सहाबा-ए-किराम की तर्बियत - 2

सहाबा-ए-किराम की तर्बियत - 2
अपनी दावत के इ़ब्तिदाअ़ी दौर में आप (صلى الله عليه وسلم) ने लोगों की उ़म्र, हैसिय्यत, जिन्स, अस्ल और नस्ल से क़तअे नज़र हर उस शख़्स को दावत दी जिस में आप (صلى الله عليه وسلم) ने उसे कु़बूल करने की इस्तेदाद देखी, आप (صلى الله عليه وسلم) लोगों को चुनकर नहीं बुलाते थे बल्के हर एक को दावत देते और उस शख़्स में कु़बूलियत को भांप लेते। इसी तरह कई लोग इस्लाम में दाखि़ल हुये, आप (صلى الله عليه وسلم) उन लोगों की इस्लामी तर्बियत बड़ी फ़िक्रमन्दी से करते और उन्हें कु़रआन की तालीम देते फिर उन सहाबा का एक हलक़ा बना देते ताके यह ख़ुद दीन की दावत आगे बढ़ायेें। यह तादाद चालीस के क़रीब हो गई जिसमें मर्द भी थे और औरतें भी, ज़्यादा तर नौजवान थे, यह लोग ग़रीब भी थे मालदार भी, इनमें कमज़ोर भी थे और क़वी भी, मोमिनीन की यह जमाअ़त जिसने इस्लाम को कु़बूल किया और दावत का काम किया, इन अफ़्राद पर मुश्तमिल थी:   

हज़रत अ़ली इब्ने अबी तालिब (उ़म्र 8 साल), हज़रत ज़ुबैर इब्नुल-अ़वाम (उ़म्र 8 साल), हज़रत तलहा इब्ने उ़बैदुल्लाह(11 साल) हज़रत अर्क़म इब्ने अबिल-अर्क़म (उ़म्र 12 साल), हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मस्ऊ़द (उ़म्र 14 साल), हज़रत सइऱ्द इब्ने ज़ैद (बीस साल से कम), हज़रत सअ़द इब्ने अबी वक़्कास (17 साल), हज़रत सऊ़द इब्ने रबीआ (17 साल), हज़रत जाफ़र इब्ने अबी तालिब (18 साल), हज़रत सोहेब अल-रूमी (बीस साल से कम), हज़रत ज़ैद बिन हारिसा (क़रीब बीस साल), हज़रत उ़स्मान इब्ने अफ़्फ़ान (क़रीब बीस साल), हज़रत तुलैब बिन उ़मेर (बीस साल के क़रीब), हज़रत ख़ब्बाब बिन अल-अरत (क़रीब बीस साल), हज़रत आमिर बिन अल फ़ुहैरा (क़रीब 23 साल) हज़रत मुसअ़ब बिन उ़मैर (24 साल) हज़रत मिक़्दाद बिन अल अस्वद (24 साल), हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन जहश (25 साल) हज़रत उ़मर बिन ख़त्ताब (26 साल) हज़रत अबू उ़बैदा बिन अल-जर्राह (27 साल), हज़रत उ़तबा बिन ग़ज़वान (27 साल), हज़रत अबू हुजै़फ़ा बिन उ़तबा (30 साल), हज़रत बिलाल बिन रबाह (30 साल), हज़रत अ़य्याश बिन रबीआ (30 साल), हज़रत आमिर बिन रबीआ (क़रीब 30 साल), हज़रत नइऱ्म बिन अ़ब्दुल्लाह (30 साल), हज़रत उ़स्मान बिन मज़ऊ़न बिन हबीब (तीस साल), हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्ने मज़ऊ़न बिन हबीब (17 साल), हज़रत क़ुदामा इब्ने मज़ऊ़न बिन हबीब (19 साल), हज़रत अस साइब इब्ने मज़ऊ़न बिन हबीब (17 साल), हज़रत अबू सलमा अ़ब्दुल्लाह इब्नुल-असद अल-मख़ज़ूमी (क़रीब तीस साल), हज़रत अ़ब्दुर रहमान इब्ने अ़ौफ़ (30 साल), हज़रत अ़म्मार बिन यासिर (30 ता 40 साल), हज़रत अबूू बक्र सिद्दीक़ (27 साल), हज़रत हमज़ा बिन अ़ब्दुल मुत्तलिब (42 साल), हज़रत उ़बैदा बिन अल-हारिस (50 साल)। इनके साथ औरतें भी कई थीं जिन्होंने इस्लाम की पुकार पर लब्बैक कहा। रिज़वानुल-लाहि तआला अ़लैहिम अजमईन।

तीन साल की इस मेहनत से सहाबा-ए-किराम की यह जमाअ़त तैयार हुई जिसका हर फ़र्द अपनी फ़िक्र ओ अ़मल के लिहाज़ से मुकम्मल इस्लामी शख़्सियत का हामिल था, उनमें से हर एक फ़र्द के तसव्वुरात इस्लामी थे, वोह अपने फ़िक्र ओ अ़मल से लिहाज़ से ईमान के बुलंद तरीन मुक़ामात पर फ़ाइज़ थे। अब आप (صلى الله عليه وسلم) की फ़िक्रमन्दी कम हुई और इतमीनान हुआ के यह जमाअ़त अल्लाह जल्ला जलालुहू का हुक्म आते ही क़ुरैश के सामने अपने दीन की दावत लेकर खड़ी हो जायेगी ।
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