उ़मरा-ए-क़ज़ा - 21
सुलेह हुदैबिया के फ़ौरन ही बाद मुसलमानों और कु़रैश के दरमियान अम्न की सूरते हाल हो गई थी। क़बीला-ए-खुज़ाआ़ का हुज़ूर अकरम सल्ल0 के साथ मुआहिदा हो गया था और वोह मुसलमानों की पनाह में आ गये जबके क़बीला-ए-बनू बक्र ने कु़रैश के साथ मुआहिदा किया और उनकी पनाह में चले गये। दोनो फ़रीक़ एक दूसरे से मुतमइन हो गये थे, कु़रैश ने अब अपनी तवज्जोह तिजारत के फ़रोग़ की तरफ़ की ताके पिछले सालों मे मुसलमानों के साथ जंगों के दौरान जो कुछ नुक़्सान उन्होंने उठाया था उसकी भर पाई की जा सके। उधर हुजू़र अकरम सल्ल0 ने अपनी तवज्जोह दावते नुबुव्वत के तमाम लोगों तक पहुंचाने में रियासते इस्लामी को सारे जज़ीरानुमा-ए-अ़रब में मज़्बूत करने और रियासत के अंदर अम्न के क़याम की तरफ़ मब्जू़ल फ़रमाई चुनांचे आप (صلى الله عليه وسلم) ने खै़बर पर चढ़ाई की और अ़रब और अ़रब से बाहर बादशाहों को ख़ुतूत लिखकर इस्लाम की दावत पेश की, और रियासते इस्लामी को सारे जज़ीरानुमा-ए-अ़रब के इलाक़े पर मुहीत किया।
फिर सुलेह हुदैबिया के एक साल बाद आप (صلى الله عليه وسلم) ने लोगों में एैलान किया के वोह उ़मरा-ए-क़जा़ की तैयारी करें जिसके लिये उन्हं पिछले साल रोक दिया गया था। अब दो हज़ार अफ़्राद ने कूच किया जिनके पास सिर्फ़़ अपनी तलवारें थीं जिन्हंे मियानों में रखा गया था, इसके अ़लावा उसके पास और कोई हथियार नहीं था जैसा के हुदैबिया के मुआहिदे में तय किया गया था, अलबत्ता क्योंके हुजू़र अकरम सल्ल0 को अहले मक्का के धोका देने का ख़तरा रहता था इसलिये आप (صلى الله عليه وسلم) ने सौ घुड़सवारों को मुहम्मद बिन मुस्लिमा की क़यादत में अपने आगे जाने का हुक्म दिया और यह ताकीद करदी के उन्हें मक्का की हुर्मत का लिहाज़ रखना है।
बहरहाल मुसलमान मक्का पहुंचे और बगै़र किसी हादसे के उ़मरे के बाद मदीना मुनव्वरा लौट आये। इनके लौटने के बाद अहले मक्का का इस्लाम में दाख़िल होना शुरू हो गया। हज़रत ख़ालिद इब्ने वलीद, हज़रत अम्र इब्नुल-आस और काबा के मुहाफ़िज़ हज़रत उ़स्मान इब्ने तलहा रज़ि0 मुशर्रफ़ ब इस्लाम हुये इसके साथ मक्का के बहुत से लोग इस्लाम में दाखि़ल हुये और इस्लाम की कु़व्वत ओ दबदबे में जहां इज़ाफ़ा हुआ, वहीं क़ुरैश की सफ़ों में कमज़ोरी घर करती गई।
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