29 रियाकारी और दूसरों में अपनी दीनदारी का इज़्हार करनाः
रिया किसी काम जो अल्लाह से कुर्ब हासिल करने के लिए किया जाता है, उसको इस मक़सद से करना है के उस से लोगों की रज़ा हासिल हो। ये क़ल्ब के आमाल से मुताल्लिक़ है ना के दीगर आज़ा के आमाल से। रिया की हक़ीक़त क़ौल-ओ-अ़मल का क़स्द है, चुनांचे रियाकारी में किसी क़ौल-ओ-फ़ेअ़ल का मक़सद अल्लाह की रज़ा के हुसूल के बजाय लोगों की कुरबत-ओ-रज़ा हासिल करना होता है। वो क़ौल या फ़ेअ़ल दरहक़ीक़त रिया नहीं होता बल्कि वो तो रिया का मौज़अ़ हुआ, बल्कि रियाकारी तो ए़ैन मक़सद है जिस के लिए वो क़ौल या फ़ेअ़ल किया गया। रिया तो ख़ालिस नियत है जबकि मक़सद लोगों की रज़ा है। जब ये नियत अल्लाह की रज़ा और लोगों की रज़ा दोनों हासिल करने के लिए हो यानी दोनों मुहर्रिकात मुश्तर्क हों तो ऐसा कुरबत का फ़ेअ़ल हराम हो जाता है और इस से शदीद तर सूरत ये के जब ख़ालिसतन अल्लाह के बजाय लोगों की रज़ा के लिए किया जाये।
रिया लोगों का क़ुर्ब या उनकी रज़ा हासिल करने भर में मुक़य्यद है क्योंकि इसके अ़लावा रिया नहीं होती, मसलन किसी शए के बेचने का मुआहिदा लोगों के सामने करना या अच्छे लिबास से ख़ुद की जीनत करना वग़ैरा जो के मुबाह हैं। रिया के लोगों की रज़ा में मेहदूद करने का मक़सद इस में से वो अग़राज़ हटा देना है जैसे हज के फ़ाएदों का हुसूल।
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का कुर्ब इबादात से हासिल होता है या दीगर आमाल से। चुनांचे अगर कोई इस ग़र्ज़ से सज्दों को लंबा करता है के लोग देखें तो उसने रिया की, या कोई इस मक़सद से ख़ैरात करे ताके लोग देखें तो उस ने रिया की, या कोई जिहाद में इसलिए शामिल हो के लोग देखें तो वो रियाकार हुआ, या कोई इसलिए कोई मक़ाला लिखे के वो आलिम कहलाये तो उस ने रिया की, या कोई लोगों को मरऊ़ब करने और ख़तीब कहलाने के लिए ख़ुत्बा दे तो वो रियाकारी हुई, या कोई पैवंद लगा लिबास इसलिए पहने के लोग उसे ज़ाहिद कहें तो उसने रिया की, या कोई इस मक़सद से अपनी दाढ़ी बढ़ाए या मसनून लिबास पहने के वो साहबे सुन्नत कहलाये तो उस ने रिया का इर्तिकाब किया, या कोई दाल ही खाता रहे ताके लोग उसे रियाज़त कश कहें तो वो भी रियाकार हुआ, या कोई हज़ारों लोगों को इसलिए दावत करे के वो सख़ी कहलाये तो वो रियाकारी हुई, या कोई इस ग़र्ज़ से सुबुक अंदाम चले के ख़ुदा तरस कहलाये तो रिया का मुर्तकिब हुआ, जो रातों को क़ुरआन इसलिए बा आवाजे़ बुलंद पढ़े के उसके पड़ोसी सुन लें तो उस ने भी रिया की, या कोई इस मक़सद से अपने साथ क़ुरआन मजीद का छोटा सा नुस्खा लेकर निकले के लोग देखें और उसे मानें तो भी रियाकार हुआ।
हम ऐसे ज़माने में हैं जहाँ रिया से शर्म नहीं की जाती बल्कि इसके बरअ़क्स एक बड़ी अक्सरीयत रिया की हक़ीक़त और इसके अहकाम से ग़ाफ़िल है। इस बात की दलील के हम ऐसे ज़माने में हैं जहाँ रिया से शरमाया नहीं जाता, क़लानीस अलबुरूद की मौजूदगी है जिन के बारे में हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने पहले ही ख़बरदार कर रखा है। अ़ल्लामा ज़ुबैदी और अ़ल्लामा सफ़ी ने अल कन्ज़ में और अलहकीम अल तिरमिज़ी ने अल नवादिर में और अबूनईम अल हिल्या में रिवायत की है जिसकी सनद के बारे में तिरमिज़ी का कहना है के इस सनद में कोई इल्लत नहीं है, हज़रत अनस (رضي الله عنه) से रिवायत है के हुज़ूर ने फ़रमायाः
((یکون فی آخر الزمان دیدان القراء فمن أدرک ذلک الزمان فلیتعوذ باللّٰہ
من الشیطان الرجیم و منھم والأنتنون،ثم یظھر قلانیس البرود فلا یستحیا
یومئذ من الریاء،والمتمسک یومئذ بدینہ کالقابض علی جمرۃ،والمتمسک بدینہ
أجرہ کأجر خمسین، قالوا:أمنا أو منھم؟قال : بل منکم۔))
ज़माने के आख़िर में क़ुरआन के कीड़े होंगे, सो जो वो ज़माना पाऐ उसे चाहिए के वो शैतान मर्दूद से, और उनसे अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की पनाह चाहे, वो सब से ज़्यादा बदबूदार होंगे। फिर क़लानीस अल बुरूद (लिबास या चोग़े के सरों वाला हिस्सा) ज़ाहिर होंगे, और रियाकारी से शर्मिंदा नहीं होंगे। उस वक़्त जो शख़्स अपने दीन पर जमा हुआ होगा वो ऐसा होगा जैसे कोई अंगारा पकड़े हुए हो। अपने दीन पर जमे हुए को पचास गुना अज्र मिलेगा। सहाबा ने पूछा के हम से पचास गुना ज़्यादा या उनसे, फ़रमायाः नहीं तुम से पचास गुना!
क़लानीस जमा (बहुवचन) है क़लनूसू की, यानी टोपी, और बुरूद जमा है बुर्द की बमानी लिबास। ये किनाया है उन बज़ाहिर दीनदार लोगों के लिए जो ऐसे हुलिये से ख़ुद को मुतमय्यज़ बना लेते हों हालाँके ये ज़रूरी नहीं के वो मेहज़ अपने इस ज़ाहिर से ही मुतमय्यज़ हों। दरअसल लोगों में ऐसे हुलिये की क़ुबूलीयत को रिया से शर्मसार ना होने के लिए अ़लामतन कहा गया है।
तसमीअ़ यानी दूसरों से अपने और अल्लाह की कुरबत का ज़िक्र करना ताकि दूसरे मानूस हों। रिया और तसमीअ़ में फ़र्क़ ये है के रिया तो अ़मल के साथ उसी वक़्त होती है जबकि तसमीअ़ उस अ़मल के बाद होती है। दूसरे ये के रिया को सिर्फ़ अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ही जानता है और लोग उसकी तहक़ीक़-ओ-तस्दीक़ भी नहीं कर सकते यहाँ तक के ख़ुद मुर्तकिब भी इस से वाक़िफ़ नहीं हो सकता इल्ला ये के वो मुख़लिस हो। इमाम नोवी ने इमाम शाफ़ई से अल-मजमुअ़ में नक़ल किया है, वो कहते हैं के रिया को सिर्फ़ एक मुख़्लिस ही पहचान सकता है। इख़्लास के लिए ज़ब्त-ओ-तहम्मुल नागुज़ीर है और अपने नफ़्स से मुजाहिदा करना लाज़िम है और इस की ताक़त बस उस ही में है जो दुनिया छोड़ चुका हो।
ये भी हो सकता है के तसमीअ़ ऐसे अ़मल की हो जो अकेले में किया गया हो या मख़्फी हो जैसे कोई रातों को इ़बादत करे और सुबह उठ कर अपने अ़मल की तशहीर करता फिरे, नीज़ ये भी हो सकता है के एक नेकी किसी जगह पर की जाये और दूसरे मुक़ाम पर इसका ढिंडोरा पीटा जाये। इन सब का मक़सद लोगों को ख़ुश करना है।
इमाम अबू यूसुफ ने इमाम अबू हनीफ़ा से और उन्होंने अ़ली बिन अल अक़्मर से हज़रत उ़मर बिन ख़त्ताब (رضي الله عنه) के आसार नक़ल किए हैं जो क़ुरूने ऊला के लोगों की तसमीअ़ से दूरी इख़्तियार करने के बारे में हमारे लिए बेहतरीन सामान कर गऐ। हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) एक शख़्स के पास से गुजरे जो बाएं हाथ से खाना खा रहा था और हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) लोगों की देख भाल कर रहे थे जो सब खाना खा रहे थे। आप ने उस शख़्स से कहा के ऐ अ़ब्दुल्लाह दाएं हाथ से खाओ, उस ने जवाब दिया के दायां हाथ मशग़ूल है। आप जब दुबारा और तीसरी बार उसके क़रीब से गुज़रे तो फिर टोंका और उस ने वही जवाब दुहराया। आप ने उस से पूछा के किस काम में मशग़ूल है? उस ने जवाब दिया के ये मूता की जंग में कट गया था। इस पर आप को अफ़सोस हुआ और आप ने पूछा के तुम्हारे कपड़े कौन धोता है? तुम्हारे सर में तेल कौन डालता है? तुम्हारी देख भाल कौन करता है? वग़ैरा। फिर आप ने हुक्म दिया और इस शख़्स को देख भाल के लिए एक कनीज़, एक सवारी भर ग़िज़ा और नफ़क़ा मुक़र्रर किया और अल्लाह سبحانه وتعالیٰ से दुआ की के अल्लाह उ़मर को उम्मत की देख भाल का बेहतर अज्र दे। इसी तरह बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अबू मूसा अल अशअ़री (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की हैः
((خرجنا
مع النبيا في غزاۃ و نحن ستۃ نفر،بیننا بعیر نعتقبہ فنقبت اقدامنا،و نقبت
قدماي،و سقطت اظفاري وکنا نلف علی أرجلنا،وحدث ابو موسی بھذا ثم کرہ ذاک
قال ما کنت أصنع بأن أذکرہ،کأنہ کرہ أن یکون شيء من عملہ أفشاہ))
हम छः अश्ख़ास हुज़ूरे अकरम के हमराह एक मार्के में शरीक थे और हमारे पास एक ऊंट था जिस पर हम बारी बारी सवारी करते थे। हमारे पैर और क़दम जख़्मी हो गए थे और मेरे नाख़ून भी टूट गए थे, हम ने अपने क़दम कपड़े में लपेट रखे थे। हज़रत अबू मूसा कहते हैं के उन्हें ये रिवायत करना गवारा नहीं था और वो उसे रिवायत करना नहीं चाहते थे। वो नहीं चाहते थे के कोई भी एैसी बात रिवायत करें जो उनके अ़मल से मुताल्लिक़ हो।
रिया और तसमीअ़ की हुर्मत बालाए इख़्तिलाफ़ है और इसके मुतअ़द्दिद दलाइल हैं जिन में से बाअ़ज़ ये हैं:
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः
الَّذِيْنَ هُمْ يُرَآءُوْنَۙ
जो रियाकारी करते हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल माऊ़न -06)
जो रियाकारी करते हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल माऊ़न -06)
और फ़रमायाः
قُلْ اِنَّمَاۤ اَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوْحٰۤى اِلَيَّ اَنَّمَاۤ اِلٰهُكُمْ اِلٰهٌ وَّاحِدٌ١ۚ فَمَنْ كَانَ يَرْجُوْا لِقَآءَ رَبِّهٖ فَلْيَعْمَلْ عَمَلًا صَالِحًا وَّ لَا يُشْرِكْ بِعِبَادَةِ رَبِّهٖۤ اَحَدً
पस जो कोई अपने रब की मुलाक़ात की उम्मीद रखता हो उसे चाहिए के नेक आमाल इख़्तियार करे, और अपने रब की बंदगी में किसी को शरीक ना करे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अल कहफ़ -110)
बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत जुन्दब (رضي الله عنه) से हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) का क़ौल रिवायत किया है के आप ने फ़रमायाः
((من سمَع سمع اللّٰہ بہ ومن یراء یراء اللّٰہ بہ))
जो लोगों को सुनाने के लिए अ़मल करे, अल्लाह उसे लोगों को सुनाएगा, और जो लोगों को दिखाने के लिए अ़मल करे तो अल्लाह उसे लोगों को दिखाएगा।
मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से हुज़ूरे अकरम का क़ौल रिवायत किया है के आप ने फ़रमायाः
((من سمَع سمع اللّٰہ بہ ومن راء ی راء ی اللّٰہ بہ))
जो
लोगों को सुनाने के लिए अ़मल करे, अल्लाह उसे लोगों को सुनाएगा और जो
लोगों को दिखाने के लिए अ़मल करे तो अल्लाह उसे लोगों को दिखाएगा।
मुस्लिम शरीफ़ और सुनन नसाई में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी हैः
((إن أول الناس یقضي یوم القیامۃ علیہ رجل استشھد فأتي بہ،فعرفہ نعمتہ
فعرفھا،قال فما عملت فیھا؟قال: قاتلت فیک حتی استشھدت۔ قال:کذبت ولکنک
قالتت لأن یقال ھو جريء فقد قیل،ثم أمر بہ فسحب علی وجھہ حتی ألقي في
النار۔ورجلٌ تعلم العلم وعلمہ و قرأ القرآن،فأتي بہ فعرفہ نعمتہ
فعرفھا،قال:فما عملت فیھا؟ قال:تعلمت العلم فعلمتہ وقرأت فیک
القرآن،قال:کذبت ولنک تعلمت العلم لیقال عالم،و قرأت القرآن لیقال ھو قارئ
فقد قیل،ثم أمر بہ فسحب علی وجھہ حتی ألقي في النار۔ورجلٌ وسع اللّٰہ علیہ
وأعطاہ من أصناف المال کلہ فأتي بہ فعرفہ نعمہ فعرفھا،قال:فما عملت
فیھا؟قال: ترکت من سبیل تحب أن ینفق فیھا إلا أنفقت فیھا لک،قال: کذبت
ولکنک فعلت لیقال ھو جواد فقد قیل،ثم أمر بہ فسحب علی وجھہ حتی ألقي في
النار۔))
क़यामत के दिन पहला शख़्स जिस का फ़ैसला किया जाऐगा वो शहीद होगा। वो अल्लाह के हुज़ूर लाया जाऐगा। अल्लाह उसे अपनी नेअ़मतें बताएगा जिन्हें वो पहचान जाऐगा, फिर उस से पूछा जाऐगा के उसने उनका क्या किया? वो कहेगा के मैं तेरी राह में लड़ा यहाँ तक के शहीद हो गया। कहा जाऐगा के झूठ कहा! तू इसलिए लड़ा के लोग तुझे बहादुर कहें और तुझे बहादुर कहा गया। फिर उसे मुँह के बल खींच कर आग में झोंक दिया जाऐगा। फिर एक ऐसे शख़्स को लाया जाऐगा जिस ने इ़ल्म हासिल किया और सिखाया और क़ुरआन पढ़ा था। उसको अल्लाह की नेअ़मतें याद दिलाई जाऐंगी जिन्हें वो पहचान जाऐगा, फिर उस से पूछा जाऐगा के उस ने इन नेअ़मतों का क्या किया? वो कहेगा का मैंने इ़ल्म हासिल किया और लोगों को सिखाया और तेरी ख़ातिर क़ुरआन पढ़ा। कहा जाऐगा के तू ने झूठ कहा! तू ने इसलिए इ़ल्म सीखा के लोग तुझे आलिम कहें और तूने क़ुरआन इसलिए पढ़ा के तू क़ारी कहलाये, सौ तुझे कहा गया। फिर उसे मुँह के बल खींच कर आग में झोंक दिया जाऐगा। फिर एक शख़्स को लाया जाऐगा जिसे अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने दौलत में वुसअ़त दे रखी थी, और उसे अल्लाह की नेअ़मतों का बताया जाऐगा जिन्हें वो पहचान लेगा, फिर उस से पूछा जाऐगा के तू ने इन नेअ़मतों का क्या किया? वो कहेगा के मैं एैसी कोई राह नहीं जानता जिस में ख़र्च करना तुझे पसंद है और मैंने ख़र्च ना किया हो। उस से कहा जाऐगा के तू ने झूठ कहा! तू ने इसलिए ख़र्च किया के लोग तुझे सख़ी कहें, सौ तुझे सख़ी कहा गया। फिर उसे मुँह के बल खींच कर आग में झोंक दिया जाऐगा।
मुसनद अहमद, तिबरानी, और बैहक़ी में अबी हिंद अलदारी से रिवायत है जिसकी सनद को अ़ल्लामा मुंज़री ने जय्यद बताया है और इमाम हैसमी ने कहा है के मुसनद अहमद, अल बज़्ज़ार के रावी और तिबरानी के रावी सही हैं। यहाँ मुसनद अहमद के अल्फाज़ नक़ल हैं के नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((من قام مقام ریاء وسمعۃ رایا اللّٰہ بہ یوم القیامۃ و سمّع))
जो रियाकारी और दिखावे के मुक़ाम को पहुंचा, तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ लोगों को दिखाएगा और सुनाएगा। यानी उसे बस यही हासिल होगा।
जो रियाकारी और दिखावे के मुक़ाम को पहुंचा, तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ लोगों को दिखाएगा और सुनाएगा। यानी उसे बस यही हासिल होगा।
तिबरानी और बैहक़ी में हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने उमरो (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है जिस के बारे में अ़ल्लामा मुंज़री कहते हैं के तिबरानी की एक रिवायत की सनद सही है। हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((من سمَّع الناس بعملہ سمَّع اللّٰہ بہ سامع خلقہ وصغَّرہ و حقرہ))
जो
शख़्स अपने आमाल से लोगों को बाख़बर करना चाहे तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ
लोगों को उसके आमाल से बाख़बर कर देगा और उस शख़्स को छोटा और हक़ीर कर देगा ।
तिबरानी से सनद हसन से रिवायत नक़ल है जिस के रावी हज़रत मालिक अल अश्जई (رضي الله عنه) हैं कहते हैं के हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((من قام مقام ریاء رایا اللّٰہ بہ،ومن قام مقام سمعۃ سمَّع اللّٰہ بہ))
जो रियाकारी और दिखावे के मुक़ाम को पहुंचा, तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ लोगों को दिखाएगा और सुनाएगा। यानी उसे बस यही हासिल होगा।
जो रियाकारी और दिखावे के मुक़ाम को पहुंचा, तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ लोगों को दिखाएगा और सुनाएगा। यानी उसे बस यही हासिल होगा।
हज़रत मआज़ इब्ने जबल (رضي الله عنه) से तिबरानी से सनद हसन से रिवायत है के आँहज़रत (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((ما من عبد یقوم في الدنیا مقام سمعۃ و ریاء إلا سمع اللّٰہ بہ علی رؤوس الخلائق یوم القیامۃ))
कोई बंदा ऐसा नहीं है जो ये चाहता हो के लोगों पर उसके आमाल ज़ाहिर हो जाऐं, सिवाए उसके के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ तमाम मख़्लूक़ के सामने क़यामत के दिन (उस के आमाल को) दिखा देगा।
कोई बंदा ऐसा नहीं है जो ये चाहता हो के लोगों पर उसके आमाल ज़ाहिर हो जाऐं, सिवाए उसके के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ तमाम मख़्लूक़ के सामने क़यामत के दिन (उस के आमाल को) दिखा देगा।
हज़रत अबी सईद अलख़ुदरी से बैहक़ी और इब्ने माजा में हसन सनद की रिवायत नक़ल है, कहते हैं के हम लोग मसीह दज्जाल का तजि़्करा कर रहे थे के हुज़ूर अक़दस हमारे दरमियान तशरीफ़ लाए और फ़रमाया:
((ألا أخبرکم بما ھو أخوف علیکم من المسیح
الدجّال؟ فقلنا بلی یا رسول اللّٰہ،فقال: الشرک الخفي أن یقوم الرجل فیصلي
فیزین صلاتہ لما یری من نظر رجل))
क्या
मैं तुम्हें वो ना बताऊँ जिस से मैं तुम्हारे लिए मसीह दज्जाल से ज़्यादा
डरता हूँ? हम ने कहा ज़रूर! आप ने फ़रमायाः शिर्के ख़फ़ी, ये वो चीज़ है के एक
शख़्स उठ कर नमाज़ अदा करता है और इसलिए अपनी नमाज़ को मुज़य्यन करता है के कोई
दूसरा उसे देख रहा होता है।
इब्ने माजा, बैहक़ी और हाकिम की मुस्तदरक में रिवायत आती है जिस के बारे में हाकिम कहते हैं के इस में कोई इल्लत नहीं है, हज़रत ज़ैद बिन असलम अपने वालिद से नक़ल करते हैं के हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) मस्जिद की जानिब निकले और हज़रत मआज़ (رضي الله عنه) को देखा के हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) की क़ब्र पर रो रहे हैं, तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने पूछा के क्यों रो रहे हो? हज़रत मआज़ ने कहा के मैंने हुज़ूरे अकरम से हदीस सुनी है फ़रमायाः
(( الیسیر من الریاء شرک،ومن عادی أولیاء
اللّٰہ فقد بارز اللّٰہ بالمحاربۃ،إن اللّٰہ یحب الأبرار الأنقیاء الأخفیاء
الذین إن غابوا لم یتفقدوا،و إن حضروا لم یعرفوا،قلوبھم مصابیح الھدی
یخرجون من کل غبراء مظلمۃ))
ज़रा सा दिखलावा भी शिर्क में से है। और जो अल्लाह के दोस्तों से दुश्मनी रखे, उस ने अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की दुश्मनी मोल ली। अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ख़ालिस और नेकोकारों को पसंद फ़रमाता है जो ऐसे हों के अगर वो (लोगों के बीच) ना रहें तो (लोगों को) उनकी ग़ैरमौजूदगी का एहसास भी ना हो और जब वो लोगों के दरमियान हों तो लोग उन्हें ना पहचानें। उन के दिल हिदायत के चिराग़ों के मानिंद हैं जो हर तारीक गोशे से फूट रहे हों।
ये दिखावा जब ऐसे अ़मल में हो जिस से बंदा अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का कुर्ब हासिल करता है, तो ये रिया इस अ़मल को ऐसे बातिल कर देती है जैसे ये अ़मल किया ही ना गया हो और इसके अ़लावा इस रिया का गुनाह मज़ीद उस शख़्स के सर होता है। इस की दलील मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी हदीस में आती है के अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((قال اللّٰہ تبارک وتعالیٰ: أنا أغنی الشرکاء عن الشرک،من عمِل عملاً أشرک فیہ غیري ترکتہ وشرکہ))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने फ़रमायाः मैं मुस्तसना हूँ तमाम शरीकों से। जिस ने कोई ऐसा अ़मल किया जिस में मेरे साथ किसी और को शामिल किया तो मैं उसको और उसके शरीक के काम को छोड़ देता हूँ।
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने फ़रमायाः मैं मुस्तसना हूँ तमाम शरीकों से। जिस ने कोई ऐसा अ़मल किया जिस में मेरे साथ किसी और को शामिल किया तो मैं उसको और उसके शरीक के काम को छोड़ देता हूँ।
जब किसी अ़मल में से अल्लाह के साथ किसी और की रज़ा भी मक़सूद हो तो वो इस अ़मल को बातिल कर देती है लिहाज़ा ये ऊला हुआ के जब ख़ालिस रिया हो तो अ़मल यक़ीनन बातिल होगा। मुसनद अहमद में हज़रत उबई इब्ने काब (رضي الله عنه) से बसनदे हसन मरवी है के हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((بشر ھذہ الأمۃ بالسنا والرفعۃ ولنصر والتمکین،فمن عمل منھم عمل الآخرۃ للدنیا لم یکن لہ فی الآخرۃ نصیب))
इस उम्मत को शानो शौकत, आला दरजात, फ़तह ओ कामरानी की बशारत दे दो। जो भी कोई आख़िरत की बेहतरी के काम दुनिया की ग़र्ज़ से करे, उसका आख़िरत में कोई हिस्सा ना होगा।
इस उम्मत को शानो शौकत, आला दरजात, फ़तह ओ कामरानी की बशारत दे दो। जो भी कोई आख़िरत की बेहतरी के काम दुनिया की ग़र्ज़ से करे, उसका आख़िरत में कोई हिस्सा ना होगा।
बैहक़ी और अल बज़्ज़ार में ठीक सनद से ज़ुहाक इब्ने क़ैस की रिवायत नक़ल की गई है, वो कहते हैं के हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((إن اللّٰہ تبارک وتعالیٰ یقول أنا خیر
شریک فمن أشرک معي شریکاً فھو لشریکي،یا أیھا الناس أخلصوا أعمالکم
للّٰہ،فإن اللّٰہ تبارک وتعالیٰ یقبل من الأعمال إلا ماخلص لہ،ولا تقولوا
ھذا للّٰہ وللرحم فإنھا للرحم ولیس للّٰہ منھا شيء،ولا تقولوا ھذا للّٰہ
ولوجوھکم فإنھا لوجوھکم ولیس للّٰہ فیھا شیء۔))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाता हैः मैं सब से ख़ैर शरीक हूँ। सो जो कोई भी मेरे साथ किसी को शरीक करे तो उसका अ़मल उसी शरीक के लिए है। ऐ लोगो! अपने आमाल को अल्लाह के लिए ख़ालिस कर लो क्योंकि अल्लाह سبحانه وتعالیٰ सिर्फ़ उन्हीं आमाल को क़ुबूल करता है जिस में उसके साथ कोई शरीक ना किया गया हो। ये मत कहो के ये (नेक अ़मल) अल्लाह के लिए है और रहम (क़रीबी निसवां रिश्तेदार जिस से निकाह हराम ना हो) के लिए है क्योंकि ऐसा कहने से वो अ़मल सिर्फ़ उसी रहम के लिए रह जाऐेगा और अल्लाह के लिए उस में से कुछ भी नहीं होगा। ये भी मत कहो के ये (नेक अ़मल) अल्लाह के लिए है और फ़ुलाँ (बड़े और बाअसर शख़्स) के लिऐ क्योंकि ऐसा कहने से वो अ़मल सिर्फ़ उन्हीं के लिए रह जाये और अल्लाह के लिए इस में कुछ भी नहीं होगा।
तिरमिज़ी, इब्ने माजा, इब्ने हिब्बान, बैहक़ी और मुसनद अहमद में एक सहाबी अबी सईद इब्ने अबी फ़ुज़ाला (رضي الله عنه) से रिवायत करते हैं के उन्होंने हुज़ूरे अकरम से सुनाः
((إذا جمع اللّٰہ الأولین والآخرین یوم القیامۃ لیوم لا ریب فیہ،نادی
مناد من کان أشرک فی عملہ أحداً فلیطلب ثوابہ من عندہ،فإن اللّٰہ أغنی
الشرکاء عن الشرک))
जब अल्लाह سبحانه وتعالیٰ क़यामत के दिन, जिस के आने में कोई शक नहीं है, पहले और बाद वालों को जमा फ़रमाएगा तो पुकारने वाला मुनादी करेगा : जिस किसी ने अपने अ़मल में किसी को शरीक किया हो वो इसका अज्र उसी शरीक से मांग ले, अल्लाह سبحانه وتعالیٰ तो तमाम शरीकों से बेनियाज़ है।
सुन्नत तो ये है के सालेह आमाल को जहाँ मुम्किन हो छुपाया जाये जैसे सद्क़ा, नफ़्ल इबादात, सुन्नत इबादात, दुआ, इस्तिग़फ़ार तिलावते क़ुरआन वग़ैरा। इस की कसरत से दलीलें हैं लेकिन यहाँ हम सिर्फ़ हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मरवी मुसनद अहमद की सही हदीस पर इक्तिफ़ा करेंगे के हुज़ूर अक़्दस (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((۔۔۔نعم الریح قالت یا رب فھل من خلقک شیء أشد من الریح؟قال: نعم ابن آدم یتصدق بیمینہ یخفیھا عن شمالہ))
हवाएं जिन पर बरकात हैं, अल्लाह سبحانه وتعالیٰ से कहती हैं: एै रब ! क्या तेरी मख़्लूक़ में कोई चीज़ है जो हवा से ज़्यादा क़वी हो? फ़रमायाः हाँ, आदम की औलाद जो इस तरह अपने दाएं हाथ से सद्क़ा करते हैं के उनके बाएं हाथ को ख़बर नहीं होती।
हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने हमें इस छिपे हुए शिर्क से बचने का तरीक़ा भी सिखा दिया है। मुसनद अहमद, तिबरानी और मुसनद अबू याला में सनदे हसन से हज़रत अबू मूसा अल अ़शअ़री (رضي الله عنه) की रिवायत नक़ल की है के उन्होंने अपने एक ख़ुत्बे में फ़रमायाः ऐ लोगो! इस शिर्क से ख़बरदार रहो क्योंकि ये चींटी की चाल से भी ज़्यादा बे आवाज़ है। इस पर अ़ब्दुर्ररेहमान बिन हज़न और क़ैस बिन अल मद़ारिब उठ खड़े हुए और कहाः बख़ुदा तुम अपनी ये बात वापिस ले लो वर्ना हम हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) के पास जाऐेंगे ख़्वाह वो हमें इज़ाज़त दें या ना दें। हज़रत अबू मूसा (رضي الله عنه) ने कहाः इसके बरअ़क्स में अपनी बात की वज़ाहत करूंगा, एक बार हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने ख़ुतबा दिया और फ़रमाया:
((یایھا الناس اتقوا ھذاالشرک فإنہ أخفی من دبیب النمل فقال لہ من شاء اللّٰہ أن یقول:وکیف نتقیہ وھو أتقی من دبیب النمل یا رسول اللّٰہ؟قال:قولوا اللھم إنا نعوذ بک من أن نشرک بک شیئاً نعلمہ و نستغفرک لما لا نعلمہ۔))
ऐ लोगो! इस शिर्क से बचो क्योंकि ये चींटी की चाल से भी ख़फ़ीफ़ है। इस पर जिस को अल्लाह ने चाहा उस ने दरयाफ़्त किया के ऐ अल्लाह के रसूल जब ये चींटी की चाल से भी ख़फ़ीफ़ है तो हम इस से कैसे बचें? आप ने फ़रमायाः कहोः ऐ अल्लाह हम तेरी पनाह चाहते हैं के तुझ से किसी मुआमले में जानते बूझते शिर्क करें और तुझ से मग़फिरत चाहते हैं के अनजाने में ये हम से सरज़द हो जाऐे।
हालाँके तसमीअ़़ और रिया दोनों हराम होने में यकसाँ हैं लेकिन तसमीअ़़ में रिया की तरह अ़मल बातिल नहीं हो जाता, क्योंकि जिस अ़मल की तसमीअ़ की गई वो या तो रिया की नियत से थी चुनांचे इसी बिना पर वो अ़मल बातिल हो चुका, अब तसमीअ़ से गुनाह में इज़ाफ़ा हो गया लेकिन फ़ी नफ़्सिही तसमीअ़ के बाइस बातिल नहीं हुआ। या फिर अ़मल ख़ालिसन अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के लिए किया गया तो वो अ़मल सही और सालेह हुआ और फिर उसकी तसमीअ़ या शौहरत की गई, ये दीगर गुनाहों की तरह हुआ जिस से तौबा के ज़रीये निजात मुम्किन है। अब मुम्किन है के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ इस गुनाह को मौत से क़ब्ल बख़्श दे या क़यामत के दिन इस पर पर्दा करदे या फिर मीज़ान में रख दे जिस से इस की नेकियां कम हो जाऐं, अलबत्ता वो अ़मल बातिल नहीं हुआ जो ख़ालिस अल्लाह के लिए किया गया था। तसमीअ़़ के हराम होने की जो दलीलें वारिद हैं इन से तसमीअ़ का हराम होना ही साबित होता है, इस अ़मल के रिया की तरह बातिल हो जाने की तरफ़ इशारा नहीं करतीं। रिया तो वो शिर्क है जिस में अल्लाह سبحانه وتعالیٰ इस अ़मल को उस शरीक के लिए छोड़ देता है और अ़मल करने वाले से कहता है के अब तुम इस अ़मल का अज्र उसी शरीक से तलब करो, यानी वो अ़मल जिस में रिया का उ़न्सुर शामिल है, वो ना होने के बराबर है। जबकि वो अ़मल जो ख़ालिस अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के लिए तो किया गया हो लेकिन इस की शौहरत भी की गई हो वो बाक़ी रहता है और अ़मल करने वाला अज्र का मुस्तहिक़ होता है, हालाँके शौहरत करने की बिना पर वो गुनाह का सज़ावार भी ठेहरा। इस मौज़ू पर जो अहादीस ऊपर गुज़रीं इन में हुज़ूरे अकरम के अक़वाल ((तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ लोगों को दिखाएगा और सुनाएगा)), ((अल्लाह سبحانه وتعالیٰ तमाम मख़्लूक़ के सामने क़यामत के दिन इसके आमाल को दिखा देगा)) और ((तो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ लोगों को इसके आमाल से बाख़बर कर देगा)) ये तमाम तसमीअ़ की सज़ा के तौर पर आए हैं ना के अ़मल के बातिल होने की दलील हैं जैसा के रिया का मुआमला होता है।
अ़मल के बातिल हो जाने के मुआमले में तसमीअ़ रिया से मुख़्तलिफ़ है क्योंकि वो अ़मल जिस में रिया शामिल है वो ऐसा है जैसे हुआ ना हो, लिहाज़ा वो बातिल हो गया। जबकि वो अ़मल जो ख़ालिसन अल्लाह के लिए किया गया हो, फिर अ़मल हो जाने के बाद उसकी शौहरत की गई हो उसका होना सही माना जाता है। लिहाज़ा अल्लाह से कुरबत का जो अ़मल सही हुआ वो इस अ़मल जैसा नहीं होगा जिस का होना ही बातिल है।
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