मसलिहती रब्त और रूहानी रब्त

इस्लाम की फिकरी क़ियादत: भाग - 2


मसलिहती रब्त और रूहानी रब्त
(Bond of Interest and Spiritual Bond)



इसी तरह के फासिद रवाबित में एक मसलिहत का राब्ता (bond of interestرابطه المصلحيه ) है और दूसरा रूहानी राब्ता (spiritual bondرابطه الروحيه ) जिस से कोई निज़ाम नहीं फूटता। कुछ लोग ख्याल करते है कि यह दोनों इंसानो के माबेन बाहमी रब्त और तआल्लुक़ का सबब हो सकते हंै, लेकिन यह सरासर ग़लत है। जहाँ तक मसलिहत (फवाइद और नफा) के रब्त (bond) और तआल्लुक़ की बात है तो यह भी एक वक्ती रब्त होने की वजह से नोए इंसानी के माबेन रब्तो-तआल्लुक़ का एहल नहीं। क्योंकि यह रब्त बड़े फायदे के सामने छोटे फायदे को दाव पर लगा देने का शिकार बना रहता है। इसलिए एक मसलिहत को दूसरी पर तरजीह देते वक्त यह रब्त हमेशा मफक़ूद होता है। और जब फायदे एक दूसरे से मुख्तलिफ हो जाते है, तो यह रब्त भी खत्म हो जाता है। इस तरह लोग एक दूसरे से जुदा हो जाते हंै। इसके अलावा जब फायदे पूरे हो जाएं तो यह रब्त इख्तिताम को पहुँच जाता है। इसलिए इस रब्त को लोगों के माबेन बाहमी तआल्लुक़ का सबब गरदान्ना लोगों के लिए इन्तेहाइ खतरनाक है।
जहाँ तक उस रूहानी रब्त की बात है, जिस से कोई निज़ाम पैदा नहीं होता, तो वह रब्त हालते तदय्युन (religiousness) में ज़ाहिर होता है। लेकिन कारज़ारे हयात में इसका कोई किरदार नहीं होता। यह ही वजह है कि यह रब्त भी एक अधूरा और गैरअमली रब्त है। चुनाँचे यह भी ज़िन्दगी के मसाइल और मोआमलात मंें उनके दरमियान रब्तो-तआल्लुक़ बनने का एहल नहीं, और इसी वजह से ‘नसरानी अक़ीदा’ यूरोपी अक़वाम और गिरोहों के दर्मियान रब्ते बाहमी का सबब नहीं बन सका, बावुजूदे कि उन सब अक़वाम ने इस अक़ीदे को अपनाया है। इसकी वजह यह है कि यह एक ऐसा रब्त है, जिस मे से कोई निज़ाम नहीं निकलता।

मब्दा का रब्त (Ideological Bond)
चुनाँचे जब लोग निशातेसानिया (revival نهضه - ) की राह पर चलना चाहें तो मज़कूरा तमाम रवाबित (bonds) इंसानों को बाहम मरबूत नहीं कर सकते (बान्ध नहीं सकते)। इस के बरअक्स ज़िन्दगी में इंसानों को बाहम मरबूत (बान्धे) रखने का सही तरीन रब्त सिर्फ उस अक़ली अक़ीदे (rational doctrine) का रब्त हो सकता है, जिसके अंदर से कोई निज़ाम फूटता है और यह सिर्फ एक मब्दा का रब्त ही हो सकता है।
मब्दा (مبداء) से मुराद वह अक़ली अक़ीदा है, जिस से कोई निज़ाम फूटता है। अक़ीदा कायनात, इंसान, हयात और उस से क़ब्ल व बाद के इस दुनियावी ज़िन्दगी के साथ तआल्लुक़ के बारे में कुल्ली फिक्र (comprehensive idea) को कहा जाता है। जहाँ तक इस अक़ीदे से फूटने वाले निज़ाम का तआल्लुक़ है, तो यह इंसान की मुश्किलात के हल, उस हल को नाफिज़ करने की कैफियत, अक़ीदे की हिफाज़त और मब्दा (ideology) को आगे पेश करने पर मुश्तमिल होता है। इस हल को नाफिज़ करने की कैफियत, आयडियोलोजी की हिफाजत और उसको आगे पेश करना ‘तरीक़ा’ (method - طريقه) कहलाता है। अक़ीदा और हल को ‘फिक्र (idea - فكره) कहा जाता है। मालूम हुआ कि आयडियोलोजी फिक्र और तरीक़े का मजमुआ है।

मब्दे की बुनियाद
अब यह मब्दा (ideology) किसी शख्स के ज़हन में या तो वही (Divine Revelation) की बुनियाद पर पैदा होगा, जिसकी तब्लीग़ (propagate) करने का उसे हुक्म दिया गया हो, या किसी शख्स की ग़ैर-मामूली ज़हानत की वजह से उस के ज़हन में पैदा होगी। सहीतरीन मब्दा वही मब्दा है जो किसी इंसान के ज़हन मे वहीए इलाही के ज़रिये से पैदा हुआ हो। क्योंकि यह मब्दा उस ज़ात की तरफ से है, जो कायनात, इंसान और हयात की ख़ालिक़ है। लिहाज़ा सिर्फ यही मब्दा सही और क़तई (definitive) है। वह मब्दा जो किसी इंसान के ज़हन में उस की ग़ैर-मामूली ज़हानत की वजह से पैदा होता है, वह बातिल मब्दा है। क्योंकि यह अक्ल से पैदा होता है और अक्ल महदूद है, जो तमाम कायनात का अहाता करने से आजिज़ है। इस के बातिल होने की एक वजह यह भी है कि इंसानों में पाए जाने वाला तनज़ीमी फहम (समझ) हमेशा तफावुत, इख्तिलाफ और तनाकुज़ (contradictions) का शिकार बना रहता है! और यह उस मुआशरे सेे भी मुतास्सिर होता है जिस में वह रह रहा होता है। इसलिए इस फहम के नतीजे के तौर पर पैदा होने वाला मुतनाकिज़ निज़ाम इंसानी बदबख्ती (misery) पर मुंतज होगा इसलिये इंसान के ज़हन से जन्म लेने वाली आयडियोलोजी अपने अक़ीदे और इस अक़ीदे से फूटने वाले निज़ाम के एतबार से बातिल होगा।
इसी बुनियाद पर कहा जा सकता है कि मब्दा (ideology) की बुनियाद कायनात, इंसान और हयात के बारे में कुल्ली फिक्र (comprehensive idea - الفكره الكليه) है। इस आयडियोलोजी मे ऐसे तरीक़े (method) का पाया जाना एक लाज़मी अम्र है, जो उसे ज़िन्दगी के मैदान में नाफिज़ करे और वुजूद बख्शे। इसके तरीक़े के बग़ैर कोई आयडियोलोजी वुजूदपज़ीर नहीं हो सकती। कायनात, इंसान और हयात के बारे मे कुल्ली फिक्र आयडियोलोजी की असास होती है और यही कुल्ली फिक्र इस आयडियोलोजी का अक़ीदा है, और यही इसका फिक्री क़ायदा और फिक्री क़ियादत (intellectual leadership) कहा जाता है। इस की बुनियाद पर इंसान की फिक्री जहत और ज़िन्दगी के बारे मे उसके नुक्तए-नज़र का तअय्युन होता है। यही तमाम अफकार की बुनियाद है और इसी से ज़िन्दगी की तमाम मुश्किलात का हल निकलता है। जब के फिक्र के लिए तरीक़े का होना इसलिए लाज़मी और ज़रूरी है कि वह निज़ाम, जो अक़ीदे से निकलता है, अगर उसमे मुश्किलात के हल की तनफीज़, अक़ीदे की हिफाज़त और दावत को पेश करने की कैफियत शामिल न हो, तो यह महज़ एक फर्ज़ी और खयाली फलसफा (mythical philosophy) बनकर रह जाएगा, जो किताबों के अंदर तो मौजूद होगा लेकिन ज़िन्दगी के मैदान में इसका कोई किरदार और असर न होगा। चुनाँचे मब्दा के अंदर अक़ीदे का होना लाज़मी है और मसाइल के हल के लिए एक तरीक़े का होना भी नागुज़ीर है।

मबदे के सही होने के बुनियादी उसूल
एक मब्दा (आयडियोलोजी) जिस के अक़ीदे से निज़ाम पैदा होता है, उसमे सिर्फ फिक्र और तरीक़े का पाया जाना इस अम्र की दलील नहीं कि वह मब्दा लाज़मन सही मब्दा है। बल्कि इसका मतलब सिर्फ यह है कि वह मब्दा हो सकता है, इसका और कोई मतलब नहीं। जहाँ तक मब्दा के सही या बातिल होने का ताअल्लुक़ है तो इसका दारोमदार अक़ीदे पर होता है। जो चीज़ किसी आयडियोलोजी के सहीह या बातिल होने पर दलालत करती है वोह इस आयडियोलोजी का अक़ीदा है क्योकी अक़ीदा ही वह फिक्री क़ायदा (intellectual basis - القاعده الفكريه) है जो तमाम अफकार के लिए बुनियाद होता है और इसके ज़रिये तमाम नुक़ता-ए-नज़र का तआय्युन होता है और इसी से हर मसले का हल और तरीक़ा फूटता है। पस अगर यह फिक्री उसूल (यानी अक़ीदा) दुरुस्त हो तो वोह आयडियोलोजी दुरुस्त आयडियोलोजी होती है और अगर यह फिक्री क़ायदा ग़लत हो तो आयडियोलोजी भी ग़लत होती है। अगर फिक्री क़ायदा (उसूल) इंसान की फितरत के मुआफिक हो, और अक्ल पर मबनी हो, तो वह यह दुरुस्त उसूल होगा है। और अगर यह उसूल इंसानी फितरत के मुखालिफ हो और उसकी बुनियाद अक्ली न हो तो यह बातिल क़ायदा है।
इसी क़ायदे का इंसानी फितरत के मुआफिक़ होने का मतलब यह है कि यह क़ायदा इंसानी फितरत मे पाइ जाने वाली ‘जिबिल्लते तदय्युन’ (instinct of religiousness or reverence) के साथ मुआफिक़त रखता हो। यानी यह अक़ीदा इंसान की आजज़ी (weekness) को और इंसान का एक खालिके-मुदब्बिर (the Creator) की तरफ रुजू करने की कैफियत को तस्लीम करता हो। इसके मबनी बर अक्ल होने का मतलब यह है कि वह मबनी बर माद्दा (matter) या मबनी बर ‘‘हले वस्त’’ (compromise) ना हो।

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