हदूद का निफाज़ हर हाल के किया जाये चाहे कोई इस पर मलामत करे

हदीस 20:
أقيموا حدود الله في القريب و البعيد ولا تأخذكم في الله لومة لائم
अल्लाह की हुदूद को, करीब और दूर तक, क़ायम करो, और मलामत करने वाले की मलामत तुम पर असर न डाले. (इब्ने माजा, हाकिम)
तश्रीह: हुदूद के क़वानीन का निफाज़, जिस का शरेह और क़ानूनसाज़ खुद अल्लाह سبحانه وتعالى है एक बहुत बडा फरीज़ा है. यह क़वानीन समाज़ के क़िमती इक़दार (मूल्यों) की हिफाज़त और क़ायम रखने के लिये होते है. और शराईत पूरी होने की सूरत मे इन्हे लागू करना फर्ज़ है इस बात की परवाह किये बिना कि कोई मलामत करेगा उनको जो इन्हे नाफिज़ करते है.

इमाम सयूती की मुताबिक ‘क़रीब और दूर तक’ का मतलब रिश्तेदारी से हो सकता है -  ताकि निजी रिश्ते हुदूद के निफाज़ मे रुकावट न बने. और ना ही इसमे किसी किस्म के समाजी मरतबों या हुक्मरानी के ओहदों का लिहाज़ किया जाये. 
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