अल्लाह और उसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत
इमाम ज़ोहरी फ़रमाते हैं: बंदे की अल्लाह और रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत के मानी उनकी फ़र्मांबरदारी और उनके अहकाम की ताबेदारी है। अ़ल्लामा बैज़ावी फ़रमाते हैं: मुहब्बत इताअ़त का नाम है। इब्ने अ़रफ़ाकहते हैं: एहले अ़रब के नज़दीक मुहब्बत के मानी किसी चीज़़ का इरादा करना और इसका क़स्द करना है। अलजुज्ज़ाज फ़रमाते हैं: इंसान की अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत के मानी उनकी इताअ़त ओ फ़रमाँ बर्दारी करना और जिन चीज़ों का रब उल इज़्ज़त ने हुक्म दिया और जो चीज़ों रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अकरम लेकर आए हैं उनसे राज़ी ब रज़ा होना है।
इस के बरअ़क्स अल्लाह तआला का अपने बंदों से मुहब्बत करने का मतलब अपने बंदे को माफ़ करना और उस से राज़ी होना और उसे सवाब-ओ-नेक बदला अ़ता करना है। इमाम बैज़ावी फ़रमाते हैं: युहबिबकुम उल्लाहु यग़फ़िर लकुम (अल्लाह तुम से मुहब्बत करता है और तुम को बख़्शता है यानी तुम से राज़ी होता है)। इमाम ज़ोहरी कहते हैं: अल्लाह का अपने बंदों से मुहब्बत करने के मानी उनके गुनाहों को माफ़ करके उन पर इनाम ओ इकराम करना है, अल्लाह तआला फ़रमाता है।
فَاِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْكٰفِرِيْنَ۰۰۳۲ (आल-ए-इमरान(32) अल्लाह काफ़िरों को नापसंद करता है।
सुफ़ियान बिन उए़ैना फ़रमाते हैं: युहबिबकुम उल्लाह के मानी ये हैं के अल्लाह तुम को अपनी क़ुरबत नसीब करेगा, और मुहब्बत बमानी क़ुरबत है मुहब्बत ही अस्ल में क़ुरबत का नाम है। और अल्लाह नाफ़रमानों से मुहब्बत नहीं करता यानी उनको क़ुरबत अ़ता नहीं करेगा। इमाम बग़वी मुहब्बते इलाही के ताल्लुक़ से कहते हैं: अल्लाह का मोमिनों से मुहब्बत करना यानी मोमिनीन की तारीफ़़ करना, उनको सवाब देना और उनके गुनाहों को माफ़ करना है। अलजुज्ज़ाज कहते हैं: अल्लाह के अपनी मख़्लूक़ से मुहब्बत के मानी ये हैं के अल्लाह उनकी ख़ताओं को माफ़ करता है, अपनी रेहमतों का इनाम करता है, उनके गुनाहों को बख़्श देता है और बेहतरीन तारीफ़़ करता है।
यहाँ जो मुहब्बत मक़सूद है वो बंदे का अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत करना है और मज़्कूरा मानों के मुताबिक़ ये मुहब्बत बंदे पर फ़र्ज़ है। ये मुहब्बत एक तबई़ मैलान है जिस से नफ़्से इंसानी मुरक्कब है। ये मैलान या तो जिबिल्ली (instinctual) हो सकते हैं जैसे मिल्कियत की चाहत, अपनी बक़ा का एहसास, इंसाफ पसंदी और अपने एहल ओ अ़याल से मुहब्बत वग़ैरा जैसे फ़ि़त्री रुजहानात जो किसी मख़्सूस फ़िक्र से जुड़े हुए नहीं हैं, या फिर ये मैलान किसी ख़ास तसव्वुर या फ़िक्र से मरबूत हो सकते हैं जो इस मैलान की नौईय्यत मुतय्यन करते हैं। मसलन अमरीका के अस्ली बाशिंदे (aboriginals) यूरोप के मुहाजिरीन को नापसंद करते थे, जबके मदीने के अंसार मक्का के मुहाजिरीन से भाईयों जैसी मुहब्बत करते थे। अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत को शरीअ़त ने ईमान का हिस्सा बताया है और इसे फ़र्ज़ क़रार दिया है, इसकी दलील क़ुरआन हकीम की ये आयात हैं:
وَ مِنَ النَّاسِ مَنْ يَّتَّخِذُ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَنْدَادًا يُّحِبُّوْنَهُمْ۠ كَحُبِّ اللّٰهِ١ؕ وَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْۤا اَشَدُّ حُبًّا لِّلّٰهِ١ؕ
और लोगों में कुछ लोग एैसे हैं जो अल्लाह के सिवा दूसरों को इसका हमसर और मद्दे मुक़ाबिल बनाते हैं और उनके एैसे गिरवीदा हैं जैसी अल्लाह के साथ गिरवीदगी होना चाहिए हालाँके एहले ईमान सब से बढ़ कर अल्लाह को मेहबूब रखते हैं। (तर्जुमा नी-ए-क़ुरआन : बक़रा(165)]
قُلْ اِنْ كَانَ اٰبَآؤُكُمْ وَ اَبْنَآؤُكُمْ وَ اِخْوَانُكُمْ وَ اَزْوَاجُكُمْ وَ عَشِيْرَتُكُمْ وَ اَمْوَالُ ا۟قْتَرَفْتُمُوْهَا وَ تِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَ مَسٰكِنُ تَرْضَوْنَهَاۤ اَحَبَّ اِلَيْكُمْ مِّنَ اللّٰهِ وَ رَسُوْلِهٖ وَ جِهَادٍ فِيْ سَبِيْلِهٖ فَتَرَبَّصُوْا حَتّٰى يَاْتِيَ اللّٰهُ بِاَمْرِهٖ١ؕ وَ اللّٰهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفٰسِقِيْنَؒ۰۰۲۴
ऐ नबी! आप केह दीजिए के अगर तुम्हारे बाप और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे अ़जीज़-ओ-अक़ारिब और तुम्हारे वो माल जो तुम ने कमाए हैं और तुम्हारे वोह कारोबार जिन के मांद पड़ जाने का तुम को ख़ौफ़ है और तुम्हारे वोह घर जो तुम को पसंद हैं, तुम को अल्लाह और उसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) की राह में जिहाद से अ़ज़ीज़ तर और मेहबूब हैं तो इंतिज़ार करो यहाँ तक के अल्लाह अपना फ़ैसला तुम्हारे सामने ले आए और अल्लाह फ़ासिक़ लोगों की राहनुमाई नहीं किया करता। ;तर्जुमा मआनी ए क़ुरआन: आयत( 24)
और अहादीस नबवी में भी इस की सराहत मौजूदा है, हज़रत अनस इ से मरवी है के:
एक शख़्स ने अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से क़यामत के बारे में सवाल किया के क़यामत कब होगी? आप ने फ़रमाया: तुम ने इसके लिए क्या तैय्यारी की है। उसने जवाब दिया के कुछ नहीं, मगर मैं अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत रखता हूँ, आप ने फ़रमाया: तुम उनके साथ होगे जिनसे मुहब्बत करते हो। हज़रत अनस इ कहते हैं हम किसी चीज़़ से इतना ख़ुश नहीं हुए जितना आप के इस फ़रमान से हमें ख़ुशी हुई। मैं नबी हज़रत अबू बक्र और उ़मर क से मुहब्बत करता हूँ और उम्मीद करता हूँ के इस मुहब्बत की बिना पर मैं आख़िरत में उनके साथ हूँगा, अगरचे मैंने उनके जैसे आमाल और कारनामे अंजाम नहीं दिए।
हज़रत अनस (रज़ि) से मरवी है के आप ने फ़रमाया:
जिस शख़्स के अंदर तीन चीज़ें मौजूद हों उसने हलावत-ए-ईमानी का मज़ा चख लिया( एक वो जिस के नज़दीक अल्लाह और उसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) दूसरों से ज़्यादा मेहबूब हों, और दूसरे वो जिसकी मुहब्बत सिर्फ़ अल्लाह के लिए मख़्सूस हो तीसरे वो जो कुफ्ऱ़ में लौटने को एैसे ही नापसंद करता हो जैसे के आग में डाले जाने को। (मुत्तफ़िक़ अ़लैह)
हज़रत अनस (रज़ि) कहते हैं के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ने फ़रमाया:
बंदा मोमिन नहीं हो सकता जब तक में इसके नज़दीक इसके घर वालों, इसके माल ओ दौलत और तमाम लोगों से ज़्यादा मेहबूब ना हो जाऊँ।
अस्हाबे रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) इस फ़र्ज़ की अदायगी के लिए दीवाना वार लपक पड़ते थे और इस मंजिलत को हासिल करने में एक दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करते थे और ये चाहते थे के उनका शुमार उन लोगों में से हो जाये जिन से अल्लाह और रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह मुहब्बत करते हैं।
हज़रत अनस इ कहते हैं: ग़ज़्वा ए उहद का दिन था और आपके पास से लोग मुंतशिर हो कर इधर उधर बिखर गए थे, सिर्फ़़ अबू तलहा इ आपके साथ थे जो के अपनी ढाल के ज़रीये आप को दुश्मनों से बचा रहे थे और अबू तलहा माहिर तीर अंदाज़ थे। उस दिन उनके हाथों दो या तीन कमानें टूट गईं थीं। जब कोई तीरों का तरकश लिए पास से गुज़रता तो कहते( अबू तलहा के लिए तीरों को फैला दो। आप लोगों की जानिब झांक रहे थे तो अबू तलहा ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) मेरे माँ बाप आप पर कुर्बान! उनकी जानिब ना देखें कहीं कोई तीर आप को ना लग जाये मेरा सीना आप के सीने के आगे रहे।
कै़स से मरवी है वो कहते हैं के मैंने अबू तलहा के वो हाथ देखे जो उहद के दिन आप की हिफ़ाज़त कर रहे थे, वो हाथ शॅल हो चुके थे। (बुख़ारी)
हज़रत काब बिन मालक इ की हदीस (वो मशहूर हदीस जिस में तीन अफ़्राद का ज़िक्र है जो ग़ज़वा-ए-तबूक में पीछे रह गए थे और जिनके मुआमले को मोअख़्ख़र कर दिया गया था, काब बिन मालिक इ इन में से एक हैं।) जिसमें काब फ़रमाते हैं: जब लोगों की क़सावत बढ़ गई तो मैं चला और अबू क़तादा के बाग़ की दीवार पर चढ़ गया, अबू क़तादा मेरे चचा के लड़के थे और मुझे बहुत मेहबूब थे। चुनांचे मैंने उनको सलाम किया, अल्लाह की क़सम उन्होंने सलाम का जवाब ना दिया, मैंने उनसे कहा (ऐ अबू क़तादा अल्लाह का वास्ता देता हूँ तुम नहीं जानते के मैं अल्लाह-ओ-रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) को मेहबूब रखता हूँ वो ख़ामोश रहे मैंने फिर पूछा और अल्लाह का वास्ता दिया, वो चुप रहे, मेरे मज़ीद अल्लाह का वास्ता देकर पूछने पर वो बोले( अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) ज़्यादा बेहतर जानते हैं। ये सुन कर मेरे आँसू निकल पड़े में वापिस मुड़ा और दीवार फांद कर निकल आया। (मुत्त्फ़िक़ अ़लैह)
सहल बिन साद (रज़ि) ने अबू हाज़िम को ख़बर देते हुए कहा:
ख़ैबर के दिन रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ने फ़रमाया: में ये पर्चम कल एैसे शख़्स को दूंगा जिस के ज़रीये अल्लाह फ़तहयाबी अ़ता फ़रमाएगा। जो अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से बेइंतिहा मुहब्बत रखता है। हज़रत सहल फ़रमाते हैं के वो रात लोगों ने बड़ी बेचैनी से गुज़ारी के पर्चम किस को दिया जाऐगा, सुबह के वक़्त लोग रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के पास गए और तमाम लोगों की यही ख़्वाहिश थी के ये अ़लम उनको मिले। आपने फ़रमाया: अ़ली बिन अबी तालिब कहाँ हैं। तो लोगों ने कहा उनकी आँखों में तकलीफ़ है आप ने इनको बुलवा भेजा चुनांचे हज़रत अ़ली को लाया गया आप ने हज़रत अ़ली की आँखों में अपना लुआब ए दहन लगाया और दुआ की, हज़रत अ़ली की आँखें एैसे ठीक हो गईं जैसे इन में कोई तकलीफ़ ही ना रही हो। आप ने अ़ली (रज़ि) को अ़लमे फ़तह अ़ता किया। हज़रत अ़ली (रज़ि) ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! में उनसे उस वक़्त तक जिहाद करता रहूंगा जब तक वो हमारी तरह मुसलमान ना हो जाऐं तो आपने फ़रमाया: अपने लश्कर को ले जाओ और उनके मैदानों में उतरो फिर उनको इसलाम की दावत दो और इस बात की ख़बर दो के अल्लाह के हक़ में उन पर क्या चीज़ें फ़र्ज़ होती हैं, अल्लाह की क़सम अगर अल्लाह तुम्हारे हाथों किसी एक शख़्स को भी हिदायत दे तो तुम्हारे लिए सुर्ख़ ऊंट से बेहतर है। (बुख़ारी और मुस्लिम)
इब्ने हिबान ने अपनी सही में ज़िक्र किया है के हज़रत अ़रवा बिन मसऊ़द इ अपने साथियों के पास वापस आए और कहा: कौन सी क़ौम है, अल्लाह की क़सम मैं बादशाहों के दरबार में गया कै़सर-ओ-किसरा के एैवानों में हाज़िरी दी, नजाशी के दरबार में गया मगर अल्लाह की क़सम एैसा बादशाह नहीं देखा जिसके हवारी और साथी उसकी इतनी ताज़ीम करते हों जैसे मुहम्मद के साथी मुहम्मद की करते हैं और क़सम ख़ुदा की अगर वो थूकते भी हैं तो आदमी उनको अपने हाथों में लेकर चेहरे और जिस्म पर मिल लेते हैं, जब किसी काम का हुक्म देते हैं तो इसकी तामील के लिए लपक पड़ते हैं जब वो वुज़ू करते हैं तो लोग वुज़ू के क़तरात पर झपट पड़ते हैं और जब वो गुफ़्तुगु करते हैं तो उनके साथियों की आवाज़ पस्त होती है, इज़्ज़त-ओ-एहतिराम का ये मुआमला है के नज़र भर कर देखते भी नहीं।
मुहम्मद बिन सीरीन फ़रमाते हैं के: हज़रत उ़मर फारूक़ इ के दौरे ख़िलाफ़त में लोग एैसी गुफ़्तुगु किया करते थे गोया के वो उ़मर इ को हज़रत अबू बक्र (रज़ि) पर फ़ज़ीलत दे रहे हों। जब ये बात उ़मर फारूक़ इको मालूम हुई तो उन्होंने कहाः अल्लाह की क़सम! अबू बक्र की एक रात उ़मर के ख़ानदान से बेहतर है। जब रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह हज़रत अबू बक्र (रज़ि) के साथ (हिज्रत के मौके़ पर) ग़ार सूर की तरफ़ निकले तो हज़रत अबू बक्र (रज़ि) कभी आप के आगे चलते फिर कुछ देर बाद आप के पीछे चलने लगते। रसूल अल्लाह (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) ने इस बात को मेहसूस किया और कहाः ऐ अबू बक्र! क्या बात है के कभी तुम मेरे आगे चलने लगते हो और फिर पीछे हो जाते हो। तो हज़रत अबू बक्र (रज़ि) ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! जब मुझे याद आता है के लोग आप के तआकुब में होंगे तो मैं आप के पीछे चलने लगता हूँ, फिर जब मुझे ख़्याल आता है के लोग आप की घात में आगे छुपे हुए होंगे तो मैं आप के आगे चलने लगता हूँ। आप ने पूछाः ऐ अबू बक्र क्या तुम पसंद करोगे के कोई चीज़़ तुम्हें एैसी मिल जाये जो मुझे ना मिले? आप इ ने फ़रमायाः बेशक! क्यों नहीं, क़सम है उस ज़ात की जिसने आपको हक़ के साथ मबऊ़स फ़रमाया, अगर आप पर कोई मुसीबत आए तो मैं चाहूंगा के आप के बजाय वो मुसीबत मुझ पर आ जाऐ। जब दोनों ग़ारे सूर पहुंचे तो अबू बक्र (रज़ि) ने कहाः ऐ रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह! आप यहीं ठहरईए में आप के लिए ग़ार को साफ़ कर दूं। चुनांचे अबू बक्र (रज़ि) ग़ार में दाख़िल हुए और इसकी सफ़ाई की। फिर जब अबू बक्र (रज़ि) बालाई हिस्से को पहूंचे तो याद आया के उन्होंने एक बिल की सफ़ाई नहीं की है तो कहाः ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! आप यहाँ ठहरईए में इस बिल को साफ़ कर दूं। फिर अबू बक्र (रज़ि) ग़ार के अंदर दाख़िल हुए और उस बिल को साफ़ किया। फिर कहाः ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! अंदर आ जाईए। फिर रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ग़ार के अंदर तशरीफ़ ले गऐ। फिर उ़मर इ फ़रमाते हैं: क़सम है उस ज़ात की जिस के हाथों में मेरी जान है! वो रात उ़मर के ख़ानदान से बहुत बेहतर है। (हाकिम ने इसको मुस्तदरक में ज़िक्र किया है और कहा है अगर इस में इरसाल ना पाया जाता तो ये हदीस सही होती शैख़ैन की शर्त पर होने की वजह से) ये मुर्सल मक़बूल है।
अनस बिन मालिक फ़रमाते हैं केः
उहद के दिन रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के साथ सिर्फ़ सात अंसार और दो क़ुरैश के लोग रह गए (बाक़ी सहाबा बिखर गए थे) जब कुफ़्फ़ार ए मक्का ने आप पर हमला किया तो आपने फ़रमायाः कौन है जो उनको मुझ से दूर करे वो जन्नत में मेरे साथ होगा। एक अंसारी सहाबी आगे बढ़े और उनसे क़िताल किया यहाँ तक के शहीद कर दिऐ गऐ। कुफ़्फ़ार ने फिर हमला किया आप ने फिर वही बात दुहराई तो एक और अंसारी सहाबी आगे बढ़े और वो भी शहीद कर दिए गए इस तरह एक एक करके तमाम अंसारी सहाबा शहीद हो गऐ, रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ने अपने क़ुरैश साथियों से फ़रमायाः हम ने अपने साथियों के साथ इंसाफ़ नहीं किया।
अ़ब्दुल्लाह बिन हिशाम कहते हैं केः हम रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के साथ थे और आप उ़मर बिन ख़त्ताब का हाथ थामे हुए थे, उ़मर इ ने आप से कहाः ऐ रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह आप मेरे नज़दीक तमाम चीज़ों से ज़्यादा मेहबूब हैं सिवाए मेरी जान के। आप ने फ़रमाया नहीं ऐ उ़मर! जिस ज़ात के हाथों में मेरी जान है यहाँ तक मैं तुम्हारी जान से ज़्यादा मेहबूब ना हो जाऊं। तो उ़मर इ ने फ़ौरन कहा क़सम अल्लाह की आप मेरी जान से ज़्यादा मेहबूब हैं। आप ने फ़रमायाः ऐ उ़मर! अब तुम्हारा ईमान मुकम्मल हुआ! (बुख़ारी)
इमाम नौवी शरह मुस्लिम में अबू सुलेमान अलख़त्ताबी से हुब्बे रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) के मानी बयान करते हुए कहते हैं के तुम मेरी मुहब्बत में सच्चे और खरे नहीं हो सकते हो जब तक के तुम अपनी जान को मेरी इताअ़त में कुर्बान ना कर दो मेरी मर्ज़ी और ख़्वाहिश को अपनी चाहतों पर मुक़द्दम रखो गरचे इस में तुम्हारी हलाकत ही क्यों ना हो।
इब्ने सीरीन कहते हैं के मैंने उ़बैदा से कहाः
हमारे पास नबी अकरम का मुऐ मुबारक है जो के हमें अनस इ या अनस के घर वालों से हासिल हुआ है। तो उ़बैदा ने कहाः अगर मेरे पास रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अकरम का मूऐ मुबारक होता तो वो मुझे दुनिया और दुनिया की तमाम चीज़ों से ज़्यादा मेहबूब होता। (बुख़ारी)
हज़रत आईशा (रज़ि) से मरवी है के अबू बक्र (रज़ि) ने फ़रमायाः
जिस ज़ात के हाथों में मेरी जान है रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के क़ुराबत दार मुझे इस से ज़्यादा मेहबूब हैं के मैं अपने क़ुराबत दारों से रिश्ता जोड़ूं। (बुख़ारी)
इस के बरअ़क्स अल्लाह तआला का अपने बंदों से मुहब्बत करने का मतलब अपने बंदे को माफ़ करना और उस से राज़ी होना और उसे सवाब-ओ-नेक बदला अ़ता करना है। इमाम बैज़ावी फ़रमाते हैं: युहबिबकुम उल्लाहु यग़फ़िर लकुम (अल्लाह तुम से मुहब्बत करता है और तुम को बख़्शता है यानी तुम से राज़ी होता है)। इमाम ज़ोहरी कहते हैं: अल्लाह का अपने बंदों से मुहब्बत करने के मानी उनके गुनाहों को माफ़ करके उन पर इनाम ओ इकराम करना है, अल्लाह तआला फ़रमाता है।
فَاِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْكٰفِرِيْنَ۰۰۳۲ (आल-ए-इमरान(32) अल्लाह काफ़िरों को नापसंद करता है।
सुफ़ियान बिन उए़ैना फ़रमाते हैं: युहबिबकुम उल्लाह के मानी ये हैं के अल्लाह तुम को अपनी क़ुरबत नसीब करेगा, और मुहब्बत बमानी क़ुरबत है मुहब्बत ही अस्ल में क़ुरबत का नाम है। और अल्लाह नाफ़रमानों से मुहब्बत नहीं करता यानी उनको क़ुरबत अ़ता नहीं करेगा। इमाम बग़वी मुहब्बते इलाही के ताल्लुक़ से कहते हैं: अल्लाह का मोमिनों से मुहब्बत करना यानी मोमिनीन की तारीफ़़ करना, उनको सवाब देना और उनके गुनाहों को माफ़ करना है। अलजुज्ज़ाज कहते हैं: अल्लाह के अपनी मख़्लूक़ से मुहब्बत के मानी ये हैं के अल्लाह उनकी ख़ताओं को माफ़ करता है, अपनी रेहमतों का इनाम करता है, उनके गुनाहों को बख़्श देता है और बेहतरीन तारीफ़़ करता है।
यहाँ जो मुहब्बत मक़सूद है वो बंदे का अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत करना है और मज़्कूरा मानों के मुताबिक़ ये मुहब्बत बंदे पर फ़र्ज़ है। ये मुहब्बत एक तबई़ मैलान है जिस से नफ़्से इंसानी मुरक्कब है। ये मैलान या तो जिबिल्ली (instinctual) हो सकते हैं जैसे मिल्कियत की चाहत, अपनी बक़ा का एहसास, इंसाफ पसंदी और अपने एहल ओ अ़याल से मुहब्बत वग़ैरा जैसे फ़ि़त्री रुजहानात जो किसी मख़्सूस फ़िक्र से जुड़े हुए नहीं हैं, या फिर ये मैलान किसी ख़ास तसव्वुर या फ़िक्र से मरबूत हो सकते हैं जो इस मैलान की नौईय्यत मुतय्यन करते हैं। मसलन अमरीका के अस्ली बाशिंदे (aboriginals) यूरोप के मुहाजिरीन को नापसंद करते थे, जबके मदीने के अंसार मक्का के मुहाजिरीन से भाईयों जैसी मुहब्बत करते थे। अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत को शरीअ़त ने ईमान का हिस्सा बताया है और इसे फ़र्ज़ क़रार दिया है, इसकी दलील क़ुरआन हकीम की ये आयात हैं:
وَ مِنَ النَّاسِ مَنْ يَّتَّخِذُ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَنْدَادًا يُّحِبُّوْنَهُمْ۠ كَحُبِّ اللّٰهِ١ؕ وَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْۤا اَشَدُّ حُبًّا لِّلّٰهِ١ؕ
और लोगों में कुछ लोग एैसे हैं जो अल्लाह के सिवा दूसरों को इसका हमसर और मद्दे मुक़ाबिल बनाते हैं और उनके एैसे गिरवीदा हैं जैसी अल्लाह के साथ गिरवीदगी होना चाहिए हालाँके एहले ईमान सब से बढ़ कर अल्लाह को मेहबूब रखते हैं। (तर्जुमा नी-ए-क़ुरआन : बक़रा(165)]
قُلْ اِنْ كَانَ اٰبَآؤُكُمْ وَ اَبْنَآؤُكُمْ وَ اِخْوَانُكُمْ وَ اَزْوَاجُكُمْ وَ عَشِيْرَتُكُمْ وَ اَمْوَالُ ا۟قْتَرَفْتُمُوْهَا وَ تِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَ مَسٰكِنُ تَرْضَوْنَهَاۤ اَحَبَّ اِلَيْكُمْ مِّنَ اللّٰهِ وَ رَسُوْلِهٖ وَ جِهَادٍ فِيْ سَبِيْلِهٖ فَتَرَبَّصُوْا حَتّٰى يَاْتِيَ اللّٰهُ بِاَمْرِهٖ١ؕ وَ اللّٰهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفٰسِقِيْنَؒ۰۰۲۴
ऐ नबी! आप केह दीजिए के अगर तुम्हारे बाप और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे अ़जीज़-ओ-अक़ारिब और तुम्हारे वो माल जो तुम ने कमाए हैं और तुम्हारे वोह कारोबार जिन के मांद पड़ जाने का तुम को ख़ौफ़ है और तुम्हारे वोह घर जो तुम को पसंद हैं, तुम को अल्लाह और उसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) की राह में जिहाद से अ़ज़ीज़ तर और मेहबूब हैं तो इंतिज़ार करो यहाँ तक के अल्लाह अपना फ़ैसला तुम्हारे सामने ले आए और अल्लाह फ़ासिक़ लोगों की राहनुमाई नहीं किया करता। ;तर्जुमा मआनी ए क़ुरआन: आयत( 24)
और अहादीस नबवी में भी इस की सराहत मौजूदा है, हज़रत अनस इ से मरवी है के:
एक शख़्स ने अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से क़यामत के बारे में सवाल किया के क़यामत कब होगी? आप ने फ़रमाया: तुम ने इसके लिए क्या तैय्यारी की है। उसने जवाब दिया के कुछ नहीं, मगर मैं अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से मुहब्बत रखता हूँ, आप ने फ़रमाया: तुम उनके साथ होगे जिनसे मुहब्बत करते हो। हज़रत अनस इ कहते हैं हम किसी चीज़़ से इतना ख़ुश नहीं हुए जितना आप के इस फ़रमान से हमें ख़ुशी हुई। मैं नबी हज़रत अबू बक्र और उ़मर क से मुहब्बत करता हूँ और उम्मीद करता हूँ के इस मुहब्बत की बिना पर मैं आख़िरत में उनके साथ हूँगा, अगरचे मैंने उनके जैसे आमाल और कारनामे अंजाम नहीं दिए।
हज़रत अनस (रज़ि) से मरवी है के आप ने फ़रमाया:
जिस शख़्स के अंदर तीन चीज़ें मौजूद हों उसने हलावत-ए-ईमानी का मज़ा चख लिया( एक वो जिस के नज़दीक अल्लाह और उसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) दूसरों से ज़्यादा मेहबूब हों, और दूसरे वो जिसकी मुहब्बत सिर्फ़ अल्लाह के लिए मख़्सूस हो तीसरे वो जो कुफ्ऱ़ में लौटने को एैसे ही नापसंद करता हो जैसे के आग में डाले जाने को। (मुत्तफ़िक़ अ़लैह)
हज़रत अनस (रज़ि) कहते हैं के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ने फ़रमाया:
बंदा मोमिन नहीं हो सकता जब तक में इसके नज़दीक इसके घर वालों, इसके माल ओ दौलत और तमाम लोगों से ज़्यादा मेहबूब ना हो जाऊँ।
अस्हाबे रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) इस फ़र्ज़ की अदायगी के लिए दीवाना वार लपक पड़ते थे और इस मंजिलत को हासिल करने में एक दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करते थे और ये चाहते थे के उनका शुमार उन लोगों में से हो जाये जिन से अल्लाह और रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह मुहब्बत करते हैं।
हज़रत अनस इ कहते हैं: ग़ज़्वा ए उहद का दिन था और आपके पास से लोग मुंतशिर हो कर इधर उधर बिखर गए थे, सिर्फ़़ अबू तलहा इ आपके साथ थे जो के अपनी ढाल के ज़रीये आप को दुश्मनों से बचा रहे थे और अबू तलहा माहिर तीर अंदाज़ थे। उस दिन उनके हाथों दो या तीन कमानें टूट गईं थीं। जब कोई तीरों का तरकश लिए पास से गुज़रता तो कहते( अबू तलहा के लिए तीरों को फैला दो। आप लोगों की जानिब झांक रहे थे तो अबू तलहा ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) मेरे माँ बाप आप पर कुर्बान! उनकी जानिब ना देखें कहीं कोई तीर आप को ना लग जाये मेरा सीना आप के सीने के आगे रहे।
कै़स से मरवी है वो कहते हैं के मैंने अबू तलहा के वो हाथ देखे जो उहद के दिन आप की हिफ़ाज़त कर रहे थे, वो हाथ शॅल हो चुके थे। (बुख़ारी)
हज़रत काब बिन मालक इ की हदीस (वो मशहूर हदीस जिस में तीन अफ़्राद का ज़िक्र है जो ग़ज़वा-ए-तबूक में पीछे रह गए थे और जिनके मुआमले को मोअख़्ख़र कर दिया गया था, काब बिन मालिक इ इन में से एक हैं।) जिसमें काब फ़रमाते हैं: जब लोगों की क़सावत बढ़ गई तो मैं चला और अबू क़तादा के बाग़ की दीवार पर चढ़ गया, अबू क़तादा मेरे चचा के लड़के थे और मुझे बहुत मेहबूब थे। चुनांचे मैंने उनको सलाम किया, अल्लाह की क़सम उन्होंने सलाम का जवाब ना दिया, मैंने उनसे कहा (ऐ अबू क़तादा अल्लाह का वास्ता देता हूँ तुम नहीं जानते के मैं अल्लाह-ओ-रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) को मेहबूब रखता हूँ वो ख़ामोश रहे मैंने फिर पूछा और अल्लाह का वास्ता दिया, वो चुप रहे, मेरे मज़ीद अल्लाह का वास्ता देकर पूछने पर वो बोले( अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) ज़्यादा बेहतर जानते हैं। ये सुन कर मेरे आँसू निकल पड़े में वापिस मुड़ा और दीवार फांद कर निकल आया। (मुत्त्फ़िक़ अ़लैह)
सहल बिन साद (रज़ि) ने अबू हाज़िम को ख़बर देते हुए कहा:
ख़ैबर के दिन रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ने फ़रमाया: में ये पर्चम कल एैसे शख़्स को दूंगा जिस के ज़रीये अल्लाह फ़तहयाबी अ़ता फ़रमाएगा। जो अल्लाह और इसके रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से बेइंतिहा मुहब्बत रखता है। हज़रत सहल फ़रमाते हैं के वो रात लोगों ने बड़ी बेचैनी से गुज़ारी के पर्चम किस को दिया जाऐगा, सुबह के वक़्त लोग रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के पास गए और तमाम लोगों की यही ख़्वाहिश थी के ये अ़लम उनको मिले। आपने फ़रमाया: अ़ली बिन अबी तालिब कहाँ हैं। तो लोगों ने कहा उनकी आँखों में तकलीफ़ है आप ने इनको बुलवा भेजा चुनांचे हज़रत अ़ली को लाया गया आप ने हज़रत अ़ली की आँखों में अपना लुआब ए दहन लगाया और दुआ की, हज़रत अ़ली की आँखें एैसे ठीक हो गईं जैसे इन में कोई तकलीफ़ ही ना रही हो। आप ने अ़ली (रज़ि) को अ़लमे फ़तह अ़ता किया। हज़रत अ़ली (रज़ि) ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! में उनसे उस वक़्त तक जिहाद करता रहूंगा जब तक वो हमारी तरह मुसलमान ना हो जाऐं तो आपने फ़रमाया: अपने लश्कर को ले जाओ और उनके मैदानों में उतरो फिर उनको इसलाम की दावत दो और इस बात की ख़बर दो के अल्लाह के हक़ में उन पर क्या चीज़ें फ़र्ज़ होती हैं, अल्लाह की क़सम अगर अल्लाह तुम्हारे हाथों किसी एक शख़्स को भी हिदायत दे तो तुम्हारे लिए सुर्ख़ ऊंट से बेहतर है। (बुख़ारी और मुस्लिम)
इब्ने हिबान ने अपनी सही में ज़िक्र किया है के हज़रत अ़रवा बिन मसऊ़द इ अपने साथियों के पास वापस आए और कहा: कौन सी क़ौम है, अल्लाह की क़सम मैं बादशाहों के दरबार में गया कै़सर-ओ-किसरा के एैवानों में हाज़िरी दी, नजाशी के दरबार में गया मगर अल्लाह की क़सम एैसा बादशाह नहीं देखा जिसके हवारी और साथी उसकी इतनी ताज़ीम करते हों जैसे मुहम्मद के साथी मुहम्मद की करते हैं और क़सम ख़ुदा की अगर वो थूकते भी हैं तो आदमी उनको अपने हाथों में लेकर चेहरे और जिस्म पर मिल लेते हैं, जब किसी काम का हुक्म देते हैं तो इसकी तामील के लिए लपक पड़ते हैं जब वो वुज़ू करते हैं तो लोग वुज़ू के क़तरात पर झपट पड़ते हैं और जब वो गुफ़्तुगु करते हैं तो उनके साथियों की आवाज़ पस्त होती है, इज़्ज़त-ओ-एहतिराम का ये मुआमला है के नज़र भर कर देखते भी नहीं।
मुहम्मद बिन सीरीन फ़रमाते हैं के: हज़रत उ़मर फारूक़ इ के दौरे ख़िलाफ़त में लोग एैसी गुफ़्तुगु किया करते थे गोया के वो उ़मर इ को हज़रत अबू बक्र (रज़ि) पर फ़ज़ीलत दे रहे हों। जब ये बात उ़मर फारूक़ इको मालूम हुई तो उन्होंने कहाः अल्लाह की क़सम! अबू बक्र की एक रात उ़मर के ख़ानदान से बेहतर है। जब रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह हज़रत अबू बक्र (रज़ि) के साथ (हिज्रत के मौके़ पर) ग़ार सूर की तरफ़ निकले तो हज़रत अबू बक्र (रज़ि) कभी आप के आगे चलते फिर कुछ देर बाद आप के पीछे चलने लगते। रसूल अल्लाह (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) ने इस बात को मेहसूस किया और कहाः ऐ अबू बक्र! क्या बात है के कभी तुम मेरे आगे चलने लगते हो और फिर पीछे हो जाते हो। तो हज़रत अबू बक्र (रज़ि) ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! जब मुझे याद आता है के लोग आप के तआकुब में होंगे तो मैं आप के पीछे चलने लगता हूँ, फिर जब मुझे ख़्याल आता है के लोग आप की घात में आगे छुपे हुए होंगे तो मैं आप के आगे चलने लगता हूँ। आप ने पूछाः ऐ अबू बक्र क्या तुम पसंद करोगे के कोई चीज़़ तुम्हें एैसी मिल जाये जो मुझे ना मिले? आप इ ने फ़रमायाः बेशक! क्यों नहीं, क़सम है उस ज़ात की जिसने आपको हक़ के साथ मबऊ़स फ़रमाया, अगर आप पर कोई मुसीबत आए तो मैं चाहूंगा के आप के बजाय वो मुसीबत मुझ पर आ जाऐ। जब दोनों ग़ारे सूर पहुंचे तो अबू बक्र (रज़ि) ने कहाः ऐ रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह! आप यहीं ठहरईए में आप के लिए ग़ार को साफ़ कर दूं। चुनांचे अबू बक्र (रज़ि) ग़ार में दाख़िल हुए और इसकी सफ़ाई की। फिर जब अबू बक्र (रज़ि) बालाई हिस्से को पहूंचे तो याद आया के उन्होंने एक बिल की सफ़ाई नहीं की है तो कहाः ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! आप यहाँ ठहरईए में इस बिल को साफ़ कर दूं। फिर अबू बक्र (रज़ि) ग़ार के अंदर दाख़िल हुए और उस बिल को साफ़ किया। फिर कहाः ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! अंदर आ जाईए। फिर रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ग़ार के अंदर तशरीफ़ ले गऐ। फिर उ़मर इ फ़रमाते हैं: क़सम है उस ज़ात की जिस के हाथों में मेरी जान है! वो रात उ़मर के ख़ानदान से बहुत बेहतर है। (हाकिम ने इसको मुस्तदरक में ज़िक्र किया है और कहा है अगर इस में इरसाल ना पाया जाता तो ये हदीस सही होती शैख़ैन की शर्त पर होने की वजह से) ये मुर्सल मक़बूल है।
अनस बिन मालिक फ़रमाते हैं केः
उहद के दिन रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के साथ सिर्फ़ सात अंसार और दो क़ुरैश के लोग रह गए (बाक़ी सहाबा बिखर गए थे) जब कुफ़्फ़ार ए मक्का ने आप पर हमला किया तो आपने फ़रमायाः कौन है जो उनको मुझ से दूर करे वो जन्नत में मेरे साथ होगा। एक अंसारी सहाबी आगे बढ़े और उनसे क़िताल किया यहाँ तक के शहीद कर दिऐ गऐ। कुफ़्फ़ार ने फिर हमला किया आप ने फिर वही बात दुहराई तो एक और अंसारी सहाबी आगे बढ़े और वो भी शहीद कर दिए गए इस तरह एक एक करके तमाम अंसारी सहाबा शहीद हो गऐ, रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह ने अपने क़ुरैश साथियों से फ़रमायाः हम ने अपने साथियों के साथ इंसाफ़ नहीं किया।
अ़ब्दुल्लाह बिन हिशाम कहते हैं केः हम रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के साथ थे और आप उ़मर बिन ख़त्ताब का हाथ थामे हुए थे, उ़मर इ ने आप से कहाः ऐ रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह आप मेरे नज़दीक तमाम चीज़ों से ज़्यादा मेहबूब हैं सिवाए मेरी जान के। आप ने फ़रमाया नहीं ऐ उ़मर! जिस ज़ात के हाथों में मेरी जान है यहाँ तक मैं तुम्हारी जान से ज़्यादा मेहबूब ना हो जाऊं। तो उ़मर इ ने फ़ौरन कहा क़सम अल्लाह की आप मेरी जान से ज़्यादा मेहबूब हैं। आप ने फ़रमायाः ऐ उ़मर! अब तुम्हारा ईमान मुकम्मल हुआ! (बुख़ारी)
इमाम नौवी शरह मुस्लिम में अबू सुलेमान अलख़त्ताबी से हुब्बे रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) के मानी बयान करते हुए कहते हैं के तुम मेरी मुहब्बत में सच्चे और खरे नहीं हो सकते हो जब तक के तुम अपनी जान को मेरी इताअ़त में कुर्बान ना कर दो मेरी मर्ज़ी और ख़्वाहिश को अपनी चाहतों पर मुक़द्दम रखो गरचे इस में तुम्हारी हलाकत ही क्यों ना हो।
इब्ने सीरीन कहते हैं के मैंने उ़बैदा से कहाः
हमारे पास नबी अकरम का मुऐ मुबारक है जो के हमें अनस इ या अनस के घर वालों से हासिल हुआ है। तो उ़बैदा ने कहाः अगर मेरे पास रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अकरम का मूऐ मुबारक होता तो वो मुझे दुनिया और दुनिया की तमाम चीज़ों से ज़्यादा मेहबूब होता। (बुख़ारी)
हज़रत आईशा (रज़ि) से मरवी है के अबू बक्र (रज़ि) ने फ़रमायाः
जिस ज़ात के हाथों में मेरी जान है रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के क़ुराबत दार मुझे इस से ज़्यादा मेहबूब हैं के मैं अपने क़ुराबत दारों से रिश्ता जोड़ूं। (बुख़ारी)
हज़रत आईशा (रज़ि) फ़रमाती हैंः हिंद बिंत उ़तबा रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) अल्लाह के पास आईं और कहाः
ऐ अल्लाह के रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम)! इस (ये ज़मीन पर आप के ख़ानदान की ज़िल्लत से ज़्यादा किसी और की ज़िल्लत मुझे पसंद ना थी फिर आज सारे (ये ज़मीन पर आप के ख़ानदान से ज़्यादा किसी और ख़ानदान की इज़्ज़त मुझे पसंद नहीं।
तारिक़ बिन शिहाब फ़रमाते हैं के मैंने इब्ने मसऊ़द इ को कहते सुनाः
हज़रत तारिक़ इब्ने शिहाब कहते हैं के में एक मौके़ पर मिक़दाद बिन अलअस्वद इ के साथ था और उनका ये साथ मुझे हर चीज़़ से ज़्यादा मेहबूब था। मिक़दाद इ हुजूर (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) के पास पहुंचे जो कुफ़्फ़ार को मलामत कर रहे थे। मिक़दाद बिन अस्वद ने हुजूर (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) से कहाः हम ये नहीं कहेंगे जो के मूसा (अ.स.) से उनकी क़ौम ने कहा थाः? (तुम और तुम्हारा रब जाऐं और लड़ें) बल्के हम आप के दाएं से आप का दिफ़ा करेंगे आप के बाएं जानिब से भी लड़ेंगे। आप के सामने से भी लड़ेंगे और आप की पुश्त पर भी आप की हिफ़ाज़त करेंगे। तो मैंने आप के चेहरा-ए-मुबारक की जानिब देखा जो ख़ुशी से खिल उठा था।
हज़रत आईशा (रज़ि) से मरवी है के हज़रत साद (रज़ि) ने फ़रमायाः
ऐ अल्लाह! तू जानता है के इस क़ौम (कुफ़्फ़ार मक्का) से ज़्यादा किसी और क़ौम से जंग करना मेरे नज़दीक इतना मेहबूब नहीं है जितना के कुफ़्फ़ार मक्का से क्योंके उन्होंने तेरे रसूल (स्वलल्लाहो अलैयहिवसल्लम) की तकज़ीब की और उनको अपने वतन से निकाला। (मुत्त्फ़िक़ अ़लैह)
हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि) से मरवी है के सुमामा बिन असाल ने कहाः
ऐ मुहम्मद अल्लाह की क़सम मेरे नज़दीक इस (ये ज़मीन पर आप के चेहरे से ज़्यादा नापसंदीदा चेहरा किसी और का ना था मगर अब तमाम चेहरों से ज़्यादा आप का चेहरा मेहबूब है। अल्लाह की क़सम आप के दीन से ज़्यादा नापसंदीदा कोई और दीन ना था मगर अब आप का दीन तमाम अद्यान से ज़्यादा मुझे मेहबूब है। अल्लाह की क़सम मुझे सब से ज़्यादा नापसंदीदा शहर आप का था मगर अब सब से ज़्यादा पसंदीदा आप का ही शहर है। (मुत्त्फ़िक़ अ़लैह)
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