अख़्लाक़े हसना (5): औलमा, बुज़ुर्गान, एहले इ़ल्मो फ़ज़ल की तौक़ीर ताज़ीम करना, ईसार-ओ-मुआसात, और राहे ख़ैर में इन्फ़ाक़ (ख़र्च):

14 औलमा, बुज़ुर्गान, एहले इ़ल्मो फ़ज़ल की तौक़ीर ताज़ीम करनाः

अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः

قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الَّذِيْنَ يَعْلَمُوْنَ وَ الَّذِيْنَ لَا يَعْلَمُوْنَ١ؕ اِنَّمَا يَتَذَكَّرُ اُولُوا الْاَلْبَابِ
बताओ तो इ़ल्म वाले और बेइ़ल्म क्या बराबर हैं? यक़ीनन नसीहत वही हासिल करते हैं जो अक़्लमंद हों। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अल ज़ुमर- 09)

हज़रत जाबिर (رضي الله عنه) से बुख़ारी शरीफ़ में मरवी है के आप (صلى الله عليه وسلم) शुहदाऐ उहद में से दो दो शहीदों को एक क़ब्र में एक साथ रखते थे तब पूछते केः किस को ज़्यादा क़ुरआन याद है? जब किसी की तरफ़ इशारा किया जाता तो उसको पहले क़ब्र में उतारते।

हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से हाकिम और इब्ने हिब्बान ने हदीस नक़ल की है जिसे हाकिम ने बुख़ारी की शर्त पर सही बताया है, नीज़ इब्ने मुफ़ल्लेह ने अपनी किताब अल आदाब में इस की असनाद को जय्यद बताया है, मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((البرکۃ في أکابرکم))
तुम्हारे बुज़ुर्गों में बरकत है।

हाकिम ने हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है और सही बताया जिस से अ़ल्लामा ज़ेहबी ने इत्तिफाक़ किया है के नबी अकरम ने फ़रमायाः

((لیس منا من لم یرحم صغیرنا، و یعرف حق کبیرنا))
वो शख़्स हम से नहीं जो हमारे छोटों पर रहम ना करे और हमारे बुज़़ुर्गों के हक़ से वाकिफ़ ना हो।

मुसनद अहमद में हज़रत उ़बादा बिन सामित (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसे अल मुंज़री और हैसमी ने हसन सनद बताया है, नीज़ तिबरानी में भी यही रिवायत है जिसे हैसमी ने हसन सनद बताया है, मरवी है के आप  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لیس من امتي من لم یجلّ کبیرنا و یرحم صغیرنا،ویعرف لعالمنا حقہ))
वो शख़्स मेरी उम्मत में से नहीं जो हमारे बुज़ुर्गों की ताज़ीम ना करे, हमारे छोटों पर रहम ना करे और हमारे आलिम के हक़ को ना पहचाने।

तिरमिज़ी, मुसनद अहमद, सुनन अबी दाऊद और इमाम बुख़ारी की अलअदब उल मुफर्रद में उ़मर बिन शुऐब (رضي الله عنه) अपने वालिद से और वो अपने दादा से रिवायत करते हैं जिसे इमाम नौवी ने सही हदीस बताया है के हज़रत मुहम्मद मुस्तफा  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لیس منا من لم ریحم صغیرنا، ویعرف شرف کبیرنا))
वो हम में से नहीं जो हमारे छोटों पर रहम ना करे और हमारे बुज़ुर्गों के मुक़ाम-ओ-मर्तबे से वाक़िफ़ ना हो।

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لیَلِنِی منکم أولوا الأحلام والنھی ثم الذین یلونھم ثلاثاً، وإیاکم وھیشات الأسواق))
तुम में से वो लोग (नमाज़ में) मेरे क़रीब रहें जो समझदार और मालूमात रखते हैं, इसके बाद वो जो उनसे कुछ कम हों, यह बात आप ने तीन बार दुहराई, फिर फ़रमायाः और ख़बरदार, बाज़ार की तरह लग़्व बातें ना करना।

अबू सईद समरा बिन जनदब (رضي الله عنه) कहते हैं के मैं रसूल (صلى الله عليه وسلم) के ज़माने में कम उ़म्र था, तो मैं आप की बातें याद कर लिया करता था, लेकिन मुझे वो बातें रिवायत करने से सिर्फ़ ये चीज़ रोके रखती है के वहाँ मुझ से बड़ी उम्र के लोग मौजूद थे। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

सुनन अबी दाऊद में हज़रत अबू मूसा (رضي الله عنه) से रिवायत है जिसे इमाम नोवी ने हसन और इब्ने अफ़लह ने सनद जय्यद बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((إن من إجلال اللّٰہ إکرام ذي الشیبۃ المسلم ،و حامل القرآن غیر غالی فیہ ولا الجافي عنہ و إکرام ذي السلطان المقسط))
बेशक अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के इज्लाल-ओ-एहतिराम में ये भी शामिल है के सफ़ैद रैश मुस्लिम (बुजुर्ग) की तकरीम की जाय, हाफ़िज़े क़ुरआन जो ना तो तिलावत में ग़ुलू से काम लेता हो, और ना ही इस (क़ुरआन) को भूलता हो या इस से कुछ छूट जाता हो, और इंसाफ़ परवर हाकिम का इकराम करना।

15 ईसार-ओ-मुआसात:

हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हदीस रिवायत की गई हैः

((جاء رجلٌ إلی النبیا فقال: إنی مجھود،فأرسل إلی بعض نساۂ،فقالت:والذي بعثک بالحق ما عندي إلا ماء،ثم أرسل إلی أخری فقالت مثل ذٰلک حتی قلن کلھن مثل ذٰلک:لا والذي بعثک بالحق ما عندي إلا ماء،فقال النبيا من یضیف ھذا اللیلۃ؟ فقال رجل من الأنصار أنا یا رسول اللّٰہ، فأنطلق بہ إلی رحلہ فقال لإمرأتہ:أکرمي ضیف رسول اللّٰہا، و في روایۃ قال لإمرأتہ: ھل عندک شيء فقالت لا إلا قوت صبیاني،قال علّلیھم بشيء و إذا أرادوا العشاء فنومیھم، وإذا دخل ضیفنا فأطفءي السراج،وأریہ أنا نأکل فقعدوا وأکل الضیف وباتا
 طاویین،فلما أصبح غدا علی النبي افقال: لقد عجب اللّٰہ من صنیعکما بضیفکما اللیلۃ))متفق علیہ۔

एक आदमी नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) के पास आया और कहा मैं भूख़ से बेहाल हुआ हूँ। आपने अपनी अज़वाजे मुतहरात में से एक के पास कहलवाया, तो उन्होंने कहाः क़सम उस ज़ात की जिसने आपको हक़ के साथ मबऊ़स फ़रमाया मेरे पास पानी के अ़लावा कुछ भी नहीं। फिर आपने दूसरी बीवी के पास भेजा उन्होंने भी यही जवाब दिया। इसी तरह आपकी तमाम अज़वाजे मुतहरात ने यही जवाब दिया के क़सम उस ज़ात की जिसने आप को हक़ के साथ मबऊ़स फ़रमाया हमारे पास पानी के अ़लावा कुछ नहीं। फिर आप (صلى الله عليه وسلم) ने हाज़िरीन से पूछाः आज रात इस की ज़ियाफ़त कौन करेगा। एक अंसारी ने कहाः या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! मैं इनकी ज़ियाफ़त करूंगा। फिर वो अंसारी उस मेहमान को अपने घर ले गए और अपनी बीवी से कहाः मेहमाने रसूल की ज़ियाफ़त करो। एक रिवायत के मुताबिक़ अंसारी ने अपनी बीवी से कहा क्या कुछ है? बीवी ने जवाब दिया नहीं सिवाए बच्चों के खाने के अ़लावा। अंसारी ने कहाः बच्चों को किसी चीज़ से बहला दो और शाम को उनको सुला देना और जब मेहमान खाने बैठे तो चिराग़ बुझा देना। मैं ज़ाहिर करूंगा गोया में खा रहा हूँ। चुनांचे जब लोग रात में दस्तरख़वान पर बैठे। मेहमान ने खाना खाया और उन्होंने ख़ाली पेट रात गुज़ारी जब सुबह अंसारी नबी अकरम के पास पहुंचे तो आप ने फ़रमायाः कल रात मेहमान के साथ किए गए हुस्ने सुलूक से अल्लाह سبحانه وتعالیٰ बहुत ख़ुश हुए। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((طعام الاثنین کافي لثلاثۃ و طعام الثلاثۃ کافي الأربعۃ))
दो लोगों का खाना तीन के लिए काफ़ी है और तीन का खाना चार के लिए।

हज़रत अबू सईद अलख़ुदरी (رضي الله عنه) से मरवी है के वो कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के साथ हम एक सफ़र में थे के एक आदमी अपनी सवारी पर आया और इधर उधर देखने लगा तो रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((من کان معہ فضل ظھر فلیعد بہ علی من لا ظھر لہ و من کان لہ فضل من زاد فلیعد بہ علی من لا زاد لہ،فذکر من أصناف المال ماذکر حتی رأینا أنہ لا حق لأحد منا في فضل))

जिस किसी के पास इज़ाफ़ी सवारी हो वो उसे दे दे जिसके पास सवारी ना हो, और जिस किसी के पास इज़ाफ़ी (उस वक़्त की ज़रूरत से ज़्यादा) खाना हो वो उसे दे दे जिसके पास कुछ भी ना हो, इस तरह आप (صلى الله عليه وسلم) ने इस क़दर चीज़ें गिनवा दीं के हमें गुमान होने लगा के हम में से किसी को भी अपनी किसी इज़ाफ़ी चीज़ रखने का इख़्तियार ही नहीं है।

हज़रत अबू मूसा (رضي الله عنه) कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
अशअ़री हज़रात जब जंग में हों, काम पर जाऐं या शहर में उनके खाने कम हो जाते हैं उनके पास जो कुछ होता है उसे एक कपड़े में इकट्ठा करते हैं फिर बराबरी के साथ एक बर्तन से सब को तक़सीम कर देते हैं। वो मुझ से हैं और मैं उन में से हूँ। (मुत्तफिक़ अ़लैह)


16 सख़ावत और राहे ख़ैर में इन्फ़ाक़ (ख़र्च):


وَ مَاۤ اَنْفَقْتُمْ مِّنْ شَيْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهٗ١ۚ وَ هُوَ خَيْرُ الرّٰزِقِيْنَ
तुम जो कुछ भी अल्लाह की राह में ख़र्च करोगे अल्लाह उसका पूरा पूरा बदला देगा। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: सबा-39)

وَ مَا تُنْفِقُوْا مِنْ خَيْرٍ فَلِاَنْفُسِكُمْ۠١ؕ وَ مَا تُنْفِقُوْنَ اِلَّا ابْتِغَآءَ وَجْهِ اللّٰهِ١ؕ وَ مَا تُنْفِقُوْا مِنْ خَيْرٍ يُّوَفَّ اِلَيْكُمْ وَ اَنْتُمْ لَا تُظْلَمُوْنَ
और तुम जो भली चीज़ अल्लाह की राह में दोगे उसका फ़ायदा ख़ुद पाओगे। तुम्हें सिफ़ अल्लाह سبحانه وتعالیٰकी रजामंदी की तलब के लिए ही ख़र्च करना चाहिए, तुम जो कुछ माल ख़र्च करोगे इसका पूरा पूरा बदला तुम्हें दिया जाऐगा, और तुम्हारा हक़ ना मारा जाऐगा। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः अल बक़रा -272)

وَ مَا تُنْفِقُوْا مِنْ خَيْرٍ فَاِنَّ اللّٰهَ بِهٖ عَلِيْمٌ
तुम जो कुछ माल ख़र्च करो तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰउसका जानने वाला है। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल बक़रारह - 273)

وَ اَنْفِقُوْا مِمَّا جَعَلَكُمْ مُّسْتَخْلَفِيْنَ فِيْهِ١ؕ فَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ
 وَ اَنْفَقُوْا لَهُمْ اَجْرٌ كَبِيْرٌ
और ख़र्च करो उन चीज़ों में से जिन पर उसने तुम को ख़लीफा बनाया है। जो लोग तुम में से ईमान लाऐंगे और माल ख़र्च करेंगे उनके लिए बड़ा अज्र है।

(तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः हदीद- 07)
 وَ اَنْفَقُوْا مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ سِرًّا وَّ عَلَانِيَةً

और जो कुछ हम ने उन्हें दे रखा है उसे छुपे खुले ख़र्च करते हैं। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अलराअद- 22)
لَنْ تَنَالُوا الْبِرَّ حَتّٰى تُنْفِقُوْا مِمَّا تُحِبُّوْنَ١ؕ۬

जब तक तुम अपनी पसंदीदा चीज़ से अल्लाह की राह में ख़र्च ना करोगे हरगिज भलाई ना पाओगे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: आले इमरान- 92)

مَثَلُ الَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ اَنْۢبَتَتْ سَبْعَ سَنَابِلَ فِيْ كُلِّ سُنْۢبُلَةٍ مِّائَةُ حَبَّةٍ١ؕ وَ اللّٰهُ يُضٰعِفُ لِمَنْ يَّشَآءُ١ؕ وَ اللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيْمٌ
जो लोग अपना माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल उस दाने जैसी है जिस में से सात बालियाँ निकलें और हर बाली में सौ दाने हों, और अल्लाह जिसे चाहे बढ़ा चढ़ा कर दे और अल्लाह कुशादगी वाला और इ़ल्म वाला है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अलबक़राह -261)

وَ مَثَلُ الَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمُ ابْتِغَآءَ مَرْضَاتِ اللّٰهِ وَ تَثْبِيْتًا مِّنْ اَنْفُسِهِمْ كَمَثَلِ جَنَّةٍۭ بِرَبْوَةٍ اَصَابَهَا وَابِلٌ فَاٰتَتْ اُكُلَهَا ضِعْفَيْنِ١ۚ فَاِنْ لَّمْ يُصِبْهَا وَابِلٌ فَطَلٌّ١ؕ وَ اللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِيْر

उन लोगों की मिसाल जो अपना माल अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की रजामंदी की तलब में दिल की ख़ुशी और यक़ीन के साथ ख़र्च करते हैं उस बाग़ जैसी है जो ऊंची ज़मीन पर हो और ज़ोरदार बारिश इस पर बरसे और वो अपना फल दुगना लावे और अगर इस पर बारिश ना भी बरसे तो फुआर ही काफ़ी है और अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अलबक़राह -265)

اَلَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمْ بِالَّيْلِ وَ النَّهَارِ سِرًّا وَّ عَلَانِيَةً فَلَهُمْ اَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ١ۚ وَ لَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَ لَا هُمْ يَحْزَنُوْنَؔ
जो लोग अपने मालों को रात दिन छुपे खुले ख़र्च करते हैं उनके लिए उनके रब के पास अज्र है, और ना उन्हें ख़ौफ़ है और ना ग़मगीनी। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल बक़राह -274)

(اَلَّذِیْنَ یُنْفِقُوْنَ فِی السَّرَّآءِ وَالضَّرَّآءِ وَالْکٰظِمِیْنَ الْغَیْظَ وَالْعَافِیْنَ عَنِ النَّاسِط وَاللّٰہُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِیْنَ)

जो लोग आसानी में, सख़्ती के मौक़े पर भी अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करते हैं, ग़ुस्सा पीने वाले और लोगों से दरगुज़र करने वाले हैं, अल्लाह سبحانه وتعالیٰ उन नेककारों को दोस्त रखता है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम-: आले इमरान-134)

हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) रिवायत करते हैं के नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لا حسد إلا في اثنین:رجل آتاہ اللّہُ مالاً فسلطہ علی ھلکتہ في الحق،و رجلٌآتاہ اللّٰہُ حکمۃ فھو یقضي بھا و یعلمھا)) متفق علیہ
हसद सिर्फ़ दो चीज़ों में है। वो आदमी जिस को अल्लाह सुब्हाना سبحانه وتعالیٰ ने माल अ़ता किया फिर राहे हक़ में इसको ख़र्च करने पर मामूर कर दे। और वो आदमी जिस को अल्लाह ने हिक्मत अ़ता फ़रमाई और वो इसके ज़रीये फ़ैसला करे और दूसरों को सिखाये।

हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) से बुख़ारी शरीफ़ में रिवायत नक़ल की है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((أیکم مال وارثہ أحب إلیہ من مالہ؟ قالوا یا رسول اللّٰہ مامنا أحد إلا مالہ أحب إلیہ،قال: فإن مالہ ماقدم ومال وارثہ ماأخر))

तुम में से कौन है जिसे अपने वारिस का माल अपने माल से ज़्यादा मेहबूब हो? सहाबा ने अ़र्ज़ किया या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! हम में से हर एक को अपना माल ज़्यादा मेहबूब है, आप ने इरशाद फ़रमायाः पस इंसान का माल तो वही है जो उसने सद्क़ा करके आगे भेजा और उसके वारिस का माल वो है जो वो पीछे छोड़ गया।

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अ़दई बिन हातिम (رضي الله عنه) से हदीस रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((اتقوا النار ولو بشق التمرۃ))
(जहन्नुम की) आग से बचो गरचे एक खजूर के टुकड़े के (सद्के़) ज़रीये ही हो। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से नक़ल किया है के अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ما من یوم یصبح العباد فیہ إلا ملکان ینزلان، فیقول أحدھما اللھم أعط منفقاً خلفاً و یقول الآخر اللھم أعط ممسکاً تلفاً))متفق علیہ
हर रोज़ जब बंदा सुबह उठता है तो दो फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं इनमें से एक कहता है या अल्लाहः उस शख़्स को बदला अ़ता कर जो (तेरी राह में) ख़र्च करता है और दूसरा फ़रिश्ता कहता है ऐ अल्लाह बर्बाद कर उस शख़्स को जो माल को ख़र्च करने के बजाय रोक कर रखता है।

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((قال اللّٰہ تعالیٰ: أنفق یا ابن آدم أُنفق علیک))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाता हैः ऐ औलादे आदम! तू ख़र्च कर, मैं तेरे ऊपर ख़र्च करने वाला हूँ।

एक मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस में हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने अ़म्र बिन अल आस (رضي الله عنه) से मरवी है के एक आदमी ने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) से दरयाफ़्त किया के कौन सा इस्लाम बेहतर है? आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((تطعم الطعام،و تقرأ علی من عرفت ومن لم تعرف))
खाना खिलाना और लोगों को सलाम करना, हर उस शख़्स को जिसको जानते हो या ना जानते हो।

अबू उमामा सद्दी बिन अ़जलान (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूल अकरम ने फ़रमायाः

((یا ابن آدم إنک أن تبذل الفضل خیر لک،و أن تمسک شر لک،ولا تلام علی کفاف و ابدأ بمن تعقل،والید العلیا خیر لک من الید السفلی))

ऐ इब्ने आदम! अगर तुम अपने ज़ाइद माल को ख़र्च करो तो ये तुम्हारे लिए बाइसे ख़ैर है और अगर रोक लो तो तुम्हारे हक़ में बुरा है, अलबत्ता अपनी ज़रूरत भर के लिए रोक लेने पर कोई मलामत नहीं, ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है (यानी देने वाला हाथ लेने वाले हाथ से बेहतर है) मुस्लिम

हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) कहते हैं के रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((أربعون خصلۃ أعلاھا منیحۃ العنز،ما من عامل یعمل بخصلۃ منھا رجاء ثوابھا و تصدیق موعدھا إلا أدخلہ اللّٰہ تعالیٰ الجنّۃ))
चालीस ख़स्लतें हैं, इन में से सब से आला दूध देने वाले जानवर का अ़तिया देना है। जो कोई शख़्स इन में से किसी को सवाब की उम्मीद और इस अ़मल पर किए गए वादे पर पूरे यक़ीन के साथ करेगा, अल्लाह को उसको जन्नत में दाख़िल फ़रमाएंगे।

हज़रत अस्मा बिंत अबूबक्र (رضي الله عنها ) फ़रमाती हैं के उन्हें रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने नसीहत फ़रमाईः

((لَا تَوْکِیْ فَیُوْکٰی عَلَیْکِ))متفق علیہ
माल को रोक रोक कर ना रखो के अल्लाह भी तुम से रोक लेगा (मुत्तफिक़ अ़लैह)

हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में मरवी है के उन्होंने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  से सुनाः

((مثل البخیل و المنفق کمثل رجلین علیھما جُنَّتان من حدید من ثدیھما إلی تراقیھما،فأما المنفق إلا سبغت أو وفرت علی جلدہ حتی تخفي بنانہ وتعفو أثرۃ۔ وأما البخیل فلا یرید أن ینفق شےئاً إلا لزقت کل حلقۃ مکانھا فھو یوسعھا فلاتتسع))

बख़ील और ख़र्च करने वाले की मिसाल एैसी है जैसे दो आदमी हों उनके बदन पर सीने से हँसली तक लोहे की ज़िरहें हैं। पस ख़र्च करने वाला ख़र्च करता है तो ये ज़िरह इसके बदन पर खुल जाती है या चोड़ी हो जाती है यहाँ तक के उसके पांव की उंगलियों के पोरों को छुपा लेती है और इसके क़दमों के निशानों को मिटा देती है। बख़ील आदमी जब ख़र्च करने का इरादा करता है तो उसकी ज़िरह का हर हलक़ा अपनी ही जगह चिमट जाता है, वो उसे ढीला करना चाहता है लेकिन कर नहीं पाता। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) फ़रमाते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((من تصدق بعدل تمرۃ من کسب طیب ولا یقبل اللّٰہ إلا الطیب فإن اللّٰہ یقبلھا بیمینہ ثم یربیھا لصاحبھا کما یربي أحدکم فلوہ
 حتی تکون مثل الجبل))

जिस ने कस्बे हलाल से एक खजूर के बराबर भी ख़र्च किया, और अल्लाह सिर्फ़ हलाल ही क़ुबूल करता है, तो अल्लाह इस (खजूर) को अपने दाएं हाथ में लेता है और वैसी ही परवरिश करता है जैसे कोई अपने बछड़े को पालता है यहाँ तक के वो पहाड़ के मानिंद हो जाता है। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

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