ओबामा मुसलमान मुमालिक को फतह कर रहा है, इस ने तुर्की से आग़ाज़ किया और सऊदी अरब के बाद मिस्र पर इख्तिताम किया

ओबामा मुसलमान मुमालिक को फतह कर रहा है, इस ने तुर्की से आग़ाज़ किया और सऊदी अरब के बाद मिस्र पर इख्तिताम किया

ओबामा के दौराऐ इतम्बोल और लोगों से खिताब को अभी दो माह भी नहीं गुज़रे थे के अब उसने मिस्र और जज़ीराऐ अरबनुमा (Arab continent) का रुख किया है. मिस्र की हुकूमत ने जुमेरात, 4 जून 2009 को ओबामा का ऐसा शान्दार इस्तक़बाल किया की जैसे किसी फातेह का इस्तक़बाल किया जाता है. सुबह 9 बजे जब उसका जहाज़ उतरा, बल्कि उससे भी पहले ऐयरपोर्ट और उस के आसपास में सिक्यूरिटी इतनी सख्त थी जिस की माज़ी में मिसाल नहीं मिलती। सिक्यूरिटी फोर्सेज़ हर जगह मौजूद थी और कुफ्र के सरदार रियासत-हाये मुत्तहिदा अमरीका के सदर को आलीशान प्रोटोकोल मयस्सर था, जिस के हाथ अभी भी अफग़ानिस्तान, इराक़ और पाकिस्तान के मुसलमानों के खून से रंगे हुए है.

मिस्र की हुकूमत ने सदर ओबामा के लिये लम्बा चौडा कांवोय (convoy) तैयार किया था, जिसे एलीट केवलरी गार्डज़ ने हर तरफ से घेरे में ले रखा था। नेज़ आरामदेह पुरतकल्लुफ बडी गडियों (limousines) के साथ और मौसिक़ी वाले बैंड भी इस कांवोय के हम सफर थे. मिस्र के सदर ने सदारती महल अलबक़ा के दरवाज़ो पर ओबामा का इस्तक़बाल किया और फिर उसे क़ाहिरा यूनिवर्सिटी ले जाया गया ताकि वोह उस के मिम्बर पर चढे और मुसलमानों से खिताब करे!
इस हक़ीक़त के बावजूद के उस की तक़रीर का मज़मून साबिक़ अमरीकी सदर की पॉलिसीयों से मुख्तलिफ नहीं था, ख्वाह मुसलमान मुमालिक के खिलाफ अमरीका की जंगे हो, या फिलिस्तीन का मसला हो, या अमरीका का यहूदी रियासत से खास ताल्लुक़ हो, या ऐटमी हथियारों का मामला हो या कोई भी छोटा या बड़ा मसला हो। इसकी तमाम तक़रीरे अमरीका के मफाद के गिर्द घूम रही थी और तक़रीर के दौरान उसने मुस्लिम राये आम्मा पर असरअन्दाज़ होने की कोशिश की. ताकि मुसलमान इस्लामी इलाक़ो पर मुसल्लत अमरीकी जंगों को अपने हलक़ से नीचे उतार लें.

ताहम ओबामा की तक़रीर का खाक़ा साबिक़ अमरीकी सदर की निस्बत बज़ाहिर नरम और खुशनुमा था, यह यक़ीनी तौर पर अवामी तआल्लुक़ात की मश्क थी. इस तक़रीर से ओबामा के अपने ऐतक़ादात और धोका देने के फन का अन्दाज़ा होता है, जैसा की अल्लाह तआला ने क़ुरआन में इरशाद फरमाया: “और जब तुम उन को देखते हो तो उन के जिस्म तुम्हें भले मालूम होते हैं, और जब वोह गुफ्तगू करते है तो तुम तवज्जह से उन की बात सुनते हो. गोया यह लकडियाँ है सहारे से लगाई हुई, (बुज़दिल इतने के) हर आवाज़ पर समझे की गोया उन पर कोई मुसीबत आन पहुंची, यह तुम्हारे दुश्मन है, उन से बेखौफ न रहना” [तर्जुमाऐ क़ुरआने मजीद, सूरा-अल-मुनाफिक़ून: 4]
अलबत्ता जहाँ तक हस्सास और अहम मामलात का ताल्लुक़ है तो ओबामा की तक़रीर वाज़ह तौर पर नोकदार और जारिहाना थी और उस से मुस्लिम मुआमलात के बारे में ग़ैर-मआज़रत हवाना दुश्मनी साफ थी। “और जो कुछ इन के दिलों में पोशीदा है वोह तो उस से भी बढ़ कर है” [तर्जुमाऐ क़ुरआने मजीद, सूरा-आले इमरान:118]

उस ने अपनी बात का अग़ाज़ उन लोगों के धमकाने से किया जिन्हें वोह अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान में मौजूद “दहशत गर्द” कहता है और इस अज़्म का इज़हार किया की वोह उन्हें माफ नहीं करेगा और अक़वाम से मुतालबा किया की वोह उन के खिलाफ जंग करे. उसने फख़रिया अन्दाज़ में कहा की अमरीका ने अफग़ानिस्तान में इन लोगों के खिलाफ लड़ने के लिये 46 मुल्कों का इत्तहाद जमा किया है! वोह सिर्फ इसी पर मुतमईन नहीं बल्कि उसने पाकिस्तान में बराहे रास्त और बिलवास्ता तौर पर मिज़ाइल दाग़ने शुरू कर दिये और उसे इस क़दम की ज़रा भी परवाह नहीं, बल्कि उस ने बच्चों बूढ़ों, और औरतों के बेरहम क़त्ल की तौजीह पेश करने की कोशिश की. उसने इस क़त्ल को ग़ैर-इरादी ग़लतियाँ क़रार दिया, हालांकि ऐसे वाक़ियात अफग़ानिस्तान में कई मरतबा हो चुके है!! और अगर बच्चों और औरतों का यह क़त्ल मंज़रे आम पर न आये होते तो इन के क़त्ल को भी दहशतगर्दो की फ़ेहरिस्त में शामिल कर लिया जाता है. हक़ीक़त तो यह है कि ओबामा की नज़र में हर वोह मुसलमान इंतहा-पसन्द और दहशत गर्द है जो दीने इस्लाम पर अमल करता है और अपने मुल्क पर अमरीका के क़ब्ज़े को क़ुबूल नहीं करता और जो यहूदियों के हाथों मुसलमानों की इज़्ज़त की पामाली को बरदाश्त नहीं करता.ताहम अपने इन तमाम शरअंगेज़ इक़दामात के बावजूद और पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान और इराक़ में मुसलसल क़त्ले आम के बावजूद ओबामा ने मिस्र में भी वही अल्फाज़ दोहराऐ जो उस ने तुर्की में कहे थे की इस्लाम और मुसलमानों के जंग नहीं चाहता. बेशक रसूलुल्लाह (स्वल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम) ने अपनी हदीस में हक़ बात कही है: “अगर तुम्हें शर्म नहीं तो फिर जो मर्ज़ी करो”।
अमरीकी अफ़वाज (फौज) इस्लामी इलाक़ो में मुसलमानों का क़त्लेआम सर अंजाम दे चुकी है और उन अफ़वाज ने मुसलमानों के खिलाफ खौफनाक जंग शुरू कर रखी है. और वोह दिन-रात मुसलमानों का खून बहा रही है और लोगों को उन के घर से बेघर कर रही है........ फिर भी ओबामा बज़िद कह रहे है के वोह मुसलमानों से जंग नहीं कर रहा है!
इसके बाद ओबामा ने फिलिस्तीन को अपनी बात का मौज़ूअ बनाया और ज़ोर देते हुये कहा की यहूदी रियासत जिसने फिलिस्तीन की सरज़मीन को ग़सब कर रखा है, के साथ अमरीका के ताल्लुक़ात मुस्तक़िल है और उन्हें तोड़ा नहीं जा सकता, ख्वाह यह ताल्लुक़ात अस्करी (military) नोइयत के हो या दूसरे तरह के। उसने ऐलान किया की यहूदी रियासत फिलिस्तीन की सरज़मीन पर क़ायम रहेगी और ओबामा उस के अलावा कोई आपरेशन क़ुबूल नहीं करेगा. इस के बाद ओबामा ने दो रियासती हल की बात की, जिस की मतलब है की फिलिस्तीन के ज़्यादातर इलाक़ो पर यहूदियों का हक़ है और इसके बदले में ओबामा ने छोटे-छोटे ग़ैर अहम इलाक़े फिलिस्तीन को देने की ज़मानत दी, जो फिलिस्तीनियों का वतन कहलाऐगा! फिर उसने यहूदी बस्तियों की बात की और अपने उपर एतमाद करने वाले लोगों की बेबसीरत (visionless) हसासियत को छेड़ा और ऐलान किया के वोह आबादकारियो (settlements) का खात्मा चाहता है, जिस से मुराद पहले से मौजूद आबादियों का खात्मा नहीं बल्कि महज़ यहूदियों की नई आबादियों की तामीर को रुकवाना है. और सूरतेहाल यह है की अब मज़ीद कोई ऐसा इलाक़ा बाक़ी नहीं के जिसे यहूदी महफूज़ तसव्वुर करते हों के जहाँ वोह आबादियाँ बना सकें, मासिवाये अगर वोह वहाँ क़िले और उंचे-उंचे महल तामीर करले. इसके अलावा नई आबादियों की तामीर का नाम-निहाद इख्तिताम भी इस शर्त पर है की अमन रोडमैप के खतरनाक रास्ते के तमाम तर सफर के दौरान यहूदी रियासत के खिलाफ हर तरह की दुश्मनी की रोक थाम की जायेगी.

फिर ओबामा ने अपनी बात का रुख एटमी हथियारों की तरफ मोड और इरान पर तवज्जह मरकूज़ की। उसने वाज़ह किया की वोह एटमी हथियारों से पाक मश्रिक़ेवुस्ता (मिडिल ईस्ट) का ख्वाहिशमन्द है जहाँ एटमी हथियारों की दौड़ मौजूद न हो. और यह कहते हुए उसने यहूदी रियासत को बाआसानी फरामोश कर दिया जो ऐटमी हथियारों की मालिक है.

इस बात के बावजूद की उस की तमाम तक़रीर मुसलमानों के मुआमलात के बारे में धमकियों से भरी हुई थी, मिस्र की हुकूमत ने उस शख्स का इस्तक़बाल किया, जो शरअंगेज़ी और मीठी नरम ज़बान के साथ आया है, और उस बात की कोशिश कर रहा है की वोह उन मासूम लोगों के खून के धब्बों के छिपा सकें जो उस ने और उस की फौज ने अफग़ानिस्तान, इराक़, पाकिस्तान में बहाया है। मिस्र की हुकूमत ने ओबामा के लिये लोगों के मजमे और तालियों का बन्दोबस्त किया, ताकि तास्सुर दिया जाये की मिस्री अवाम ने उसकी ज़हरीली तक़रीर को क़ुबूल किया.

यह तैय्यार शुदा और मसनूई (artificial) तारीफ हर उस शख्स के लिये साफ थी जो अपनी आँखें खुली रखता है. एक शख्स मसलऐ फिलिस्तीन के दो रियासती हल की तारीफ किस तरह कर सकता है? क्या कोई मुसलमान तारीफ तो दूर की बात है इस बात को बरदाश्त भी कर सकता है की इसरा व मेराज की ज़मीन को मुसलमानों और ग़ासिब क़ुव्वत के दर्मियान तक़सीम कर दिया जाये?
एक मुसलमान किस तरह ओबामा की तारीफ कर सकता है और उसके लिये तालियाँ बजा सकता है, जब उस ने क़ुरआन की इस आयत को उस के मौज़ूअ से हट कर इस्तेमाल किया, “जो शख्स किसी शख्स को क़त्ल कर डाले अलावा यह के वोह किसी का क़ातिल हो या ज़मीन में फसाद मचाये, तो गोया उसने तमाम इंसानियत को क़त्ल कर डाला” (तर्जुमाऐ क़ुरआन मजीद, सूरा-माईदा:32)

ओबामा ने उन मुसलमानों के इंतहा पसन्द क़रार दिया जो अमरीका से लड़ते है, अगरचे के यह आयत बनीइस्राईल के बारे में नाज़िल हुई थी, और ओबामा मुसलमानों के बारे में, जो अपने अक़ीदे और लोगों की हिफाज़त कर रहे है और अपने उपर हमला करने वालों के खिलाफ लड़ रहे है, के मुताल्लिक़ तसव्वुर करता है के उन्होने पूरी इंसानियत का क़त्ल किया। और ओबामा कि नज़र में वोह यहूदी रियासत ओझल है, जो मासूम लोगों का बेदर्दी से क़त्ल कर रही है, उनकी ज़मीनों को ग़सब कर रही है, उन्हें उन के घरों से निकाल रही है, उन की इज़्ज़तो का तक़द्दुस (sanctity) पामाल कर रही है और फितना और तबाही फैला रही है. ओबामा इन तमाम इक़्दामात को इंसानियत का क़त्ल नहीं समझता! और ना ही वोह इस क़त्ले-आम को तमाम इंसानियत का क़त्ल समझता है जो उसकी अपनी अमरीकी फौज कर रही है. “यह बड़ी बात है जो यह अपने मुंह से निकालते है. उनकी बात झूठ के सिवा कुछ नहीं” (तर्जुमाऐ क़ुरआन मजीद, सूरा-कहफ:5)




ओबामा की बात का खैर मक़दम कैसे किया जा सकता है और उसकी तक़रीर पर तालियाँ कैसे बजाई जा सकती है जब कि वोह ऐलान कर रहा है यहूदियों की पहले से मौजूद बस्तियाँ कोई मसला नहीं बल्कि सिर्फ नई आबादियाँ बनाना मसला है? जब के हक़ीक़त यह है की यह तमाम यहूदी बस्तियाँ ही नाजायज़ है, ख्वाह पुरानी हो या नई तामीर करदा! सिर्फ अक़ल और समझ से खाली, ऐजेंट हुक्मरान ही खड़े हो कर इस बात पर ओबामा को दाद दे सकते है?




अलक़ुद्स (बैतुलमक़्दस) को सब से पहले हज़रत उमर (रज़िअल्लाहो अन्हो) ने फतह किया था और यह तय कर दिया था की अलक़ुद्स में कोई यहूदी नहीं रहेगा। और अलक़ुद्स को दोबारा सलाहुद्दीन अय्यूबी ने आज़ाद करवाया था. लेकिन ओबामा ऐलान कर रहा है की अलक़ुद्स यहूदियों, इसाईयों और मुसलमानों का मुश्तरका वतन है. कोई मुसलमान ओबामा के इस बयान का खैर-मक़दम कर सकता है? और यह बात उसके अलावा है की ओबामा ने अलक़ुद्स के मश्रिक़ी हिस्से में शिरकत की बात की और मग़रिबी हिस्से का ज़िक्र गोल कर गया!




बिला शुबहा यह तमामतर खैर-मक़दम महज़ एक ढोंग था और मिस्र की हुकूमत इस वाज़ह हक़ीक़त को छुपा न सकी, अगरचे उसने पूरा स्टेज तैयार कर रखा था की ओबामा के दोस्त होने का तास्सुर दिया जाये और उसे एक आदिल और बुर्दबार शख्स के तौर पर पेश किया जाये, और इसके अलावा मिस्र के मुताल्लिक़ पाये जाने वाले इस तास्सुर पर पर्दा डाला जाये की मिस्र अमरीका का एजेंट है, जो फिलिस्तीन के मसले पर ग़ैर-जानिबदार है यानी मिस्र फिलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने वाले यहूदियों और फिलिस्तीन के हक़दार मुसलमानों के साथ एक जैसा सुलूक करता है, बल्कि उसके ग़ैर-जानिबदार मौक़िफ का झुकाव यहूदी रियासत की तरफ है.



ऐ मुसलमानों!
बेशक ओबामा आप के पास एक बेज़रर (नुक़सान नहीं पहुंचाने वाला) साधु की शक्ल में आया है ताकि आप उसके असल रूप का मुशाहिदा न कर सकें। यह उस शख्स से कहीं ज़्यादा खतरनाक है जो आपके साथ अपनी दुश्मनी को नहीं छुपाता है. वोह ऐसा इसलिये कर रहा है ताकि आप अपने मसाइल के लिये उसी की तरफ रुजूअ करे.




याद रखे! बुश के ज़ेरे क़यादत अमरीका की नंगी हक़ीक़त महज़ माज़ी का क़िस्सा नहीं. अमरीका ने आपके इलाक़ो पर चढाई की राह इख्तियार की, इस बात के बावजूद की उन इलाक़ो पर उसी के एजेंट और हमनवाओं की हुक्मरानी है. भारी असलेहा और जंगी साज़ो सामान रखने और आपके खिलाफ खुली दुश्मनी के बावजूद अमरीका आप से खौफज़दा और परेशान है. लेकिन आप के इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने और आप के लोगों को क़त्ल करने के बावजूद ओबामा चाहता है की आप उसके लिये तालियाँ बजायें और उसका इस्तक़बाल करे. और वोह अपनी रिवायती मुस्कुराहट को इस्तेमाल कर रहा है ताकि आप को धोखे से अपना ग़ुलाम बना सके.



ऐ मुसलमानों!!
ओबामा ने आप से अपने मक्काराना खिताब के लिये तीन जगहों का इंतखाब सोंच समझ कर किया है. इन तीनों अहम मक़ामात पर ग़ौरो-फिक्र करने के साथ एक मोहतात अन्दाज़ से चुना गया है. ओबामा ने अपने दौरे का आग़ाज़ तुर्की से किया और तमाम जज़ीराऐ अरबनुमा को पार करता हुआ मिस्र पहुंचा. ओबामा अच्छी तरह आगाह है के इस्तम्बोल सुल्तान फातेह मुहम्मद का शहर है और खिलाफत का मरकज़ इस्तम्बोल यहूदियों के रास्ते की दीवार बना रहा और तुर्की की खिलाफते उस्मानिया ने यहूदियों को फिलिस्तीन की सरज़मीन को ग़सब करने से बाज़ रखा. ओबामा जानता है की जज़ीरानुमा अरब पहली इस्लामी रियासत का नुक़्ताऐ आग़ाज़ था, उमर (रज़िअल्लाहो अन्हो) ने वहां से निकल कर अल-क़ुद्स को फतह किया था. और ओबामा इस बात से भी आगाह है मिस्र सलाहुद्दीन अय्यूबी का सूबा था, जहाँ उसने जंग का आग़ाज़ किया था और फिलिस्तीन को सलीबियों से आज़ाद कराया था.
ओबामा उन तमाम बातों से आगाह है, पस वोह उन ममालिक में यह पैग़ाम लेकर आया है की तुम लोगों के फख़्र और वक़ार का वक़्त खत्म हो चुका है और अब ताक़त और अथोरिटी ओबामा और उसके इत्तेहादियों के हाथ में है और अब अमरीका ही बालादस्त क़ुव्वत है। इस्तेमारी कुफ्फार बहुत से मुसलमानों से ज़्यादा इस बात से आगाह है की मुसलमानों की ताक़त के मराकिज़ और मज़बूती के ज़राये क्या है. वोह हमारी तारीख और हमारे अक़ीदे से आगाह है जो हमारी ताक़त का मनबाह (स्रोत) है और इस बात से भी की इस उम्मत की आला सिफ्फात क्या है. और यह महज़ इत्तेफाक़ न था की ओबामा ने क़ुरआन की यह आयत पढ़ी, “ऐ लोगों! हमने तुम्हें एक मर्द और औरत से पैदा किया और फिर कुनबे क़बीले बनाये ताकि तुम एक दूसरे को पहचान सको” (तर्जुमाऐ क़ुरआन मजीद, सूरा-अलहुजरात:13) और उसने इस आयत का यह हिस्सा बयान नहीं किया जिसके बग़ैर आयत का मफहूम मुकम्मल नहीं होता: “बेशक, तुम में सब से ज़्यादा इज़्ज़त के लायक़ वोह है जो तुम में सब से ज़्यादा अल्लाह से डरने वाला है”. पस ओबामा बड़े आराम से यह बात बयान करना भूल गया की यह तक़वा (अल्लाह का डर) ही है जो उम्मत मुस्लिमा को मोअज़्ज़िज़ (respectable) बनाता है और अमरीका और उसके इत्तेहादियों को ज़लील और रुसवा करता है.




ओबामा ने अपने आप को इस अन्दाज़ से पेश करने की कोशिश की गोया वोह पूरी दुनिया का हुक्मरान है और इस्लामी इलाक़ो में क़ायम बराये-नाम रियासतें उसकी ग़ुलाम है, जिनका काम उसे वोह सब मुहय्या करना है जिस की वोह ख्वाहिश करता है। इन रियासतों ने उस का इस क़दर आलीशान इस्तक़बाल किया जितना ओबामा का उसके अपने मुल्क अमरीका में भी नहीं किया जाता! ओबामा कि मिसाल फिरओन और उसके लोगों की मानिन्द है, जिन के मुताल्लिक़ क़ुरआन ने बयान किया: “फिरओन ने अपने लोगों को बेवक़ूफ बनाया और उन्होने उसकी इताअत की. बेशक वोह फासिक़ लोग थे.” (तर्जुमाऐ क़ुरआन मजीद, सूरा-ज़ुखरुफ:54)




अगरचे ओबामा चालाक और मक्कार है, जैसा की उसने अपनी तक़रीर में पेश किया, फिर भी उसे यह जान लेना चाहिये की इस्तम्बोल, जज़ीराऐ नुमाअरब (Arab continent) और मिस्र ने उसे खुशामदीद नहीं कहा। उसे महज़ ग़द्दार हुक्मरानों के टोले ने ही खुशामदीद कहा है जिन्हें मुसलमान मजमूई तौर पर मुस्तरद (reject) कर चुके है और अपने आप से जुदा कर चुके है. उसे यह भी जान लेना चाहिये की उस का नरम अन्दाज़ में चिकनी चुपड़ी बातें करना उम्मत की नज़र से छुपा हुआ नहीं है, जो इस बात से बखूबी वाक़िफ है के ओबामा के तराशे हुए अल्फाज़ में पोशीदा हक़ीक़ी मआनी क्या है. और ओबामा को जान लेना चाहिये की यह हुकूमतें अपने हर आक़ा का इस्तक़बाल ऐसे ही तालियों और जश्न से करती है.




हिज़्बुत्तहरीर ओबामा और तमाम दुनिया के लिये ऐलान करती है के इस्लाम के लिये ऐसे मुख्लिस लोग बदस्तूर मौजूद है जो इस्लामी रियासत क़ायम करेंगे, जो दुनिया की सुपरपॉवर बनेगी और वोह यह मक़ाम दुनिया का इस्तहसाल (शोषण) करने, इलाक़ो को अपनी कालोनी (उपनिवेश) बनाने और उनके वसाइल को लूटने के ज़रिये हांसिल नहीं करेगी। बल्कि वोह अद्ल के क़याम (न्याय की स्थापना), ज़ुल्म के खात्मे और तमाम लोगों को उन का हक़ देने के ज़रिये ऐसा करेगी. और उस वक़्त अमरीका को वोह मक़ाम मिलेगा जिस का वोह हक़दार है यानी ज़िल्लत और रुसवाई और इताअत गुज़ारी का मक़ाम. उस वक़्त यहूदी रियासत का हमेशा के लिये खात्मा हो जायेगा, जिसने फिलिस्तीन की सरज़मीन पर नाज़ायज़ क़ब्ज़ा कर रखा है और तमाम का तमाम फिलिस्तीन इस्लामी रियासत का हिस्सा बन जायेगा. अल्लाह के इज़्न (हुक्म) से इस ख़िलाफत का दोबारा क़याम होगा और दुनिया का हर ग़ोशा ख़ैर व भलाई से मामूर हो जायेगा.




“और अल्लाह अपने अम्र में ग़ालिब है, लेकिन अकसर लोग नहीं जानते” (तर्जुमाऐ क़ुरआन मजीद, सूरा-यूसुफ:21)




हिज़्बुत्तहरीर 11 जमादुस्सानी 1430 हिजरी
बमुताबिक़: 4 जून, 2009
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