दावत की तौसीअ़ (फैलाव) - 7

दावत की तौसीअ़ (फैलाव) - 7

ताइफ़ में बनी सक़ीफ़ के रद्दे इस्लाम के बाद क़ुरैश की तरफ़ से मुसलमानों पर मज़ालिम का दौर और बढ़ गया था जिसमें मज़ीद इज़ाफ़ा उस वक़्त हुआ जब इस्लाम की दावत हज के दौरान बनू आमीर बिन सअ़सा, बनू हनीफ़ा, बनू कल्ब और बनू किन्दा ने भी ठुकरा दी। इससे क़ुरैश को जो तक़्वियत पहुँची तो उन्होंने आप (صلى الله عليه وسلم) को और अलग थलग कर दिया ताके दावत आगे न बढ़ पाये और कोई बाहरी मदद न आ पाये। लेकिन इस सब्र आज़मा दौर में आप (صلى الله عليه وسلم) और मुसलमान बड़ी इस्तेक़ामत से अपने ईमान पर डटे रहे और उन्हें अल्लाह सुबहानहू व तआला की तरफ़ से कामयाबी के वादे पर कभी शक न हुआ। आप (صلى الله عليه وسلم) जहां तक मुम्किन हुआ दावत देते रहे और क़बाइल से मिलते रहे, इन ख़तरात को बग़ैर ख़ातिर में लाये जो आप (صلى الله عليه وسلم) को दरपेश थे। क़ुरैश के आवारा लड़के आप (صلى الله عليه وسلم) को ज़िच भी करते लेकिन इससे आप (صلى الله عليه وسلم) के एैतेमाद में कभी फ़र्क़ नहीं आया। क़ुरैश की नफ़रतें बढ़ती रहीं, लोग आप (صلى الله عليه وسلم) से कटते रहे लेकिन आप (صلى الله عليه وسلم) का अल्लाह तआला के वादों पर ईमान भी बढ़ता ही रहा के अल्लाह तआला ज़रूर अपने दीन की हिमायत और उसकी हिफ़ाज़त करेगा। इसी तवक़्क़ो के साथ आप (صلى الله عليه وسلم) जब भी मौक़ा होता इस्लाम की दावत ज़रूर देते।

अब हज का मोसम आया और जज़ीरा-ए-अ़रब के तमाम इलाक़ों से क़बाईल मक्का पहुँचने लगे। इन सब्र आज़मा हालात में अल्लाह तआला की तरफ़ से फ़तह की निशानी आई और मदीने के क़बीला-ए-ख़ज़रज के कुछ लोग हज के लिये मक्का आये, आप (صلى الله عليه وسلم) इन लोगों से मिले, बात की और इस्लाम की दावत उनके सामने रखी, येह लोग एक दूसरे को देखने लगे और कहा ब ख़ुदा येह तो वोही नबी है जिनके बारे में (मदीने के) यहूदी हमें डराते रहते हैं, कहीं एैसा न हो के वोह यहूद आप (صلى الله عليه وسلم) की दावत पर हम से सबक़त ले जायें। येह केह कर वोह लोग इस्लाम के दायरे में दाखि़ल हो गये। उन लोगों ने आप (صلى الله عليه وسلم) से कहा के हमने अपने क़बीले छोड़ दिये नफ़रतों में इन जैसा कोई नहीं है, अब येह आप (صلى الله عليه وسلم) के तवस्सुत ही से इत्तिफ़ाक़ कर पायेंगें और अगर एैसा हो गया तो आप (صلى الله عليه وسلم) से ज़्यादा इज़्ज़त वाला कोई न होगा। मदीने लौट कर जब येह लोग आये तो आपने इस्लाम लाने की बात उन्होंने अपने लोगों को बताई और देखा के इन लोगों के दिल इस्लाम के लिये खुले हुये हैं और उनके नुफ़ूस इस दावत के लिये बेताब हैं। अब औस और ख़ज़रज का कोई घर एैसा न था जहां हुज़ुर सल्ल0 का ज़िक्र न हो।
Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.