बाअ़ज़ अख़्लाक़े हसना (1): हया,रुफ़्क़ हुल्म-ओ-बुर्दबारी,सिद्क़ गोई:

1 हयाः

हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه)  से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) अंसार के एक आदमी के पास से गुज़रे वो अपने भाई को हया की नसीहत कर रहा था, आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((دعہ فإن الحیاء من الإیمان))
इस को छोड़ दो। यक़ीनन हया ईमान का जुज़ है। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत इमरान बिन हुसैन (رضي الله عنه) से नक़ल किया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((الحیاء لا یأتي إلا بخیر))
शर्म-ओ-हया ख़ैर ही लाती है।

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((الإیمان بضع وسبعون؛أو بضع و ستون؛شعبۃ،فأفضلھا قول لا إلہ إلّا اللّٰہ،وأدناھا إماطۃ الأذی عن الطریق ولحیاء شعبۃ من الإیمان))
ईमान की कुछ ऊपर सत्तर, या कुछ ऊपर साठ शाख़ें हैं। इन में सब से अफ़ज़ल “ला इलाह इल्लल्लाह” कहना है और सब से अदना, रास्ते से तकलीफ़ देह चीज़ का हटा देना है, और हया भी ईमान की एक शाख़ है। (मुत्तफिक़ अ़लैह)


2 रुफ़्क़ हुल्म-ओ-बुर्दबारीः


मुस्लिम में हज़रत इब्ने अ़ब्बास और हज़रत अबू सईद ख़ुदरी (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने अल अश्जअ़ अ़ब्द अल क़ैस (رضي الله عنه) से फ़रमायाः

((إن فیک لخصلتین یحبھما اللّٰہ، الحلم الأناۃ))
तुम्हारे अन्दर दो आदतें या ख़सलतें एैसी हैं जिन को अल्लाह سبحانه وتعالیٰ पसंद फ़रमाते हैं: एक बुर्दबारी और दूसरी सोच समझ कर काम करना। (मुस्लिम शरीफ़)

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत आईशा (رضي الله عنها) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((إن اللّٰہ رفیق یحب الرفق في الأمر کلہ))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ नरमी करने वाला है और हर मुआमले में नरमी को पसंद फ़रमाता है। 

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत आईशा (رضي الله عنها) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((إن اللّٰہ رفیق یحب الرفق و یعطي علی ما لا یعطي علی العنف،وما لا یعطي علی ما سواہ))
बेशक अल्लाह سبحانه وتعالیٰ नरमी करने वाला है और नरमी को ही पसंद फ़रमाता है, नरमी पर वो कुछ अ़ता करता है जो सख़्ती पर नहीं करता और ना इसके अ़लावा किसी और चीज़ पर अ़ता करता है। (मुस्लिम शरीफ़)

हज़रत आईशा (رضي الله عنها) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((إن الرفق لا یکون في شئی إلا زانہ،ولا ینزع من شئی إلا شانہ))
नरमी जिस चीज़ में हो उसको ख़ूबसूरत बना देती है और जिस चीज़ से निकाल ली जाये उसको ए़ैबदार कर देती है।

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत जरीर बिन अ़ब्दुल्लाह (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((من یحرم الرفق یحرم الخیر))
जिस को बुर्दबारी से मेहरूम कर दिया गया वो हर किस्म की ख़ैर से मेहरूम हो गया।

मुस्लिम शरीफ़ ही में हज़रत आईशा (رضي الله عنها) से हुज़ूर अकरम (صلى الله عليه وسلم) का क़ौल मनकूल हैः

((اللھم من ولي من أمر أمتي فشق علیھم فاشقق علیہ،ومن ولي من أمر أمتی شیئاً فریق بھم فارفق بہ))
ऐ अल्लाह! जो मेरी उम्मत के मुआमलात पर हाकिम मुक़र्रर हो और उस पर सख़्ती करे तू भी उसके साथ सख़्ती का मुआमला फ़रमा, और जो मेरी उम्मत के मुआमलात पर मुतय्यन हो और उनसे नरमी का बरताओ करे तू भी ऐसे के साथ नरमी का मुआमला फ़रमा।

3 सिद्क़ गोईः

अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने फ़रमायाः

يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَ كُوْنُوْا مَعَ الصّٰدِقِيْنَ
ऐ लोगो जो ईमान लाए हो अल्लाह का डर रखो और सच्चे लोगों के साथ हो जाओ। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: तौबा -119)
और दूसरी जगह इरशाद हुआः

فَلَوْ صَدَقُوا اللّٰهَ لَكَانَ خَيْرًا لَّهُمْۚ
तो अगर वो अल्लाह के लिए सच्चे साबित होते तो उनके लिए बेहतर होता। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम : मुहम्मद-21)

बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत इब्ने मसऊ़द (رضي الله عنه) से नक़ल किया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((علیکم بالصدق،فإن الصدق یھدي إلی البر،و إن البر یھدی إلی الجنۃ،و إن الرجل لیصدقُ حتّٰ یکتب عند اللّٰہِ صدیقاً۔۔۔))
सिद्क़ को लाज़िम कर लो, क्योंकि सच्चाई नेकी की तरफ़ रहनुमाई करती है और नेकी जन्नत की तरफ़ ले जाती है। आदमी बराबर सच बोलता रहता है और यहाँ तक के अल्लाह के यहाँ उसको सच्चा (सिद्दीक़) लिख दिया जाता है।
बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत काब बिन मालिक (رضي الله عنه) अपना क़िस्सा बयान करते हैं, जब वो ग़ज़वाऐ तबूक में पीछे रह गए थे। कहते हैं कि:


(و قلت یا رسول اللّٰہ اِنما انجاني اللّٰہُ با۔صدق،و اِن مِن توبتي اَن لا احدث اِلا صدقاً ما بقیت۔۔۔)
मैंने कहा ऐ अल्लाह के रसूल  (صلى الله عليه وسلم)! अल्लाह ने सच्चाई के सबब मुझे निजात दी है और ये मेरी तौबा का हिस्सा है के मैं जब तक ज़िंदा रहूं सच्च के सिवा कुछ ना बोलूं।

तिरमिज़ी में हज़रत हसन बिन अ़ली (رضي الله عنه) फ़रमाते हैं के मैंने रसूले अकरम  (صلى الله عليه وسلم) का फ़रमान हिफ़्ज़ कर लिया केः

((دع ما یُرِیْبُکَ الی ما لا یُرِیْبُکَ،فاِنَّ الصدق طماْنینۃٌ والکذبَ ریبۃٌ))
शक में मुब्तिला करने वाली चीज़ को छोड़कर ऐसी चीज़ों को इख़्तियार करो जो शक और शुबे से बुलंद हों (याद रखो) सच्चाई बाइसे इत्मिनान है और झूठ शक और शुबे का सर चश्मा है।

सुनन इब्ने माजा में हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र (رضي الله عنه) से नक़ल किया गया हैः

((قیل یا رسول اللّٰہ ا،أي الناس أفضل؟ قال: کل مخموم القلب صدوق اللسان،قالوا: صدوق اللسان نعرفہ فما مخموم القلب؟ قال ھو التقي النقي،لا إثم فیہ،ولا بغي،ولا غل،ولا حسد))

आप  (صلى الله عليه وسلم) से पूछा गया के ऐ अल्लाह के रसूल कौन से लोग अफ़ज़ल हैं? आप ने फ़रमायाः हर मख़्मूमुल क़ल्ब और सादिक़ लिसान, लोगों ने पूछाः सादिक़ लिसान को तो हम जानते हैं मगर ये मख़्मूम उलक़ल्ब कौन हैं। आपंने फ़रमायाः हर मुत्तक़ी और साफ़ शख़्स जिस के अंदर ना कोई बुराई हो ना सरकशी हो ना कीना हो और ना ही हसद हो।

इब्ने माजा और तिबरानी में मुआविया की रिवायत है जिसे हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ से नक़ल किया गया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((علیکم بالصدق،فإنہ البرّ وھما في الجنّۃ))
सच्चाई को क़ायम रखो, ये बर (नेकी) के साथ है और ये दोनों जन्नत में हैं।

तिरमिज़ी में हज़रत अबू सईद अलख़ुदरी (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((لتاجر الصدوق الأمین مع النبین والصدیقین والشھداء))
सादिक़ और अमीन ताजिर अन्बिया, सिद्दीक़ीन और शुहदा के साथ होंगे।

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