अमीरे जिहाद
शोबाऐ हरब - अफवाज
दफा नं. 61: शोबाऐ हरब, मुसल्लेह अफवाज, पुलिस, असबाब व ज़राये, फौजी मुहिमात और लड़ाई के साज़ो सामान बग़ैराह पर ज़िम्मेदार होता है। इसी तरह असकरी (armament) कॉलिज, कमीशन, फौज की इस्लामी तरबियत, और असकरी तरबियत और जंग या जंगी तैयारी से मुताल्लिक़ हर काम की ज़िम्मेदारी भी शोबाऐ हरब के ज़िम्मे है।
दफा नं. 62: जिहाद मुसलमानों पर फर्ज़ है। चुनाचे फौजी तरबियत लाज़मी है। लिहाज़ा हर मुसलमान मर्द जब पन्द्राह साल की उम्र को पहुंच जाये तो उस पर जिहाद की तैयारी के लिये फौजी तरबियत हासिल करना फर्ज़ है। जहां तक फौज में भरती होने का ताल्लुक़ है तो यह फर्ज़े किफाया है।
दफा नं. 63: फौज की दो अक़साम है:
अव्वल: अहतियाती (reserve) फौज - इससे मुराद वोह तमाम मुसलमान है जो असलहा उठा सकते हैं।
दोम: मुस्तक़िल फौज - मुस्तक़िल फौज की तनख्वाहें दिगर मुलाज़िमीन की तरह रियासती बजट से मुखतस की जाती है।
दफा नं. 64: फौज के लिये अलविया (अलम) और रायात (झंडो) का ताय्युन किया जायेगा। रियासत का सरबराह (ख़लीफा) जिसे फौज का सरबराह बनायेगा, उसे अलम अता करेगा, जब के झंडे ब्रिगेड कमांडर्स तक़सीम करेगें।
दफा नं. 65: खलीफा फौज का भी क़ाईद होता है और वही फौज के कमांडर-इन-चीफ का तक़र्रुर भी करता है। इसी तरह वोह हर ब्रिगेड और हर डिविज़न के कमांडर का तक़र्रुर भी करता है। फौज की बाक़ी तरबियत उसके उमरा और ब्रिगेड कमांडर करते है जहॉ तक फौज के स्टाफ कमांडर्स का ताल्लुक़ है तो इन का तक़र्रुर जंगी तरबियत (सक़ाफत) की बुनियाद पर होगा और उन्हे कमांडर-इन-चीफ मुक़र्रर करेगा।
दफा नं. 66: पूरी फौज एक इकाई है और उसे मुख्तलिफ छावनियों में रखा जाता है। यह छावनियां मुख्तलिफ विलायात (सूबों) में होती है और बाज़ छावनियां जंगी हिकमते अमली के मक़ामात पर होती है। इसी तरह कुछ छावनियां हमेशा मुतहर्रिक रहती हैं और यह बेपनाह जंगी क़ुव्वत की हामिल होती है। इन छावनियों को कई एक मजमूओ में मुनज्ज़म किया जाता है। फिर हर मजमूऐ का एक खास फौजी नाम रखा जाता है और इसका एक खास नम्बर होता है जैसे यूनिट न. 1, न. 2, न. 3 वग़ैराह या उन्हे सूबों और शहरों के नाम के साथ मौसूम किया जाता है।
दफा नं. 67: फौज के लिये हर मुमकिन आला मेयार की अस्करी तालीम को मुम्किन बनाना और जिस क़दर हो सके उसे फिकरी तौर पर बंुलद करना ज़रूरी है। फौज के हर सिपाही को इस्लामी सखाफत से बेहरावर किया जाना चाहिये ताकि उसके अन्दर इस्लामी बेदारी हो, ख्वाह यह इजमाली शक्ल ही में क्यों न हो।
दफा नं. 68: यह अम्र इन्तहाइ ज़रूरी है के हर छावनी में ऐसे कमांडरों की काफी व शाफी तादाद मौजूद हों जो फौजी और जंगी उमूर के माहिर हों। जो जंगी मनसूबा बंदी और मारकों के बारे में महारत रखते हो। ऐसे कमांडरों का तनासुब फौज में मुमकिन हद तक ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए।
दफा नं. 69: फौज के पास वाफिर मिक़दार में असलेहा, आलात, ज़रूरी साज़ो सामान और लवाज़मात का होना इंतेहाइ ज़रूरी है ताकि एक इस्लामी फौज के तौर पर इसके फरीज़े की अदाएगी में यह चीज़े इसके लिये मुआविन साबित हांे।
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