तुम में बेहतरीन साहिबे अख़्लाक़(1-1)

तुम में बेहतरीन साहिबे अख़्लाक़

अख़्लाक़ और सिफ़ात इम्तियाज़ी औसाफ़ होते हैं और इन औसाफ़ को शरीयते इस्लामी से माख़ूज़ मआनिये और मफ़ाहीम के मुताबिक़ ढाला जाना इंतिहाई ज़रूरी है, अब जिन अख़्लाक़ को शरीयत ने बेहतर और हसन क़रार दिया होगा वो बेहतर अख़्लाक़ होंगे और जिन को मज़्मूम कहा होगा वो यक़ीनन मज़्मूम और बुरे होंगे, इसलिए के अख़्लाक़ शरीयते इस्लामी का एक जुज़ और अल्लाह के अवामिर और नवाही की एक क़िस्म हैं। शरीयत ने अख़्लाके हसना को इख़्तियार करने की तरग़ीब दी है और अख़्लाक़े सू से रोक दिया है। एक मुस्लिम, ख़ुसूसन दाई पर ये वाजिब होता है के वो शरीयत के मुताबिक़ अपने आप को नेक अख़्लाक़-ओ-अत्वार से मुज़य्यन करने के लिए हमा वक़्त बेचैन रहे। इस जानिब इशारा कर देना मुनासिब मालूम होता है के अख़्लाक़ की बुनियाद इस्लामी अ़क़ीदे पर होना चाहिए और मोमिन को उनसे ये जानते हुए के ये अख़्लाक़-ओ-आदात अल्लाह के अवामिर और उसके नवाही हैं, मुत्तसिफ़ होना चाहिए। लिहाज़ा वो सच बोले इस अ़क़ीदे के साथ के अल्लाह ने सच बोलने का हुक्म दिया है, अमानतदार हो, ये जानते हुए के अल्लाह ने अमानतदारी का हुक्म दिया है, इसलिए नहीं के इन अख़्लाक़ से कोई माद्दी नफ़ा मक़सूद हो जैसे आदमी अपनी तिजारत के लिए के लोग इसको हाथों हाथ लें या फिर लोग इसको मुंतख़ब करें। यहीं पर मोमिन और काफ़िर के सिद्क़ और सच्चाई के दरमियान फ़र्क़ वाज़ेह होता है। मोमिन हक़गोई से काम लेता है क्योंकि अल्लाह ने इसको हुक्म दिया है, जबकि काफ़िर इसलिए सच बोलता है क्योंकि इसके पीछे कोई दुनियावी मक़सद या नफ़ा मक़सूद होता है। यहाँ दोनों रुजहानात में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है।

 

सिद्क़ से मुताल्लिक़ नुसूसः


बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) का इरशाद हैः

((إن من خیارکم أحسنکم أخلاقاً))
तुम में सब से बेहतरीन शख़्स वो है जो अख़्लाक़ में बेहतर हो। (मुत्तफिक़ अ़लैह)

नवास बिन समआन (رضي الله عنه) कहते हैं के मैंने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से नेकी और गुनाह के बारे में सवाल किया तो आप  ने फ़रमायाः

((البرّ حسن الخلق،والإثم ما حاک
في نفسک وکرھت أن یطلع الناس ))
नेकी (बिर्र) अख़्लाक़ का अच्छा होना है। और गुनाह (इस्म) वो है जो आदमी के दिल में खटके और आदमी ये नापसंद करे के लोग इस (अ़मल) से बाख़बर हों। 

तिरमिज़ी और सही इब्ने हिब्बान में हज़रत अबू दरदा (رضي الله عنه) से रिवायत है रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ما شئی أثقل في المیزان المؤمن یوم القیامۃ من خلق حسن،وإن اللّٰہ یبغض الفاحش البذيء))
क़यामत के दिन मोमिन की मीज़ान में सब से वज़नी चीज़ अख़्लाक़े हसना होंगे। और अल्लाह ताअला बद अख़लाक़ फाहिश और बद ज़बान से नाराज़ होता है।

इमाम बुख़ारी رحمت اللہ علیہ ने अल अदब अल मुफर्रद में, और तिरमिज़ी, इब्ने हिब्बान, इब्ने माजा, मुस्तदरक अलहाकिम और मुसनद अहमद में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से दरयाफ़्त किया गया के कौन सी चीज़ सब से ज़्यादा लोगों को जन्नत में दाख़िल करेगी? तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः तक़वा इलाही (ख़ौफे ख़ुदा) और हुस्ने ख़ल्क़ फिर आप (صلى الله عليه وسلم) से पूछा गया कौन सी चीज़ सब से ज़्यादा लोगों के जहन्नुम में दाख़िले का सबब बनेगी? तो आपने जवाब दियाः मुँह और शर्मगाह (ज़बान और शर्मगाह)।

सुनन अबी दाऊद में अबू उमामा (رضي الله عنه) से रिवायत है जिसे इमाम नोवी ने सही बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((لأنا زعیم ببیت ربض الجنۃ ترک المراء وإن کان مخقاً، و ببیت في وسط الجنۃ لمن ترک الکذب وإن کان مازحاً و ببیت في أعلی الجنۃ لمن حسن خلقہ))

मैं रब्दे जन्नत (जन्नत की क्यारियों) में ऐसे एक घर की ज़मानत लेता हूँ उस शख़्स के लिए जो रिया (दिखावे) को तर्क कर दे गरचे वो इसका मुस्तहिक़ हो और वसते जन्नत में एक घर की ज़मानत लेता हूँ ऐसे शख़्स के लिए जो झूठ को तर्क दे गरचे वो मज़ाक़ ही करता हो और मैं जन्नत के आला हिस्से में एक घर की ज़मानत लेता हूँ उस शख़्स के लिए जो हुस्ने ख़ल्क़ से मुज़य्यन हो। (अबू दाऊद)

तिरमिज़ी, मुसनद अहमद, सुनन अबी दाऊद और इब्ने हिब्बान में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल है जिसे तिरमिज़ी ने हसन सही बताया है के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  ने फ़रमायाः

((أکمل المؤمنین إیماناً أحسنھم خلقاً،و خیارکم خیارکم لنساءھم))
कामिल मोमिन वो है जो अख़्लाक़ में बेहतर हो और तुम में सब से अच्छा शख़्स वो है जो अपनी बीवी के साथ अच्छा हो।

मज़ीद इस बाब में हज़रत आईशा, हज़रत अबूज़र, हज़रत जाबिर, हज़रत अनस, हज़रत उसामा बिन शुरैक, हज़रत मआज़, हज़रत उ़मैर बिन क़तादा, हज़रत अबी सालबा अलख़शनी  की रिवायात हैं जो तमाम की तमाम हसन दर्जे की हैं।
Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.