हदीस नं. 22:
الْبَيِّنَةِ
عَلَى الْمُدَّعِي وَالْيَمِينِ عَلَى الْمُدَّعَى عَلَيْهِ
सबूत मुहैया करने की ज़िम्मेदारी दावेदार को है और मुजरिम
पर कसम है। (तिर्मीजी)
हदीस नं. 23:
لَوْ كُنْتُ رَاجِمًا أَحَدًا بِغَيْرِ بَيِّنَةٍ
لَرَجَمْتُهَا
अगर मैने किसी को बिना क़ुसूर के रजम (संगसार) कर दिया, तो मैने उसे रजम (क़त्ल)
किया. (मुस्लिम)
तश्रीह: इस हदीस मे conjunction
“हर्फे अतफ” (अगर) का प्रयोग हुआ है जिसका अरबी मे मफहूम किसी काम से
रुकने के हैं. यहाँ इस हदीस मे इसका मतलब है की रजम (संगसार) सबूत की ग़ैर-मौजूदगी
मे नहीं किया जायेगा.
हदीस नं. 24:
أَلاَ مَنْ قَتَلَ نَفْسًا مُعَاهِدَةً لَهُ ذِمَّةُ
اللَّهِ وَذِمَّةُ رَسُولِهِ فَقَدْ أَخْفَرَ بِذِمَّةِ اللَّهِ فَلاَ يَرَحْ رَائِحَةَ
الْجَنَّةِ وَإِنَّ رِيحَهَا لَيُوجَدُ مِنْ مَسِيرَةِ سَبْعِينَ خَرِيفً
जो कोई भी किसी ज़िम्मी (मुआहिद) को क़त्ल करेगा जो अल्लाह और रसूल के ज़िम्मे में
है तो उसने अल्लाह के अहद को तोड़ दिया तो वो जन्नत की खुशबू भी नही पाएगा जबकि वो खुशबू
सत्तर साल की दूरी के अरसे से महसूस की जा सकती है। (तिर्मीजी)
हदीस नं. 25:
صَالَحَ رَسُولُ اللَّهِ -صلى الله
عليه وسلم- أَهْلَ نَجْرَانَ عَلَى أَلْفَىْ حُلَّةٍ…عَلَى أَنْ لاَ تُهْدَمَ لَهُمْ بَيْعَةٌ وَلاَ يُخْرَجُ
لَهُمْ قَسٌّ وَلاَ يُفْتَنُوا عَنْ دِينِهِمْ مَا لَمْ يُحْدِثُوا حَدَثًا أَوْ
يَأْكُلُوا الرِّبَا
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने नजरान के लोगो से
अमन का मुआहिदा इस शर्त पर किया कि वो मुसलमानों के हवाले दो हजार कपड़े करें . . .
और इस बात पर कि उनके मआबद (church) नही तोड़े जाएगे और
किसी पादरी को जिला वतन नही किया जाएगा और उनके दीन से दूर करने के मामले में उन पर
किसी क़िस्म की जबरदस्ती नही की जाएगी बर्शते कि वो कोई बात न गड़े और रिबा (सूद) से
कारोबार न करे. (अबू दाउद)
तश्रीह: नजरान के लोगो के साथ मुआहिदा इस बात को वाज़ेह कर देता है कि गैर-मुस्लिमो के
रस्मो-रिवाज और ईबादतगाहो को उस वक्त तक बाकि रखा जाता है जब तक इस्लामी रियासत के
जरीए आईद किए गए फराईज्ज़ व क्वानीन की ईताअत करते है। यह कुरआन की उस आयत का मफहूम
है, जिसमे कहा गया है कि
दीन के मामले में कोई जबर नही है। उनकी ईबादतगाहो को उनके हवाले करने की ज़रूरत के बारे
में मज़ाहिबे इस्लाम (मस्लकों) में इख्तिलाफ पाया जाता है। अक्सरियत की राए यह है कि
ईमाम हालात और मुसलमानों के मफाद के हिसाब से इस मामले को तय कर सकता है।
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