ख़िलाफत का संविधान: भाग - 14: इकतेसादी निज़ाम

इकतेसादी निज़ाम

(Economic System)



दफा नम्बर 123: इकतेसादी पालिसी ये है के ज़रूरियात को पूरा करते वक्त इस बात को मद्दे-नज़र रखा जाये के किन अशया पर मोआशरे का दारोमदार है। चुनान्चे ज़रुरियात को पूरा करने के लिये इस चीज़ को बुनियाद बनाया जायेगा जिस पर मोआशरे का दारोमदार है।

दफा नम्बर 124: (अस्ल) इकतेसादी मसले अम्वाल और मुनाफे को रियासत के तमाम अफराद पर तक़सीम करना और अवाम को इस क़ाबिल बनाना के वोह कोशिश करे के इन अमवाल से फायदा उठा सकें।

दफा नम्बर 125: तमाम अफराद को फर्दन-फर्दन तमाम बुनियादी ज़रुरियात को पूरा करने की जमानत देना लाज़मी है। उसी तरह इस बात की भी ज़मानत दी जायेगी की हर फर्द इन ज़रुरियात को हासिल कर सके जिन के ज़रिये वह अपने मेआरे ज़िन्दगी को बेहतर बना सके।

दफा नम्बर 126: माल सिर्फ अल्लाह तआला की मिल्कियत है, उसी ने बनी-नूउ इंसान को माल में अपना जानशीन बनाया है और उसी आम जानशीनी की वजह से इंसान को मिल्कियत का हक़ हासिल है। अल्लाह तआला ही ने फर्द को इस माल पर मिल्कियत का इख्तियार (इजाज़त) दिया। चुनान्चे इस इजाज़त की वजह से इंसान बिलफेल माल का मालिक बन गया।

दफा नम्बर 127: मिल्कियत (property) की तीन इक़साम हैं। इनफिरादी मिल्कियत (individual property), अवामी मिल्कियत (public property), और रियासती मिल्कियत (state property)।

दफा नम्बर 128: इनफिरादी मिल्कियत एक शरई हुक्म है। उस का ताअल्लुक ऐन (अस्ल) या मनफाअत से है। उस मिल्कियत का तक़ाज़ा है के सहाबे माल को माल से या माल के ऐवज़ फायदा उठाने का इख्तियार हासिल हो।

दफा नम्बर 129: अवानी मिल्कियत से मुराद यह है की मुआशरे को मुशतरका तौर पर ऐन (अस्ल) से फायदा उठाने की शरई इजाज़त है।

दफा नम्बर 130: हर वो माल, जिसे खर्च करना ख़लीफा और उसके इजतेहाद पर मौकूफ है, वह रियासत की मिल्कियत है, मसलन टैक्स, खिराज और जज़ये से हासिल होने वाले अम्वाल।

दफा नम्बर 131: इनफिरादी मिल्कियत, ख्वाह वह अम्वाले मन्क़ूला हों या गैर-मन्क़ूला, वह इन पांच शरई अस्बाब से हासिल की जा सकती हैं:
(1) अमल (काम)
(2) मीरास
(3) जान बचाने के लिये माल हासिल करना
(4) रियासत की जानिब से अपने अम्वाल में से रिआया को देना
(5) वह अम्वाल, जिन्हे अफराद किसी माल के बदले या जद्दोजहद के बग़ैर हासिल करेंं।

दफा नम्बर 132: मिल्कियत में तस्सर्रुफ शराअ की इजाज़त पर मोकूफ है। ख्वाह यह तसर्रुफ माल को खर्च करने से मुताअल्लिक़ हो या मिल्कियत में इज़ाफा करने के हवाले से। चुनान्चे इसराफ, नमूदो-नुमाइश, कन्जूसी, सरमायादाराना कम्पनियाँ, ताअवनी अन्जुमनें (कोआपरेटिव सोसायटीज़) और तमाम ख़िलाफे शरअ मोआमलात ममनूअ (prohibited) हैं। इसी तरह सूद, गबने फहाश, ठगी, ज़खीरा-अन्दोज़ी और इस जैसे सभी दिगर चिज़े सभी मिल्कियत के तसर्रुफ के लिय ममनूअ है।

दफा नम्बर 133: उशरी ज़मीन वह है जहाँ के रहने वाले (मालिक) इस ज़मीन पर रहते हुये इमान लायें। मसलन जज़ीराए अरब की सरज़मीन। खिराजी ज़मीन अरब को छोड़ कर हर वो ज़मीन है, जो जंग या सुलह के ज़रिये फतह की गयी हो। उशरी ज़मीन और उस से हासिल होने वाली मनफाअत दोनों अफराद की मिल्कियत होते है। खिराजी ज़मीन रियासत की मिल्कियत होती है और इसका फायदा अफराद की मिल्कियत होता है। शरई उक़ूद के तहत हर फर्द को उशरी ज़मीन और खिराजी ज़मीन की मनफाअत तब्दील करने का हक़ हासिल है। दूसरे अम्वाल की तरह यह ज़मीन बतौरे मीरास भी मुन्तक़िल होगी।

दफा नम्बर 134: बन्जर ज़मीन की आबादकारी और उसकी हद-बन्दी के ज़रिये उस का मालिक बना जा सकता है। ग़ैर-बन्जर आबाद ज़मीन की मिल्कियत सिर्फ शरई सबब यानी मीरास, खरीदारी और किसी की तरफ से हिबा (देने) से होगी।

दफा नम्बर 135: ज़मीन ख्वाह खिराजी हो या उशरी, उसको किराये पर देना ममनूअ है। जिस तरह के मुज़ारअत (ज़मीन के ठेके देना) ममनूअ है। अलबत्ता मसाकात (ज़मीन को पानी देना) मुतलकन जायज़ है।

दफा नम्बर 136: हर मालिके ज़मीन को ज़मीन से फायदा उठाने पर मजबूर किया जायेगा। ज़मीन से फायदा उठाने के लिये उसे किसी किस्म की इम्दाद की ज़रूरत हो तो बैतुलमाल से हर मुम्किन तरीक़े से उसकी मदद की जाएगी। हर वो शक्स, जो ज़मीन से तीन साल तक कोई फायदा उठाये बग़ैर उसको बेकार छोड़ रखे, तो ये ज़मीन उस से लेकर किसी और को दी जायेगी।

दफा नम्बर 137: तीन तरह की अशिया अवामी मिल्कियत में शामिल है:
(1) हर वो चीज़ जो जमाअत की ज़रूरत हो, मसलन शहर के मैदान।
(2) खत्म न होने वाली मआदनिय्यात जैसे तेल के क़ुऐ।
(3) वो अशिया जो तबई तौर पर अफराद के साथ मखसूस नहीं हो सकतीं, मसलन नेहरें।

दफा नम्बर 138: कारखाना बहैसियते कारखाना इनफिरादी मिल्कियत होता है। ताहम कारखाने का वही हुक्म है जो उसकी पैदावार का है। चुनान्चे कारखाने में पैदा होने वाली चीज़ इनफिरादी इमलाक में से हो तो कारखाना भी इनफिरादी मिल्कियत में होगा। मसलन कपड़े का कारखाना। अगर कारखाने की पैदावार ऐसी शय जो अवामी मिल्कियत के ज़ुमरे में आती हो, जैसा कि लोहे का कारखाना।

दफा नम्बर 139: रियासत के लिये यह जायज़ नहीं के वह इनफिरादी मिल्कियत की किसी चीज़ को आम मिल्कियत में दे दे। क्योंकि अवामी मिल्कियत होना माल की नोइयत पर मुन्हसिर है और यह माल की सिफ्फत है, न की रियासत की राय।

दफा नम्बर 140: उम्मत के हर फर्द को अवामी मिल्कियत में दाखिल हर चीज़ से फायदा उठाने का हक़ हासिल है। रियासत के लिये किसी खास फर्द को आम मिल्कियत के इमलाक का मालिक बनाना या उससे फायदा उठाने की इजाज़त देना जायज़ नहीं।

दफा नम्बर 141: रियासत के लिये रिआया के मफादात के लिये बन्जर ज़मीन या आम मिल्कियत में दाखिल किसी चीज़ को लोगों के लिये ममनू करार देना जायज़ है।

दफा नम्बर 142: माल को जमा करके रखना खज़ाना बनाना ममनू है। अगरचे उस पर ज़कात भी क्यों न दी जाये।

दफा नम्बर 143: मुसलमानों से ज़कात ली जायेगी। ज़कात सिर्फ उन अम्वाल पर ली जायेगी जिन पर ज़कात लेने को शरीअत ने मुतय्यन कर दिया है, मसलन नकदी, तिजारती साज व सामान, मवेशी और गल्ला। जिन अम्वाल पर ज़कात लेने की कोई शरई दलील न हो, उन पर ज़कात नहीं ली जायेगी। ज़कात हर साहिबे निसाब से ली जायेगी, ख्वाह वह मुकल्लफ हो जैसा के आक़िल बालिग इंसान या वह गैर मुकल्लिफ हो, जैसा के बच्चा और मजनून। फिर इस ज़कात को बैतुलमाल की एक खास मद में रखा जायेगा। ज़कात को कुराने करीम में वारिद आठ अस्नाफ में से किसी एक या एक से जाइद अस्नाफ के अलावा कहीं और खर्च नहीं किया जायेगा।

दफा नम्बर 144: जम्मियों से जिज़या लिया जायेगा और जिज़या ज़िम्मियों के बालिग मर्दो से उनके इस्तिताअत के मुताबिक़ लिया जायेगा। औरतों और बच्चों से जिज़या नहीं लिया जायेगा।

दफा नम्बर 145: खिराजी ज़मीन पर खिराज इस्तिताअत के मुताबिक़ लिया जाएगा और उशरी ज़मीन की पैदावार पर ज़कात ली जायेगी।

दफा नम्बर 146: मुसलमानों से वोह टैक्स वसूल किया जाता है जिस की शरह ने इजाज़त दी हो और जितना बैतुलमाल के इखराजात को पूरा करने के लिये काफी हो। शर्त इसमें यह है के यह टेक्स उस रक़म पर वसूल किया जाता है जो साहिबे माल के पास माअरूफ तरीक़े के मुताबिक़ अपनी ज़रुरियात को पूरा करने के बाद जाइद हो और यह टैक्स रियासत की ज़रुरियात को पूरा करने के लिये भी काफी हो।

दफा नम्बर 147: वह तमाम आमाल, जिन की अन्जामदही को शरीअत ने उम्मत पर फर्ज़ करार दिया है, अगर बैतुलमाल में उन आमाल (जिम्मेदारियों) को अन्जाम देने के लिये माल न हो तो ये फर्ज़ उम्मत की तरफ मुन्तकिल होता है। ऐसी सूरत में रियासत के इस अम्र का हक़ हासिल है के वह इस फरीजे से ओहदाबरा होने के लिये उम्मत पर टैक्स लाज़िम कर दे, लेकिन जिन उमूर की अदायगी को शरीअत ने उम्मत पर फर्ज़ करार नहीं दिया है, उनके लिये टैक्स वसूल करना रियासत के लिये जायज़ नहीं। चुनान्चे रियासत कोट फीस या दफतरी फीस या अदालती टैक्स या किसी भी तरह का टैक्स नहीं ले सकती।

दफा नम्बर 148: रियासती बजट की असनाफ (किस्मे) दाइमी नोइयत की होती है, जिन्हें अहकामें शरीआ ने मुकर्रर कर दिया है। उसकी मज़ीद ज़ैली मुद्दात होती हैैं जिन में से हर मद के लिये रकूम मुख्तस की जाती है। बजट की मिक़दार और जिन मदात के लिये रकूम मुख्तस की जाती है, ये सब ख़लीफा की राय और इज्तिहाद पर मौकूफ हैं।

दफा नम्बर 149: बैतुलमाल की आमदन के दाइमी जराये ये हैं : माले फेय, जज़िया, खिराज, रकाज का पाँचवाँ हिस्सा और ज़कात। इन अम्वाल को हमेशा वसूल किया जायेगा ख्वाह उन की ज़रूरत हो या न हो।

दफा नम्बर 150: बैतुलमाल की दाइमी आमदनी रियासत के इखराजात के लिये नाकाफी होने की सूरत में रियासत मुसलमानों से ज़राइब (टैक्सेज) वसूल करेगी और यह टैक्सेज इन मदात के लिये इकट्टे किये जाऐगे:

(1) फुक़राअ, मसाकीन, मुसाफिर और फरीज़ाए जेहाद की अदायगी के लिये बैतुलमाल पर फर्ज़ इखराजात को पूरा करने के लिये।

(2) उन इखराजात को पूरा करने के लिये, जिन्हे पूरा करना बैतुलमाल के जिम्मे बतौर बदल वाजिब है, मसलन मुलाज़मीन के इखराजात, फौजियों का राशन और हुक्काम के मुआवजे।

(3) उन इखराजात को पूरा करना, जो बैतुलमाल पर मफादेआम्मा के लिये बग़ैर किसी बदल के वाजिब हैं। मसलन नइ सड़कें बनाना, ज़मीन से पानी निकालना, मसाजिद, मदारिस और शफाखाने बनावाना।

(4) उन नुक़सानात का तदारुक करना, जो बैतुलमाल पर वाजिब है। मसलन कोई हंगामी हालत, कहत, तूफान और ज़लज़ले।

दफा नम्बर 151: वोे अम्वाल भी जराय आम्दनी में शुमार होते हैं जो सरहदी इलाकों पर कस्टम (चुन्गी) के ज़रिये हासिल होते है और बैतुलमाल में जमा होते है। इसी तरह अवामी मिल्कियत या रियासती मिल्कियत से हासिल होने वाले अम्वाल और वो अम्वाल जिन का कोई वारिस न होने की वजह से उन्हें बैतुमाल में रखा गया हो। नेज़ मुरतदीन का माल भी ज़राऐ आमदनी है।

दफा नम्बर 152: बैतुलमाल के अम्वाल को इन छ: अस्नाफ में तक़सीम किया जायेगा:

(1) वो आठ अस्नाफ (categories) जो अम्वाले ज़कात के मुस्तहिक़ हैं, उन पर ज़कात की मद से खर्च किया जायेगा ।

(2) फुकराअ, मसाकीन, मुसाफिर (इब्ने सबील), जेहाद, मक़रूज़ (गारेमीन) पर खर्च करने के लिये अम्वाले ज़कात में से कुछ माल मौजूद न हो तो उन पर बैतुलमाल की दाइमी नोइयत की आमदनी के ज़राय से खर्च किया जायेगा। लेकिन इस में भी अगर कोई माल न हो तो कर्ज़दारों (गारमीन) पर कुछ खर्च नहीं किया जायेगा।
लेकिन फुकराअ, मसाकीन, मुसाफिर और जेहादी ज़रूरत को पूरा करने के लिये टैक्स लगाये जायेगें और अगर टैक्स लगाने में किसी फसाद का खौफ हो तो टैक्स की बजाय बतौरे कर्ज़ अम्वाल हासिल किये जायेगें।

(3) वो अश्खास जो रियासत के लिये खिदमात सरअंजाम दे रहे हैं, जैसे मुलाज़मीन, हुक्काम और फौज, उन पर बैतुलमाल से खर्च किया जायेगा। लेकिन जब बैतुलमाल का माल उन के लिये काफी न हो तो टैक्स लगा कर उन की ज़रुरियात को पूरा किया जायेगा और अगर टैक्स लगाने की सूरत में किसी किस्म के फसाद का खौफ हो तो उस मक़सद के लिये कर्ज़ लिये जायेगें।

(4) बुनियादी मसालेह (मफादात) और ज़रुरियात जैसे रास्तों, मसाजिद, हस्पतालों और मदारिस पर बैतुलमाल से खर्च किया जायेगा। लेकिन जब बैतुलमाल में इतना माल न हो तो टैक्स वसूल करके उन पर खर्च किया जायेगा।

(5) आला सहूलियात और ज़रुरियात पर बैतुलमाल से खर्च किया जायेगा। जब बैतुलमाल में उन पर खर्च करने के लिये माल मौजूद न हो तो उन पर खर्च नहीं किया जायेगा बल्कि उन्हें मुलतवी किया जायेगा।

(6) हंगामी हालात मसलन ज़लज़ला और तूफान वगैरह की सूरत में बैतुलमाल से खर्च किया जायेगा। बैतुलमाल में माल न होने की सूरत में उन के लिये फौरन कर्ज़ लिया जायेगा। फिर टैक्स जमा करके उसे अदा किया जायेगा।

दफा नम्बर 153: रियासत अपने हर शहरी के लिये रोजगार की ज़मानत देगी।

दफा नम्बर 154: अफराद और कम्पनियों के मुलाज़मीन तमाम फराइज़ और हुक़ूक़ के लिहाज़ से रियासत के मुलाज़मीन की तरह हैं। जो भी उजरत पर काम करता है वो मुलाज़िम है, ख्वाह अमल और आमिल (काम करने वाले) की नोइयत कुछ भी हो। चुनान्चे जब अजीर (मुलाज़िम) और मुस्ताजिर (काम करवाने वाले) के दर्मियान उजरत पर इख्तिलाफ हो जाये तो उजरति मिस्ल के मुताबिक़ फैसला किया जायेगा। अगर उस (उजरत) के अलावा किसी और चीज़ में इख्तिलाफ हो जाये तो उस का फैसला अहकामे शरीअत के मुताबिक़ मुलाज़मत के मुआहिदात के तहत होगा।

दफा नम्बर 155: काम के फायदे या मालाज़िम से हासिल होने वाले नफेअ के लिहाज़ से उजरत को मुक़र्रर करना जायज़ है। मुलाज़िम की मालूमात या उसकी इल्मी शहादत (अस्नाद) के लिहाज़ से उस की उजरत मुकर्रर नहीं की जायेगी होगी। मुलाज़िम की तनख्वाह में कोई सालाना इज़ाफा नहीं होगा, बल्कि उन्हें उन के काम की पूरी उजरत दी जायगी, जिस के वो मुस्तहिक़ हैं।

दफा नम्बर 156: जिस शख्स के पास माल नहीं या वोह काम नहीं कर सकता और न ही उसका कोई ऐसा रिश्तेदार है जिस पर उसे नफका देना फर्ज़ है तो रियासत उसे नफके की ज़मानत देगी। इस तरह आजिज़ व मोहताज को ठिकाना देना भी रियासत की ज़िम्मेदारी है।

दफा नम्बर 157: रियासत ऐसी तदाबीर इख्तियार करती है के माल रिआया के दर्मियान गर्दिश करता रहे और सिर्फ खास तबके के दर्मियान ही गर्दिश में न रहे।

दफा नम्बर 158: रियासत रिआया के हर फर्द को इस काबिल बनाने की कोिशश करती है के वो अपने लिये आला मेअयारे ज़िन्दगी की ज़रूरतों को पूरा कर सके। रियासत दर्जे ज़ैल तरीक़े से माअशरे में तवाज़ुन पैदा करने की कोिशश करती है और जिस का इन्हेसार अम्वाल की दस्तयाबी पर है:

(1) बैतुलमाल में जो अम्वाल हों, ख्वाह वह मनकूला हों या गैर-मनकूला हों और माले फेय वगैरह, रियासत उन में से रिआया को अता करेगी।

(2) जिन लोगों के पास इतनी ज़मीन न हो जिस से उन का गुज़ारा हो सके तो रियासत उन्हें आबाद ज़मीन मे से ज़मीन देगी। अलबत्ता जिन लोगों के पास ज़मीन तो है लेकिन वह उसको काश्त नहीं करते तो उन्हें ज़मीन नहीं दी जायेगी। जो जोग ज़राअत (agriculture) नहीं कर सकते उन्हें माल दिया जायेगा।

(3) ऐसे कर्ज़दार, जो अपना कर्ज़ चुकाने से आजिज़ हों, रियासत ज़कात के माल और माले फेय वगैरह से उन का कर्ज़ा चुकायेगी।


दफा नम्बर 159: रियासत ज़रई उमूर और ज़रई पैदावार की निगरानी उस ज़रई पालिसी की बुनियाद पर करेगी, जिस मे ज्यादा से ज्यादा पैदावार के ज़रिये ज़मीन से फायदा उठाया जायेगा।

दफा नम्बर 160: रियासत सनअत से मुताल्लिक़ तमाम उमूर की खुद निगरानी करती है और आवामी मिल्कियत में दाखिल तमाम मस्नूआत की देखभाल भी बराहेरास्त खुद करती है।

दफा नम्बर 161: बैरूनी तिजारत का एतबार ताजिर के मुल्क के लिहाज़ से होती है न के साज़ व सामान के लिहाज़ से। चुनान्चे हरबी मुल्क के ताजिर का हमारे इलाकों में तिजारत करना ममनू है, सिबाये यह के किसी खास ताजिर या खास माल की तिजारत की इजाज़त दी गयी हो। जिन मुमालिक के साथ हमारे मुआहेदात होगें तो उन के ताजिरो के साथ हमारे और उनके दरमियान तय पाने वाले मुहायदे की रू से मामला किया जायेगा। अवाम में से जो ताजिर होंगे उन्हे इस चीज़ को बाहर ले जाने से रोका जायेगा, जिस की रियासत को ज़रूरत है या जिस से दुश्मन को फौजी, सनअती या इक़तेसादी क़ुव्वत हासिल होती हो। अलबत्ता उन्हे अपना माल रियासत में लाने से नहीं रोका जायेगा। इन अहकामात से वो मुल्क मुस्तश्ना होगा जिस के साथ हमारी अम्लन हालते जंग में हो, जैसा के इस्राइल, क्योंकि उसके साथ तमाम मुआमलात, चाहे वह तिजारती हों या कोई और, उसे दारूल हरब समझते हुये तय किये जायेगें।

दफा नम्बर 162: रिआया के तमाम अफराद को ज़िन्दगी के मसाइल से मुताल्लिक़ रिसर्च लेबोरेटरियाँ बनाने का हक़ हासिल है और खुद रियासत को भी चाहिये के वो इस किस्म की तज़ुरबागाहें कायम करे।

दफा नम्बर 163: अफराद को ऐसी तजुरबेगाहों की मिल्कियत से रोका जायेगा, जो ऐसा मवाद पैदा करें जिस का अफराद की मिल्कियत में होना उम्मत या रियासत के लिये नुकसानदेह हांे।

दफा नम्बर 164: रियासत रिआया के तमाम अफराद को तमाम तिब्बी सहूलतें मुफ्त फराहम करेगी, लेकिन वह डाक्टरों को प्रायवेट प्रेक्टिस करने और अदवियात फरोख्त करने से नहीं रोकेगी।

दफा नम्बर 165: इस्तेहसाल और ग़ैर-मुल्की सरमाये का इस्तेमाल और ग़ैर-मुल्कि सरमाया-कारी ममनूअ होगी, इसी तरह किसी गैर-मुल्की को कोई इम्तियाज़ी रिआयत नहीं दी जायेगी।

दफा नम्बर 166: रियासत अपनी एक खास करंसी जारी करेगी और उसे किसी अज़नबी नकदी से मुंसलिक करना जायज़ नहींं होगा।

दफा नम्बर 167: रियासत की करंसी सोना और चाँदी पर मुश्तमिल होगी, ख्वाह उसे ढाला गया हो या न ढाला गया हो। सोना और चाँदी के अलावा किसी और चीज़ को नकदी की हैसियत हासिल नहीं होगी। रियासत के लिये सोना और चाँदी के बदल के तौर पर कोई और चीज़ भी जारी करना भी जायज़ होगा। बशर्ते कि जो चीज़ जारी की जाय उसके मसावी इतनी मालियत का सोना या चाँदी रियासत की मिल्कियत में मौजूद हो। पस रियासत के लिये जायज़ है के वह उस सूरत में पीतल, कांसे या कागजी नोट वगैरह पर अपने नाम का ठप्पा लगा कर जारी करे। बशर्तेके उस के पास इतनी ही मालियत का सोना या चाँदी मौजूद हो।

दफा नम्बर 168: बराबरी के उसूल पर जिस तरह दाखिली तौर पर नक़दी का तबादला जायज़ है, उसी तरह इस्लामी रियासत और दूसरी रियासतों की करन्सियों के माबेन तबादला भी जायज़ होगा। अगर उन दोनो करन्सियों की जिन्स अलग-अलग हो तो उस सूरत में उन के माबेन कमी-बेशी भी जायज़ होगी। लेकिन शर्त यह है के ये माअमला दस्त-ब-दस्त हो, उधार की बुनियाद पर ऐसा करना जायज़ नहीं। जब दोनो करन्सीयॉ मुख्तलिफ हों तो बग़ैर किसी क़ैद (शर्त) के करंसियों की शरह तबादले में कमी बेशी हो सकती है। अवाम का हर फर्द अन्दरूनी या बैरूनी करन्सियों को खरीदना या बेचना चाहे तो उसे इजाज़त होगी। उसके लिये किसी करन्सी की इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं होगी।

Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.