महकमाऐ ज़राअत
(Department of Agriculture)
(Department of Agriculture)
खलीफा इस महकमे का सरबराह मुक़र्रर करेगा. इस का काम मौजूदा वसाइल के मुताबिक़ ज़राअत में नया इंक़लाब लाना होगा जिस के मुताबिक़ खाम माल, ज़रई सनअत और बरआमा को फैलाना होगा. इस मक़्सद के हुसूल के लिये मौजूदा ज़राअत के तरीक़ेकार को बेहतर बनाया जायेगा, जदीद टेक्नोलोजी को इस्तेमाल में लाया जायेगा और क़ाबिले काश्त ज़मीन को बढाया जायेगा ताकि इस्तेमारी क़ुव्वतों की तरफ से किसी क़िस्म के मआशी बोहरान से बचा जा सके.
मुख्तलिफ इलाक़ो में क़ाबिले काश्त ज़मीन का मुआयना किया जायेगा और रियासत की तरफ से काश्तकारों को ज़मीन मुहय्या कि जायेगी। शरई हुक्म के मुताबिक उस तमाम ज़मीन को ज़ब्त कर लिया जायेगा जो के तीन साल से ज़ायद अरसे से काश्त नहीं हुई. उन काश्त कारों की मदद की जायेगी जो के खाद या बीज नहीं खरीद सकते. उन्हें इमदाद और खरचा फराहम किया जायेगा. कुछ ज़मीन सनअती पैदावार के लिये भी मुतय्यन की जायेगी मसलन कपास, रेशम वग़ैराह.
ऐक खास कमेटी क़ायम की जायेगी जो की पानी के मुआमलात को सम्भालेगी. इस का काम पीने का साफ पानी की फराहमी, ज़राअत के लिये पानी की फराहमी, और बिजली बनाने की मंसूबा बन्दी करना है. इसके अलावा क़ाबिले काश्त ज़मीन को बढाना, और किसी डेम या दरिया की वजह से किसी मुम्किन खतरे से निमटना भी है.एक और हिस्से का काम जानवरों की अफज़ाईश के उमूर की निगरानी करना है. इस का काम मछली, गोश्त, पोलिट्री वग़ैराह में खुद किफालत हासिल करना है. मौजूदा वज़ारत में किये गये फैसलों और मंसूबों से फायदा हांसिल किया जायेगा. ज़रई मुआविनीन (finance assistants) की दी गई सिफारिशात का बग़ौर मुताला किया जायेगा. एक रिसर्च मर्कज़ क़ायम किया जायेगा लेकिन इस मक़सद के लिये कोई मशीनरी दरआमद नहीं की जायेगी. कही ऐसा ना हो की रियासत की तवज्जोह भारी मशीनरी से बट जाये. एक अन्दाज़े के मुताबिक़ मौजूदा मशीनरी अग़ाज़ के लिये काफी है. यह महकमा, महकमाए तालीम के सिफारिशात पेश करेगा ताकि बढाया जाने वाला निसाब अमली काम के मुताबिक़ बढाया जा सके.
3 comments :
kaafi gehra likhte hain aap. pasand aaya.
tarana E milli
आफाक में लकब था फ़ख्रे जहाँ हमारा,
था गलगला जमीं से ता आसमा हमारा
अब तक है कुल ज़मीं पर बाकी निशाँ हमारा
चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्तान हमारा,
मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा|
बैठे हुवे है अपने अल्लाह के सहारे
है सब से हाथ खींचे है सब से ला-तमा रे
सर से कुलाहे कसरत फिरते है हम उतारे
तौहीद की अमानत सीनों में है हमारे
आसां नहीं मिटाना नाम-ओ-निशान हमारा |
काशाना इ परस्तिश किसका बना हमारा
पूजा खुदा को किसने पहले हम ही ने पूजा
इस एतबार से हम करते है अब यह दावा
दुनिया के बुतकदों पहला वोह घर खुदा का
हम उसके पासबान है वोह पासबान हमारा |
गैरत का जोश लेकर पीर-ओ-जवां हुए है
हिम्मत का दूध पीकर रत्बुल्लिसान हुए है
तीरों के जख्म खा कर किश्वरसतां हुए है
तेगों के साये में हम पल कर जवां हुए है
खंजर हिलाल का है कौमी निशाँ हमारा |
फरियाद जा रही है ता आसमान हमारी
हम्दे खुदा है गोया आह-ओ-फुगाँ हमारी
किस जां नहीं पुकारी उसको जुबां हमारी
मग़रिब की वादियों में गूंजी अजां हमारी
थमता न था किसीसे सैलेरवा हमारा |
मौके पे मन को मोडें ऐसे जवाँ नहीं हम
जुन्नार से गरज क्या महवे बुतां नहीं हम
हक बात क्योँ न कह दें कुछ बेजुबान नहीं हम
बातिल से दबने वाले ऐ आसमान नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तेहान हमारा|
थिसली के जाने वालों थिसली से जब गुज़र हो
सूनी इमारतों से हालत हमारी पूछो
और यह भी पूछ लेना इस्पैन से जो पलटो
ऐ गुलिस्ताने उन्दुलस वोह दिन है याद तुझको
था तेरी डालियों पर जब आशियाँ हमारा |
ऐ नहरे नील बेशक तू जानती है हमको
अपना गयूर सब कुछ गर मानती है हमको
पानी पिया है तेरा तू जानती है हमको
ऐ मौजे दज़ला तू भी पहचानती है हमको
अब तक है तेरा दरिया अफ्सारवां हमारा |
इराकी सरकशी से हरगिज़ नहीं डरे हम
हिम्मत भरी थी हम में हिम्मत से थे भरे हम
अपनी हथेलियों पर फिरते थे सर धरे हम
ऐ अर्जे पाक तेरी अजमत पे कट मरें हम
है खून तेरी रगों में अब तक रवां हमारा |
सर झुक रहा है हरदम वक्ते नमाज़ अपना
उस बेनियाज़ के हम वोह बेनियाज़ अपना
जाता है सु-ए-तैबा अब तक जहाज अपना
सालारे कारवां है मीर-ए-हिजाज अपना
इस नाम से है बाकी आरामजा हमारा |
दो दिन में देख लेना अल्लाह ने जो चाह
चमकेगा अज़ सरे नौ इस्लाम का नसीबा
यह कौल है शरर का तुम इसको याद रखना
इकबाल का तराना बांगे दरा है गोया
होता है जादा पैमा फिर कारवां हमारा |
चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्तान हमारा,
मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा ||
जज़क अल्लाह, इक़्बाल के इस हसीन तराने को पोस्ट करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया. हमें अफसोस है की हम वक्त पर आप का शुक्रिया अदा नही कर सके.
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