मैदान ए कारज़ार की तरफ़ रवाना हुए और जाम शहादत नोश किया। इब्ने इसहाक़ कहते हैं के रसूल अल्लाह ने फ़रमाया के:  तुम्हारे साथी को फ़रिश्ते ग़ुस्ल दे रहे हैं, ज़रा इसके एहले-ए-ख़ाना से दरयाफ़्त करो के आख़िर क्या बात है? चुनांचे उनकी बीवी से पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया के जब उन्होंने आवाज़ सुनी थी उस वक़्त वो जनबी थे (उन्हें ग़ुस्ल की हाजत थी) और इसी हालत में निकल गए थे। रसूल अल्लाह फ़रमाते हैं( इसी लिए फ़रिश्ते उनको अपने हाथों से ग़ुस्ल दे रहे हैं।
इमाम अहमद, राफ़े बिन ख़दीजा से रिवायत करते हैं के राफ़े ने कहा के:  हम एहदे रिसालत में काश्तकारी किया करते थे, और इसको चैथाई या तिहाई या मुतय्यन ग़ल्ले के इवज़़ बेच दिया करते थे। एक दिन हमारे एक चचा हमारे पास आए और कहने लगे के रसूल अल्लाह  ने इस चीज़़ से हमें मना फ़रमा दिया है जो के हमारे लिए मुफ़ीद थी, अल्लाह और रसूल की इताअ़त इस से ज़्यादा नफ़ा बख़्श है। हम को मना कर दिया गया है के हम खेती करें और इसको सुल्स (1/3), रुबा (1/4) या मुतय्यन ग़ल्ले के इवज़ किराए पर दें और ज़मीन के मालिक ने ये हुक्म दिया है के या तो हम ख़ुद खेती करें या किसी को दे दें, किराए पर देने को ना पसंद किया है।
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