ख़िलाफत का संविधान: भाग - 8: वाली


वाली

(The Governors of the Provinces)

दफा नं. 52: उन इलाक़ों को, जो इस्लाम रियासत के जेरेनगीं है कई एक इकाइयों में तक़सीम किया जाता है और हर इकाई को विलाया (सूबा) कहा जाता है। फिर विलाया को कई इकाइओं में तक़सीम किया जाता है और हर इकाइ को अमाला कहा जाता है। विलाया के सरबराह को वाली या अमीर और अमला के सरबराह को आमिल या हाकिम कहा जाता है।

दफा नं. 53: वालियों का तकर्रुर ख़लीफा करता है। अमाल का तक़र्रुर ख़लीफा भी कर सकता है वाली भी, बशर्ते यह कि खलीफा यह इख्तियार वालियों के हवाले करे। वालियों और आमिलों के लिेय वही शरायत हैं जो मुआवनीन के लिए है, चुनाँचे उनका मुसलमान, आक़िल, बालिग़, आजाद, आदिल और मर्द होना लाज़मी है। जो काम उनके हवाले किये गए है उनसे अहदेबरां होने की अहलियत भी शर्त है। इन लोगों का इन्तिखाब तक़वा और क़ुव्वत की बुनियाद पर होगा।

दफा नं. 54: वाली को अपनी ख़लीफा के नायब की हैसियत से अपने सूबे के शोबों के तमाम कामों में हुक्मरानी ओर निगरानी का इख्तियार हासिल होता है। गोया वाली को अपनी विलाया में वह तमाम इख्तियारात हासिल है जो मुआवनीन को रियासत में हासिल है यानी वह अपनी विलाया का अमीर है, मालियात, अदलिया और फौज को छोड़कर हर चीज़ पर उसकी निगरानी होगी। ताहम पुलिस बतौर तनफीज़ उसके मातेहत होगी और बहैसियते इदारा उसके मातेहत नही होगी।

दफा नं. 55: वाली अपनी अमारात से मुताल्लिक़ा उमूर के बारे में जिन फैसलों या अहकामात पर दस्तखत करे, उनके बारे में ख़लीफा को मुत्तिला करने का पाबन्द नहीं है। हाँ! इख्तियारी तौर पर उसे बाखबर कर सकता है। अलबत्ता जब कोई नया मसला दरपेश हो तो वोह ख़लीफा के इल्म में लाए बग़ैर उसका फैसला करने का मजाज़ नहीं। लेकिन अगर ताखीर की सूरत में किसी मामले के बिगड़ जाने का खतरा हो तो इस मामले को तय करेगा। फिर ख़लीफा को लाज़मी तौर पर आगाह करेगा और वोह असबाब भी बतायगा जिन की वजह से वोह मुआमले को तर करने से क़ब्ल ख़लीफा को बखबर नहीं कर सका।

दफा नं. 56: हर विलाया के अन्दर विलाया में रहने वालों में से एक कमेटी (मजलिस) मुंतखिब की जायेगी जिसका सरबराह खुद वाली होगा। इस कमेटी को इन्तिज़ामी उमूर से मुताल्लिक़ अपनी राय के इज़हार का इख्तियार होगा, जब के हुकूमती मामलात से मुत्ताल्लिक़ इस के पास यह इख्तियार नहीं होगा। इस की अग़राज़ (वजूहात) दो हैं:

(1) मजलिस वाली को विलाया और उस की ज़रुरियात के मुताल्लिक़ मालूमात पेश करे और उन अमूर पर अपनी राय दे।

(2) वाली की हुक्मरानी पर अपनी रज़ामन्दी या शिकायत के इज़हार के लिये।

पहले मामले में (वाली के लिए) मजलिस की राय पर अमल करना लाज़िम नहीं, जबके दूसरे मामले में मजलिस की राय पर अमल करना लाज़िम है। पस अगर मजलिस शिकायत करे तो वाली को माज़ूल कर दिया जाएगा।

दफा नं. 57: एक विलाया पर एक ही शख्स का तवील मुद्दत तक वाली के तौर पर िखदमात सरअंजाम देना मुनासिब नहीं, खास तौर पर जब किसी एक विलाया में वोह मरकजी शख्सियत बन जाए या उसकी वजह से लोगों के फितने में पड़ने का खतरा हो।

दफा नं. 58: वाली का एक विलाया से दूसरी विलाया में तबादला नहीं किया जाएगा क्योंकि उसे मखसूस जगह पर अमूमी इख्तियार सौंपा जाता है। अलबत्ता उसे माज़ूल करके फिर दूसरी जगह पर वाली मुक़र्रर किया जा सकता है।

दफा नं. 59: जब ख़लीफा वाली को माज़ूल करना मुनासिब समझे तो उसे माज़ूल कर सकता है, या फिर मजलिसे उम्मत इस पर अदमे ऐतमाद का इज़हार करे या मजलिस इस से नाराज़गी का इज़हार करे, तो उसे माज़ूल किया जाएगा। वाली को सिर्फ ख़लीफा ही माज़ूल कर सकता है।

दफा नं. 60: ख़लीफा का फर्ज़ है कि वह वालियों के आमाल पर नज़र रखे और उनकी कड़ी निगरानी करे, वोह उन पर नज़र रखने के लिये अपने नायब मुकर्रर करे, उनके बारे में बराबर तफतीश करता रहे, वक्तन-फ-वक्तन तमाम वालियों का एक साथ या अलग-अलग इजलास बुलाता रहे और वालियों के बारे में रिआया की िशकायतों से उन्हें बाखबर करें।

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