अगर कल खिलाफत क़ायम हो जाये! (महकमा-ए-इत्तिलाआत)

महकमा-ए-इत्तिलाआत
(Media Department)



खलीफ इस महकमे का सबराह मुकर्रर करेगा. टी.वी, रेडीयो, प्रिंट मीडिया, और मुख्तलिफ विडियो कम्पनियों के इकट्ठा किया जायेगा और मुख्तलिफ छापा खाने और सेंसर बोर्ड इस महकमे के नीचे काम करेंगे. तमाम फिल्मे, वीडियो और गाने बजाने के दूसरी अशया जो के मआशरे में बदकारी फैलाती है, ज़ब्त कर ली जायेगी, इसी तरह वह तमाम कुतुब और अखबारात जो के मुआशरे में सरमायादाराना या कम्यूनिस्ट खयालाता फैलाते है, भी ज़ब्त कर लिये जायेंगे, इसी तरह वोह तमाम मतबूआत भी जो सेक्यूलर जम्हूरियत या सोशलिस्ट खयालाता का परचार करतें है।

तमाम मीडिया को इस्लाम की दावत व इशाअत के लिये इस्तेमाल किया जायेगा ताकि मुआशरे में अफराद की इस्लामी शख्सियत क़ायम की जा सके. यह महकमा एक आम पालिसी अपनाएगा जिस का मक़सद हर लिखने, पडने और सुनने वाले को अन्दरूनी या बैरूनी मुल्क इस्लामी अक़ीदे की तालीम दी जा सके. यह इदारा एक मुहीम का आग़ाज़ करने में अहम किरदार अदा करेगा जिस का मक़सद हमसाया ममालिक को रियासत का हिस्सा बनाना होगा. इस के अलावा ग़ैर-इस्लामी अदयान की ग़लतियाँ और खराबियों को ज़ाहिर करना और इस्लामी खयालात की अज़मत को लोगों पर ज़ाहिर करना, इस मक़सद के लिये महकमा-ए-खारजा के साथ मिल कर काम किया जायेगा, इस के अलावा महकमा-ए-तालीम व सक़ाफत के साथ मिल कर खिलाफत के आग़ाज़ में सक़ाफती इंक़लाब की मुहिम का भी आग़ाज़ करेगा.
Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.