ग़ज़वा-ए-बदर - 16

ग़ज़वा-ए-बदर - 16

सन् 2 हि. रमज़ान की आठ तारीख़ को आप (صلى الله عليه وسلم) अपने तीन सौ पाँच सहाबा रज़ि0 के हमराह जिन में सत्तर ऊंटों पर सवार थे, हर एक ऊंट पर दो, तीन या चार सहाबा सवार थे और यह अबू सुफ़्यान के क़ाफ़ि़ला के तआकुब में थे हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने अहले मदीना के लिये नमाज़ की इमामत के लिये अ़मर इब्ने अबी मक्तूम रज़ि0 और अबू लुबाबा को मदीना का हाकिम मुक़र्रर कर दिया था इस तरह हुज़ूर अकरम सल्ल0 का यह क़ाफ़ि़ला अबू सुफ़्यान के क़ाफ़ि़ला के बारे में ख़बर हासिल करते करते ज़फ़्रान की वादी पहुंचा और वहीं ख़ैमा ज़न हुआ और येह ख़बर मिली के मक्का से कु़रैश अबू सुफ़्यान के क़ाफ़ि़ला की हिफ़ाज़त में रवाना हुये हैं अब मुआमिला की नौइयत ही बदल गई थी, अब सिर्फ़़ अबू सुफ़्यान के क़ाफ़ि़ला से मुक़ाबला का सवाल नहीं था बल्के अब तो मुआमिला येह था के क़ुरैश से मुक़ाबला लिया जाये या नहीं? चुनाँचे हुज़ूर सल्ल0 ने सहाबा से मशवरा किया, हज़रत अबू बक्र से फिर हज़रत उ़मर, फिर हज़रत अल मिक़्दाद बिन अ़म्र खड़े हुये और फ़रमाया एै अल्लाह के रसूल आप (صلى الله عليه وسلم) चलिये जहां अल्लाह का हुक्म है और हम आपके साथ हैं, हम बनी इस्राईल की तरह येह नहीं कहेंगे के आप और आपका अल्लाह जाये और क़िताल करे हम अपने घरों में बैठे हैं, बल्के हम केहते हैं के आप और आपका अल्लाह और क़िताल करे और हम आपके साथ क़िताल करेंगे, ख़्वाह आप के साथ जाने में कुछ भी ख़तरा हो हम पीछे नहीं हटंेगे तमाम मुसलमान ख़ामोश थे फिर आप (صلى الله عليه وسلم) ने सबको मुख़ातिब करके फ़रमायाः एै लोगो अपनी राय दो, इससे आप (صلى الله عليه وسلم) की मुराद अन्सार से थी जिन्होंने अ़क़बा में आप (صلى الله عليه وسلم) की इसी तरह हिफ़ाज़त करने की बैअ़त की थी जिस तरह वोह अपने अहल ओ अ़याल की करते हैं, लेकिन इसमें मदीना से बाहर जाकर लड़ना शामिल नहीं था, लिहाज़ा जब अंसार ने मेहसूस किया के इससे उनकी तरफ़ इशारा किया जा रहा है तो हज़रत सअ़द इब्ने मुआज़ रज़ि0 जो अंसार के सरदार थे खड़े हुये और फ़रमाया एै अल्लाह के रसूल सल्ल0 क्या आपकी मुराद हम से है? आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया हाँ हज़रत सअ़द ने जवाब दिया हम आप (صلى الله عليه وسلم) पर ईमान लाये हैं, आप को सच्चा तस्लीम किया है और जो (पैग़ाम) आप (صلى الله عليه وسلم) लाये हैं उसकी सच्चाई पर शहादत दी है और आप (صلى الله عليه وسلم) की बात सुनने और हुक्म मानने का अ़हद किया है, लिहाज़ा आप (صلى الله عليه وسلم) जहाँ चाहें जाइये, हम आपके साथ हैं और क़सम उस ज़ात की जिसने आप (صلى الله عليه وسلم) को मबऊस फ़रमाया है, अगर आप हमें समन्दर में छलांग लगाने को भी कहेंगे तो हम आपके साथ होंगे और हम में से कोई भी पीछे नहीं रहेगा, हम दुशमन से कल ही मुक़ाबले को तैयार हैं, हम जंग में तर्जुबाकार हैं और आप हम पर एैतेमाद कर सकते हैं और बहुत मुम्किन है के अल्लाह तआला हमारे ज़रिये आपको एैसा कुछ दिखाये जो आपको ख़ुश कर दे लिहाज़ा आप हमें अल्लाह के हुक्म से ले चलिये।
अभी हज़रत सअ़द रज़ि0 की बात पूरी होने नहीं पाई थी के आप (صلى الله عليه وسلم) का चेहरा मुबारक मसर्रत से खिल उठा और आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया कूच करो और अल्लाह ने मुझे फ़तह की बशारत दी है, मैं अभी से दुशमन को ज़ेर होता देख रहा हूं। अब हुज़ूर अकरम सल्ल0 और मुसलमानों का क़ाफ़ि़ला रवाना हुआ और बदर के क़रीब पहुंच गया जहाँ यह पता चला के कु़रैश का क़ाफ़ि़ला क़रीब आ पहुंचा है। हुज़ूर अकरम सल्ल0 हज़रत अ़ली, हज़रत जु़बैर बिन अल अ़वाम और हज़रत सअ़द इब्ने वक़्क़ास रज़ि0 को कुछ सहाबा-ए-किराम के साथ बदर की कुँएं के पास भेजा के वोह कु़रैश के हालात की ख़बर लायें, येह हज़रात रज़ि0 अपने साथ कु़रैश के दो नौजवानों को पकड़ कर लाये जिन से पता चला के कु़रैश के सरदार अबू सुफ़्यान के क़ाफ़ि़ला की हिफ़ाज़त के लिये अपने साथ नौ सौ से एक हज़ार अफ़्राद पर मुश्तमिल क़ाफ़ि़ला लेकर निकले हैं हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने मुसलमानों को ख़बरदार किया के अहले मक्का ने अपने सबसे बहादुर अफ़्राद को मुक़ाबिले के लिये रवाना किया है और सहाबा-ए-किराम रज़ि0 से मुतालिबा किया के वोह इस मुहिम के लिये अपनी कमर कस लें।
मुसलमानों ने अ़हद किया के वोह डटकर कुफ़्फ़ार का मुक़ाबला करेंगे, मुसलमान फ़ौज ने कुँएं के अतराफ़ अपना डेरा डाला और एक बान्ध तैयार किया जिसको पानी से भर दिया गया और बाक़ी तमाम कूवों को बंद कर दिया गया ताके अपनी फ़ौज को पानी मुहैय्या होता रहेे और कुफ़्फ़ार को पानी मयस्सर न आये। फिर हुज़ूर सल्ल0 के क़याम के लिये एक झोंपड़ी तैयार की गई, कु़रैश ने वहां पहुंचकर महाज़ संभाला और झड़पें शुरू हो र्गइं, सब से पहले असवद इब्ने अ़ब्दुल असद अल मख़जूमी कु़रैश की सफ़ों से निकल कर मुक़ाबिले के लिये आगे आया ताके उस बान्ध को तोड़ दे जिसमें पानी भरा गया था। उसके मुक़ाबला के लिये हज़रत हमज़ा बिन अ़ब्दुल मुत्तलिब आगे-आगे आये और एक ही वार से उसके पैर को अलग कर दिया, जिससे असवद पीठ के बल गिर पड़ा, पैर से ख़ून बह रहा था और फिर अगले ही वार में वोह उसी बान्ध में मारा गया। इसके बाद उ़तबा इब्ने रबीअ़ अपने भाई शैबा और बेटे वलीद के हमराह आगे आया जिसके मुक़ाबला के लिये हज़रत हमज़ा, हज़रत अ़ली और हज़रत उ़बैदा बिन हारिस रज़ि0 आये हज़रत हमज़ा ने शैबा को और हज़रत अ़ली रज़ि0 ने वलीद को ज़रा मोहलत दिये बग़ैर उनका काम तमाम कर दिया फिर वोह हज़रत उ़बैदा रज़ि0 की मदद को आगे बढ़े जो उ़तबा से नबर्दआज़मा थे और ज़ख़्मी हो गये थे। उ़तबा को ख़त्म करके यह हज़रात हज़रत उ़बैदा को अपने साथ वापस लाये। फिर जुमा 17 रमज़ान स्न 2 हि. की सुबह को फ़ौजें एक दूसरे के क़रीब आईं और हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने फ़ौज की सफ़ोें को आरास्ता किया और उन्हें लड़ाई की तर्ग़ीब की इस तरग़ीब से और ख़ुद हुज़ूर अकरम सल्ल0 के उनके दरमियान मौजूद होने से सहाबा के जोश में और इज़ाफ़ा हुआ और वोह आगे बढ़े और कु़रैश की सफ़ों मे दाख़िल हो गये, हर तरफ़ कु़रैश के सर उनके धाड़ों से जुदा होकर गिर रहे थे, मुसलमानों के लबों पर अहद अहद के नारे रवां थे जिनसे फ़िज़ा गूंज उठी थी, हुज़ूर अकरम सल्ल0 मुसलसल सफ़ों के दरमियान थे और सहाबा की हिम्मत अफ़्ज़ाई करते जा रहे, आप (صلى الله عليه وسلم) ने मुट्ठी में कंकरियां उठाकर कु़रैश की तरफ़ फेंकी और फ़रमाया के कु़रैश के चेहरे सियाह हों। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फिर सहाबा-ए-किराम को आगे बढ़ने को कहा जिसकी फ़ौरन तामील हुई और मुसलमान शानदार फ़तह से हमकिनार हुये कु़रैश के कई सिर गरदनों से अलग होकर ख़ाक आलूद हुये, उनके सरदार गिरफ़्तार किये गये, और बाक़ी अपनी जान बचाकर मैदाने जंग से फ़रार हो गये, इस तरह मुसलमान एक अहम और शानदार जीत के बाद मदीना लौटे।
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