खारिजा सियासत
(Foreign Policy)
दफा नम्बर 180: सियासत उम्मत के अन्दरूनी और बेरूनी मुआमलात की निगरानी को कहते हैं। सियासत उम्मत और रियासत दोनों की जानिब से होती है। रियासत बराहेरास्त मुआमलात की निगरानी करती है और उम्मत उस काम पर उसका मुहास्बा करती हैं।
दफा नम्बर 181: किसी फर्द, हिज्ब, गिरोह या जमाअत के लिये ये जायज़ नहीं के उसके किसी अजनबी मुल्क के साथ किसी किस्म के ताल्लुक़ात हों। दूसरे मुमालिक के साथ ताल्लुक़ात सिर्फ रियासत का काम है। क्योंकि सिर्फ रियासत को उम्मत की सरपरस्ती का हक़ हासिल है। उम्मत और जमाअतें उन खारिजा ताल्लुक़ात के बारे में रियासत का मुहास्बा कर सकती हैं।
दफा नम्बर 182: किसी मक़सद का नेक होना उसके ज़रिये (वसीले) को नेक (जायज़) नहीं बनाता (اَلغایتہ لاتبررالواسطتہ) क्योंकि तरीका फिक्र के साथ मरबूत है। चुनान्चे फर्ज़ या मुबाह तक पहुंचने के लिये हराम को ज़रिया नहीं बनाया जा सकता। पस वसीले की पालिसी तरीक़े की पालिसी से कभी भी मुतनाक़िज़ नहीं होना चाहिये।
दफा नम्बर 183: सियासी चाल चलना खारिजा सियासत में एक ज़रूरी अम्र है, उसकी क़ुव्वत का राज इस अम्र में पोशीदा है के आमाल (कामों) का ऐलान किया जाये और अहदाफ (मक़ासिद) को खुफिया रखा जाये।
दफा नम्बर 184: सियासत के अहम असालीब (styles) ये है :
रियासतों के जराइम को बे-नक़ाब करने की जुरअत। झूठी पॉलिसियों के खतरात को बयान करना। खबीस साज़िशों को बे नकाब करना और गुमराहकुन शख्सियतों की हौसला शक्नी करना।
दफा नम्बर 185: अफराद, उम्मतों और रियासतों के मुआमलात की निगेहदाश्त के दौरान इस्लामी अफकार की अज़मत को ज़ाहिर करना खारिजा सियासत का आला तरीक़ा है।
दफा नम्बर 186: उम्मत का सियासी कज़िय्या (मौत व हयात का मसअला) यह है के इस्लाम इस उम्मत की रियासत की क़ुव्वत है। और यह की इस्लामी अहकामात का बेहतरीन तरीक़े से निफाज़ किया जाए और दुनिया के सामने इस्लामी दावत को पैहम तरीक़े से पहुँचाता जाये है।
दफा नम्बर 187: इस्लामी दावत को पेश करना ही खारिजी सियासत के लिये महवर व मदार की हैसियत रखता है। इसी बुनियाद पर इस्लामी रियासत के तमाम दूसरी रियासतों से ताल्लुक़ात क़ायम होंगे।
दफा नम्बर 188: इस्लामी रियासत के दूसरी रियासतों के साथ तआल्लुक़ात इन चार पहलुओं पर मुश्तमिल होंगे :
(1) आलमे इस्लाम में क़ायम तमाम ममलिकतें गोया एक इलाक़े मुल्क में क़ायम हैं। ये खारिजा तआल्लुक़ात के ज़मन में दाखिल नहीं होगी और इन के साथ तआल्लुक़ात को खारिजा सियासत नहीं समझा जायेगा, बल्कि उन सब को एक रियासत की सूरत में इकठ्ठा करने के लिये काम करना फर्ज़ है।
(2) वोह रियासतें जिन के साथ हमारे इक़तिसादी, तिजारती, सक़ाफती या अच्छी हमसायगी के मुआहिदात हैं तो उन के साथ मोआमलात को मुआहिदात के मुताबिक़ निपटाया जायेगा। अगर मुआहिदा इजाज़त देता हो तो उस रियासत की लोग शनाख्त के साथ बग़ैर पासपोर्ट के इस्लामी रियासत में दाखिल हो सकेंगे। लेकिन शर्त यह होगी के वो भी हमारे साथ ये मुआमला करेंगे। उस के साथ इक़तिसादी और तिजारती तआल्लुक़ात महदूद मुद्दत और मख़सूस अशिया की बुनियाद पर होंगे और बशर्ते की इस रियासत के अशिया की इस्लामी रियासत को ज़रूरत हो और यह की इन्हें फरोख्त की जाने वाली अशिया उस रियासत को मज़बूत बनाने का सबब न बनें।
(3) वह मुमालिक, जिन के और हमारे दरमियान किसी किस्म के मुआहिदात नहीं हैं। इसी तरह इस्तेमारी मुमालिक, मसलन बरतानिया, अमरीका, फांस और वो मुमालिक जो मुसलमान ममालिक पर अपनी नज़रे जमाऐ बैठे हैं, जैसा के रूस, तो उनके साथ हालते जंग का माअमला किया जायेगा। उनके बारे में मुकम्मल अहतियात बरती जायेगी। उन के साथ किसी क़िस्म के सिफारती ताअल्लुकात क़ायम करना दुरुस्त नहीं। उन मुमालिक के अवाम हमारी रियासत में उस वक्त दाखिल हो सकेगी अगर उन के पास पासपोर्ट हो, और हर फर्द के लिये और हर फर्द को सफर के लिये मख़सूस इजाज़त दी गई हो।
(4) जो मुमालिक हमारे साथ अमलन हालते जंग में हैं जैसा कि इस्राइल तो उस के साथ तमाम मुआमलात को हालते जंग की बुनियाद पर निपटाया जायेगा। उसके साथ हमारा माअमला अम्ली जंग का होगा, ख्वाह उस के साथ आरजी जंग बन्दी का मुआहिदा हो या ना हो, और उस के शहरी हमारे मुल्क में दाखिल नहीं हो सकते।
दफा नम्बर 189: फौजी मुआहिदात और इस नोइयत के दिगर मुआहिदात या इस से मुन्सलिक दिगर मुआहिदात मसलन सियासी मुआहिदात, अडडे और एयरपोट वगैरह किराये पर देने के मुआहिदात, सब ममनूअ होंगे। अलबत्ता अच्छी हमसायगी, इक्तिसादी, तिजारती, मालयाती, सकाफती मुआहिदात या आरजी जंग बन्दी के मुआहिदात कर सकते है।
दफा नम्बर 190: रियासत के लिये उन तमाम तन्जीमों में िशरकत जायज़ नहीं होगी, जिन की बुनियाद इस्लामी नहीं या इस्लामी अहकामात को छोड़ कर गैर-इस्लामी अहकामात की ततबीक की बुनियाद पर क़ायम हैं। जैसा के बेयनलअकवामी तनजीम, (अकवामें मुत्तहेदा-United Nations) आलमी अदालते इंसाफ (International Court of Justice) आलमी मालियाती फण्ड (International Monetary Fund) आलमी बैंक (World Bank) इस तरह इलाकायी तनजीमें जैसा के अरब लीग (Arab League) वगैरह।
0 comments :
Post a Comment