25 ख़ियानतः
अल्लाह (سبحانه وتعالیٰ) का इरशादे पाक हैः
اِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْخَآىِٕنِيْنَ۠
यक़ीनन अल्लाह उनको पसंद नहीं करता जो ख़ियानत करते हैं। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अनफाल -58)
يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَخُوْنُوا اللّٰهَ وَ الرَّسُوْلَ وَ تَخُوْنُوْۤا اَمٰنٰتِكُمْ وَ اَنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, जानते बूझते तुम अल्लाह और इसके रसूल के साथ ख़ियानत ना करना (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अनफाल -27)
मुस्लिम शरीफ़ में ईआज़ बिन हिमार अल मजाशई़ से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने अपने ख़ुत्बे में फ़रमायाः
((۔۔۔و أھل النار خمسۃ۔۔۔والخائن الذي لا یخفی لہ طمع وإن دق إلا خانہ))
और एहले जहन्नुम में पाँच हैः ख़ाइन जिसकी हिर्स-ओ-तमह छोटी छोटी चीज़ों में भी छिपी नहीं रहती और वो इन में भी ख़ियानत करता है।
बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((إذا ضیعّت الأمانۃ فانتظر الساعۃ،قال: کیف إضاعتھا؟ قال: إذا اسند الأمر إلی غیر أھلہ فانتظر الساعۃ))
जब अमानतें ज़ाऐ होने लगें तो क़यामत का इंतिज़ार करो, अबू हुरैराह (رضي الله عنه) ने दरयाफ़्त कियाः ये कैसे ज़ाऐ होंगी? आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः जब मुआमलात ग़ैर मुस्तहिक़ (ना अहल) के हवाले किए जाने लगें तो क़यामत का इंतिज़ार करो।
हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूले अकरम صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((آیۃ المنافق ثلاث:إذا حدث کذب،وإذاوعد أخلف،وإذا ائتمن خان))
मुनाफ़िक़
की तीन अ़लामात हैं: जब बात करे तो झूठ बोले, वादा करे तो वादा ख़िलाफ़ी
करे, जब अमानत दी जाये तो ख़ियानत करे। सुनन अबी दाऊद नसाई इब्ने माजा और
हाकिम की मुस्तदरक में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है जिसे
उन्होंने सही बताया और इमाम नौवी ने अपनी रियाज़ उस्सालिहीन में इस की सनद
को सही बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) फ़रमाया करते थेः
((اللھم إني اعوذبک من الجوع فإنہ بئس الضجیع وأعوذ بک من الخیانۃ فإنھا بئست البطانۃ))
या अल्लाह! मैं भूक से तेरी पनाह चाहता हूँ क्योंकि ये बुरी सोहबत है और ख़ियानत से तेरी पनाह चाहता हूँ क्योंकि ये बुरी साथी है।
26 ग़ीबत और बोहतानः
ग़ीबत ये है के तुम अपने भाई के अंदर पाई जाने वाली ख़ामियों का ज़िक्र करो जिस को वो नापसंद करता हो। और अगर वो खामियाँ उसमें ना पाई जाऐं तो ये बोहतान कहलाता है और ये दोनों हराम हैं। इन की हुर्मत के दलाइल यूं हैं:
وَ لَا يَغْتَبْ بَّعْضُكُمْ
بَعْضًا١ؕ اَيُحِبُّ اَحَدُكُمْ اَنْ يَّاْكُلَ لَحْمَ اَخِيْهِ مَيْتًا
فَكَرِهْتُمُوْهُ۠١ؕ وَ اتَّقُوا اللّٰهَ١ؕ اِنَّ اللّٰهَ تَوَّابٌ
رَّحِيْمٌ
और ना तुम में से कोई किसी की ग़ीबत करे, क्या तुम में से
कोई इसको पसंद करेगा के वो अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाए? वो तो तुम्हें
नागवार हुआ ना! और अल्लाह का डर रखो यक़ीनन अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वाला,
निहायत रहम फ़रमाने वाला है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: हुजरात-12)
और फ़रमायाः
هَمَّازٍ مَّشَّآءٍۭ بِنَمِيْمٍۙ
कचूके लगाता, चुग़लियाँ खाता फिरता है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : क़लम-11)
मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((أتدرون
ما الغیبۃ؟قالوا اللّٰ و رسولہ أعلم قال:ذکرک أخاک بما یکرہ،قیل أفرأیت إن
کان في أخي ما أقول؟ إن کان فیہ ما تقول فقد اغتبتہ وإن لم یکن فیہ ما
تقول فقد بھتّہ))
क्या
तुम जानते हो के ग़ीबत क्या है? सहाबा ने अ़र्ज़ कियाः अल्लाह और उसके रसूल
बेहतर जानते हैं। आप ने फ़रमायाः अपने भाई का ऐसा ज़िक्र करना जो उसको
नापसंद हो। पूछा गयाः अगर मेरे भाई में वो बातें हों जो मैं कह रहा हूँ तब?
आप ने फ़रमायाः जो तुम कह रहे हो अगर वो सिफ़ात उस में पाई जाती हैं तो तुम
ने उस की ग़ीबत बयान की और अगर उस में वो सिफ़ात नहीं हैं जो तुम कह रहे हो
तो ये बोहतान हुआ।
मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः
(( کل مسلم علی المسلم حرام دمہ وعرضہ ومالہ))
हर मुसलमान की जान, उसकी इज़्ज़त और उसका माल दूसरे मुसलमान पर हराम है।
सहीहैन में हज़रत अबू बक्रा इ से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने हज्जतुल विदाअ़ के ख़ुत्बे में फ़रमायाः
((إن دماء کم وأموالکم وأعراضکم حرام علیکم کحرمۃ یومکم ھذا في شھرکم ھذا في بلدکم ھذا ألا ھل بلغت))
बेशक
तुम्हारा ख़ून, तुम्हारे माल, तुम्हारी इज़्ज़त तुम पर हराम हैं, तुम्हारे
इस दिन, इस महीने और इस शहर की तरह, क्या मैंने पहुंचा ना दिया?
हज़रत आईशा (رضي الله عنها) से मुसनद अबू यअ़ला में रिवायत है जिसे इमाम मुंज़री और इमाम हैसमी ने सही बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने अपने अस्हाब (رضی اللہ عنھم) से फ़रमायाः
((تدرون
أربی الربا عند اللّٰہ؟ قالوا اللّٰہ و رسولہ أعکم،قال:فإن أربی الربا عند
اللّٰہ استحلال عرض امرئ مسلم،ثم قرأ رسول اللّٰہا:(وَالَّذِیْنَ
یُؤْذُوْنَ الْمُؤْمِنِیْنَ وَالََممُؤْمِنٰتِ بِغَیْرِ مَا اکْتَسَبُوْا
فَقَدِ احْتَمَلُوْا بُھْتَانًا وَّاِثْمًا مًُّبِیْنًا عخ))
क्या
तुम जानते हो के अल्लाह के नज़दीक सब से बढ़ कर सूद क्या है? सहाबा ने
अ़र्ज़ कियाः अल्लाह और उसके रसूल बेहतर जानते हैं। आप ने फ़रमायाः बेशक
अल्लाह के नज़दीक सब से बढ़ कर सूद ये है के मुसलमान की आबरू और इफ़्फ़त को
हलाल कर लिया जाये। फिर आप ने ये आयत तिलावत फ़रमाईः
وَ
الَّذِيْنَ يُؤْذُوْنَ الْمُؤْمِنِيْنَ وَ الْمُؤْمِنٰتِ بِغَيْرِ مَا
اكْتَسَبُوْا فَقَدِ احْتَمَلُوْا بُهْتَانًا وَّ اِثْمًا مُّبِيْنًا
और जो लोग मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को, बग़ैर उसके के उन्होंने कुछ किया हो, (तोहमत लगा कर)
ईज़ा पहुंचाते हैं, उन्होंने तो बड़े बोहतान और गुनाह का बार अपने ऊपर उठाया। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अहजाब- 58)
ग़ीबत का सुनना भी हराम है क्योंकि अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने फ़रमायाः
وَ الَّذِيْنَ هُمْ عَنِ اللَّغْوِ مُعْرِضُوْنَۙ
और (मोमिन तो वो हैं) जो लग़्व बातों से एतेराज़ करते हैं। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः सूरा मोमिनून - 03)
وَ
اِذَا رَاَيْتَ الَّذِيْنَ يَخُوْضُوْنَ فِيْۤ اٰيٰتِنَا فَاَعْرِضْ
عَنْهُمْ حَتّٰى يَخُوْضُوْا فِيْ حَدِيْثٍ غَيْرِهٖ١ؕ وَ اِمَّا
يُنْسِيَنَّكَ الشَّيْطٰنُ فَلَا تَقْعُدْ بَعْدَ الذِّكْرٰى مَعَ
الْقَوْمِ الظّٰلِمِيْنَ۰۰۶۸
और
जब तुम उन लोगों को देखो जो हमारी आयतों पर नुक्ता चीनी करते हैं तो उनसे
किनाराकश हो जाओ ताके दूसरी बात में लग जाऐं और कभी शैतान तुम्हें भुलावे
में डाल दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों के पास हरगिज़ ना बैठो।
(तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल अनाम -68)
मुसलमान के लिए मुनासिब ये है के वो अपने मुस्लिम भाई की ग़ैरमौजूदगी में उसकी आबरू की जिस क़दर उसके बस में हो हिफ़ाज़त करे, क्योंकि हुज़ूरे अकरम ने फ़रमायाः
((المسلم أخو المسلم لا یظلمہ ولا یخذلہ۔۔۔))
मुसलमान मुसलमान का भाई है ना उसके साथ ज़ुल्म करता है और ना ही उसको धोका देता है।
और वो शख़्स जो कुदरत के बावजूद मुसलमान की इज़्ज़त-ओ-आबरू की हिफ़ाज़त ना करे वो धोख़े बाज़ है। सुनन अबू दाऊद में हज़रत जाबिर (رضي الله عنه) से मरवी है और इमाम हैसमी ने इस की सनद को हसन बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((ما
من مسلم یخذل امرء اً مسلماً في موضع تنتھک فیہ حرمتہ،وینتقص من
عرضہ،إلاخذلہ اللّٰہ في موطن،یحب فیہ نصرتہ وما من امرئ ینصر مسلماً في
موضع ینتقص فیہ من عرضہ،وینتھک فیہ من حرمتہ،إلا نصرہ اللّٰہ في موطن یحب
فیہ نصرتہ))
कोई मुसलमान
किसी दूसरे मुसलमान को एैसी हालत में छोड़ नहीं देता जहाँ उसकी आबरू को ख़तरा
हो और अगर ऐसा करे तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ उसे भी ऐसे वक़्त छोड़ देगा जब
उसे मदद की ज़रूरत हो। (इसी तरह) कोई मुसलमान किसी दूसरे मुसलमान की आबरू
और इज़्ज़त पर आंच आते वक़्त जब भी उसकी मदद करता है तो अल्लाह कभी उस
मुसलमान की उसकी ज़रूरत के वक़्त मदद ओ नुसरत करता है।
इसी
मौज़ू की दीगर अहादीस हज़रत अबू दरदा, हज़रत अस्मा बिंते यज़ीद, हज़रत अनस,
हज़रत इमरान बिन हुसैन और हज़रत अबू हुरैराह से मरवी हैं और चोथे बाब में
गुजर चुकी हैं। हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने हज़रत मआज़ इब्ने जबल की
राय क़ुबूल की जब उन्होंने हज़रत काब इब्ने मालिक की आबरू-ओ-वकार की
मुदाफे़अ़त की कोशिश की। चुनांचे बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत काब
इब्ने मालिक (رضي الله عنه) से रिवायत तवील हदीस है जिस में उनकी तौबा का
तज़किरा आता है। हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) तबूक में थे और लोगों से
पूछा के काब को क्या हुआ? तो बनी सलमा के एक शख़्स ने कहा के ऐ अल्लाह के
रसूल उन्हें उनके लिबास के शौक़-ओ-मुहब्बत ने ना आने दिया। इस पर हज़रत मआज़
इब्ने जबल ने कहा के तुम ने बड़ी बुरी बात कही, और हुज़ूर से कहा के ऐ अल्लाह
के रसूल, हम तो काब के बारे में सिर्फ़ अच्छी बात ही जानते हैं जिस पर
हुज़ूर ख़ामोश रहे। उलमाए किराम ने छः अस्बाब में ग़ीबत की इज़ाज़त बताई हैः
ज़ुल्म की शिकायत करने में, मुनकर को बदलने की ग़रज़ से मदद तलब करने में,
किसी मुआमले में हुक्मे शरई मालूम करने के लिए, मुसलमानों को शर से मेहफ़ूज़
रखने के मक़सद से जो के नसीहत के ज़ुमरे में आता है, किसी ऐसे शख़्स के फ़िस्क़
या बिद्दत को ज़ाहिर करने के लिए जो ये काम अ़लल एैलान करता हो और किसी को
उसके मारूफ़ नाम से पुकारना। इमाम नोवी ने अज़कार में फ़रमाया के इन अस्बाब
में ग़ीबत के जवाज़ पर इत्तिफाक़ है और ये भी के इस जवाज़ के दलाइल सही और
मशहूर अहादीस से माख़ूज़ हैं। नीज़ यही बात इमाम नोवी ने रियाज़ अस्सालिहीन में
दुहराई और बाअ़ज़ दलाइल पेश किए हैं। नीज़ इमाम सिनानी ने सुबुल अस्सलाम में
भी इन का ज़िक्र किया है। इमाम क़राफ़ी ने अपनी किताब अलज़ख़ीरा में कहा है के
औलमा ने पाँच सूरतों में ग़ीबत को जायज़ बताया हैः नसीहत के लिए, रावी और
गवाह के बयान की तहक़ीक़-ओ-तस्दीक़ में, उनके ख़िलाफ़ जो खुले आम फ़ासिक़ हों, जो
दीन में बिद्दत के मुर्तकिब हों, गुमराह कुन बातें लिखते हों या जब कहने
वाला और मुख़ातिब दोनों इस मुआमले से पहले ही वाक़िफ़ हों।
27 चुग़लख़ोरीः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशादे पाक हैः
هَمَّازٍ مَّشَّآءٍۭ بِنَمِيْمٍۙ
कचूके लगाता, चुग़लियाँ खाता फिरता है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः क़लम- 11)
हज़रत हुज़ैफ़ा बिन अल यमान (رضي الله عنه) से बुख़ारी और मुस्लिम में हदीस नक़ल की है के आँहज़रत (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((لا یدخل الجنۃ نمام))
चुग़लख़ोर जन्नत में दाख़िल नहीं होगा।
हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) भी बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत है के हुज़ूर अकरम दो कब्रों के क़रीब से गुज़रे तो फ़रमायाः
((اِنَّھما یعذَّبان، وما یعذبان فی کبیر بلیٰ انہ کبیرٌ:امّا احدھما فکان یمشی بالنمیمۃ وامَّا الآخر فکان لا یُسْتَتِرُ من بولہٖ))
इन
दोनों को अ़ज़ाब हो रहा है और उनको ये अ़ज़ाब किसी बड़ी या मुश्किल बात पर
नहीं हो रहा, बड़ी ही बात है, इन में एक तो चुग़ली करता था और दूसरा पेशाब से
ख़ुद को बचाता ना था।
28 क़ता रेहमीः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः
فَهَلْ
عَسَيْتُمْ اِنْ تَوَلَّيْتُمْ اَنْ تُفْسِدُوْا فِي الْاَرْضِ وَ
تُقَطِّعُوْۤا اَرْحَامَكُمْ۰۰۲۲ اُولٰٓىِٕكَ الَّذِيْنَ لَعَنَهُمُ
اللّٰهُ فَاَصَمَّهُمْ وَ اَعْمٰۤى اَبْصَارَهُمْ۰۰۲۳
अब
क्या तुम लोगों से इसके सिवा कुछ और तवक़्क़ो की जा सकती है के अगर तुम
उल्टे मुँह फिर गए तो ज़मीन में फिर फ़साद बरपा करोगे और आपस में एक दूसरे के
गले काटोगे।? ये लोग हैं जिन पर अल्लाह ने लानत की और उनको अंधा और बेहरा
बना दिया। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : मुहम्मद- 22,23)
अबी मुहम्मद ज़ुबैर इब्ने मुतइम (رضي الله عنه) से सहीहैन में हदीस नक़ल की है के हुज़ूर पाक (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((لا یدخل الجنّۃ قاطع))
क़ता रेहमी करने वाला जन्नत में दाख़िल नहीं होगा।
अबी अ़ब्दुर्ररहमान अ़ब्दुल्लाह इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) से सहीहैन में रिवायत है के अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने इरशाद फ़रमायाः
((إن
اللّٰہ خلق الخلق حتی إذا فرغ منھم قامت الرحم فقالت:ھذا مقام العائذ بک
من القطعیۃ،قال امّا ترضین أن أصل من وصلک و أقطع من قطعک؟قالت: بلی قال:
فذلک لک))متفق ٌعلیہ
अल्लाह
سبحانه وتعالیٰ ने मख़्लूक़ को पैदा किया फिर जब ये कर चुका तो ख़ूनी
रिश्तेदारी खड़ी हुई और अ़र्ज़ किया के मैं तेरी पनाह चाहती हूँ उससे जो क़ता
रेहमी करे। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने फ़रमायाः क्या तू इस से राज़ी है के
मैं उस पर रहम करूं जो सिला रेहमी करे और उस से अपना फ़ज़्ल रोक लूँ जो क़ता
रेहमी करे। तो उस ने कहाः हाँ। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने फ़रमायाः बस, तो
मैंने ये अ़ता किया।
बुख़ारी शरीफ़ में रिवायत है के आँहज़रत (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((لیس الواصل بالمکافئ ولکن الواصل الذي إذا قطعت رحمہ وصلھا))
बदला
लेने वाला सिला रेहमी करने वाला नहीं होता, बल्कि सिला रेहमी करने वाला तो
वो है के जब उससे रिश्ता तोड़ लिया जाये तो भी वो ख़ुद फिर उसे जोड़ ले।
हज़रत आईशा सिद्दीक़ा (رضي الله عنه) हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) से रिवायत करती हैं के आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((الرحم معلقۃ بالعرش تقول: من وصلني وصلہ اللّٰہ،
ومنن قطعني قطعہ اللّٰہ))
रिश्तेदारी
अ़र्श से लटकी हुई है और कहती है जो मुझ को मिला दे अल्लाह उसको अपने से
मिलाऐगा और जो मुझ को काटे, अल्लाह उसको अपने से काटेगा।
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