11 हुस्ने हमसायगीः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाता हैः
وَ
اعْبُدُوا اللّٰهَ وَ لَا تُشْرِكُوْا بِهٖ شَيْـًٔا وَّ
بِالْوَالِدَيْنِ۠ اِحْسَانًا وَّ بِذِي الْقُرْبٰى وَ الْيَتٰمٰى وَ
الْمَسٰكِيْنِ وَ الْجَارِ ذِي الْقُرْبٰى وَ الْجَارِ الْجُنُبِ وَ
الصَّاحِبِ
بِالْجَنْۢبِ وَ ابْنِ السَّبِيْلِ١ۙ وَ مَا مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ١ؕ
और
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की इ़बादत करो और उसके साथ किसी को शरीक ना करो और
माँ बाप के साथ सुलूक और एहसान करो और रिश्तेदारों से और यतीमों से और
मिस्कीनों से और क़राबतदार हमसाये से और अजनबी हमसाये से और पहलू के साथी से
और राह के मुसाफ़िर से और उनसे जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हैं, (गुलाम कनीज),
(तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अन्निसा-36)
हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने उमर (رضي الله عنه) और हज़रत आईशा (رضي الله عنها) से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत नक़ल है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((ما زال جبریل یوصیني بالجار حتی ظننت أنہ سیورثہ))
जिब्रईल (عليه السلام) हमेशा पड़ोसी के बारे में इतनी तलक़ीन करते के ख़्याल हुआ के वो उनको विरासत में हक़दार बना देंगे।
बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू शुरेह अलख़ुज़ाई (رضي الله عنه) से मरवी है के नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((من کان یؤمن باللّٰہ والیوم الآخر فلیحسن إلی جارہ۔۔۔))
जो शख़्स अल्लाह और यौमे आख़िरत पर ईमान लाता हो वो अपने पड़ोसी के साथ हुस्ने सुलूक से पेश आए।
बुख़ारी की रिवायत में हैः (فلیکرم جارہ) यानी अपने पड़ोसी की तकरीम करे।
हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मुस्लिम शरीफ़ में नक़ल किया है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः
((والذي نفسی بیدہ، لا یؤمن عبد حتی یحب لجارہ
أو لأخیہ ما یحب لنفسہ))
क़सम
उस ज़ात की जिस के हाथ में मेरी जान है! बंदा उस वक़्त तक मोमिन नहीं हो
सकता जब तक वो अपने पड़ोसी या अपने भाई के लिए वो चीज़ पसंद ना करे जो अपने
लिए पसंद करता है। (मुस्लिम)
इब्ने हिब्बान और इब्ने ख़ुज़ैमा ने अपनी सही में हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उमरो से रिवायत नक़ल की है और हाकिम ने मुस्तदरक में यही रिवायत नक़ल की है जिसे मुस्लिम इमाम अहमद और अल दारिमी की शर्त पर सही बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((خیر أصحاب عند اللّٰہ خیرھم لصاحبہ،
وخیر الجیران عند اللّٰہ خیرھم لجارہ))
अल्लाह के नज़दीक सब से बेहतर साथी वो है जो अपने साथी के लिए बेहतर हो और सब से बेहतर पड़ोसी वो है जो अपने पड़ोसी के लिए बेहतर हो।
इब्ने हिब्बान और मुसनद अहमद में हज़रत साद बिन वक़्क़ास (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((أربع من السعادۃ: المرأۃ الصالحۃ،والمسکن الواسع والجار الصالح المرکب الھنيء۔۔۔))
सआदत (ख़ुश नसीबी) चार चीज़ों में हैः नेक बीवी, कुशादा मकान, अच्छा पड़ोसी, आरामदेह सवारी।
नीज़ मुसनद अहमद में हज़रत नाफ़े बिन अल हारिस (رضي الله عنه) नक़ल करते हैं के हुज़ूरे अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((من سعادۃ المرء الجار الصالح والمرکب الھنیء
والمسکن الواسع))
आदमी की ख़ुशबख़्ती में से है के उसको नेक पड़ोसी, आरामदेह सवारी और कुशादा मकान मिले।
मुस्लिम शरीफ़ में अबूज़र (رضي الله عنه) से मरवी है के नबी (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((یا أبا ذر،إذا طبخت مرقاً فأکضر ماء ھا وتعاھد جیرانک))
ऐ अबूज़र! जब तुम शोरबा बनाओ तो पानी ज़्यादा कर दो, और अपने पड़ोसी का ख़्याल रखो।
बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से हदीस नक़ल है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((یا نساء المسلمات،لا تحقرن جارۃ لجارتھا ولو فرسن شاۃ))
ऐ मुस्लिम औरतों! अपनी पड़ोसन के लिए कोई चीज़ हक़ीर ना समझो, अगरचे बकरी का एक खुर ही हदिया भेजे।
बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत आईशा (رضي الله عنها) से मरवी हैः
(قلت یا رسول اللّٰہ ا،إن لي جارین فإلی أیھما أھھدي
قال:إلی أقربھما منک باباً)البخاری
मैंने
रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से पूछाः या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه
وسلم)! मेरे दो पड़ोसी हैं तो मैं किस को हदिया भेजूं? आप ने जवाब दियाः
जिस का दरवाजा तुम से ज़्यादा क़रीब हो।
12 अमानतदारीः
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने फ़रमायाः
اِنَّ اللّٰهَ يَاْمُرُكُمْ اَنْ تُؤَدُّوا الْاَمٰنٰتِ اِلٰۤى اَهْلِهَا١ۙ
अल्लाह तुम्हें ताकीदी हुक्म देता है के अमानत वालों की अमानतें उन्हें पहुँचाओ। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अन्निसा -58)
हज़रत हुज़ैफ़ा (رضي الله عنه) से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत आती हैः
(جاء
أھل نجران إلی النبيا فقالوا: إبعث لنا رجلاً أمیناً،فقال لأبعثن إلیکم
رجلاً أمیناً حق أمین،فأستشرف لہ الناس،فبعث أبا عبیدۃ بن الجراح ص)
एहले
नजरान नबी (صلى الله عليه وسلم) की ख़िदमत में आऐ और कहाः किसी अमीन शख़्स
को हमारे साथ भेज दीजिऐ। तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया मैं एक
अमानतदार शख़्स को भेजूंगा जो हक़ीक़ी अमीन होगा। तो लोग उठ उठ कर झांकने लगे
के आप किसका नाम लेते हैं। आप (صلى الله عليه وسلم) ने अबू उ़बैदा बिन अल
जर्राह (رضي الله عنه) को भेजा।
हज़रत अबूज़र (رضي الله عنه) से मुस्लिम शरीफ़ में नक़ल हैः
((قلت:
یا رسول اللّٰہ ألا تستعملني،قال فضرب بیدہ علی منکبي،ثم قال: یا أبا
ذر،إنک ضعیف وإنھا أمانۃ،وإنھا یوم القیامۃ خذي و ندامۃ،إلا من أخذھا
بحقھا،وأدی الذي علیہ فیھا))
मैंने
कहाः या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! आप मुझे वाली या आमिल क्यों
मुक़र्रर नहीं करते। तो रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने अपना हाथ मेरे
कंधे पर रखा और फ़रमायाः ऐ अबूज़र! तुम कमज़ोर हो और ये (औहदा) एक अमानत है।
जो आख़िरत में नदामत और शर्मिंदगी का बाइस है मगर जो इसके साथ इंसाफ़ करे और
इस की कमा हक़्क़हू अदाइगी करे।
हुज़ैफ़ा बिन अल यमान इ कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने हम से दो हदीसें बयान की जिन में से एक को मैं देख रहा हूँ और दूसरी का मुंतज़िर हूँ। आप ने फ़रमाया थाः यक़ीनन अमानत की क़ीमत लोगों के दिलों से ख़त्म हो जाऐगी (कम हो जायेगी)
तिबरानी में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है जिसके बारे में अल मुंज़री कहते हैं के इसकी सनद में कोई क़बाहत नहीं, नीज़ हैसमी ने इस रिवायत की सनद को हसन बताया हैः
(اکفلوا بست أکفل لکم الجنۃ،قلت :ماھن یا رسول اللّہ؟ قال:الصلاۃ،والزکاۃ،والأمانۃ،والفرج،والبطن واللسان)
के
रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने अपने इर्दगिर्द बैठे अपनी उम्मत से
कहाः अगर तुम छः चीज़ों की ज़मानत ले लो तो मैं तुम्हारे लिए जन्नत की ज़मानत
ले लूं।
मैंने कहाः वो चीज़ें क्या हैं, या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)? आप ने फ़रमायाः नमाज़, ज़कात, अमानत, शर्मगाह, पेट और ज़बान।
अमानत
शरई वाजिबात हैं और ये भी कहा गया है के अमानत शरई वाजिबात की पासदारी और
इस की इताअ़त है। चुनांचे तमाम अवामिर और नवाही अमानत में शामिल हैं। पस
जिस तरह ख़लीफ़ा के लिए ख़िलाफ़त एक अमानत है उसी तरह यही अमानतदारी हर एक शख़्स
पर है ख़्वाह वो किसी सूबे का वाली (गवर्नर) हो, किसी क़स्बे का आमिल
(Mayor) हो, क़ाज़ी, मज्लिसे शूरा के अरकान, सिपह सालार, सफ़ीर, नमाज़ी,
रोज़ादार, हाजी, ज़कात देने वाला, दावत का काम करने वाले दाई, लोगों को ख़ैर
की तालीम देने वाले, तालिबे इ़ल्म, मुफ़्ती, वक़्फ़ के मुतवल्ली, बैतुल माल
के निगरां, ताजिर या (Salesman) ख़ारिस (पैदावार का तख़्मीना करने वाले),
आमिले सद्क़ात, ख़िराज की ज़मीनों के सर्वे (Survey) करने वाले, मुज्तहिद,
मुहद्दिस, मुअर्रिख़, साहिबे सैर, माले ग़नीमत के आमिल (इंचार्ज), सनअ़ती
मेहकमों के मुदीर, वजीरे तफ़्वीज़, वजीरे तनफ़ीज़, मुतर्जिम, बच्चों को तालीम
देने वाले असातिज़ा, अपने घर का ज़िम्मेदार आदमी, औरत अपने शौहर के घर में,
डाक्टर, दाया, कैमिस्ट (दवा फ़रोश), मुमर्रिज़ात, (Nurses) पार्टनर (शरीक,
साझेदार), मज़दूर (अजीर) मुदीर दारुल ख़िलाफ़त, इसके तहत काम करने वाले दीगर
मुदीरान जैसे मुदीरे मुश्तरियात (Incharge of Purchases) मुदीरे ज़ियाफ़त,
वर्कशाप के निगरान, मुदीरे मतबख (Kitchen Managers), मुदीरे शोबा मुरम्मत,
वकील, अपनी बीवी के साथ हम बिस्तर शख़्स, राज़दार, अख़बार नवीस रिपोर्टर, वो
सहाफ़ी जो इंचार्ज के हुक्म से फोन और इंटरनैट पर ख़बरें सुनाते हैं। इसी तरह
दीगर मुआमलात अंजाम देने वाले हज़रात वग़ैरा, सब के काम एक अमानत हैं। अमानत
एक बड़ी चीज़ है, एक अ़ज़ीम ओहदा है और इसका मैदान बहुत वसीअ़ है, कोई भी
मुकल्लिफ़ शख़्स इस से बड़ी चीज़ नहीं है। ख़्वाह इस पर उसकी ज़िम्मेदारी ज़्यादा
हो या कम हो और फ़र्द ख़्वाह बड़ा हो या छोटा।
13 ख़ुदातरसी और मुश्तबिहात से दामन कशी (वरअ़-ओ-तक़्वा)
हज़रत हुज़ैफ़ा बिन अल यमान इसे तिबरानी और अलबज़्ज़ार में रिवायत नक़ल है जिसे अलमुंज़री ने हसन अलसनद बताया है कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((فضل العلم خیرٌ من فضل العبادۃ وخیر دینکُم الورع))
इ़ल्म का ज़्यादा होना, इ़बादत के ज़्यादा होने से भला है, और दीन की अच्छी चीज़ ख़ुदातरसी है।
हज़रत नोमान बन बशीर (رضي الله عنه) से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत किया है उन्होंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को कहते सुनाः
((إن
الحلال بیّن وإن الحرام بین و بینھما مشتبھات لا یعلمھن کثیر من الناس،فمن
اتقی الشبھات استبرأ لدینہ وعرضہ،ومن وقع في الشبھات وقع فيالحرام،کالراعي
یری حول الحمی یوشک أن یرتع فیہ،ألا و إن لکل ملک حمی ألا وإن حمی اللّٰہ
محارمہ ألا وإن في
الجسد مضغۃ إذا صلحت صلح الجسد کلہ وإذا فسدت فسد الجسد کلہ ،ألا وھی القلب))متفق علیہ
हलाल
वाज़ेह है और हराम वाज़ेह है और उनके दरमियान मशकूक ओ मुश्तबिहात हैं, जिन
को अक्सरीयत नहीं जानती। जो इन मशकूक चीज़ों से बचा उसने अपने दीन और इज़्ज़त
को मेहफ़ूज़ कर लिया और जो इन में मुलव्विस हुआ वो हराम में जा गिरा। जैसे
एक चरवाहा अपने रेवड़ को ममनूआ (वर्जित) इलाक़े के क़रीब ले जाये और फिर वो
(रेवड़) इस में दाख़िल हो जाय। सुनो! बेशक हर बादशाह के कुछ ममनूआ इलाक़े होते
हैं और अल्लाह के ममनूआ इलाक़े उसके महारिम हैं। सुनो! जिस्म के अंदर एक
गोश्त का लोथड़ा है। अगर वो दुरुस्त है तो पूरा जिस्म दरुस्त रहेगा और अगर
वो ख़राब हो जाये तो पूरा जिस्म बर्बाद हो जाऐगा। सुनो! ये दिल है।
मुस्लिम शरीफ़ में नवास बिन समआन (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((البر حسن الخلق والإثم ماحاک في نفسک وکرھت
أن یطلع علیہ الناس))
नेकी (बिर्र) अच्छी ख़स्लत है। और गुनाह (इस्म) ये है जो दिल में खटका पैदा करे और आदमी को नापसंद हो के लोग इस से वाक़िफ़ (बाख़बर) हों।
मुसनद
अहमद में वाबिसा बिन माबद (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है जिसे इमाम अल
मुंज़री और इमाम नौवी ने हसन बताया है, नीज़ यही रिवायत अल दारिमी में आती है
जिसे इमाम नौवी ने हसन बताया है, रावी कहते हैं के मैं रसूले अकरम (صلى
الله عليه وسلم) के पास इस पुख़्ता इरादा से आया था के नेकी और गुनाह के
मुताल्लिक़ तमाम चीज़ें दरयाफ़्त कर लूंगा। लिहाज़ा आप (صلى الله عليه وسلم)
ने मुझ से फ़रमायाः वाबिसा! ज़रा क़रीब आओ। मैं उनसे क़रीब हुआ यहाँ तक के मेरे
टख़ने आप के टख़नों को छूने लगे। आपने फ़रमायाः वाबिसा! क्या मैं बताऊं के
तुम मुझ से क्या पूछना चाहते हो? मैंने कहाः हाँ! या रसूलुल्लाह (صلى الله
عليه وسلم) बताईए। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः तुम नेकी और गुनाह
के बारे में सवाल करना चाहते हो। मैंने कहाः बेशक। आप (صلى الله عليه
وسلم) अपनी तीन उंगलियों को जमा करके मेरे सीने पर मारने लगे और फिर
फ़रमायाः
((یا وابصۃ استفت قلبک،البر ما اطمأنت إلیہ النفس،واطمأن إلیہ القب،والإثم ماحاک في القلب، وتردد في الصدر،
وإن أفتاک الناس وأتوک))
ऐ
वाबिसा! अपने दिल से पूछो, नेकी वो है जिस पर नफ़्स और दिल मुतमईन हो, और
गुनाह वो है जो दिल में शुबा पैदा करे, दिल मुतरद्दिद हो, चाहे लोग इसके
बारे में तुम्हें कुछ भी कहें।
अबू सालबा
अलख़शनी (رضي الله عنه) से मुसनद अहमद में रिवायत है जिसे अल मुंज़री ने सनद
जय्यिद बताया है। हैसमी ने बताया है के इसके रावी मोतबर हैं। रावी ने हुज़ूर
अक़दस (صلى الله عليه وسلم) से दरयाफ़्त कियाः ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे बताईए
के मेरे लिए किया चीज़ हलाल है और क्या चीज़ हराम? आप ने फ़रमायाः
((البر ما سکنت إلیہ النفس، واطمأن إلیہ القلب،والإثم ما لم تسکن ألیہ النفس،ولم یطمئن إلیہ القلب وإن أفتاک المفتون))
नेकी
वो है जिस पर दिल सुकून महसूस करे और नफ़्स मुतमईन हो। गुनाह वो है के नफ़्स
सुकून महसूस ना करे और दिल ग़ैर मुतमईन हो, ख़्वाह लोग इस पर कुछ भी राय
दें।
(وجد تمرۃ في الطریق فقال:لو لا أنّي أخاف أن تکون من الصدقۃ لأکلتھا)
रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने एक खजूर देखी तो कहाः अगर मुझे ये डर ना होता के ये सद्क़े की है तो मैं इसको खा लेता।
तिरमिज़ी में हज़रत हसन बिन अ़ली (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है जिसे हसन सही बताया है, नीज़ यही रिवायत नसाई और इब्ने हिब्बान ने अपनी सही में नक़ल की है, कहते हैं के मैंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) से ये बात सुन कर ज़ेहन नशीन कर ली केः
((دع ما یریبک إلی ما لا یریبک))
जिन चीज़ों पर तुम्हें शक हो, उन्हें छोड़कर वो चीज़ें इख़्तियार करो जो मशकूक ना हों।
हाकिम ने अ़तिया बिन उ़र्वा अल सादी (رضي الله عنه) से रिवायत की है जिसे सही उस्सनद बताया है और अ़ल्लामा ज़ेहबी ने इस से इत्तिफाक़ किया है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((لا یبلغ العبد أن یکون من المتقین حتی یدع ما لابأس بہ
حذراً لما بہ بأس))
कोई
बंदा मुत्तक़ियों के दर्जे को इस वक़्त तक नहीं पहुंच सकता जब तक के वो
मेहेज़ गुनाह की चीज़ों से बचने की ख़ातिर उन चीज़ों को नहीं छोड़ देता जिन में
कोई बुराई नहीं है।
हज़रत अबू उमामा (رضي الله عنه) से मुसनद अहमद में रिवायत नक़ल है जिसे अलमुंज़री ने सही अलसनद बताया है के एक आदमी ने नबी अकरम से दरयाफ़्त किया के गुनाह क्या है, आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः
((إذا حاک في نفسک فدعہ،قال فما الإیمان؟ قال:إذا ساء تک سیئتک و سرتک حسنتک فأنت مؤمن))
जो
तुम्हारे दिल में कुछ शुबा हो तो उस काम को छोड़ दो। फिर उसने पूछा ईमान
क्या है? आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः जब तुम्हारी बुराई तुम को
बुरी लगे और तुम्हारी नेकी से तुम्हें ख़ुशी हो तो तुम मोमिन हो।
0 comments :
Post a Comment