ख़िलाफत का संविधान: भाग - 15: ताअलीमी पालिसी

ताअलीमी पालिसी
(Education System)




दफा नम्बर 169: ताअलीम पालिसी का इस्लामी अक़ीदे की बुनियाद पर इस्तेवार होना फर्ज़ है। चुनान्चे तमाम तदरीसी वाद और तरीकाये तदरीस को इस तरह वज़ह किया जायेगा के ताअलीम में इस बुनियाद से इन्हराफ बिल्कुल न हो।

दफा नम्बर 170: ताअलीमी पालिसी का मक़सद इस्लामी अक़लिया और इस्लामी नफसिया की ताअमीर है। लिहाज़ा वह तमाम मवाद, जिस की तदरीस मकसूद हो, इसी बुनियाद पर होगा।
दफा नम्बर 171: ताअलीम का मक़सद इस्लामी शख्सियत पैदा करना और ज़िन्दगी के मसाइल से मुताअल्लिक उलूम और मआरिफ से लेस करना है। चुनान्चे तरीकाए ताअलीम को इस तरह बनाया जायेगा के उस से ये मक़सद हासिल होगा, और वह हर वो तरीक़ा ममनू होगा जो इस मक़सद से हटाता हो।
दफा नम्बर 172: उलूमे इस्लामिया और उलूमे अरबिया के हफ्तावार पीरियड मुकर्रर करना ज़रूरी है। इस तरह वक्त और ताअदाद के ऐतबार से दूसरे उलूम के लिये भी पीरियड मुकर्रर किये जायेंगे।

दफा नम्बर 173: ताअलीम में तजरबाती उलूूम, उनसे मुल्हिक़ उलूम मसलन रियाज़ी और सकाफती उलूम के दरमियान फर्क़ को मलहूज रखना ज़रूरी है। चुनान्चे तजरबाती और उस से मुल्हिका उलूम बक़दरे ज़रूरत पढ़ाये जायेंगे। मराहिले ताअलीम में किसी भी मरहले में उनकी पाबन्दी लाज़मी नहीं होनी चाहिए। जहां तक सकफती मआरिफ का ताअल्लुक है तो उन्हें आला ताअलीम से मुताअयन ताअलीमी पालिसी के मुताबिक़ इब्तेदाइ मराहिल में इस तरह पढाया जाऐगा के ये इस्लामी अफकार वा अहकामात से मुतनाक़िज़ न हों। आला ताअलीमी मरहले को फर्क़त साइंस के तौर पर पढ़ा जायेगा। उस में भी ये शर्त है के ये ताअलीमी पालिसी और ताअलीमी मक़सद से हट कर बिल्कुल न हो।

दफा नम्बर 174: ताअलीम के हर मरहले में इस्लामी सक़ाफत की ताअलीम लाज़मी है। आला मरहले में मुख्तलिफ इस्लामी मआरिफ की फरुआत (disciplines) मकसूस की जायें। जैसा के तिब, इंजीनियरिंग, तिबियात वगैरह में मखसूस की जाती हैं।

दफा नम्बर 175: फुनून (Arts) और सनअत (Crafts) एक पहलू से साइंस के साथ शामिल होंगे जैसा के तिजारती फुनून, जहाजरानी (navigation), ज़राअत (agricultural)। इस पहलू से उन्हें बग़ैर किसी क़ैद व शर्त के हासिल किया जायेगा उन का एक सक़ाफती पहलू भी है जब ये किसी खास नुक्तऐनज़र से मुतास्सिर हों, जैसे के तस्वीर, सन्ग-तराशी वगैरह। चुनान्चे अगर ये इस्लामी नुक्तऐनज़र के मुखालिफ हों तो उन्हें हासिल नहीं किया जायेगा।

दफा नम्बर 176: मनहजे ताअलीम एक ही होगा और रियासत के मनहजे तालीम के अलावा किसी दूसरे मनहज की इजाज़त नहीं होगी। प्राइवेट स्कूलों की उस वक्त तक इजाज़त होगी जब तक के वो रियासत के ताअलीमी मनहज, उसकी ताअलीमी पॉलीसी और उस के मक़सद की बुनियाद पर कायम होंगे। ये भी शर्त भी होगी के उन में मखलूत ताअलीम (लड़कों और लड़कियों का एक साथ पढ़ना) की मुमानेअत होगी। मर्दों ज़न (male and female) का इख्तिलात (free-mixing), मोअल्लेमीन (teachers) और तुलबाअ (students), दोनों के दरमियान ममनू होगा। मजीद बरां ये शर्त भी होगी के ताअलीम किसी खास गिरोह, दीन या मज़हब या रंग व नस्ल के साथ मख़सूस न हो।

दफा नम्बर 177: वो ताअलीम जो ज़िन्दगी के मैदान में हर इंसान, चाहे वो मर्द हो या औरत, के लिये ज़रूरी है, फर्ज़ होगी। चुनान्चे पहले दो मरहलों में ताअलीम लाज़मी होगी और ये रियासत की ज़िम्मेदारी है के वे मुफ्त ताअलीम का बन्दोबस्त करे। आला ताअलीम को भी मुमकिन हद तक मुफ्त देने की कोशिश की जायेगी।

दफा नम्बर 178: रियासत स्कूलों और जामेआत (universities) के अलावा भी लायब्रेरियाँ, तजरबागाहें और मआरिफ के तमाम वसाइल मुहैया करेगी, ताकि वो लोग, जो मुख्तलिफ मुबाहिस और मआरिफ, मसलन फिक़, उसूले फिक़, हदीस व तफ़सीर, तिब्ब, इंजीनियरिंग, कीमिया वगैरह में, इसी तरह इजादात और दरियाफ़्तों में अपनी बहस व तहक़ीक़ को जारी रखना चाहें तो जारी रखे यूं उम्मत के पास मुजतहेदीन, मौजदीन और अहले नुदरत अफराद की एक कसीर ताअदाद मौजूद हो।

दफा नम्बर 179: ताअलीम के तमाम मराहिल मे तालीफ से ग़लत फायदा उठाना ममनूअ होगा, कोई भी शख्स ख्वाह वो मुअल्लिफ हो या कोई और जब कोई किताब मतबा (print) करेगा और उस को शायेअ (publish) करेगा तो फिर नश्रो इशाअत जुमलए हुक़ूक़ महफूज़ नहीं रख सकेगा। अलबत्ता उस के पास ऐसे अफकार हों जिन की अब तक नश्रो इशाअत नहीं हुइ तो उसके लिये यह जायज़ है के वो लोगों को यह अफकार दे कर उसकी उजरत ले, जैसा के वोह किसी शख्स को ताअलीम देकर उजरत लेता है।

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