अख़्लाक़े हसना (6) :जाहिलों से किनाराकशी, इताअ़त-ओ-फ़रमाबरदारी:

17 जाहिलों से किनाराकशीः


अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः

وَ اَعْرِضْ عَنِ الْجٰهِلِيْنَ
और जाहिलों से एक किनारा हो जाऐं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीम : अल आराफ़ -199)

وَّ اِذَا خَاطَبَهُمُ الْجٰهِلُوْنَ قَالُوْا سَلٰمًا
और जब बेइ़ल्म लोग उनसे बातें करने लगते हैं तो वो कह देते हैं के सलाम है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः अल फ़ुरक़ान- 63)

18 इताअ़त-ओ-फ़रमाबरदारीः


इताअ़त की दो किस्में हैं:

(अ) इताअ़ते मुतलकः एैसी इताअ़त जिसकी कोई क़ैद या हद ना हो, ये अल्लाह की इताअ़त और उसके रसूल की इताअ़त है।


(ब) इताअ़ते मुकय्यद बा मारूफ़: वो इताअ़त जो किसी नेकी से और मारूफ़ काम के साथ मुक़य्यद हो, लिहाज़ा जब मासियत और नाफ़रमानी का हुक्म तो उसकी इताअ़त नहीं की जाऐगी, जैसे वालिदैन की इताअ़त, शौहर की इताअ़त, अमीर की इताअ़त। ये तमाम की तमाम इताअ़त फ़र्ज़ हैं और दलाइले सहीहा से साबित हैं।
गुज़िश्ता औराक़ में अख़्लाक़े हसना का ज़िक्र हो चुका है, अब इसके बरअ़क्स चंद रज़ाइल या सू अख़्लाक़ का तज़किरा किया जाता हैः

1. दरोग़ गोईः


हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में नक़ल है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((۔۔۔وان الکذب یھدي إلی الفجور و إن الفجور یھدي إلی النار،وإن الرجل لیکذب حتی یکتب عند اللّٰہ کذَّابا))
झूठ फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर की तरफ़ ले जाता है और फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर जहन्नुम की तरफ़, आदमी झूठ बोलता रहता है यहाँ तक के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के नज़दीक वो कज़्ज़ाब (बहुत बड़ा झूठा) लिख दिया जाता है। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

तिरमिज़ी में हज़रत हसन बिन अली (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसे हसन सही बताया है, कहते हैं के मैंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) से ये बात सुन कर ज़ेहन नशीन कर ली केः

((دع ما یریبک إلی ما لا یریبک،فإن الصدق طمأنینۃ والکذب ریبۃ))

जिन चीज़ों पर तुम्हें शक हो, उन्हें छोड़कर वो चीज़ें इख़्तियार करो जो मशकूक ना हों। पस सच्चाई दिल का सुकून है और झूठ शकूक वाली है।

एक मुत्तफिक़ अ़लैह रिवायत में है के नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((أربع من کنَّ فیہ کان منافقاً خاصاً،ومن کانت فیہ خصلۃ منھن کانت فیہ خصلۃ من نفاق حتی یدعھا:إذا ائتمن خان،وإذا حدّث کذب،وإذا عاھد غدر وإذا خاصم فجر))

जिस किसी के अंदर चार ख़स्लतें होंगी वो हक़ीक़ी मुनाफ़िक़ होगा और अगर कोई एक ख़स्लत पाई गई तो वो मुनाफ़िक़त की अ़लामत होगी हत्ता के इनको तर्क कर दे, वो चार ख़स्लतें ये हैं। जब अमानत रखवाई जाये तो ख़ियानत करे, जब बात करे तो झूठ बोले, जब अहद करे तो बद ऐहदी कर जाये और जब झगड़ा करे तो बदज़ुबानी करे।

इब्ने हिब्बान और तिबरानी में हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (رضي الله عنه) से हदीस रिवायत है जिसे अल मुंज़री और हैसमी رحمت اللہ علیہ ने हसन बताया है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((۔۔۔وإیاکم والکذب،فإنہ مع الفجور و ھما في النار))

झूठ से बचो बेशक झूठ फ़ुजूर का साथी होता है और ये दोनों जहन्नुम में साथ होंगे।

बुख़ारी शरीफ़ में समरा बिन जुन्दब (رضي الله عنه) से मरवी हैः

((کان رسول اللّٰہ ا مما یکثر أن یقول لأصحابہ:ھل رأی أحد منکم من رؤیا،فیقص علیہ ما شاء اللّٰہ أن یقص،وإنہ قال لنا ذات غداۃ:۔۔۔وأما الرجل الذي أتیت علیہ یشرشر شدقہ إلی قفاہ،ومنخرہ إلی قفاہ و عینہ إلی قفاہ،فإنہ الرجل یغدو من بیتہ فیکذب الکذبۃ تبلغ الآفاق۔۔۔))

रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  अपने सहाबा (رضی اللہ عنھم) से अक्सर पूछा करतेः क्या तुम में से किसी ने ख़्वाब देखा है तो वो सुनाए जिस क़दर अल्लाह चाहे, एक दिन आपने फ़रमायाः एक ऐसे आदमी के पास आए जो गुदी के बल लेटा हुआ था और उसके पास ही एक दूसरा शख़्स लोहे का एक ज़ंबूर लिए हुए इसके ऊपर खड़ा था, वो इसके चेहरे की तरफ़ आता और इसके जबड़े को इस की गुदी तक चीर देता है और फिर दूसरी जानिब यही अ़मल दुहराता है। ये शख़्स उसके जैसा है के एक शख़्स घर से निकले और झूठ बोलता रहे यहाँ तक के ये झूठ आसमानों तक पहुंच जाये।
हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه)  से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((اِنَّ مَنْ اَفْرَی الفِرٰی اَن یُّرِیَ عَیْنَیْہِ مَالَمْ تَرَ))

बेशक सब से बड़ा झूठ ये है के उस चीज़ को अपनी आँखों से देखने का दावे करे जो उसकी आँखों ने देखी ना हो।

हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((آیۃ المنافق ثلاث:إذا حدث کذب،وإذاوعد أخلف،وإذا ائتمن خان))

मुनाफ़िक़ की तीन अ़लामात हैं: जब बात करे तो झूठ बोले, वादा करे तो वादा ख़िलाफ़ी करे, जब अमानत दी जाये तो ख़ियानत करे। मुसनद अहमद, अल बज़्ज़ार इब्ने हिब्बान और मुस्तदरक में हज़रत आईशा (رضي الله عنها)  से रिवायत नक़ल की है जिसे हाकिम ने सही बताया है और अ़ल्लामा ज़ेहबी ने इस से इत्तिफाक़ किया है केः

(ما کان من خلق أبغض إلی رسول اللّٰہ ا من الکذب، ما اطلع علی أحد من ذٰلک بشيء فیخرج من قلبہ حتی یعلم أنہ قد أحدث توبۃ)
हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) को तमाम बुराईयों में सब से ज़्यादा नफ़रत झूठ से थी। जैसे ही झूठ किसी के कलाम से निकलता, आपको फ़ौरन ये महसूस हो जाता के अब इस पर तौबा ज़रूरी हो गई है।

मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के हुज़ूर अक़दस ने फ़रमायाः


((ثلاثۃ لا یکلمھم اللّٰہ یوم القیامۃ ولایزکیکھم ولا ینظر إلیھم ولھم عذاب ألیم:شیخ زان،وملک کذاب و عائل مستکبر))

तीन आदमियों से अल्लाह سبحانه وتعالیٰ क़यामत के दिन कलाम नहीं फ़रमाएंगे, ना रहमत की निगाह से देखेंगे और ना उन्हें पाक करेंगे, बल्कि उनके लिए दर्दनाक अ़ज़ाब होगाः उम्र रसीदा ज़ानी, बादशाह या हाकिम जो झूठा हो और मुफ़्लिस या फ़क़ीर लेकिन मग़रूर

तिरमिज़ी में बहज़ा इब्ने हकीम अपने वालिद से और वो अपने दादा से मुआविया इब्ने हीदा (رضي الله عنه) से रिवायत करते हैं के उन्होंने हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) से सुनाः


((ویل للذي یحدث بالحدیث لیضحک بہ القوم فیکذب، ویل لہ ویل لہ))

ख़राबी हो उस शख़्स की, फिर ख़राबी हो उसकी जो अपने लोगों को मेहेज़ हँसाने के लिए झूठ बोलता है, ख़राबी हो उस शख़्स की, फिर ख़राबी हो उस शख़्स की।

तिरमिज़ी ने इस हदीस को हसन बताया है और इसे अबू दाऊद, मुसनद अहमद, सुनन अल दारिमी और बैहक़ी ने भी रिवायत किया है।

हकीम इब्ने हिज़ाम (رضي الله عنه) ने हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) से हदीस नक़ल की हैः

((البیعان بالخیار مالم یتفرقا،فإان صدقا و بیَّنا بورِکَ لھما فی بیعِھما؛و اِن کتما فعسیٓ اَن یربحا ربحاً و یمحقا برکۃ بیعھما۔ الیمین الفاجرۃ منفقۃ للسلعۃ ممحقۃ للکسب))

ख़रीदने और बेचने वाले को एक दूसरे से अ़लैहदा होने तक इख़्तियार है। अगर वो दोनों सच बोलें और साफ़ साफ़ बयान करें तो इस तिजारत में बरकत होगी अगर वो झूठ बोलें और ऐब को छुपाऐं तो मुम्किन है कुछ नफ़ा मिल जाये लेकिन बरकत उठ जाऐगी। झूटी क़सम से माल तो निकल जाता है लेकिन कमाई (बरकत) ज़ाइल हो जाती है।
रफ़ाआ बिन राफ़े बिन मालिक बिन अ़जलान अलज़रक़ी अल अंसारी (رضي الله عنه) हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) से नक़ल करते हैं के वो आप (صلى الله عليه وسلم)  के हमराह नमाज़ के लिए निकले और लोगों को ख़रीद ओ फ़रोख़्त में मशग़ूल देखा तो फ़रमायाः

((یا معشر التجار!فاستجابوا لرسول اللّٰہا، و رفعوا أعناقھم و أبصارھم إلیہ، فقال:إن التجار یبعثون یوم القیامۃ فجاراً إلا من اتقی اللّٰہ
وبر و صدق))

ऐ ताजिरो! तो तमाम ताजिर आप (صلى الله عليه وسلم) की जानिब मुतवज्जा हो गए, फिर आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः क़यामत के ताजिर फ़ाजिरों की तरह उठाए जाऐेंगे सिवाए उनके जो अल्लाह से डरते रहे, और नेकी और सच्चाई पर जमे रहे।

इस हदीस को तिरमिज़ी ने नक़ल किया है और हसन सही बताया है, नीज़ इब्ने माजा, इब्ने हिब्बान और हाकिम ने भी नक़ल किया है और सही बताया है जिस से अ़ल्लामा ज़ेहबी ने इत्तिफाक़ किया है।

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) से हदीस नक़ल की है के हुज़ूर  अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः


((ثلاثۃ لا ینظر اللّٰہ إلیھم یوم القیامۃ ولا یزکیھم ولھم عََََذاب ألیم،قال فقرأھا رسول اللّٰہ ثلاثامرات فقلت:خابوا وخسروا،ومن ھم یا رسول اللّٰہ؟قال:المسبل،والمنان والمنفق سلعتہ بالحلف الکاذب))

तीन आदमीयों से अल्लाह سبحانه وتعالیٰ क़यामत के दिन कलाम नहीं फ़रमाएंगे, ना रहमत की निगाह से देखेंगे और ना उन्हें पाक करेंगे और उनके लिए दर्दनाक अ़ज़ाब होगा, रावी कहते हैं के आप (صلى الله عليه وسلم) ने ये कलिमात तीन बार इरशाद फ़रमाए। हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) ने कहा के वो नामुराद हुए और घाटे में रहे, या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) कौन लोग हैं? आपने फ़रमायाः1. टख़्नों से नीचा कपड़ा लटकाने वाला, 2. एहसान करके एहसान जतलाने वाला और 3. अपना सामान बेचने के लिए झूटी क़समें खाने वाला।

अल-कबीर में तिबरानी ने हज़रत सलमान (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसके बारे में अल मुंज़री कहते हैं के ये रावी सही में काबिले एतेमाद हैं नीज़ हैसमी ने भी उन्हें सही बताया है, रावी कहते हैं के हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः


((ثلاثۃ لا ینظر اللّٰہ إلیھم یوم القیامۃ:أشمیط زان،وعائل مستکبر،ورجلٌ جعل اللّٰہ بضاعتہ لا یشتري إلا بیمینہ الا یبیع إلا بیمینہ))

तीन लोगों की जानिब अल्लाह سبحانه وتعالیٰ क़यामत के दिन इल्तिफ़ात ना फ़रमाएंगे, उम्र रसीदा ज़ानी, मुफ़्लिस या फ़क़ीर लेकिन मग़रूर शख़्स और वह शख़्स जो क़सम खाए बग़ैर ना माल ख़रीद करता है और ना बेचता है।
बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से हदीस नक़ल की है के हुज़ूर  अक़दस  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ثلاثۃ لا یکلمھم اللّٰہ یوم القیامۃ ولا ینظر إلیھم: رجلٌ حلف علی سلعۃ لقد أعطي بھا أکثر مما أعطی وھو کاذب؛ورجلٌ حلف علی یمین کاذبۃ بعد العصر لیقطع بھا مال رجلٌ مسلم،ورجلٌ منع فضل ماء،فیقول اللّٰہ الیوم أمنعک فضلي کما منعت فضل ما لم تعمل یداک))
तीन लोगों की जानिब अल्लाह क़यामत के दिन इल्तिफ़ात ना फ़रमाएंगे और ना उनसे बात करेंगेः वो शख़्स जो झूठी क़सम खाए के उसे उसके माल की इतनी क़ीमत मिल रही है, जबकि उसे इस से कम क़ीमत मिल रही हो, वो शख़्स जो (अ़स्र के बाद) झूठी क़सम खाए ताकि एक मुस्लिम का माल हड़प ले जाये, और वो शख़्स जो अपना इज़ाफ़ी पानी किसी और को इस्तिमाल ना करने दे। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ क़यामत के दिन कहेंगे जिस तरह तू ने इस नेअ़मत को रोके रखा जो तू ने नहीं बनाई थी, तो आज में भी अपना फ़ज़्ल रोक लेता हूँ।

इस हदीस को मुस्लिम शरीफ़ में मुख़्तलिफ़ अल्फाज़ में रिवायत किया गया है।

हज़रत अबी सईद (رضي الله عنه) से इब्ने हिब्बान में हदीस नक़ल की है केः

(مرّ أعرابی بشاۃ،فقلت تبیعھا بثلاثۃ دراھم؟ فقال لا واللّٰہ، ثم باعھا،فذکرت ذٰلک لرسول اللّٰہ ا فقال: باع آخرتہ بدنیاہ )
एक ऐराबी अपनी बकरी लिए हुए गुज़रा, मैंने उससे कहा के क्या इस बकरी को तीन दिरहम में मुझे बेचोगे? उस ऐराबी ने इंकार कर दिया और फिर उस बकरी को बेच दिया। मैंने ये अहवाल हुज़ूर (صلى الله عليه وسلم) के गोशेगुज़ार किए तो आप ने फ़रमायाः उसने अपनी आख़िरत दुनिया के बदले बेची।

झूठ से मुताल्लिक़ दो मुआमलात काबिले ग़ौर हैं:


पहली बात तौरियत और मआरिज से ताल्लुक़ रखती है। यानी दो मानी बात कहना के अल्फाज़ के ज़ाहिरी मआनिये कुछ हों उनसे इशारा दूसरा होता है जो ज़ाहिरी और वाज़ेह मआनिये के बरख़िलाफ़ होता है। या लफ़्ज़ के ही दो मुख़्तलिफ़ मानी होते हैं, एक मआनिये क़रीब अज़ क़यास, जबकि दूसरे मानी बईद अज़ क़यास होते हैं। ऐसे अल्फाज़ से हक़ीक़तन वो मानी मुराद होते हैं जो बईद तर हैं लेकिन सुनने वाले का ज़ेहन क़रीबतर मानी पर जाता है। इस की मिसाल बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अनस (رضي الله عنه) की रिवायत करदा हदीस हैः

((مات ابن لأبی طلحۃ،فقال کیف الغلام؟ قالت أم سلیم:ھدأت نفسہ،وأرجو أن یکون قد استراح،ظن أنھا صادقہ))

हज़रत अबू तलहा (رضي الله عنه) का बेटा फ़ौत हो गया, (जब वो घर आए) तो उन्होंने (अपनी बीवी से) पूछा के वो कैसा है? उम्मे सलीम (رضي الله عنها)  ने जवाब दिया के वो ख़ामोश है और सुकून और चैन से है। वो ये समझे के वो सच बोल रही हैं।

इसी क़िस्म की एक और रिवायत हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से नक़ल है जिसे इब्ने हिब्बान ने अपनी सही में नक़ल किया हैः


((لمّا نزلت تَبَّتْ یَدا أبی لَھَبٍ جاء ت إمرأۃ أبی لھب إلی النبیا و معہ ابوبکر،فلما رآھا أبو بکر،قال یا رسول اللّٰہ إنھا امرأۃ بذیءۃ،و أخاف أن توذیک،فلو قمت،قال إنھا لن تراني،فجاء ت،فقالت یا ابا بکر إن صاحبک ھجاني ،قال، لا،وما یقول الشعر،قالت أنت عندي مصدق و انصرفت۔ فقلت یا رسول اللّٰہ،لم ترکِ؟ قال: لا،لم یزل ملک یسترني عنھابجناحہ))

जब सूरह लहब नाज़िल हुई तो अबू जेहल की बीवी हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) के पास आई और उस वक़्त आपके साथ हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (رضي الله عنه) तशरीफ़ रखते थे, जब उन्होंने उसे आते देखा तो हुज़ूर से फ़रमाया के ये औरत निहायत बदज़बान है और मुझे डर है के ये आप को तकलीफ़ ना पहुंचाए, बेहतर है आप खड़े हो जाऐं। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया के वो मुझे देख ना पाऐगी। चुनांचे वो आई और हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (رضي الله عنه) से कहा के तुम्हारा दोस्त मेरी हजो उड़ाता है, हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (رضي الله عنه) ने फ़रमाया, नहीं वो शेर गोई नहीं करते, उस ने जवाब दिया के तुम ने सच कहा, और वो चली गई। हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (رضي الله عنه) ने हुज़ूर से पूछा के ऐ अल्लाह के रसूल, क्या उसने आपको देखा नहीं? आप ने फ़रमायाः नहीं फ़रिश्ते ने अपने पर से मुझे छिपा लिया था।

इसी तरह मुसनद अहमद और शुमाइले तिरमिज़ी में और इमाम बग़वी ने शरह अस्सुन्ना में नक़ल किया है जिसे अ़ल्लामा इब्ने हजर ने सही बताया है, हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मरवी हैः

((إن رجلاً من أھل البادیۃ کان اسمہ زاھراً،کان یھدي للنبیا الھدیۃ من البادیۃ،فیجھزہ رسول اللّٰہ ا إذا اراد أن یخرج،فقل النبی :إن زاھراً بادیتنا ونحن حاضروہ،وکان النبیا یحبہ،وکان رجلاً دمیماً فأتاہ النبیا یوماً وھو یبیع متاعہ،فاحتضنہ من خلفہ،وھو لا یبصرہ،فقال الرجل: أرسلنی، من ھذا؟ فالتفت،فعرف النبیا فجعل لا یألو ما ألصق ظھرہ بصدر النبیاحین عرفہ،و جعل النبیا یقول من یشتری العبد؟فقال یا رسول اللّٰہ إذن واللّٰہ تجدني کاسداً،فقال النبيا لکن عند لست بکاسد ،أو قال:لکن عند اللّٰہ أنت غال))

बद्दुओं में एक शख़्स ज़ाहिर नाम का था जो बद्दुओं के हदिये हुज़ूर के लिए लाया करता था, जब वो वापिस जाता था तो हुज़ूर भी उसके लिए जो कुछ होता तोहफ़तन इनायत फ़रमाया करते थे और फ़रमाते थे के ज़ाहिर हमारे लिए बद्दू है और हम इसके लिए शहर वाले हैं। आप (صلى الله عليه وسلم) उसको मेहबूब रखते थे जबकि वो एक बद्शक्ल शख़्स था। एक बार आप (صلى الله عليه وسلم) उसके पास पहुंचे जब वो कुछ सामान फ़रोख़्त कर रहा था और आप इस से पीछे से बग़लगीर हो गए और वो आप को देख नहीं पाया और कहाः ये कौन है, मुझे छोड़ दो। फिर वो मुड़ा और आप को पहचान लिया और आप के क़रीब हो गया। आप ने फ़रमायाः इस ग़ुलाम को कौन ख़रीद रहा है? वो शख़्स बोला, मेरा बिक जाना मुश्किल है कोई मुझे पसंद नहीं करेगा, आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः लेकिन अल्लाह की नज़र में तुम्हारी क़द्र है, या फ़रमायाः लेकिन अल्लाह की नज़र में तुम बेशक़ीमत हो।

दोमः झूठ की वो इशकाल जिन का जवाज़ हैः झूठ जंग में, लोगों के बीच सुलह करवाने में और ज़ोजैन के दरमियान मुसालेहत के लिए जायज़ है। हज़रत उम्मे कुल्सुम बिंते उ़क़बा बिन अबी मुईत (رضي الله عنها ) से मुस्लिम शरीफ़ में मरवी है के उन्होंने कहा मैंने उनसे (हुज़ूर से) तीन चीज़ों के सिवा किसी और में जायज़ होने का नहीं सुना यानी जंग, लोगों के दरमियान मुसालेहत और शौहर की बात बीवी से या बीवी की बात शौहर से करने में।

नीज़ बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत जाबिर  इब्ने अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه)  से नक़ल किया है के हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((الحرب خدعۃ))متفق علیہ
जंग धोका है।

हज़रत अस्मा बिंत यज़ीद (رضي الله عنها ) से रिवायत नक़ल है के हुज़ूर ने लोगों से ख़िताब फ़रमायाः

((ایُّھا النّاسُ ما یحمِلُکُم علی أن تتابعوا في الکذب کما یتتابعُ الفراشُ في النارِ کُلُّ الکذب یکتب علی ابن آدم إلا ثلاث خصالٍ رجلٌ کذب علی إمرأتہ لیُرضیَھَا أو رجلٌ کذب في خدیعۃ حَرْبٍ أو رجلٌ کذب بین امْرأَیْنِ مسلِمَینِ لیُصْلِحَ بینھما))

ऐ लोगो! तुम क्यों झूठ से इस तरह चिमटे रहते हो जैसे परवाना आग की तरफ़ दौड़ता है? इंसान का हर झूठ उसके हिसाब में लिखा जाता है अ़लावा तीन बातों केः एक वो शख़्स जो अपनी बीवी को राज़ी करने की ग़रज़ से बोले, दूसरे जंग में और तीसरे वो शख़्स जो दो मुसलमानों के दरमियान मुसालेहत के मक़सद से बोले। (मुसनद अहमद)

हाफ़िज़ इब्ने हजर अल अ़स्क़लानी ‘अलफ़तह अलबारी’ में फ़रमाते हैं के औलमा इस बात पर मुत्तफिक़ हैं के इस से मुराद वो बातें हैं जिन में शौहर या बीवी से उनके किसी फ़राइज़ में कोताही या एक दूसरे की हक़ तलफ़ी ना होती हो। शरह मुस्लिम में इमाम नोवी फ़रमाते हैं के इस से मुराद अपनी उंसीयत का इज़्हार करने वाले या ऐसे वादे करना मक़सूद है जो लाज़िमी नहीं हों। रही बात ऐसे धोके की जिन से दोनों में से किसी का हक़ तलफ़ होता हो, या एैसी चीज़ हासिल करना जिस पर हक़ ना हो तो ये तमाम मुसलमानों का इज्मा है के ये हराम हैं। मिसाल के तौर पर नान और नफ़का जो के फ़र्ज़ है, इसके बारे में शौहर धोके में रखने की नियत से कहे के मुझे बाज़ार में नहीं मिला या बीवी को जब शौहर बिस्तर पर बुलाए तो वो कहे के मैं हाइज़ा हूँ। नीज़ इसी तरह शौहर के लिए बीवी का माल ले लेना और फिर इस से इंकार करना या बीवी का शौहर का माल अपने और बच्चों के मारूफ़ तौर पर नफ़क़े से ज़्यादा ले लेना और फिर इसका इंकार करना।

2 वादा ख़िलाफ़ीः


हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत नक़ल हुई है के हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((آیۃ المنافق ثلاث إذا حدث کذب،وإذا وعد أخلف،وإذا ائتمن خان))

मुनाफ़िक़ की तीन निशानियां हैं- जब बात करता है तो झूठ बोलता है, जब वादा करता है तो वादे से फिर जाता है और जब उसे अमानत दी जाये तो उसमें से ख़ियानत करता है।

निफ़ाक़ से मुराद निफ़ाक़े अ़मली है ना के निफ़ाक़े तकज़ीबी यानी निफ़ाक़े अ़क़ीदा। निफ़ाक़े अ़मली हराम है, कुफ्र नहीं जबकि निफ़ाक़े अ़क़ीदा कुफ्र है। अलइआज़ बिल्लाह

3 फ़ेहश गोई और बदज़बानीः


हज़रत आईशा (رضي الله عنها)  से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((۔۔۔مھلاً یا عائشۃ علیک بالرفق وإیاک والعنف والفحش۔۔۔))

रुक जाओ ऐ आईशा नरमी इख़्तियार करो, सख़्त कलामी और बदज़बानी से दूर रहो।

मुस्लिम की रिवायत हज़रत आईशा (رضي الله عنها)  से मरवी है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः

((۔۔۔مہْ یا عائشۃ،فإن اللّٰہ لا یحب الفحش والتفحش))

ख़ामोश आईशा! अल्लाह फ़ेहश और तफ़हुश (बदज़बानी और बदकलामी) को ना पसंद करता है । (मुत्तफिक़ अ़लैह)
हज़रत आईशा (رضي الله عنها)  से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((
إن شر الناس عند اللّٰہ من ترکہ أو ودعہ الناس اتقاء فحشہ))متفق علیہ
अल्लाह के नज़दीक बुरे लोग वो हैं जिन को लोग उनकी बदज़बानी के डर से छोड़ दें (मुत्तफिक़ अ़लैह)

ईआज़ बिन हिमार अलमजाश (رضي الله عنه) से मुस्लिम शरीफ़ में नक़ल किया है के रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم) ने एक दिन ख़ुत्बे में फ़रमायाः

((۔۔۔واھل النارخمسۃ۔۔۔ والشنظیر الفاحش۔۔۔))

एहले जहन्नुम में पाँच किस्म के लोग हैं, इन में एक वो शख़्स जो बद ख़ुलुक़, बदगो है।

तिरमिज़ी में हज़रत अबू दरदा (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः

((۔۔۔وإن اللّٰہ یبغض الفاحش البذيء))

अल्लाह سبحانه وتعالیٰ बे हूदगो से नाराज़ होता है।

हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुसनद अहमद में रिवायत नक़ल की है जिस के रिजाल सक़ा हैं और जिसे तिरमिज़ी ने हसन सही बताया है, नीज़ हाकिम ने मुस्तदरक में और इब्ने हिब्बान ने अपनी सही में भी नक़ल किया है, कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((الحیاء من الإیمان والإیمان فی الجنّۃ،والبذاء من الجفاء
 والجفاء فی النار))

हया ईमान में से है। और ईमान जन्नत में है। बदज़ुबानी ज़ुल्म है और ज़ुल्म जहन्नुम में है।

हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) से तिरमिज़ी में रिवायत नक़ल है जिसे उन्होंने हसन सही बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((لیس المؤمن بالطعان،ولا الفاحش ولا البذيء))

मोमिन लान तान करने वाला बद गो और बद्ज़बान नहीं होता।

4 बकवास फ़ज़ूल गोः


बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में मुग़ीरा बिन शुअ़बा (رضي الله عنه) से रिवायत है, कहते हैं मैंने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  को फ़रमाते सुनाः

((إن اللّٰہ کرہ لکم ثلاثۃ: قیل وقال،وإضاعۃ المال و کثرۃ السؤال))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ तीन चीज़ों को तुम्हारे लिए नापसंद करता हैः क़ील-ओ-क़ाल (फुज़ोल गोई) माल को बेजा ख़र्च करना और कसरते सवाल। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

तिरमिज़ी में हज़रत जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) से रिवायत है जिसे हसन बताया है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((إن من أحبکم إليو أقربکم مني مجلساً یوم القیامۃ أحسنکم أخلاقاً و إن أبغضکم مني یوم القیامۃ الثرثارون والمتشدقون والمتفیھقون))
मेरे नज़दीक तुम में सब से ज़्यादा मेहबूब और क़यामत के दिन मुझ से सब से क़रीब बैठने वाला शख़्स वो होगा जो तुम में सब से अच्छे अख़्लाक़ वाला हो और मेरे नज़दीक सब से नापसंदीदा और क़यामत के रोज़ मुझ से ज़्यादा दूर फुज़ूल गोई और ग़ैर मुहतात बात करने वाले होंगे और बेजा कलाम करने वाले होंगे।

बुख़ारी और मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से नक़ल है हैं के उन्होंने नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) को फ़रमाते सुनाः

((إن العبد لیتکلم باکلمۃ ما یتبین فیھا یزل بھا في النار أبعد ما بین المشرق والمغرب))
बंदा एैसी बात करता है जिस के ख़ैर या शर होने पर ग़ौर नहीं करता जिस के सबब वो जहन्नुम की आग में इतनी दूर फेंक दिया जाता है जितना मशरिक ओ मग़रिब का फ़ासिला है। (मुत्तफिक़ अ़लैह)\

5 एहतिक़ारे मुस्लिम (मुस्लिम की तहक़ीर):


मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः

((بحسب امرئ أن یحقر أخاہ المسلم))
आदमी के बुरा होने के लिए काफ़ी है के वो अपने मुस्लिम भाई की तहक़ीर ओ तज़लील करे।

6 मुस्लिम के साथ इस्तेहज़ा ओ मज़ाक़:


अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः

يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا يَسْخَرْ قَوْمٌ مِّنْ قَوْمٍ عَسٰۤى اَنْ يَّكُوْنُوْا خَيْرًا مِّنْهُمْ وَ لَا نِسَآءٌ مِّنْ نِّسَآءٍ عَسٰۤى اَنْ يَّكُنَّ خَيْرًا مِّنْهُنَّ١ۚ وَ لَا تَلْمِزُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ لَا تَنَابَزُوْا بِالْاَلْقَابِ١ؕ بِئْسَ الِاسْمُ الْفُسُوْقُ بَعْدَ الْاِيْمَانِ١ۚ وَ مَنْ لَّمْ يَتُبْ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, ना मर्दों की कोई जमाअ़त दूसरों का मज़ाक़ उड़ाए, मुम्किन है के वो उनसे बेहतर हों और ना औरतें औरतों का मज़ाक़ उड़ाऐं, मुम्किन है के वो उनसे बेहतर हों, और ना अपनों पर तान करो और ना आपस में एक दूसरे पर बुरे अलकाब चस्पाँ करो। ईमान के बाद फ़ासिक़ होना बहुत बुरा नाम है और जो शख़्स बाज़ ना आए तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: हुजुरात- 11)

बैहक़ी ने शुअ़ब में हज़रत हसन (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसे हसन ओ मुर्सल बताया है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((إن المستھزئین بالنس یفتح لأحدھم في الآخرۃ باب من الجنۃ فیقال لہ:ھلم ھلم،فیجيء بکربہ وغمہ فإذا جاء ہ أغلق دونہ،ثم یفتح لہ باب آخر،فیقال لہ:ھلم ھلم،فیجيء بکربہ وغمہ فإذا جاء ہ أغلق دونہ،فما یزال کذالک حتی إن أحدھم لیفتح لہ باب من أبواب الجنّۃ فیقال لہ ھلم فما یأتیہ من الإیاس))

जो लोगों के साथ इस्तेहज़ा करते हैं आख़िरत में उनमें से एक के लिए जन्नत का दरवाजा खोला जायेगा फिर उससे कहा जाऐगाः आओ आओ तो वो अपने ग़म और परेशानी और कर्ब-ओ-तकलीफ़ के साथ (भागा भागा) जाऐगा, और जब दरवाज़े तक पहूंचेगा दरवाजा बंद कर दिया जाऐगा। फिर दूसरा दरवाजा खुलेगा उस से कहा जाऐगा आओ, वो अपने ग़म-ओ-परेशानी और कर्ब ओ अलम के साथ जब इसके पास पहूंचेगा तो वो भी बंद हो जाऐगा। इसी तरह होता रहेगा आख़िर कार एक और दरवाजा खुलेगा और उस से कहा जाऐगा आओ मगर वो मायूसी की वजह से नहीं जाऐगा।

7 मुस्लिम की परेशानी पर ख़ुश होनाः


तिरमिज़ी शरीफ़ में हज़रत वासिला बिन असक़अ़  (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसे इमाम तिरमिज़ी ने हसन बताया है के हुज़ूर अक़दस (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لا تظھر الشماتۃ لأخیک،فیرحمہ و یبتلیک))

मुस्लिम की परेशानी पर ख़ुशी का इजहार मत करो के अल्लाह उस पर रहम कर दे और तुम को आज़माईश में मुब्तिला कर दे।

8 धोख़ा:


बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((أربع من کن فیہ کان منافقاً خالصاً: ومن کان فیہ خصلۃ منھن، کان فیہ خصلۃ من النفاق حتی یدعھا: وإذا عاھد غدر۔۔۔))
चार ख़स्लतें जिस किसी के अंदर पाई जाऐंगी वो हक़ीक़ी मुनाफ़िक़ होगा और जिस के अंदर सिर्फ़ एक पाई जाये तो उसके अंदर निफ़ाक़ की अलामत है, जब तक के वो इसको तर्क ना कर दे (इन में से एक ये है के) जब वो कोई अहद करे तो धोख़ा दे।

हज़रत इब्ने मसऊ़द, हज़रत इब्ने उ़मर और हज़रत अनस (رضی اللہ عنھم) से बुख़ारी ओ मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत है के नबी अकरम  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لکُلِّ غادرًٍ لِواءٌ یوم القیامۃ یقال: ھٰذہٖ غدرۃُ فُلانٍ))
हर धोख़े बाज़ के लिए क़यामत के दिन एक झंडा दिया जाऐगा और कहा जाऐगा के ये फ़ुलाँ को धोख़ा देने की निशानी है। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू सईद अलख़ुदरी (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः


((لکلِّ غادر عندَ اِسْتِہٖ یوم القیامۃ،یرفع لہ بقرد غدرہ،ألا ولا غادر أعظم غدراً من أمیر عامۃ))
हर धोख़े बाज़ की पुश्त पर एक झंडा होगा, उसके धोख़े के मुताबिक़ ऊंचा किया जायेगा, सुनो अ़वाम से धोख़ा करने वाले अमीर से बढ़ कर कोई धोख़े बाज़ नहीं। (मुस्लिम)

बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के अल्लाह के रसूल  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ثلاثۃ أنا خصمھم یوم القیامۃ:رجلٌ أعچی بي ثم غدر۔۔۔))
तीन आदमी हैं जिन से क़यामत के दिन में खुद झगडूंगा। इन में से एक वो शख़्स जिस ने मेरे नाम से अहद किया फिर उसे तोड़ दिया।

मुस्लिम शरीफ़ में यज़ीद बिन शुरैक का बयान नक़ल है कहते हैं के मैंने हज़रत अ़ली (رضي الله عنه) को ख़ुतबा देते सुना, वो कह रहे थेः अल्लाह की क़सम मेरे पास कोई किताब नहीं है जिस को मैं पढ़ता हूँ सिवाए किताबुल्लाह के, ना ही इस सहीफ़े में कुछ है जिस को मैं फैलाता (नशर करता) हूँ। इस सहीफ़े में ऊंट के दाँत और हैवानी अजज़ा पर कुछ तहरीरें थीं जिस में लिखा था के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः मुसलमानों की अमान एक है। उनका अदना शख़्स भी अमान दे सकता है। जिस ने किसी मुस्लिम को धोख़ा दिया उस पर अल्लाह की, फ़रिश्तों की, और तमाम लोगों की लानत है, क़यामत के रोज़ अल्लाह उसके बराबर और उसके ऐवज़ भी क़ुबूल नहीं करेगा।

हाकिम ने हज़रत बुरैदा (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसे सही बताया है और अ़ल्लामा ज़ेहबी ने इस से इत्तिफाक़ किया है, रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ما نقض قوم العھد إلا کان القتل بینھم۔۔۔))
किसी क़ौम का अहद नहीं तोड़ा जाता मगर उनमें क़त्ल-ओ-ख़ून हुआ हो।

इब्ने हिब्बान ने अ़म्र बिन अलहमक़ से रिवायत नक़ल की है, कहते हैं के मैंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को फ़रमाते सुनाः

((أیما رجلٌ أمّن رجلاً علی دمہ،ثم قتلہ فأنا من القاتل بريء وإن کان القتول کافراً))
जिस किसी ने किसी को जान की अमान दी फिर उसका क़त्ल कर दिया, तो मैं क़ातिल से बरी हूँ अगरचे मक़्तूल काफ़िर ही हो।
नीज़ इब्ने हिब्बान ने अपनी सही में हज़रत अबू बक्र (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((من قتل نفساً معاھداً بغیر حقھا لم یرح رائحۃ الجنّۃ،و إن ریحۃ الجنّۃ لیوجد من مسیرۃ خمسمءۃ عام))و في روایۃ((من قتل معاھداً فی عھدہ لم یرح رائحۃ الجنّۃ،و إن ریحھا لیوجد من مسیرۃ خمسمءۃ عامٖ))

जिस ने किसी मुआहिद को बग़ैर हक़ क़त्ल किया वो जन्नत की ख़ुशबू भी नहीं पाऐगा जो ख़ुशबू के पाँच सौ साल की मुसाफ़त से भी आती है। दूसरी रिवायत है के जिस ने किसी मुआहिद को जो उसकी अमान में हो, क़त्ल कर दिया वो जन्नत की ख़ुशबू भी ना पाऐगा, और जन्नत की ख़ुशबू पाँच सौ साल की दूरी से आने लगती है।

9 एहसान जतानाः


अल्लाह (سبحانه وتعالیٰ) का इरशाद हैः


يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تُبْطِلُوْا صَدَقٰتِكُمْ بِالْمَنِّ وَ الْاَذٰى١ۙ
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अपने सद्क़ात एहसान जता कर और दिल आज़ारी कर के बर्बाद ना करो, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अलबक़रा-264)

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) से हदीस नक़ल की है के हुज़ूर  अक़दस  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ثلاثۃ لا ینظر اللّٰہ إلیھم یوم القیامۃ ولا یزکیھم ولھم عََََذاب ألیم،قال فقرأھا رسول اللّٰہ ثلاثامرات فقلت:خابوا وخسروا،ومن ھم یا رسول اللّٰہ؟قال:المسبل،والمنان والمنفق سلعتہ بالحلف الکاذب))

तीन आदमियों से अल्लाह سبحانه وتعالیٰ क़यामत के दिन कलाम नहीं फ़रमाएंगे, ना रहमत की निगाह से देखेंगे और ना उन्हें पाक करेंगे और उनके लिए दर्दनाक अ़ज़ाब होगा, रावी कहते हैं के आप  (صلى الله عليه وسلم) ने ये कलिमात तीन बार इरशाद फ़रमाए। हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) ने कहा के वो नामुराद हुए और घाटे में रहे, या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ये कौन लोग हैं? आप  ने फ़रमायाः 1. टख़्नों से नीचे कपड़ा लटकाने वाला, 2. एहसान करके एहसान जतलाने वाला और 3. अपना सामान बेचने के लिए झूटी क़समें खाने वाला।

10 हसदः


साहिबे नेअ़मत से नेअ़मत के ज़वाल की आरज़ू करना हसद है, अलबत्ता नेअ़मत के मिलने की आरज़ू करना ग़िबता यानी रश्क कहलाता है और ये जायज़ है। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः


اَمْ يَحْسُدُوْنَ النَّاسَ عَلٰى مَاۤ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ١ۚ فَقَدْ اٰتَيْنَاۤ اٰلَ اِبْرٰهِيْمَ الْكِتٰبَ وَ الْحِكْمَةَ وَ اٰتَيْنٰهُمْ مُّلْكًا عَظِيْمًا
या ये लोगों से जो अल्लाह ने उन्हें अपने फजल से अ़ता फ़रमाया है इस पर हसद करते हैं? (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अन्निसा-54)
और फ़रमायाः

وَ مِنْ شَرِّ حَاسِدٍ اِذَا حَسَدَ
और हसद करने वाले के शर से जब वो हसद करे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः फ़लक़ -05)
नीज़ बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अनस (رضي الله عنه) से हदीस नक़ल की है के अल्लाह के रसूल  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((۔۔۔ولاتحاسدوا۔۔۔))
और (आपस में) हसद ना करो। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुसनद अहमद, बैहक़ी, नसाई, इब्ने हिब्बान और इब्ने माजा में मरवी है के रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لا یجتمع فی جوف عبد مؤمن غبار في سبیل اللّٰہ وفیح جھنم،ولا یجتمع فی جوف عبد الإیمان والحسد))

एक बंदे के दिल में जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह में उड़ा गर्द-ओ-ग़ुबार और जहन्नुम का धुआँ और तपिश एक साथ जमा नहीं हो सकते और ना ही एक मोमिन के सीने में ईमान और हसद जमा हो सकते हैं।

ज़ुमरा बिन सालबा (رضي الله عنه) से तिबरानी में रिवायत मनक़ूल है जिस के रिजाल को अ़ल्लामा मुंज़री और अ़ल्लामा हैसमी ने रिजाले सिक़ात बताया है, कहते हैं के हुज़ूर अक़दस  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لا یزال الناس بخیر مالم یتحاسدوا))
अगर लोग आपस में हसद ना रखें तो ख़ैर-ओ-आफ़ियत में होंगे।

इमाम बैहक़ी ने शअब में और अल बज़्ज़ार ने हज़रत ज़ुबैर (رضي الله عنه) से रिवायत किया है, जिसे अ़ल्लामा मुंज़री और अ़ल्लामा हैसमी ने जय्यिद रिवायत बताया है, के रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((دب إلیکم داء الأمم من قبلکم: الحسد و البغضاء،والبغضاء ھی الحالقۃ أما إني لا أقول تحلق الشعر ولکن تحلق الدین))
तुम्हारे पहले की उम्मतों की बीमारी धीरे धीरे तुम्हारे अन्दर जाऐंगी, और वो हसद ओ बुग़्ज़-ओ-नफ़रत है। बुग़्ज़ मौत है। मैं ये नहीं कहता के ये बालों को ख़त्म कर देती है बल्कि ये दीन को ख़त्म कर देती है।

हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो (رضي الله عنه) हुज़ूरे अकरम  (صلى الله عليه وسلم) से नक़ल करते हैं:

((قیل یا رسول اللّٰہ ا،أي الناس أفضل؟ قال: کل مخموم القلب صدوق اللسان،قالوا: صدوق اللسان نعرفہ فما مخموم القلب؟ قال ھو التقي النقي،لا إثم فیہ،ولا بغي،ولا غل،ولا حسد))

आप से पूछा गया के ऐ अल्लाह के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) कौन से लोग अफ़ज़ल हैं? आप ने फ़रमायाः हर मख़्मूम अल क़ल्ब और सादिक़ लिसान, लोगों ने पूछाः सादिक़ लिसान को तो हम जानते हैं मगर ये मख़्मूम क़ल्ब कौन हैं। आप ने फ़रमायाः हर मुत्तक़ी और साफ़ शख़्स जिस के अंदर ना कोई बुराई हो ना सरकशी हो ना कीना हो और ना ही हसद हो।

ये रिवायत सुनन इब्ने माजा में नक़ल हुई है जिसे अ़ल्लामा मुंज़री और अ़ल्लामा हैसमी ने सही अलसनद बताया है।
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