ग़जवा-ए-अहज़ाब - 18

ग़जवा-ए-अहज़ाब - 18

ग़ज़वा-ए-उहद के बाद मदीना में की गई कार्रवाइयां और मदीना के बाहर अ़मल में आने वाली मुहिम्मात से मुसलमान के वक़ार को बहुत मदद मिली, इससे इस्लामी रियासत की कु़व्वत में इज़ाफ़ा हुआ और रियासत के इक़्ितदार को तक़वियत मयस्सर आई। अब ज़ज़ीरा नुमा-ए-अ़रब के क़बाइल इस बात से ख़ौफ़़ खाते के उनपर हमला न हो जाये और जब कभी एैसा होता तो वोह बग़ैर मुक़ाबला किये ही पीठ दिखा देते। ग़तफ़ान और दौमतुल जंदल के साथ यही हुआ था, बल्के कु़रैश ए मक्का ने तो अपनी बुज़दिली के सबब बदर के दूसरे मअ़रका में न आने में ही अपनी खै़र समझी जबके वोह ख़ुदही चैलेंज करके गये थे। इस वजह से मुसलमानों को क़दरे सुकून मयस्सर आया और वोह अब मदीना में अपनी जिन्दगीयों की तरफ़ तवज्जोह दे पाये और उन नये हालात की रौषनी में अपनी ज़िन्दगियों को मुनज़्ज़म कर पाये, जो उन्हें बनी नज़ीर के माले ग़नीमत हासिल होने के बाद मयस्सर हुई थी। मुहाजिरीन में बनू नज़ीर की ज़मीनें, बाग़ात, और असासे तक़्सीम किये गये थे अलबत्ता यह नई ज़रूरियाते ज़िन्दगी उन्हें उनके अस्ल काम से ग़ाफ़िल नहीं कर पाई थीं, यानी जिहाद से जो के क़यामत तक के लिये फ़र्ज़ किया था। इतना ज़रूर था के अब उनकी ज़िन्दगियां पहले की बनिस्बत ज़रा बेहतर और पहले से ज़्यादा मुस्तहकम हो गई थीं।

इस क़दरे इत्मिनान और सुकून के बावजूद हुजू़र अकरम सल्ल0 हमेशा दुशमन के ख़तरा से चैकन्ना रहते के कहीं फिर दुशमन धोका न दे जायें। आपकी कोशिश होती के जज़ीरा नुमा-ए-अ़रब के मुख़्तलिफ़़ इलाक़ों से ख़बरें उन तक पहुंचे। हुज़ूर अकरम सल्ल0 ने इस ग़र्ज़ से कई लोगों को मुख़्तलिफ़़ जगहों पर भेजा के वोह दुशमन के इरादों की मालूमात बहम पहुंचायें ताके हर ख़तरा के लिये पेश बंदी करने की मोहलत मिल जाये और दुशमन से मुक़ाबला इस हाल में हो के दुशमन की हर मुिम्कना चाल का इल्म पहले से हो। येह और भी ज़रूरी इस वजह से हो गया था के अ़रब मुसलमानों की कु़व्वत से ख़ाइफ़ थे और उनके इक़़्तेदार से डरते थे, मज़ीद येह के बनू नज़ीर और बनू क़ैनुक़ाअ़ के यहूदी क़बाइल को मदीना से मुल्क बदर कर दिया गया था और ग़तफ़ान और हुज़ैल जैसे क़बीले कमर तोड़ चोट खा चुके थे। इस वजह से हुज़ूर अकरम दुशमन की इत्तिलाआत और उनकी तैयारियों की ख़बरें जमा करने को अहम मानते थे इसी दौरान इत्तिलाआत मौसूल हुईं के कु़रैशे मक्का और बाज़ दूसरे क़बाइल मदीना पर हमला की तैयारी कर रहे हैं, लिहाज़ा आप (صلى الله عليه وسلم) ने मुसलमानों को इस मुक़ाबिला के लिये तैयार किया। इत्तिलाआत एैसी आ रही थीं के बनी नज़ीर के यहूदी हुजू़़़र अकरम सल्ल0 की जानिब से मुल्क किये जाने के बाद से अपने सीनों में येह आरज़्ाू लगाये बैठे थे के अ़रब क़बाइल को मुसलमानों के खि़लाफ़ वरग़लाकर उनसे अपना इन्तिक़ाम लें.
इस साज़िश को अ़मली जामा पहनाने के मक़्सद से बनू नज़ीर के हुयई इब्ने अख़तब, सलाम इब्ने उबैइ अल-हक़ीक़ और कनाना बिन उबैइ अल हक़ीक और उनके साथ बनू वाइल के हौज़ा बिन कै़स और अबू अ़म्मार मक्का पहुंचे। कु़रैश ने हुयई से उनके लोगों यानी बनी नज़ीर के बारे में पूछा तो हुयई ने बताया के वोह उन्हें मदीना और खै़बर के दरमियान छोड़कर आया है और वोह इस बात पर तरद्दुद में थे के क्या वोह मक्का आयें ताके कु़रैश के हमराह मुसलमानों पर चढ़ाई की जाये, फिर कु़रैश ने उस से बनू कु़रैज़ा का पूछा तो उसने कहा के वोह मदीना ही में हैं और ज़ाहिरी तौर से मुहम्मद (सल्ल0) के साथ हैं और इन्तिज़ार कर रहे हैं के तुम मदीना पर यलग़ार करो तो वोह अंदर से तुम्हारी मदद करें। कु़रैश इस मुक़ाम पर कुछ मुतरद्दि हुये के आया आगे बढ़ा जाये या नहीं? क्योंके दर अस्ल मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) और यहूदियों के माबैन इसके मासिवा कोई तनाज़अ़ नहीं के हुज़ूर अकरम सल्ल0 अल्लाह की तरफ़ दावत देते हैं, उन्हें लगा के हो सकता है के मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) ही हक़ पर हों? चुनांचे उन्होंने यहूदियों से पूछा केः एै क़ौमे यहूद‘ तुम तो पहले के अहले किताब हो तुम येह भी जानते हो के हमारे और मुहम्मद (सल्ल0) के दरमियान क्या इख़्तिलाफ़ है, तुम बताओ के हम में किसका दीन बेहतर है? यहूदी तौहीद परस्त थे और अच्छी तरह जानते थे के इस्लाम ही हक़ है लेकिन इसके बावुजूद उन्होंने अ़रबों को मुसलमानों के खि़लाफ़ जमाक रने वाली अपनी साज़िश के पेशे नज़र एैसी फहश ग़लती की, के जवाब दिया के बेशक तुम्हारा दीन बेहतर है और तुम ही हक़ पर हो।

येह यहूदियों की दायमी रुसवाई है वोह जानते बूझते येह केह बैठे के बुतों की परस्तिश एक अल्लाह की इ़बादत से बेहतर है। लेकिन उन्होंने एैसा किया और करते रहे, जब यहूदियों को यक़ीन हो गया के उन्होंने कु़रैश को मुसलमानों पर हमला के लिये आमादा कर लिया है तो उन्होंने क़ैस अईलान के क़बीला-ए-ग़तफ़ान का रुख़ किया, फिर बनी मर्रा, बनी फु़ज़ारा, अशजाअ़, सुलैम, बनी सअ़द और असद के पास गये और हर उस क़बीले के पास गये जिसे मुसलमानों से कोई इन्तेक़ाम लेना होता और उसे बदला लेने पर उकसाया और भड़काया। यहूदी हर क़बीले को यक़ीन दिलाते के कु़रैश ने हमला करने का फ़ैसला कर लिया है, फिर उस क़बीला के बुतों की तारीफ़ करते और उन्हें फ़तह और कामयाबी का भरोसा दिलाते इस तरह यहूदियों ने कई अ़रब क़बाइल को जमा किया और येह सब कु़रैश के साथ मदीना पर हमला के लिये निकल पडे़।

कु़रैश के चार हज़ार सिपाही, तीन सौ घुड़सवार और पन्द्रह सौ सिपाही ऊंटों पर सवार अबू सुफ़्यान की क़यादत में निकले कबीला-ए-अ़स्फ़ान के सिपाहियों की बहुत बड़ी तादाद एक हज़ार ऊंटों पर सवार उयैयना बिन हसन बिन हुजै़फ़ा की क़यादत में आये। क़बीला-ए-अशजअ़ के चार सौ सिपाही आये जिनकी क़यादत मुस्इर बिन रहीला कर रहा था, बनी मुर्रा के भी चार सौ सिपाही हारिस इब्ने औ़फ़ की क़यादत में निकले, बनी सुलैम और बीरे मऊ़ना के सात सौ सिपाही आये, येह तमाम लोग जमा हुये और इनके साथ बनू सअ़द और बनू असद के फ़ौजी शामिल हुये, इन तमाम की तादाद कम ओबेश दस हजा़र हो गई और येह सब अबू सुफ़्यान की क़यादत में मदीना की जानिब बढ़े। जब हुज़ूर अकरम सल्ल0 को इस फ़ौजी चढ़ाई की इत्तिला मिली तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने मदीना को महफू़ज़ करने का फ़ैसला किया, हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि ने मशवरा दिया के मदीना के अतराफ़ एक खं़दक़़ खोदी जाये जिस से शहर दुशमन से महफ़ूज़ हो जायेगा। चुनांचे ख़ंदक़ ख़ोदी गई जिसमें आप (صلى الله عليه وسلم) ने बज़ाते ख़ुद अपने हाथों से ख़ुदाअ़ी की। आप (صلى الله عليه وسلم) मिट्टी उठा-उठा कर मुसलमानों की हिम्मत अफ़्ज़ाई फ़रमाते और उन्हें अपनी कोशिशें दुगुनी करने की तगीऱ्ब देते इस तरह येह खंदक़ खोदने का काम छहः दिन में मुकम्मल किया गया और जो घर एैन खं़दक़ के सामने और दुशमन के हमला पर थे उनकी दीवारों को मज़्बूत किया गया, खं़दक़ के लगे हुये मकानों को ख़ाली कराया गया और औरतों और बच्चों को एैसे मकानों मेें मुन्तक़िल किया गया जिनकी दीवारें मज़्ाबूत कर दी गई थीं, हुजू़र अकरम सल्ल0 तीन हज़ार सहाबा के साथ निकले और आप (صلى الله عليه وسلم) की पीठ सिलअ़ की पहाड़यों की जानिब थीं, और आप (صلى الله عليه وسلم) और दुशमन के दरमियान ख़ंदक़ हाइल थी, यहां आप (صلى الله عليه وسلم) ने एक सुखऱ् ख़ैमे में क़्याम किया।

कु़रैश और उनके हलीफ़ क़बीले (अहज़ाब) चाहते थे के उहद के मुक़ाम पर मुसलमानों से मुक़ाबला हो, लेकिन जब वोह वहां पहुंचे और मुसलमान वहां नहीं आये, तो कु़रैश और अहज़ाब आगे मदीना की जानिब बढ़े और अपने और मदीना के दरमियान ख़ंदक़ को हाइल पाकर उन्हें सख़्त तअ़ज्जुब हुआ क्योंके दिफ़ाअ़ का यह तरीक़ा उनके लिये बिल्कुल नया तजुर्बा था लिहाज़ा कु़रैश और अहज़ाब ने मदीना के बाहर खं़दक़ की दूसरी जानिब अपना पड़ावा डाला, अब अबू सुफ़्यान और उनके साथियों को एहसास हुआ के उनहें खं़दक़ के बाहर तवील अर्से तक रुकना पड़ सकता है, जबके मोसम सख़्त सर्दी का था और तूफ़ानी हवायें चल रही थी, इन हालात में कमज़ोरियों ने उनके दिलों में घर कर लिया और येह सोचने लगे के अब लौट जायें हैइ इब्ने कअ़ब को इस बात का एैहसास था चुनांचे उसने कहा के क़बीला ए बनू कु़रैजा़ को इस बात पर आमादा करना चाहिये के वोह मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) से अपना मुआहिदा ख़त्म करदें और अहज़ाब के साथ मिल जायें जिससे हमला में आसानी हो, उसने कुरैश और दूसरे अहज़ाब से कहा के अगर बनू कुरैज़ा एैसा करते हैं तो मुसलमानों का बाहर से राब्ता यक्सर मुन्क़तअ़ हो जायेगा और हमला करने के लिये रास्ता हमवार हो जायेगा, कु़रैश और ग़तफ़ान इस तज्वीज़ से खु़श हुये और हुयई को ज़िम्मेदारी सौंपी के वोह बनी कु़रैज़ा के सरदार कअ़ब इब्ने असद से गुफ़्तगू करे, कअ़ब ने जब हुयई को आते देखा तो दरवाज़ा बन्द कर दिया लेकिन हुयई अड़ा रहा और बिल-आखि़र गुफ़्तगू हुई।
हुयई ने कअ़ब से कहा के एै कअ़ब में तुम्हार लिये कभी न ख़त्म होने वाली शोहरत और एक बहुत बड़ी फ़ौज लेकर आया हूं, मेरे साथ कु़रैश और ग़तफ़ान के अकाबिर और सरदार आये हैं मेरा उनसे पक्का अ़हद हो चुका है के वोह मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) और उनके साथियों का खा़त्मा करे बग़ैर नहीं जायेंगे। कअ़ब को तरद्दुद था, उसने हुयई से कहा के मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) अपने अ़हद ओ वायदे के सच्चे और पाबंद हैं, साथ ही उसे मुसलमानों से अ़हद शिकनी करने में डर भी लगा, लेकिन हुयई अपनी बात पर जमा रहा, उसने कअ़ब को याद दिलाया के मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) यहूदियों के साथ किस तरह का सुलूक किया था जबके उस वक़्त वोह किस क़दर मज़्बूत थे बिल-आखि़र कअ़ब ने हुयई की बात तस्लीम कर ली। इस तरह क़अ़ब ने मुसलमानों से किये हुये अ़हद को तोड़ा जब येह ख़बर हुज़ूर अकरम सल्ल0 को मिली तो आप (صلى الله عليه وسلم) और सहाबा-ए-किराम बहुत शदीद अंजाम से वास्ता पड़ने की तशवीश हुइ।
आप (صلى الله عليه وسلم) ने क़बीला-ए-औस के सरदार हज़रत सअ़द इब्ने मुआज़ रज़ि0 क़बीला-ए-ख़ज़रज के सरदार हज़रत सअ़द इब्ने उ़बादा रज़ि0 और उनके साथ हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने रवाहा रज़ि0 और खवात इब्ने जुबैर रज़ि0 को बनी कु़रैजा की ग़द्दारी के हालात पता करने के लिये भेजा और साथ ही उन्हंे येह ताकीद भी कर दी के अगर वाक़ई यहूदियों ने एैसा किया है तो वोह वापस आकर एक ख़ास इशारे से बतायें ताके सिर्फ़ हुजू़र अकरम सल्ल0 उसको समझ पायें और लोग उससे ख़ौफ़़ ज़दा न हों लेकिन अगर येह ख़बर ग़लत हो तो वोह साफ़-साफ़ एैलान कर दें ताके लोगों की तशवीश का इज़ाला हो सके। लेकिन जब येह लोग बनी कु़रैज़ा पहुंचा तो पता चला के हालात इससे भी ज़्यादा संगीन हो चुके थे जो उन्हें इत्तिला मिली थी उन हज़रात ने बनू क़ुरैज़ा के सरदार कअ़ब को समझाने की कोशिश की तो उसने मुतालिबा किया के बनी नज़ीर के यहूद जिन्हें मुल्क बदर कर दिया गया है उन्हें वापस बुलाया जाये ताके वोह अपने वतन में रह सकें। हज़रत सअ़द इब्ने मुआज़ रज़ि0 जो के बनी कु़रैज़ा के हलीफ़ थे कअ़ब को समझाने लगे लेकिन उसने ख़ुद हुजू़र अकरम सल्ल0 की शान में गुस्ताख़ी की और कहा के मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) कौन हैं, हमारे उनसे न कोई अ़हद है और न कोई मुआहिदा।
उन हज़रात ने आकर सारे अहवाल हुजू़र अकरम सल्ल0 को बताये जिस से तशवीश और बढ़ गई। उधर अहज़ाब क़िताल की तैयािरयां करने लगे, बनी कु़रैज़ा ने अहज़ाब से कहा के वोह शदीद क़िताल शुरू करें और येह लोग दस दिन में क़िताल की तैयारी मुकम्मल करके शामिल हो जायेंगे। अहज़ाब ने अपने फ़ौज के तीन हिस्सा किये, इब्ने अअ़वर अस-सलमी की पल्टन वादी की जानिब से हमला करने वाली थी, उयैयना और हसन की पल्टन एक जानिब से और अबू सुफ़्यान की पल्टन को एैन ख़ंदक़ के सामने से हमला करना था। मुसलमानों में खौ़फ़ ओ हरासां का माहौल ज़ाहिर था और तशवीश अ़यां थी। उधर अहज़ाब के हौसले बुलंद थे और उनकी कु़व्वत हैबत नाक, उन्होंने ख़ंदक़ पर हमला किया और उनके कुछ लोग उन पर गुज़रने में कामयाब भी रहे। उनके कुछ घुड़सवार जिन में अम्र इब्ने अ़बदूद्, इक्रिमा इब्ने अबी जेहल और जु़रारा बिन ख़त्ताब शामिल थे, खं़दक़ के एक कम चैड़ाई वाले हिस्सा से आगे बढ़ने लगे, येह अपने घोड़ों को हांकते हुये सिल्आ की पहाड़ियों और खं़दक़ के दरमियान आ गये, हज़रत अ़ली रज़ि0 अपने साथ कुछ मुसलमानों को उस जगह लाये जहां से कुफ़्फ़ार खंदक़ पार करने वाले थे ताके उस जगह की हिफ़ाज़त की जा सके। अ़म्र इब्ने अ़ब्दूद् अपनी टुकड़ी के साथ आकर रोका और उन्हें लड़ने के लिये चैलेंज किया जिसे हज़रत अ़ली रज़ि0 ने कु़बूल किया और कहा मैं तुमहें अपने घोड़े से उतरने का हुक्म देता हूं। अ़म्र इब्ने अ़ब्दूद् ने कहा लेकिन क्यों? एै मेरे भतीजे, मैं तुम्हेें क़त्ल करना नहीं चाहता हज़रत अ़ली रज़ि0 ने कहा लेकिन मैं तुम्हें क़त्ल करना चाहता हूं। दोनों में लड़ाई हुई और अ़म्र इब्ने अ़ब्द वुद् मारा गया, उसके साथी फ़रार हो गये लेकिन इस वाक़िआ से अहज़ाब कमज़ोर नहीं पड़े बल्के अपने ग़ज़ब में उन्होंने मुसलमानों को वहशत ज़दा करने का मुसम्मम इरादा कर लिया।

इस असना बनी कु़रैज़ा के यहूद में से कुछ जोशीले अपने क़िल्आ से बाहर निकल आये ताके आस-पास के घरों में लोगों को खौ़फ़ज़दा करें और दहशत फैलायें हर तरफ़ से घिरे हुये मुसलमानों की तक्लीफ़ें और बढ़ गईं और खौ़फ़ ओ हैबत छाने लगा, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्ल0 उन मुशकिल हालात में भी अल्लाह सुबहानहू की रहमत ओ मदद मिलने से मायूस नहीं हुये। एैसे वक़्त हज़रत नईम इब्ने मस्ऊद रज़ि0 आये और हुज़ूर सल्ल0 के सामने एैसी तज्वीज़ रखी जिससे दुशमन की चालें धरी की धरी रह जातीं। हज़रत नईम रज़ि0 हुज़ूर सल्ल0 के हुक्म ओ इजाज़त से बनी कु़रैज़ा के पास गये जिन्हें उनके इस्लाम कु़बूल करने की इत्तिलाअ़ नहीं थी और ज़माना जाहिलियत में दोस्ती भी थी। उन्होंने यहूदियों को अपने पुराने रिश्ते याद दिलाये जिसमें एक दूसरे के लिये मुहब्बत थी, यहूदियों को बताया के उन्होंने कु़रैश और ग़तफ़ान को मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के सामने लाकर खड़ा कर दिया है और येह लोग बहुत मुिम्कन है के ज़्यादा देर तक न रुके रहें और यहूदियों को फिर मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के रहम ओ करम पर छोड़ कर चले जायेंगे। फिर यहूदियों का क्या होगा। उन्होंने यहूदियों को नसीहत की के उस वक़्त तक अहज़ाब के साथ मिलकर न लड़ें जब तक के वोह अहज़ाब के कुछ लोग अपने हां बतौर रहाइन या यरग़माल न रख दें, ताके उनके छोड़कर भागने का अंदेशा न रहे, इस तरह उन्होंने बनी कु़रैज़ा के यहूदियों को अपनी बात समझा दी।

फिर हज़रत नईम रज़ि0 कु़रैश के पास गये और उनसे कहा के यहूदियों को मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) से अ़हद शिकनी करने का मलाल है और अब वोह लोग इस तरह मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) को मनाने की फिराक़ में हैं के तुम से बतौर अमानत कु़रैश और ग़तफ़ान के सरदारों को ले लें और फिर उन्हें मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के हवाले कर दें जो उनके सर क़लम कर दंेगे। फिर कु़रैश को नसीहत की के अगर किसी को तुम्हारे पास भेजें और तुम्हारे आदमी बतौर यरग़माल चाहें तो तुम उन्हें हरगिज़ एक आदमी भी न भेजना, फिर हज़रत नईम रज़ि0 क़बीला-ए-ग़तफ़ान के पास गये और उन्हें भी वही कुछ बताया जो कु़रैश को बता चुके थे। अब अहज़ाब के दिलों में यहूद की जानिब से शुब्हात घर कर चुके थे, अबू सुफ़्यान ने अपना क़ासिद बनी कु़रैज़ा के यहूदियों को भेजा और येह केहलवाया के हम उस शख़्स को (यानी हुज़ूर सल्ल0) को घेरने के लिये कई दिन से बैठे हैं और यह अर्सा अब लंबा होता जा रहा है, चुनांचे कल तुम हमला कर दो और हम तुम्हारे पीछे हैं कअ़ब ने जवाब भेजवाया के कल सब्त यानी सनीचर का दिन है और हम सब्त को कोई काम या क़िताल नहीं करत।

अब कुरैश को हज़रत नईम रज़ि0 की बात और सच्ची लगने लगी और अबू सुफ़्यान बहुत ग़ज़बनाक हो गया, उसने क़ासिद दोबारा भेजकर केहलवाया के अपने सब्त को किसी और दिन पर उठा रखो, कल क़िताल होना बहुत ज़रूरी है हम हमला कर रहे हैं अगर तुम हमारे साथ नहीं हुये तो हम मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) से पहले तुमसे क़िताल करेंगे। बनू कु़रैज़ा ने अबू सुफ़्यान का जवाब सुनकर कहा के हम सब्त के दिन की रिआयत हर हाल में रखेंगे और अपना मुतालबा पेश किया के तुम्हारे आदमी बतौर ज़मानत हमें दरकार हैं। अबू सुफ़्यान को जब येह जवाब मिला तो उसे हज़रत नईम रज़ि0 की बात का कामिल यक़ीन हो गया और वोह यह फ़िक्र करने लगा के अब क्या किया जाये, चुनंाचे उसने ग़तफ़ान से बात की के कहीं एैसा तो नहीं के वोह भी मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) पर हमला करने में मुतरद्दि हो रहे हों। जब रात हुई तो अल्लाह सुबहानहू तआला ने उन पर शदीद आंधी, बिजली की तेज़ कड़क और मूसलाधार बारिश की जिस से उनके खे़में उखड़ गये, खाने-पीने के बर्तन तितर बितर हो गये और उनके दिलों में खौफ़ तारी हो गया। वोह येह फ़िक्र करने लगे के कहीं एैसा न हो के मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) इस मौक़ा को ग़नीमत समझकर उनपर टूट पड़ें इससे वोह लरज़ गये उसी दौरान तुलैहा ने पुकारा के मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) ने हमला कर दिया है लिहाज़ा जान बचाकर भागो।
अबू सुफ़्यान चिल्लाने लगा के। एै लोगो‘ मैं निकल रहा हूं चुनंाचे तुम भी निकलो। तमाम कु़रैश जो कुछ सामान हाथ लगा उसे उठाकर भागने लगे और ग़तफ़ान और दूसरे अ़रब क़बीले भी उनके पीछे पीछे हो लिये। जब सुबह हुई तो कोई भी न बचा था। हुज़ूर सल्ल0 ने जब येह देखा तो वोह और तमाम मुसलमान खंदक़ से हटे और मदीना की तरफ़ लौट गये अल्लाह सुब्हानहू व तआला ने इस तरह मुसलमानों को क़िताल से बचा लिया।
अब जब हुज़ूर अकरम सल्ल0 को कु़रैश से आराम मिला  और अल्लाह सुबहानहू व तआला ने उन्हें क़िताल से बचा लिया तो आप (صلى الله عليه وسلم) ने तहैया कर लिया के बनी कु़रैज़ा से अब मुआमिला अब निम्टा ही जाये ताके उनके धोकों से हिफ़ाज़त हो और वोह दुशमनों से मिलकर मुसलमानों को ख़त्म करने की फिर कोई साज़िश न कर सकें। हुजू़र अकरम सल्ल0 ने हुक्म दिया के यह एैलान किया जायेः
من كان سامعًا مطيعًا فلا يصلين العصر إلا ببني قريظـة
जो कोई सुनकर इताअ़त करने वाला हो वोह असर की नमाज़ बनी कु़रैज़ा (के इलाक़े में) पहुंच कर ही पढ़े।
हज़रत अ़ली रज़ि0 इस्लाम का परचम लेकर आगे बढ़े और मुसलमान ख़ुषी और सुरूर से भरे उनके पीछे-पीछे चल पड़े यहां तक के बनी कु़रैज़ा पहुंचकर बनी कु़रैज़ा का मुहासिरा कर लिया जो पचीस रातों तक चला, यहूदियों ने अपना क़ासिद हुज़ूर सल्ल0 के पास भेजा के वोह मुज़ाकिरात करना चाहते हैं। काफ़ी मुज़ाकिरात के बाद वोह इस बात पर राज़ी हुये के वोह हज़रत सअ़द इब्ने मुआज़ का फ़ैसला कु़बूल कर लेंगे सअ़द इब्ने मुआज़ ने फ़ैसला सुनाया के उनके सिपाहियों को क़त्ल कर दिया जाये, औरतों और बच्चों को कै़दी बना लिया जाये और माल ओ अमवाल ज़ब्त कर लिये जायें इस फै़सले पर अ़मल दरआमद कर दिया गया और मदीना हमेशा के लिये यहूद के शर ओ फ़साद से पाक हो गया।
अहज़ाब की इस शिकस्त से अ़रबों की यह आखि़री कोशिश के मुसलमानों को ख़त्म कर दिया जाये, यहीं ख़त्म हो गई और बनू कु़रैज़ा का येह फैसला होने के बाद यहूदियों के तीनों क़बीले जो मदीना में आबाद थे और जिन्होंने हुजू़़र सल्ल0 से मुआहिदे कर रखे थे और यके बाद दीगरे मुआहिदों की खि़लाफ़ वरज़ी की थी वोह या तो मदीना से निकाल कर बाहर किये गये या हलाक कर दिये गये। अब मुआमिला पूरी तरह से मुसलमानों के मुवाफ़िक़ था और अ़रब मुसलमानों के दबदबे से मरऊब हो चुके थे।
Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.