खिलाफत दस्तावेज़ (भाग - 1)
राजनैतिक कमेंट्स:
टोनी ब्लेयर Tony Blair (भूतपर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री) एक राष्ट्रीय सभा से भाषण देते हुये कहा: तुम्हारा सामना एक शैतानी आयडियोलोजी से है. वोह चाहते है की इस्राईल का खात्मा हो जाये, लोगों और हुकूमतों के जज़बात का ख्याल किये बिना वोह चाहते है की मुस्लिम देशो से पश्चिम के लोग लौट जायें. और वोह तालिबानी रियासत क़ायम करना चाहते है. और वोह सारे मुस्लिम ममालिक में एक ख़िलाफत के ज़रिये पूरी अरब दुनिया में शरीअत को लागू करना चाहते है.
चाल्स क्लार्क Charles Clarke (ब्रिटिश होम सेक्रेटरी), ने 5 अक्तूबर, 2005, को दहशतगर्दी के खिलाफ जंग के विषय पर हेरिटेज फाउंडेशन, अमरीकी थिंक टेंक के एक संस्थान में भाषण देते हुये कहा: इन लोगों को जो चीज़ हरकत में लाती है वोह है इन का अक़ीदा (idea) दूसरे आज़ादी के आन्दोलन की तरह जो द्वितीय विश्व युद्ध में शुरू हुई हुऐ थे, यह लोग सियासी विचारधारा जैसे उपनिवेशवाद से आज़ादी मांगने वाले लोगों की तरह नहीं है ना ही यह तमाम शहरियों के लिये बिना किसी नसली और अक़ीदे (आस्था) की बुनियाद पर बराबरी चाहते है या यह की अभिव्यक्ति की आज़ादी (freedom of expression) चाहते हो. ऐसी महत्वकांशा रखने वालों की मांगों तो किसी क़ाबिल थी पर बल्कि उन से बात करके उसका हल निकाला गया. हालांकि खिलाफत की स्थापना पर कोई वार्तालाप और बात नहीं की जा सकती. शरीअत के लागू करने के सम्बन्ध मे कोई गुफ्तगू नहीं कि जा सकती, दो जिंसो (लिंग भेद) के दर्मियान बराबरी के मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता. यह मूल्य हमारी सभ्यता में बुनियादी अहमियत रखते है जिन पर कोई गुफ्तो-शनीद नहीं की जा सकती.
लार्ड करज़न Lord Curzon, 1924 में ब्रिटिश विदेश सेक्रेटरी, ने ख़िलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद इन शब्दो में अपनी राय का इज़हार किया था: “आज सब से अहम नुक्ते की बात यह है की तुर्की (उस्मानी खिलाफत) खत्म हो चुका है, जो अब दोबारा ज़िन्दा नहीं होगा क्योंकि हमने उस की रूहानी ताक़त यानी खिलाफत और इस्लाम को खत्म कर दिया है”
लार्ड करज़न Lord Curzon: एक और मौके पर खिलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद, हाउस ऑफ कामंस से खिताब देते हुये खिलाफत की अहमियत को वाज़ेह कर दिया: आज सूरते हाल यह है की तुर्की खत्म हो चुका है और दोबारा नहीं उठेगा क्योंकि हम ने उसकी नैतिक क़ुव्वत, यानी ख़िलाफत और इस्लाम को बरबाद कर दिया है”.
“हमें हर उस चीज को खत्म कर देना है जो मुसलमान के बेटों के दर्मियान इत्तेहाद पैदा करें जिस तरह की हम पहले ही खिलाफत को खत्म करने में कामयाब हो चुकें है, हमें इस बात को यक़ीनी बनानी चाहिये की मुसलमानों में फिर कभी कोई इत्तेहाद पैदा न हो, चाहे यह इत्तेहाद फिकरी (वैचारिक) या तहज़ीबी (सांस्कृतिक) ही क्यों न हो.
“इराक़ नई इस्लामी खिलाफत के लिये बुनियाद बन सकता है जो मश्रिके वस्ता (Middle East) तक फैलती होगी और जो यूरोप, अफरीका और ऐशिया की जाईज़ हुकूमतों के लिये एक खतरा होगी. इन का यह मंसूबा है. उन्होने ऐसा कहा है. हमसे बहुत बड़ी ग़लती होगी अगर हम सुनने और सीखने में ग़लती करेंगे.”
चाल्स क्लार्क Charles Clarke (ब्रिटिश होम सेक्रेटरी), ने 5 अक्तूबर, 2005, को दहशतगर्दी के खिलाफ जंग के विषय पर हेरिटेज फाउंडेशन, अमरीकी थिंक टेंक के एक संस्थान में भाषण देते हुये कहा: इन लोगों को जो चीज़ हरकत में लाती है वोह है इन का अक़ीदा (idea) दूसरे आज़ादी के आन्दोलन की तरह जो द्वितीय विश्व युद्ध में शुरू हुई हुऐ थे, यह लोग सियासी विचारधारा जैसे उपनिवेशवाद से आज़ादी मांगने वाले लोगों की तरह नहीं है ना ही यह तमाम शहरियों के लिये बिना किसी नसली और अक़ीदे (आस्था) की बुनियाद पर बराबरी चाहते है या यह की अभिव्यक्ति की आज़ादी (freedom of expression) चाहते हो. ऐसी महत्वकांशा रखने वालों की मांगों तो किसी क़ाबिल थी पर बल्कि उन से बात करके उसका हल निकाला गया. हालांकि खिलाफत की स्थापना पर कोई वार्तालाप और बात नहीं की जा सकती. शरीअत के लागू करने के सम्बन्ध मे कोई गुफ्तगू नहीं कि जा सकती, दो जिंसो (लिंग भेद) के दर्मियान बराबरी के मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता. यह मूल्य हमारी सभ्यता में बुनियादी अहमियत रखते है जिन पर कोई गुफ्तो-शनीद नहीं की जा सकती.
लार्ड करज़न Lord Curzon, 1924 में ब्रिटिश विदेश सेक्रेटरी, ने ख़िलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद इन शब्दो में अपनी राय का इज़हार किया था: “आज सब से अहम नुक्ते की बात यह है की तुर्की (उस्मानी खिलाफत) खत्म हो चुका है, जो अब दोबारा ज़िन्दा नहीं होगा क्योंकि हमने उस की रूहानी ताक़त यानी खिलाफत और इस्लाम को खत्म कर दिया है”
लार्ड करज़न Lord Curzon: एक और मौके पर खिलाफते उस्मानिया के खात्मे के बाद, हाउस ऑफ कामंस से खिताब देते हुये खिलाफत की अहमियत को वाज़ेह कर दिया: आज सूरते हाल यह है की तुर्की खत्म हो चुका है और दोबारा नहीं उठेगा क्योंकि हम ने उसकी नैतिक क़ुव्वत, यानी ख़िलाफत और इस्लाम को बरबाद कर दिया है”.
“हमें हर उस चीज को खत्म कर देना है जो मुसलमान के बेटों के दर्मियान इत्तेहाद पैदा करें जिस तरह की हम पहले ही खिलाफत को खत्म करने में कामयाब हो चुकें है, हमें इस बात को यक़ीनी बनानी चाहिये की मुसलमानों में फिर कभी कोई इत्तेहाद पैदा न हो, चाहे यह इत्तेहाद फिकरी (वैचारिक) या तहज़ीबी (सांस्कृतिक) ही क्यों न हो.
“इराक़ नई इस्लामी खिलाफत के लिये बुनियाद बन सकता है जो मश्रिके वस्ता (Middle East) तक फैलती होगी और जो यूरोप, अफरीका और ऐशिया की जाईज़ हुकूमतों के लिये एक खतरा होगी. इन का यह मंसूबा है. उन्होने ऐसा कहा है. हमसे बहुत बड़ी ग़लती होगी अगर हम सुनने और सीखने में ग़लती करेंगे.”
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