अख़्लाक़े हसना (2): अपने क़ौल और दूसरों की बात पहुंचाने में तहक़ीक़ कर लेना, ख़ुशकलामी, पुर तबस्सुम चेहरा:

4 अपने क़ौल और दूसरों की बात पहुंचाने में तहक़ीक़ कर लेना:


अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का इरशाद हैः

وَ لَا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهٖ عِلْمٌ١ؕ
जिस बात की तुझे ख़बर ही ना हो, उसके पीछे ना पड़। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः बनी इसराईल- 36)
एक दूसरे मुक़ाम पर फ़रमायाः

مَا يَلْفِظُ مِنْ قَوْلٍ اِلَّا لَدَيْهِ رَقِيْبٌ عَتِيْدٌ
(इंसान) मुंह से कोई लफ़्ज़ निकाल नहीं पाता, मगर उसके पास निगहबान तैय्यार है। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: क़ाफ़ -18)

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से हदीस नक़ल की है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((کفی بالمرء کذباً أن یحدث بکل ما سمع))
आदमी के झूठे होने के लिए काफ़ी है के हर सुनी सुनाई बात को बयान करता रहे।

5 ख़ुशकलामीः

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अ़दई बिन हातिम (رضي الله عنه) से हदीस नक़ल है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((اتقوا النار و لو بشق تمرۃ،فمن لم یجد فبکلمۃ طیبۃ))
जहन्नुम की आग से बचो, ख़्वाह खजूर के एक हिस्से के ज़रीये ही हो, जिस को ये भी मयस्सर ना हो वो अच्छी और नेक बात के ज़रीये बचे। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

इसी तरह बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः ख़ुशकलामी सद्क़ा है।

तिबरानी में हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसे हैसमी और अल मुंज़िरी ने हसन बताया है नीज़ हाकिम ने सही बताया है के नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((إنَّ فی الجنّۃِ غرفۃٌ یری ظاھرھا من باطنھا وباطنھا من ظاھرھا فقال ابو مالک العشعری:لمن ھی یا رسول اللّٰہ؟ قال: لمن أطاب الکلام،وأطعم الطعام و بات قائماً والناس نیام))

जन्नत में एक कमरा है जिस के अंदर से बाहर देखा जा सकता है और बाहर से अंदर देखा जा सकता है। तो अबू मालिक अल अशअ़री ने पूछाः या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ये किस के लिए है? आपने फ़रमायाः उस शख़्स के लिए जो ख़ुश कलाम हो, खाना खिलाता हो, रातों को क़ियाम करे जब के लोग सोते हैं

6 पुर तबस्सुम चेहराः


मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः
((لا تحقرن من المعروف شیئاً ولو أن تلقی أخاک بوجہ طلیق))

किसी भी नेकी के काम को हक़ीर मत जानो, चाहे ये तुम्हारा अपने भाई से मुस्कुराते चेहरे से मिलना ही हो।
मुसनद अहमद और तिरमिज़ी में हज़रत जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है जिसे उन्होंने हसन सही बताया है के नबी (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((کل معروف صدقۃ،وإن من المعروف أن تلقی أخاک بوجہ طلیق،وأن تفرغ من دلوک في إناء أخیک))
हर मारूफ़ काम सद्क़ा है और उन मारूफ़ कामों में से ये भी है के तुम अपने भाई से हश्शाश-ओ-बश्शाश चेहरे के साथ मुलाक़ात करो। और तुम अपने डोल से अपने भाई के बर्तन को भरो। (अहमद, तिरमिज़ी)

मुसनद अहमद और सही इब्ने हिब्बान में हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) से नक़ल किया है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((تبسمک في وجہ أخیک صدقۃ۔۔۔))
तुम्हारा अपने भाई से मुस्कुरा कर मिलना भी सद्क़ा है।

मुसनद अहमद सुनन अबी दाऊद और तिरमिज़ी और इब्ने हिब्बान में अबू जरा अल हजीई (رضي الله عنه) से रिवायत है जिसे सही हसन बताया है:

((أتیت رسول اللّٰہ ا فقلت: یا رسول اللّٰہ إنا قوم منأھل البادۃ فعلمنا شیئاً ینفعنا اللّٰہ بہ فقالا:لا تحقرن من المعروف شیئاً ولو أن تفرغ من دلوک في إناء المستسقي، ولو أن تکلم أخاک ووجھک إلیہ منبسط۔۔۔))

के मैं रसूले अकरम के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) हम गांव के रहने वाले हैं हमें कुछ एैसी बातें बताएं जिन के ज़रीये अल्लाह हम पर इनायत करे। आप ने फ़रमायाः किसी भी नेकी और मारूफ़ के काम को छोटा ना समझो गरचे तुम अपने डोल से अपने भाई के बर्तन में पानी भरो और ख़ंदापेशानी से अपने भाई से बात करो।





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