दावत की शुरूआत - 3

दावत की शुरूआत - 3
आप की सल्ल0 की बेसत के शुरू से इस्लामी दावत की बात ज़ाहिर ओ वाज़ेह थी, मक्के के लोग जानते थे के मोहम्मद सल्ल0 एक नये दीन की तरफ़ दावत दे रहे हैं और कई लोग आप (صلى الله عليه وسلم) के साथ भी हो गये हैं अहले मक्का यह भी जानते थे के आप (صلى الله عليه وسلم) अपने साथियों की तर्बियत भी कर रहे हैं और यह बात भी आम थी के सहाबा-ए-किराम मुख़्तलिफ़़ हलक़ों में बंटकर दीन सीख रहे हैं और अपने इस्लाम क़ुबूल करने की बात क़ुरैश पर ज़ाहिर¬ नहीं कर रहे हैं अह्ले मक्का इस बात से बेख़बर थे के इस दावत को किस किस ने क़ुबूल किया है और न वोह यह जानते थे के यह लोग कहाँ जमा होकर दीन सीखते हैं इस लिये जब आप (صلى الله عليه وسلم) ने बाक़ायदा दीन का एैलान किया तो यह लोगों के लिये कोई नई बात न थी, वोह तो समझ ही रहे थे, उनके लिये नई बात तो उस मुस्लिम जमाअ़त के अफ़्राद की शनाख़्त थी जो अब तक उन से पोशीदा थी, हज़रत हमज़ा बिन अ़ब्दुल मुत्तल्लिब रज़ि0 और उनके तीन दिन बाद हज़रत उ़मर बिन ख़त्ताब रज़ि0 के इस्लाम लाने से मुसलमानों को बहुत मदद मिली और अब अल्लाह तआला का हुक्म नाज़िल हुआ।

فَاصۡدَعۡ بِمَا تُؤۡمَرُ وَ اَعۡرِضۡ عَنِ الۡمُشۡرِڪِيۡنَ‏ ﴿۹۴﴾  اِنَّاڪَفَيۡنٰكَ الۡمُسۡتَهۡزِءِيۡنَۙ‏ ﴿۹۵﴾

पस तुम्हें जिस चीज़ का हुक्म मिला है उसे वाशिगाफ़ बयान कर दो और मुश्रिकीन से एराज़ करो मज़ाक़ उड़ाने वालों के लिये हम तम्हारी तरफ़ से काफ़ी हैं जो अल्लाह के साथ दूसरा माबूद ठहराते हैं पस अ़नक़रीब उन्हें मालूम हो जायेगा। (तर्जुमा मआनी र्क़ुआन करीम सूरहः हिज्रः आयतः 94)

अब अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ आप (صلى الله عليه وسلم) ने उस जमाअ़त को लोगों पर आशकारा कर दिया, सिर्फ़ चंद लोग रह गये थे जिनका क़ुबूले इस्लाम ज़ाहिर नहीं हुआ था और फ़तहे मक्का तक सीगा-ए-राज़ में रहा बहरहाल इस जमाअ़त को आप (صلى الله عليه وسلم) ने दो सफ़ों में मुनज़्ज़म किया एक के आगे हज़रत उ़मर बिन ख़त्ताब रज़ि0 और दूसरी सफ़ के आगे हज़रत हमज़ा थे, कु़रैश ने कभी एैसी सफ़ बन्दी और नज़्म देखा न था और यह उनके लिये एक अ़जूबा था आप (صلى الله عليه وسلم) उन साबिक़ूनल अव्वलून को लेकर काबतूल्लाह तशरीफ़ लाये और सब ने काबा का तवाफ़ किया यह वोह मोड़ था जब इस्लाम खुलकर सामने आया और पहला मख़्फ़ी दौर ख़त्म हुआ जिसमें दावत सिर्फ़ उन लोगों को दी जाती थी जिन से पेहचान थी और में इस्तेदाद पाई गई थी, अब वोह दौर शूरू हुआ जहाँ लोगों से आम खि़ताब किया गया इस तरह मुआषरे में ईमान और कुफ्ऱ के माबैन टकराव शुरू हुआ, सही इस्लामी अफ़्कार और फ़ासिद कुफ्रि़या तसव्वुरात के माबैन मुक़ाबिला आराई हुई यहाँ से जो दूसरा दौर शरू हुआ उसमें एक तरफ़ तो दोनों अफ़्कार के हामिलीन के दरमियान तफ़ाउल हुआ और दूसरी तरफ़ कशमकश ।

उस दौर में मुश्रिकीने क़ुरैश ने दावत की मुज़ाहिमत भी  की और रसूल्ल0 और सहाबा-ए-रसूल की ईज़ारसानी भी, मुख़्तरीक़ों से आप (صلى الله عليه وسلم) को और सल्ल0 के सहाबा-ए-किराम रज़ि0 को अज़िय्यतें दी जाती थीं, आप (صلى الله عليه وسلم) के घर पर पथराव भी हुआ, अबूलहब की बीवी उम्मे जमील आप (صلى الله عليه وسلم) के घर के सामने कचरा और गन्दगी फेंक देती, आप (صلى الله عليه وسلم) ने उन सब को नज़र अनदाज़ किया, अबूजेहल ने एक दफ़ा अपने बुतों पर क़ुर्बान की गई भेड़ की आँतें आप (صلى الله عليه وسلم) पर डाल दीं, आप (صلى الله عليه وسلم) चुपचाप हज़रत फ़ातमा रज़ि0 के घर गये और ख़ुद को उस नजासत से पाक किया, इस से आप (صلى الله عليه وسلم) मायूस होने के बजाये अपने इरादे और दावत में और मज़बूत ही होते थे। क़ुरैश का हर क़बीला मुसलमानों को धमकाता और ईज़ायें देता ताके उस क़बीले में जो कोई इस्लाम की दावत को मान चुका हो वोह उस से फिर जाये, एक क़बीले ने देखा के उसका एक हबशी ग़ुलाम सय्यिदिना बिलाल रज़ि0 मुसलमान हो गये हैं तो उन्हें जलते सूरज के नीचे डाल दिया और उनके सीने पर पत्थर रखकर मरने के लिये छोड़ दिया, सय्यिदिना बिलाल रज़ि0 उस हालत में भी सिर्फ़  अहद-अहद कहा करते और अल्लाह की ख़ातिर हर तकलीफ़ बरदाश्त करते थे, एक मुस्लिम ख़ातून को इत्नी अजी़यतें दीं के वोह ताब न लासकी और ख़त्म हो गई लेकिन इस्लाम का दामन छोड़ कर अपने बाप दादा के दीन को न अपनाया।
मुसलमानों ने हर क़िस्म की मुसीबतें, अज़ीयतें, ज़िल्लतें और महरूमियां बरदाश्त कीं, सिर्फ़़ उस मक़्सद से के अपने रब की ख़ुशनूदी हासिल कर लें।
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